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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

टीबी के ब्लड-टैस्टों में हो रहा इतना गड़बड़-झाला

पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में ऐसे बहुत से केस देखने-सुनने को मिले जिस में कहा जाता रहा कि टीबी का रोग तो था ही नहीं, बस बेवजह टीबी की दवाईयां शुरू कर दी गईं...और दूसरे किस्से ऐसे जिन में यह आरोप लगते देखे कि टीबी की बीमारी तो डाक्टरों से पकड़ी नहीं गई, ये मरीज़ को और ही दवाईयां खिलाते रहे और जब टीबी का पता चला तो यह इतनी एडवांस स्टेज तक पहुंच चुकी थी कि कुछ किया न जा सका।

अभी दो-चार वर्षों से मैं जब सुना करता था कि टीबी के निदान (डायग्नोसिस) के लिये अब महंगे ब्लड-टैस्ट होने लगे हैं जिन्हें इलाईज़ा टैस्ट भी कहते हैं ...Elisa Tests – Blood tests for Tuberculosis. मुझे इन के बारे में सुन कर यही लगता था कि चलो, जैसे भी अब थोड़ा पैसा खर्च करने से टीबी का सटीक निदान तो हो ही जाया करेगा। ये टैस्ट वैसे तो प्राइव्हेट अस्पतालों एवं लैबोरेट्रीज़ में ही होते हैं ...लेकिन कुछ सरकारी विभाग अपने कर्मचारियों को इस तरह के टैस्ट बाज़ार से करवाने पर उस पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति कर दिया करती हैं --- reimbursement of medical expenses.

मैं इस टैस्ट के बारे में यही सोचा करता था कि एक गरीब आदमी को अगर ये टैस्ट चाहिये होते होंगे तो वे इस का जुगाड़ कैसे कर पाते होंगे, लगभग पिछले एक वर्ष से यही सोचता रहा कि डॉयग्नोसिस तो हरेक ठीक होना ही चाहिये ---यह तो नहीं अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं इस टैस्ट को करवाने के लिये तो वह बिना वजह टीबी की दवाईयां खाता रहे या फिर बीमारी होने पर भी दवाईयां न खा पाए क्योंकि कुछ भी पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता।

ये हिंदोस्तानी लोग पूजा पाठ बहुत करते हैं ना ....और कोई इन की सुने ना सुने, लेकिन ईश्वर इन की बात हमेशा सुन लेते हैं। इस केस में भी यही हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी दी है कि ये जो टीबी की डॉयग्नोसिस के लिये जो ब्लड-टैस्ट भारत जैसे देशों में हो रहे हैं, इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

भरोसा नहीं किया जा सकता – यह क्या? डब्ल्यू.एच-ओ को यह चेतावनी जारी करने के लिये इसलिये विवश होना पड़ा क्योंकि इन एलाईज़ा किटों के द्वारा जितने भी टीबी के लिये ब्लड-टैस्ट किये जा रहे हैं...उन में से लगभग 50 प्रतिशत –जी हां, पचास प्रतिशत केसों में रिज़ल्ट गलत आते हैं ...इस का मतलब यह है कि इन टैस्टों को करवाने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं जिन्हें यह बीमारी न होते हुये भी उन की टैस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव (false positives) आएगी और उन की टीबी की दवाईयां शुरू कर दी जाएंगी। और कुछ बदकिस्मत लोग ऐसे होंगे (होंगे, होंगे क्या, होते हैं, WHO जब खुले रूप में यह कह रही है तो कोई शक की गुंजाइश ही कहां रह जाती है!) जिन को यह रोग होते हुये भी उन का रिज़ल्ट नैगेटिव (false negatives) आता है ....परोक्ष रूप से उन्हें दवाईयां दी नहीं जातीं और उन का रोग दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है ...संभवतः जिस का परिणाम उन के लिये जानलेवा सिद्ध हो ही नही सकता, होता ही है।

टीबी के लिये होने वाले इन ब्लड-टैस्टों की पोल तो आज विश्व स्वास्थ्य संगठन में खोली जिस के लिये सारा विश्व इन का सदैव कृतज्ञ रहेगा... पूरी छानबीन, संपूर्ण प्रमाणों के आधार पर ही इस तरह की चेतावनी जारी की जाती है और यहां तक कहा गया है कि इन पर प्रतिबंध लगाये जाने की ज़रूरत है।

