रविवार, 31 जुलाई 2011

पोलियो की दो बूंदों से चूकना खिला सकता है जेल की हवा

नाईजीरिया में विभिन्न भ्रांतियों के चलते कुछ गरीब इलाकों में रहने वाले मुस्लिम समाज से संबंध रखने वाले लोग पोलियो कीLinkLink दो बूंदें अपने बच्चों को पिलाने के हक में नहीं है। इस के लिये वे अजीबोगरीब बहाने बनाते हैं... जो लोग पोलियो की खुराक पिलाने उन के घर में आते हैं, उन्हें कह देते हैं कि यहां कोई छोटा बच्चा रहता ही नहीं, और कुछ जगहों पर तो इन चिकित्सा कर्मियों को घर में घुसने ही नहीं देते..... कईं बार कह देते हैं कि वे रिश्तेदार के यहां किसी दूसरे शहर में गये हुये हैं। सोचने वाली बात यह है कि क्या यह सब केवल नाईज़ीरिया में ही हो रहा है ?

लेकिन दक्षिणी अफ्रीका ने भी इस का समाधान लगता है निकाल ही लिया है... अब जो मां-बाप अपने बच्चों को ज़िंदगी की ये दो बूंदे पिलाने से आना कानी करेंगे उन्हें हवालात की हवा भी खानी पड़ सकती है।

यह रिपोर्ट पढ़ते ध्यान आ रहा था कि देशों की सरकारें इस तरह के अभियानों पर करोडो-अरबों रूपये-डालर-पाउंड खर्च करती हैं लेकिन इतने वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक लोगों के दिलों-दिमाग पर भ्रांतियां इतनी ज़्यादा हावी हैं जिन के चलते इस तरह के अभियानों को झटका तो लगता ही है।

अचानक ध्यान आ गया 1990 के दशक का ही ... जिन दिनों यह अभियान शुरू हुआ ... उन दिनों अखबारों में यह भी छपता था कि कुछ लोगों ने यह वहम पाल लिया था कि कहीं ये बूंदे बिना वजह बार बार पिला कर उन के बच्चों को खस्सी करने की तो साजिश नहीं चल रही ... खस्सी करने का मतलब तो समझते ही होंगे ... बस, इतना ही समझना काफ़ी है कि पंजाबी में खस्सी उसे कहते हैं जो अपनी प्रजनन-क्षमता खो दे ....और इसे अनेकों बार मजाक के दौरान इस्तेमाल भी किया जाता है। तो, इस मुहिम को शुरू शुरू में अपने यहां भी कुछ लोगों द्वारा एक तरह की नसबंदी के तौर पर ही देखा जाता था। सच में भ्रांतियों का कुचक्र तोड़ना कितना मुश्किल है!!


Full marks for this compaign

पल्स-पोलियो का यह अभियान 1990 के दशक में शुरू होने के बाद लगातार जारी है .... कितने वर्षों से रविवार के दिन कुछ कुछ महीनों बाद यह मुहिम चलाई जा रही है .....वर्ष 2002 के आसपास मेरे कुछ लेख इस समस्या पर समाचार पत्रों में छपे थे।

पोलियो को जड़ से खत्म करने के लिये यह हम सब का साझा दायित्व बनता है कि हम अपने स्तर पर इस अभियान को कामयाब बनाने हेतु बढ़ चढ़ कर सहयोग दें....यह सारे विश्व की भलाई के लिये है।

1 टिप्पणी:

  1. आज आपसे पता लगा कि पहले एक समुदाय विशेष द्वारा अपने बच्चों को पोलिया दवा पिलाने का विरोध क्यों किया जाता था।

    दक्षिण अफ्रीका ने एक अच्छा कदम उठाया।

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