रविवार, 4 मई 2014

स्वपनदोष एवं वीर्यपतन (Nightfall)....कुछ भ्रांतियां

लगभग छः वर्ष पहले एक लेख लिखा था.....जब स्वपनदोष कोई दोष ही नहीं  है तो ....

इस लेख को पढ़ने के बाद जब कोई परेशान युवक मुझे धन्यवाद के दो शब्द भेजता है तो अच्छा लगता है कि चलो, अपना लिखा किसी के काम तो आया, किसी की परेशानी तो कम हुई।

कुछ दिन पहले एक बुक प्रदर्शनी में मैंने एक किताब खरीदी .....यौवन की दहलीज़ पर....... इसे क्वालीफाईड डाक्टरों द्वारा लिखा गया है और यूनिसेफ (Unicef) द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस किताब के शीर्षक के साथ यह भी लिखा गया है.. मनुष्य के सेक्स जीवन, सेक्स के माध्यम से फैलने वाले गुप्तरोगों (एस.टी.डी) और एड्स के बारे में जो आप हमेशा से जानना चाहते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे कि किससे पूछें...

उस किताब में एक भाग स्वपनदोष और वीर्यपतन विषय से संबंधित है......उस के कुछ अंश यहां लिख रहा हूं......

स्वपनदोष का अर्थ क्या है?
कुछ लोगों में नींद के समय वीर्यपतन हो जाता है, इसे स्वपनदोष कहते हैं। नींद में वासना संबंधी स्वपन आने से मस्तिष्क में कामेंन्द्रियां उत्तेजित होकर कालचक्र पूरा कर लेती हैं, इसी वजह से वीर्यपतन होता है। इस प्रक्रिया को स्वपनदोष कहते हैं। 

स्वपनदोष, आयु के कौन से वर्ष से शुरू होकर कब तक हो सकता है?
यह क्रिया युवावस्था में शुरू होती है और आमतौर पर शादी होने पर बंद हो जाती है। शादी के बाद मनुष्य की शारीरिक जरूरतों की पूर्ति संभोग से हो जाती है , इसलिए सामान्यतया स्वपनदोष नहीं होता है। स्वपनदोष वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकता है, विशेषतौर पर जब जीवनसाथी दूर गया हो और बहुत दिनों से संभोग सुख नहीं मिला हो। स्वपनदोष से किसी प्रकार का कोई शारीरिक नुकसान नहीं होता है। 

बार-बार वीर्यपतन हो जाने से क्या वीर्य खत्म हो जाता है ?
नहीं, यह सिर्फ एक भ्रांति है। वयस्क होने के उपरान्त वीर्य तैयार होने की प्रक्रिया नियमित रूप से जारी रहती है। वीर्यपतन में, वीर्यकोष में एकत्रित वीर्य शरीर से बाहर निकल जाता है। लेकिन बार-बार वीर्यपतन होने से वीर्य खत्म नहीं होता है। वीर्यपतन, संभोग से, हस्तमैथुन से या फिर स्वपनदोष से हो सकता है। थोड़े समय अन्तराल में वीर्यपतन से यदि बार बार हुआ, तो वीर्य की घनता कम होकर, वह पतला हो जाता है। इसका कारण सिर्फ इतना है कि वीर्यपतन की शुरूआत के समय कभी-कभी वीर्यकोष से पहले से इकट्ठा वीर्य बाहर निकल जाता है और उसके बाद, बार-बार वीर्यपतन के समय, वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या और लसदार पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है, जिससे वह पतला दिखता है। वीर्य पतला दिखने के कारण, लोगों को वीर्य समाप्त होने का डर लगता है, लेकिन यह सिर्फ गलतफहमी है। यदि दो वीर्यपतन के बीच अंतर ज्यादा होता है, तब ऐसी स्थिति में बाहर निकलने वाले वीर्य की घनता अधिक होती है। 
इस किताब में स्वपनदोष से संबंधित कुछ ज़रूरी जानकारी और भी हैं, बाद में लिखता हूं। 

इस तरह की जानकारी मुझे तब मिली थी किसी किताब से जब मैं २० वर्ष का था और मैं जानता हूं उस किताब को पढ़ कर मुझे कितना सुकून मिला था। मुझे नहीं पता कि आप उम्र की किस अवस्था में इस लेख को पढ़ रहे हैं, लेकिन अच्छा यही होगा कि इस लेख में लिखी जानकारी को अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें......अनगिनत भ्रंातियों के चलते कुछ युवा अपने इन बेशकीमती ज़िंदगी के वर्षों में अपनी पढ़ाई आदि की तरफ़ उतना ध्यान नहीं दे पाते....हर समय बस बीमारी की कल्पना करते रहते हैं। उन्हें इस लेख का लिंक भेज कर उन की भी चिंता को दूर करिए। 

२००८ में दिल से लिखा वह लेख......... जब स्वपनदोष कोई दोष है ही नहीं तो..
  इस के उपचार के बारे में कुछ जानने के लिए इस पोस्ट पर क्लिक करिए। 



1 टिप्पणी:

  1. बढिया जानकारी डॉ साहब, इससे युवाओं के बीच पनपती भ्रांतियाँ दूर होगीं एवं नीम हकीम खतरे जान के चक्कर में नहीं पड़ेगें।

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