पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में ऐसे बहुत से केस देखने-सुनने को मिले जिस में कहा जाता रहा कि टीबी का रोग तो था ही नहीं, बस बेवजह टीबी की दवाईयां शुरू कर दी गईं...और दूसरे किस्से ऐसे जिन में यह आरोप लगते देखे कि टीबी की बीमारी तो डाक्टरों से पकड़ी नहीं गई, ये मरीज़ को और ही दवाईयां खिलाते रहे और जब टीबी का पता चला तो यह इतनी एडवांस स्टेज तक पहुंच चुकी थी कि कुछ किया न जा सका।
अभी दो-चार वर्षों से मैं जब सुना करता था कि टीबी के निदान (डायग्नोसिस) के लिये अब महंगे ब्लड-टैस्ट होने लगे हैं जिन्हें इलाईज़ा टैस्ट भी कहते हैं ...Elisa Tests – Blood tests for Tuberculosis. मुझे इन के बारे में सुन कर यही लगता था कि चलो, जैसे भी अब थोड़ा पैसा खर्च करने से टीबी का सटीक निदान तो हो ही जाया करेगा। ये टैस्ट वैसे तो प्राइव्हेट अस्पतालों एवं लैबोरेट्रीज़ में ही होते हैं ...लेकिन कुछ सरकारी विभाग अपने कर्मचारियों को इस तरह के टैस्ट बाज़ार से करवाने पर उस पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति कर दिया करती हैं --- reimbursement of medical expenses.
मैं इस टैस्ट के बारे में यही सोचा करता था कि एक गरीब आदमी को अगर ये टैस्ट चाहिये होते होंगे तो वे इस का जुगाड़ कैसे कर पाते होंगे, लगभग पिछले एक वर्ष से यही सोचता रहा कि डॉयग्नोसिस तो हरेक ठीक होना ही चाहिये ---यह तो नहीं अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं इस टैस्ट को करवाने के लिये तो वह बिना वजह टीबी की दवाईयां खाता रहे या फिर बीमारी होने पर भी दवाईयां न खा पाए क्योंकि कुछ भी पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता।
ये हिंदोस्तानी लोग पूजा पाठ बहुत करते हैं ना ....और कोई इन की सुने ना सुने, लेकिन ईश्वर इन की बात हमेशा सुन लेते हैं। इस केस में भी यही हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी दी है कि ये जो टीबी की डॉयग्नोसिस के लिये जो ब्लड-टैस्ट भारत जैसे देशों में हो रहे हैं, इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भरोसा नहीं किया जा सकता – यह क्या? डब्ल्यू.एच-ओ को यह चेतावनी जारी करने के लिये इसलिये विवश होना पड़ा क्योंकि इन एलाईज़ा किटों के द्वारा जितने भी टीबी के लिये ब्लड-टैस्ट किये जा रहे हैं...उन में से लगभग 50 प्रतिशत –जी हां, पचास प्रतिशत केसों में रिज़ल्ट गलत आते हैं ...इस का मतलब यह है कि इन टैस्टों को करवाने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं जिन्हें यह बीमारी न होते हुये भी उन की टैस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव (false positives) आएगी और उन की टीबी की दवाईयां शुरू कर दी जाएंगी। और कुछ बदकिस्मत लोग ऐसे होंगे (होंगे, होंगे क्या, होते हैं, WHO जब खुले रूप में यह कह रही है तो कोई शक की गुंजाइश ही कहां रह जाती है!) जिन को यह रोग होते हुये भी उन का रिज़ल्ट नैगेटिव (false negatives) आता है ....परोक्ष रूप से उन्हें दवाईयां दी नहीं जातीं और उन का रोग दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है ...संभवतः जिस का परिणाम उन के लिये जानलेवा सिद्ध हो ही नही सकता, होता ही है।