मुझे सब से ज़्यादा दुःख जो बात जान कर हुआ वह यह कि इस तरह की टैस्ट की किटें तो उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप में तैयार किया जाता है लेकिन उन का इस्तेमाल भारत जैसे विकासशील देशों में किया जाता है ... ऐसा क्यों भाई? …यह इसलिये कि वहां पर इस तरह के टैस्टों के ऊपर नियंत्रण एकदम कड़े हैं, कोई समझौता नहीं ...यहां तक कि अमेरिकी एफ डी ए (फूज एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने इस तरह के टैस्टों को अप्रूव ही नही किया ....इसलिये जिन देशों में जहां इस तरह की व्यवस्था बिल्कुल ढीली ढाली है, वहां ये टैस्ट बेधड़क किये जाते रहे हैं ....और भारत भला फिर कैसे पीछे रह जाता लेकिन लगता है आज डबल्यू एच ओ के कहने पर अब हमारा नियंत्रण दस्ता भी हरकत में आयेगा और शायद इन टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाए...काश, ऐसा जल्द ही हो जाए।

मैं सोच रहा था ...ये जो तरह तरह के घोटाले होते हैं इन पर तो हम चर्चा करते थकते नहीं लेकिन इन मुद्दों का क्या....कितने वर्षों तक इस तरह के टैस्ट होते रहे जिन के नतीज़े भरोसेमंद थे ही नहीं, जिन की वजह से तंदरूस्त लोग टीबी की दवाईयां खाते रहे होंगे और कुछ लोग टीबी से ग्रस्त होते हुये भी रिपोर्ट ठीक ठीक होने पर जिन्होंने इस की दवाई न लेकर अपना रोग साध्य से असाध्य कर लिया होगा और एक तरह से टैस्ट करवाना ही तो जानलेवा सिद्ध हो गया।

अच्छा मुझे यह बतलाईये, यह जो यू.के है यह यूरोप ही में ही हैं ना ..... देखिये मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुझे जिस ने भी मुझे मैट्रिक में ज्योग्राफी में पास किया, मैं उस का सारी उम्र उस महात्मा का ऋणी रहूंगा.... हां, तो खबर दो-तीन महीने पहले थी कि जो लोग यूके में बाहर से आते हैं उन का टीबी चैकअप ब्लड-टैस्ट के द्वारा किया जाना चाहिये क्योंकि उन की स्क्रीनिंग जो एक्स-रे से होती है, उस की वजह से कईं केस मिस हो जाते हैं क्योंकि उस रिपोर्ट में लिखा था कि ये एक्स-रे केवल सक्रिय टी बी (active TB) को ही पकड़ पाते हैं।

और एक बात ...कुछ पंक्तियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी किये गये एक दस्तावेज से लेकर आप के समक्ष रख रहा हूं ...हु-ब-हू ... यह इस दस्तावेज़ के पेज़ नं.6 पर लिखी गई हैं......

“ India is the country with the greatest burden of TB, nearly 2 million incident cases per year. Conservatively, over 10 million TB suspects need diagnostic testing for TB each year. Findings from a country survey done for the Bill & Melinda Gates Foundation showed that the market for TB serology in India exceeds that for the sputum smears and TB Culture; six major private lab. Networks (out of hundred) perform more than 500,000 TB Elisa Tests each year, at a cost of approx. 10 US Dollars per test or 30 Dollars per patient (for 3 simultaneous tests). Overall an estimated 1.5 million TB Elisa Tests are performed every year in the country, mostly in private sector.
(Commericial Serodiagnostic Tests for diagnosis of Tuberculosis--- WHO Policy Statement 2011…Page 6)

सोच रहा हूं मैंने यहां यह लिख कर कौन सा तीर मार लिया ---सौ दो सौ पाठक पढ़ लेंगे ...और फिर भूल जाएंगे ... लेकिन जिन लोगों तक इस आवाज़ को पहुंचने की ज्यादा ज़रूरत है, उन तक भला यह सब कैसे पहुंचे, अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट को तो आम आदमी खंगालने से रहा ...ज्यादा से ज्यादा वह किसी न्यूज़ चैनल पर खबरें देख-सुन लेगा ...और एक बात, एक न्यूज़-चैनल को इस का पता चल गया लगता है क्योंकि आज दोपहर खाना खाते समय मेरे कानों में कुछ आवाज़ पड़ तो रही थी कि विदेशों में लोग टीबी के निदान (diagnosis) के लिये डीएनए टैस्ट करवाते हैं...........यह एक बहुत महंगा टैस्ट होता है शायद दो हज़ार रूपये में होता है ...अब इस से पहले कि लोगों तक इलाईज़ा टैस्टों पर प्रतिबंध लगाने की ख़बरें पहुंचे क्यों ना पहले ही से जाल बिछा कर रखा जाए, है कि नहीं?

