रविवार, 31 जुलाई 2011

गुमराह करने वाली हैल्थ किताबों पर रोक लगाने से होगा क्या !

अभी अभी एक खबर दिख गई कि चीन ने सेहत से संबंधित 104 ऐसी किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है जिन में बेबुनियाद, झूठे दायवे किये गये हैं, गलत एवं गुमराह करने वाली जानकारी लोगों को मुहैया करवाई जा रही है। वैसे काम तो चीन ने अच्छा किया है।

लेकिन यह खबर का पहला पैरा पढ़ते ही मुझे एक बात का ध्यान आ गया ---कहीं पढ़ी थी... दुनिया में कांटों से बचना चाहते हैं? –तो फिर आप सारी दुनिया की ज़मीन पर कॉलीन बिछा दें ......लेकिन इस से कहीं बेहतर है कि आप स्वयं ही जूते पहन लें।

बात कितनी सही है!!

व्यक्तिगत तौर पर मुझे लग रहा है कि इस तरह के प्रतिबंध लगाने से शायद सरकारी आंकड़ों का पेट तो भर जाता हो ...उन का पेट भी तो भरा रहना ज़रूरी है ताकि सब को समय पर पदोन्नति मिलती रहे, कुछ तो प्रोजैक्ट करने के लिये चाहिए।

कुछ कुछ किताबों के बारे में सोच रहा हूं जिन पर प्रतिबंध लगाया गया ... लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह से तो शायद इन को ज़्यादा पब्लिसिटि मिलती होगी... आज के दौर में किताबों की कापियां खरीदना कौन सा मुश्किल काम है। फिर भी, जो भी हो, चीन को इस बात की बधाई कि उस ने इस के बारे में सोच कर पहल तो की।

दूसरी बात यह भी है कि इंटरनेट के दौर में इस तरह के कदम कितने समुचित हैं, पता नहीं। सब कुछ नेट पर बिखरा-सिमटा पड़ा है, बस एक क्लिक की दूरी पऱ। ठीक है, आम आदमी इस से अभी दूर ही है लेकिन उसे भ्रमों में उलझाए रखने के और भी बहुत से साधन हैं।

भारत की ही बात करें तो टीवी पर तरह तरह के बाबाओं का जमावड़ा लगा रहता है जिनमें से बहुत से इतनी अंधश्रद्धा को बढ़ावा दिये जा रहे हैं कि क्या कहें ....अभी चंद मिनट पहले ही देख रहा था कि एक बाबा अपने सिंहासन पर बैठा बैठा अजीबोगरीब समाधान बताए जा रहा था ...और आज ध्यान से देखा कि पब्लिक में उस के बाउंसर भी खड़े हुये थे।

आज के ही हिंदी अखबार से एक हैंड-बिल निकला है .......जिस का शीर्षक है ...दवा से मुक्ति..इस में एक डाक्टर का नाम बताया गया है कि उस ने एक ऐसी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया है जिसमें दवा खाने या लगाने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं होती है। अच्छा, इस में लिखी बातें हु-ब-हू यहां लिख रहा हूं ...

इस पद्धति के माध्यम से किसी भी प्रकार के असाध्य एवं साध्य कहे जाने वाले रोग जैसे सांस की बीमारी, हृदय रोग, मूत्र रोग, लकवा, गुर्दे फेल, मानसिक रोग, गुप्त रोग, कैंसर, गठिया, वात्, एड्स, मिरगी, चर्म रोग, डायबिटिज, उच्च रक्तचाप, बांझपन, हार्मोन संबंधित विकारों का निदान सफलता पूर्वक किया जा रहा है। इस पद्धति में मरीज़ के शरीर से एक बाल लिया जाता है, और रोगी के बाल के माध्यम से दवा का प्रसारण किया जाता है।.....

बस, यार, अब और नहीं मेरे से इस के बारे में लिखा जायेगा।

हां, तो बात चल रही थी बेबुनियाद दावों की, झूठी उम्मीद दिलाने की .... कुछ ऐसे रोग हैं जिन के उपचार से संबंधित कुछ चिकित्सकों ने अपनी साइट बनाई हुई है ... बस, फलां फलां असाध्य रोग का इलाज तो बस उन के ही पास है, बहुत बहुत आकर्षक वेबसाइटें ....और एक मित्र बता रहा था कि एक एक विज़िट के लिये इन के यहां डेढ़ हज़ार के करीब खर्च आ जाता है।

एक वैज्ञानिक सोच यह कहती है कि आज की तारीख में अगर हम सोचें कि कुछ असाध्य बीमारियों का उपचार केवल गिने चुने चंद हकीमों-चिकित्सकों के पास ही है, तो हम बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। हर तरफ़ भोली भाली जनता को - - या बनाने की होड़ सी लगी दिखती है। बेचारा किसी न किसी कांटे में तो फंस ही जाता है, कोफ़त होती है ऐसे लोगों से जो चंद सिक्कों के लिये बीमारी से पहले ही से परेशान पब्लिक को सब्ज-बाग दिखाते हैं....पैसे ऐंठते हैं... विदेशी गाड़ियों में घूमते हैं, विदेश यात्राएं करते हैं... there is just one word to describe them ….Dubious souls!

अगर किसी बीमारी के लिये कोई इलाज आता है तो विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं उस की जांच करती हैं.....बहुत बड़ी व्यवस्था है यह सब.....इसलिये किसी को यूं ही - - या बनाने से ये हाई-फाई ड्रामेबाज गुरेज ही करें तो ठीक होगा ... वरना अगर कल मैं भी यह घोषणा कर दूं कि मैंने दांतों की सड़न से बचने के लिए एक चोपड़ा मंजन तैयार कर लिया है, जब ऐसी कोई बात है ही नहीं, अगर कुछ किया होता तो मेरे कुछ कहने से पहले पूरा विश्व इस के बारे में कहने लगेगा ....लेकिन सब तरह के परीक्षण होने के बाद, ऐसे दायवों की पूरी सुरक्षा जांच होने के बाद ................फिलहाल, वैसे मेरा कोई ऐसा अभिलाषा है भी नहीं... न ही इतनी समझ है, न ही टाइम है, बहुत सा समय तो आप के साथ बातें करने में ही निकल जाता है, मंजन कब तैयार करूंगा, रिटायर होने के बाद जब कहीं खोखा-वोखा खोलूंगा तो देखूंगा .......

बहरहाल, बात को यही कह कर विराम दे रहा हूं कि कितने भी झूठे क्लेम आने लगें, कितनी भी भ्रामक सामग्री प्रिंट होने लगे, कितने भी लोग मीडिया में लोगों को - - या बनाने में लगे रहें, बस अगर हम एक आम आदमी को थोड़ा सा सचेत कर सकें उस की सेहत के बारे में ...उस के सरोकारों के बारे में ....तो बस हो गया अपना काम.................इतना ही काफ़ी है, बाकी सब तो ईश्वर कर ही रहा है।

1 टिप्पणी:

  1. मुझे ऋषिकेश के नीरज क्लीनिक का मामला ध्यान आ रहा है। ये महाशय मिर्गी दौरे का पवित्र इलाज नाम से अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाते थे। बाद में पता चला अपनी आयुर्वैदिक दवाई के नाम पर उसमें अंग्रेजी दवाइयों को मिक्स करके देते थे।

    आपके चोपड़ा मंजन का इन्तजार है। :-)

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