टीबी के लिये होने वाले इन ब्लड-टैस्टों की पोल तो आज विश्व स्वास्थ्य संगठन में खोली जिस के लिये सारा विश्व इन का सदैव कृतज्ञ रहेगा... पूरी छानबीन, संपूर्ण प्रमाणों के आधार पर ही इस तरह की चेतावनी जारी की जाती है और यहां तक कहा गया है कि इन पर प्रतिबंध लगाये जाने की ज़रूरत है।
मुझे सब से ज़्यादा दुःख जो बात जान कर हुआ वह यह कि इस तरह की टैस्ट की किटें तो उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप में तैयार किया जाता है लेकिन उन का इस्तेमाल भारत जैसे विकासशील देशों में किया जाता है ... ऐसा क्यों भाई? …यह इसलिये कि वहां पर इस तरह के टैस्टों के ऊपर नियंत्रण एकदम कड़े हैं, कोई समझौता नहीं ...यहां तक कि अमेरिकी एफ डी ए (फूज एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने इस तरह के टैस्टों को अप्रूव ही नही किया ....इसलिये जिन देशों में जहां इस तरह की व्यवस्था बिल्कुल ढीली ढाली है, वहां ये टैस्ट बेधड़क किये जाते रहे हैं ....और भारत भला फिर कैसे पीछे रह जाता लेकिन लगता है आज डबल्यू एच ओ के कहने पर अब हमारा नियंत्रण दस्ता भी हरकत में आयेगा और शायद इन टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाए...काश, ऐसा जल्द ही हो जाए।
मैं सोच रहा था ...ये जो तरह तरह के घोटाले होते हैं इन पर तो हम चर्चा करते थकते नहीं लेकिन इन मुद्दों का क्या....कितने वर्षों तक इस तरह के टैस्ट होते रहे जिन के नतीज़े भरोसेमंद थे ही नहीं, जिन की वजह से तंदरूस्त लोग टीबी की दवाईयां खाते रहे होंगे और कुछ लोग टीबी से ग्रस्त होते हुये भी रिपोर्ट ठीक ठीक होने पर जिन्होंने इस की दवाई न लेकर अपना रोग साध्य से असाध्य कर लिया होगा और एक तरह से टैस्ट करवाना ही तो जानलेवा सिद्ध हो गया।
अच्छा मुझे यह बतलाईये, यह जो यू.के है यह यूरोप ही में ही हैं ना ..... देखिये मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुझे जिस ने भी मुझे मैट्रिक में ज्योग्राफी में पास किया, मैं उस का सारी उम्र उस महात्मा का ऋणी रहूंगा.... हां, तो खबर दो-तीन महीने पहले थी कि जो लोग यूके में बाहर से आते हैं उन का टीबी चैकअप ब्लड-टैस्ट के द्वारा किया जाना चाहिये क्योंकि उन की स्क्रीनिंग जो एक्स-रे से होती है, उस की वजह से कईं केस मिस हो जाते हैं क्योंकि उस रिपोर्ट में लिखा था कि ये एक्स-रे केवल सक्रिय टी बी (active TB) को ही पकड़ पाते हैं।
और एक बात ...कुछ पंक्तियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी किये गये एक दस्तावेज से लेकर आप के समक्ष रख रहा हूं ...हु-ब-हू ... यह इस दस्तावेज़ के पेज़ नं.6 पर लिखी गई हैं......
“ India is the country with the greatest burden of TB, nearly 2 million incident cases per year. Conservatively, over 10 million TB suspects need diagnostic testing for TB each year. Findings from a country survey done for the Bill & Melinda Gates Foundation showed that the market for TB serology in India exceeds that for the sputum smears and TB Culture; six major private lab. Networks (out of hundred) perform more than 500,000 TB Elisa Tests each year, at a cost of approx. 10 US Dollars per test or 30 Dollars per patient (for 3 simultaneous tests). Overall an estimated 1.5 million TB Elisa Tests are performed every year in the country, mostly in private sector.