अरे यार, डीएनए टैस्ट की बात कैसे यहां छेड़ दी ... इस पर तो वैसे ही इतना बवाल खड़ा हुआ है ... यह तो एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है लेकिन वह टैस्ट टीबी की जांच के लिये नहीं मांगा जा रहा , वहां माजरा कुछ और ही है ... एक युवक कह रहा है कि एक राजनीतिज्ञ उस का पिता है, इसलिये उस का डीएऩए टैस्ट करने की गुहार लगा रहा है लेकिन नेता जी कह रहे हैं कि उन्हें टैस्ट करवाने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।

चलिये, चर्चा यहीं खत्म करें ...............Thanks, WHO for calling for ban on such blood tests. Tons of thanks, indeed.

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

अब डेटिंग से पहले ब्लड-ग्रुप करवाने का क्या नया लफड़ा है ?

ब्लड-ग्रुप की बात हो तो ध्यान आता है कि लोग इसे तब करवाते हैं जब कभी उन की कोई सर्जरी होनी हो अथवा उन्हें रक्त चढ़ाने की ज़रूरत पड़ती है (blood transfusion) ...और हां, कईं बार बच्चों का स्कूल हैल्थ-कार्ड भरने से पहले भी कुछ लोग ब्लड-ग्रुप की जांच करवा लेते हैं, और ड्राईविंग लाइसैंस में भी ब्लड-ग्रुप तो लगता ही है। लेकिन आज पता चला कि जापान में डेटिंग से पहले भी ब्लड-ग्रुप का पता लगवाना वहां के लोगों की "ज़रूरत" सी बन गई है।

इस से बारे में विस्त़त जानकारी बीबीसी न्यूज़ की इस साइट पर प्रकाशित इस रिपोर्ट से प्राप्त कर सकते हैं। लेख में बताया गया है कि किस तरह से डेटिंग से पहले लड़के-लड़कियां ब्लड-ग्रुप पूछना नहीं भूलते। अगर वे किसी एक ब्लड-ग्रुप के लड़के या लड़की को डेटिंग के लिये चुनना चाहते हैं तो इस के लिये उन की अपनी च्वाइस है, अपने प्रेफरैंस हैं, ......या यूं कहूं कि भ्रांतियां हैं। और हम लोग यही सोच कर अकसर घुलते रहते हैं कि हम लोग ही नाना प्रकार की भ्रांतियों से ग्रस्त हैं। यह रिपोर्ट देख कर लगता है जैसे कि जापान तो हम से भी बाजी मार गया।

ब्लड-ग्रुप का पता होना केवल लव-इश्क-मोहब्बत के मामलों में साथी चुनने में ही नहीं होता, रिपोर्ट देखने पर पता चलता है कि नौकरी के समय भी उम्मीदवारों के ब्लड-ग्रुप का कुछ लोचा तो है। वहां लोग यह विश्वास करते हैं कि किसी शख़्स का ब्लड-ग्रुप उस के व्यक्तित्व को, उस के काम को एवं उस की प्रेम के प्रति आस्था आदि को प्रभावित करता है।

इंटरव्यू के समय अगर उम्मीदवारों से अगर उन का ब्लड-ग्रुप पूछा जायेगा तो उसे आप क्या कहेंगे? जापान का तो मुझे पता नहीं, लेकिन अगर ऐसी कोई व्यवस्था हमारे यहां होती तो जापान वाले भी हमारे जुगाड़ देख कर दांतों तले अंगुली दबा लेते ----उम्मीदवार हर तरह के ब्लड-ग्रुपों की रिपोर्टें अपने साथ ले कर घूमते --- जैसा इंटरव्यू वाले कमरे के बाहर माहौल देखा उसी अनुसार रिपोर्ट पेश कर दी। और डेटिंग के मामले में भी यही फंडा चल निकलता --- यह तो पता चलते देर नहीं लगती कि आजकल डेटिंग-वेटिंग के लिये कौन सा ब्लड-ग्रुप डिमांड में हैं, बस हो गया काम---- उसी तरह की रिपोर्ट मिलने में कहां कोई दिक्कत है?

इस ब्लड-ग्रुप फॉर डेटिंग जैसे मज़ाक को छोड़ कर अगर हम संजीदगी से विवाह-पूर्व शारीरिक जांच एवं टैस्ट इत्यादि करवा कर के ही बात को आगे चलाएं तो बात बने----क्या आप को नहीं लगता कि विवाह-पूर्व युवक-युवतियों की मैडीकल-रिपोर्टों की जांच उन की जन्मकुंडली के मिलान से कहीं ज़्यादा अहम् है, महत्वपूर्ण है, और समय की जबरदस्त मांग है। दोनों पक्षों की तरफ़ से इस मामले में झिझक कब खत्म होगी, इस के बारे में आप के क्या विचार हैं ?