(Commericial Serodiagnostic Tests for diagnosis of Tuberculosis--- WHO Policy Statement 2011…Page 6)
सोच रहा हूं मैंने यहां यह लिख कर कौन सा तीर मार लिया ---सौ दो सौ पाठक पढ़ लेंगे ...और फिर भूल जाएंगे ... लेकिन जिन लोगों तक इस आवाज़ को पहुंचने की ज्यादा ज़रूरत है, उन तक भला यह सब कैसे पहुंचे, अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट को तो आम आदमी खंगालने से रहा ...ज्यादा से ज्यादा वह किसी न्यूज़ चैनल पर खबरें देख-सुन लेगा ...और एक बात, एक न्यूज़-चैनल को इस का पता चल गया लगता है क्योंकि आज दोपहर खाना खाते समय मेरे कानों में कुछ आवाज़ पड़ तो रही थी कि विदेशों में लोग टीबी के निदान (diagnosis) के लिये डीएनए टैस्ट करवाते हैं...........यह एक बहुत महंगा टैस्ट होता है शायद दो हज़ार रूपये में होता है ...अब इस से पहले कि लोगों तक इलाईज़ा टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की ख़बरें पहुंचे क्यों ना पहले ही से जाल बिछा कर रखा जाए, है कि नहीं?
अरे यार, डीएनए टैस्ट की बात कैसे यहां छेड़ दी ... इस पर तो वैसे ही इतना बवाल खड़ा हुआ है ... यह तो एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है लेकिन वह टैस्ट टीबी की जांच के लिये नहीं मांगा जा रहा , वहां माजरा कुछ और ही है ... एक युवक कह रहा है कि एक राजनीतिज्ञ उस का पिता है, इसलिये उस का डीएऩए टैस्ट करने की गुहार लगा रहा है लेकिन नेता जी कह रहे हैं कि उन्हें टैस्ट करवाने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
चलिये, चर्चा यहीं खत्म करें ...............Thanks, WHO for calling for ban on such blood tests. Tons of thanks, indeed.
अभी दो-चार वर्षों से मैं जब सुना करता था कि टीबी के निदान (डायग्नोसिस) के लिये अब महंगे ब्लड-टैस्ट होने लगे हैं जिन्हें इलाईज़ा टैस्ट भी कहते हैं ...Elisa Tests – Blood tests for Tuberculosis. मुझे इन के बारे में सुन कर यही लगता था कि चलो, जैसे भी अब थोड़ा पैसा खर्च करने से टीबी का सटीक निदान तो हो ही जाया करेगा। ये टैस्ट वैसे तो प्राइव्हेट अस्पतालों एवं लैबोरेट्रीज़ में ही होते हैं ...लेकिन कुछ सरकारी विभाग अपने कर्मचारियों को इस तरह के टैस्ट बाज़ार से करवाने पर उस पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति कर दिया करती हैं --- reimbursement of medical expenses.
मैं इस टैस्ट के बारे में यही सोचा करता था कि एक गरीब आदमी को अगर ये टैस्ट चाहिये होते होंगे तो वे इस का जुगाड़ कैसे कर पाते होंगे, लगभग पिछले एक वर्ष से यही सोचता रहा कि डॉयग्नोसिस तो हरेक ठीक होना ही चाहिये ---यह तो नहीं अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं इस टैस्ट को करवाने के लिये तो वह बिना वजह टीबी की दवाईयां खाता रहे या फिर बीमारी होने पर भी दवाईयां न खा पाए क्योंकि कुछ भी पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता।
ये हिंदोस्तानी लोग पूजा पाठ बहुत करते हैं ना ....और कोई इन की सुने ना सुने, लेकिन ईश्वर इन की बात हमेशा सुन लेते हैं। इस केस में भी यही हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी दी है कि ये जो टीबी की डॉयग्नोसिस के लिये जो ब्लड-टैस्ट भारत जैसे देशों में हो रहे हैं, इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भरोसा नहीं किया जा सकता – यह क्या? डब्ल्यू.एच-ओ को यह चेतावनी जारी करने के लिये इसलिये विवश होना पड़ा क्योंकि इन एलाईज़ा किटों के द्वारा जितने भी टीबी के लिये ब्लड-टैस्ट किये जा रहे हैं...उन में से लगभग 50 प्रतिशत –जी हां, पचास प्रतिशत केसों में रिज़ल्ट गलत आते हैं ...इस का मतलब यह है कि इन टैस्टों को करवाने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं जिन्हें यह बीमारी न होते हुये भी उन की टैस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव (false positives) आएगी और उन की टीबी की दवाईयां शुरू कर दी जाएंगी। और कुछ बदकिस्मत लोग ऐसे होंगे (होंगे, होंगे क्या, होते हैं, WHO जब खुले रूप में यह कह रही है तो कोई शक की गुंजाइश ही कहां रह जाती है!) जिन को यह रोग होते हुये भी उन का रिज़ल्ट नैगेटिव (false negatives) आता है ....परोक्ष रूप से उन्हें दवाईयां दी नहीं जातीं और उन का रोग दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है ...संभवतः जिस का परिणाम उन के लिये जानलेवा सिद्ध हो ही नही सकता, होता ही है।
टीबी के लिये होने वाले इन ब्लड-टैस्टों की पोल तो आज विश्व स्वास्थ्य संगठन में खोली जिस के लिये सारा विश्व इन का सदैव कृतज्ञ रहेगा... पूरी छानबीन, संपूर्ण प्रमाणों के आधार पर ही इस तरह की चेतावनी जारी की जाती है और यहां तक कहा गया है कि इन पर प्रतिबंध लगाये जाने की ज़रूरत है।
मुझे सब से ज़्यादा दुःख जो बात जान कर हुआ वह यह कि इस तरह की टैस्ट की किटें तो उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप में तैयार किया जाता है लेकिन उन का इस्तेमाल भारत जैसे विकासशील देशों में किया जाता है ... ऐसा क्यों भाई? …यह इसलिये कि वहां पर इस तरह के टैस्टों के ऊपर नियंत्रण एकदम कड़े हैं, कोई समझौता नहीं ...यहां तक कि अमेरिकी एफ डी ए (फूज एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने इस तरह के टैस्टों को अप्रूव ही नही किया ....इसलिये जिन देशों में जहां इस तरह की व्यवस्था बिल्कुल ढीली ढाली है, वहां ये टैस्ट बेधड़क किये जाते रहे हैं ....और भारत भला फिर कैसे पीछे रह जाता लेकिन लगता है आज डबल्यू एच ओ के कहने पर अब हमारा नियंत्रण दस्ता भी हरकत में आयेगा और शायद इन टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाए...काश, ऐसा जल्द ही हो जाए।
मैं सोच रहा था ...ये जो तरह तरह के घोटाले होते हैं इन पर तो हम चर्चा करते थकते नहीं लेकिन इन मुद्दों का क्या....कितने वर्षों तक इस तरह के टैस्ट होते रहे जिन के नतीज़े भरोसेमंद थे ही नहीं, जिन की वजह से तंदरूस्त लोग टीबी की दवाईयां खाते रहे होंगे और कुछ लोग टीबी से ग्रस्त होते हुये भी रिपोर्ट ठीक ठीक होने पर जिन्होंने इस की दवाई न लेकर अपना रोग साध्य से असाध्य कर लिया होगा और एक तरह से टैस्ट करवाना ही तो जानलेवा सिद्ध हो गया।
अच्छा मुझे यह बतलाईये, यह जो यू.के है यह यूरोप ही में ही हैं ना ..... देखिये मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुझे जिस ने भी मुझे मैट्रिक में ज्योग्राफी में पास किया, मैं उस का सारी उम्र उस महात्मा का ऋणी रहूंगा.... हां, तो खबर दो-तीन महीने पहले थी कि जो लोग यूके में बाहर से आते हैं उन का टीबी चैकअप ब्लड-टैस्ट के द्वारा किया जाना चाहिये क्योंकि उन की स्क्रीनिंग जो एक्स-रे से होती है, उस की वजह से कईं केस मिस हो जाते हैं क्योंकि उस रिपोर्ट में लिखा था कि ये एक्स-रे केवल सक्रिय टी बी (active TB) को ही पकड़ पाते हैं।
और एक बात ...कुछ पंक्तियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी किये गये एक दस्तावेज से लेकर आप के समक्ष रख रहा हूं ...हु-ब-हू ... यह इस दस्तावेज़ के पेज़ नं.6 पर लिखी गई हैं......
“ India is the country with the greatest burden of TB, nearly 2 million incident cases per year. Conservatively, over 10 million TB suspects need diagnostic testing for TB each year. Findings from a country survey done for the Bill & Melinda Gates Foundation showed that the market for TB serology in India exceeds that for the sputum smears and TB Culture; six major private lab. Networks (out of hundred) perform more than 500,000 TB Elisa Tests each year, at a cost of approx. 10 US Dollars per test or 30 Dollars per patient (for 3 simultaneous tests). Overall an estimated 1.5 million TB Elisa Tests are performed every year in the country, mostly in private sector.
(Commericial Serodiagnostic Tests for diagnosis of Tuberculosis--- WHO Policy Statement 2011…Page 6)
सोच रहा हूं मैंने यहां यह लिख कर कौन सा तीर मार लिया ---सौ दो सौ पाठक पढ़ लेंगे ...और फिर भूल जाएंगे ... लेकिन जिन लोगों तक इस आवाज़ को पहुंचने की ज्यादा ज़रूरत है, उन तक भला यह सब कैसे पहुंचे, अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट को तो आम आदमी खंगालने से रहा ...ज्यादा से ज्यादा वह किसी न्यूज़ चैनल पर खबरें देख-सुन लेगा ...और एक बात, एक न्यूज़-चैनल को इस का पता चल गया लगता है क्योंकि आज दोपहर खाना खाते समय मेरे कानों में कुछ आवाज़ पड़ तो रही थी कि विदेशों में लोग टीबी के निदान (diagnosis) के लिये डीएनए टैस्ट करवाते हैं...........यह एक बहुत महंगा टैस्ट होता है शायद दो हज़ार रूपये में होता है ...अब इस से पहले कि लोगों तक इलाईज़ा टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की ख़बरें पहुंचे क्यों ना पहले ही से जाल बिछा कर रखा जाए, है कि नहीं?
अरे यार, डीएनए टैस्ट की बात कैसे यहां छेड़ दी ... इस पर तो वैसे ही इतना बवाल खड़ा हुआ है ... यह तो एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है लेकिन वह टैस्ट टीबी की जांच के लिये नहीं मांगा जा रहा , वहां माजरा कुछ और ही है ... एक युवक कह रहा है कि एक राजनीतिज्ञ उस का पिता है, इसलिये उस का डीएऩए टैस्ट करने की गुहार लगा रहा है लेकिन नेता जी कह रहे हैं कि उन्हें टैस्ट करवाने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
चलिये, चर्चा यहीं खत्म करें ...............Thanks, WHO for calling for ban on such blood tests. Tons of thanks, indeed.
इस से पहले कि लोगों तक इलाईज़ा टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की ख़बरें पहुंचे क्यों ना पहले ही से जाल बिछा कर रखा जाए
जवाब देंहटाएंजब जाल में फंसने को बेताब हैं
तो क्यों ना तैयारी कर ली जाए :-)
तो फिर टीबी का पता लगाने का सही तरीका क्या है?
जवाब देंहटाएं