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

मलेरिया की पुष्टि के बिना मलेरिया का उपचार ?

बिना टैस्ट करवाए ही मलेरिया की दवाईयां ले लेना आज अजीब सा लगता है। और टैस्ट करवाने के बाद अगर मलेरिया की रिपोर्ट नैगेटिव है तो भी अकसर ये दवाईयां दे दी जाती हैं, ले ली जाती हैं।

पिछले दशकों में भी ऐसा होता रहा है कि जब भी कंपकंपी से बुखार होता तो उसे मलेरिया ही समझा जाता और तुरंत उपचार शुरू कर दिया जाता।

हाल ही में मेरी एक डाक्टर से बात हो रही थी, वह बता रहा था कि यह जो मलेरिया की जांच करने के लिये टैस्ट होता है उस की पॉज़िटिव रिपोर्ट देखे उसे कईं कईं महीने बीत जाते हैं। इस में टैस्ट करने वाले लैबोरेट्री टैक्नीशियन की कार्यकुशलता की बहुत अहम् भूमिका रहती है--- ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मलेरिया के केसों में इतनी कमी आ गई है कि ये Peripheral Blood film test for malarial parasite निगेटव दिखने लगे हैं।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का मत यह है कि मलेरिया की पुष्टि होने के बाद ही मलेरिया की दवाईया दी जाएं। ऐसे में कोई करे तो क्या करे ? -- एक तो हो गई बैक्टीरियोलॉजिक्ल टैस्टिंग जिस के बारे में अभी बात हुई। दूसरी विधि है मलेरिया की जांच के लिये --- रैपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट (Rapid Diagnostic test). इसे प्रावईट लैब में भी लगभग एक सौ रूपये में करवाया जा सकता है।

मलेरिया के रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जांची, परखी एवं रिक्मैंडेड किटें बाज़ार में उपलब्ध हैं। और बेहतर तो यही होता है कि WHO की सिफारिश के अनुसार यह टैस्ट करवाने के बाद ही मलेरिया का इलाज शुरू किया जाए।

Rapid Diagnostic Test (RDT)- An antigen-based stick, casette or Card test for malaria in which a colored line indicates that plasmodial antigens have been detected.

और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मलेरिया की पुष्टि किये बिना केवल लक्षणों के आधार पर ही मलेरिया का उपचार उन्हीं हालात में किया जा सकता है अगर उस का टैस्ट करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

यह सोचा जाना कि अगर हर ऐसे केस में जिसमें मलेरिया होने का संदेह हो उस में यह टैस्टिंग करवाना महंगा पड़ेगा ----ऐसा नहीं है, मलेरिया के लिये रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट करवाना भी मलेरिया के उपचार से सस्ता बैठता है। इसलिये अगर बहुत से लोगों का रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट भी करना पड़ता है तो ज़ाहिर है कि उस के बाद उन लोगों में से इलाज उन मरीज़ों का ही किया जाएगा जिन में मलेरिया की पुष्टि हो पाएगी। (ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है कि अधिकांश केसों में मलेरिया की जो स्लाइड तैयार की जाती है उस का परिणाम निगेटिव ही आता है लेकिन फिर भी अधिकांश लोगों के "मलेरिया" का उपचार तो कर ही दिया जाता है).

इस रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट से संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ साथ एक फायदा यह भी होगा कि अगर यह टैस्ट निगेटिव आता है तो चिकित्सक तुरंत बुखार होने के दूसरे कारणों को ढूंढने में लग जाएंगे जिस से बीमार व्यक्ति के उपचार में तेज़ी आयेगी। और यह बात वैसे तो सभी आयुवर्ग के लिये बहुत अहम् है लेकिन पांच वर्ष से कम शिशुओं के लिये तो यह जीवनदाता साबित हो सकती है।

वैसे है यह मच्छर भी एक खूंखार आतंकी --- इस के आतंक की वजह से हर साल लाखों लोग मलेरिया की वजह से बेमौत मारे जाते हैं। इस आतंकी ने लोगों को बाहर आंगन में बैठना, सुस्ताना, लेटना, सोना तक भुला दिया है ----लेकिन अगर अपने आप को टटोलें तो यही पाएंगे कि अपनी हालत के हम स्वयं जिम्मेदार हैं...........है कि नहीं ?

All said and done, the treating physician is the best judge to decide when to start anti-malarial therapy right way though empirically and when to wait for confirmation by testing.

रविवार, 18 अप्रैल 2010

आ गया है ......पाकेट साईज़ अल्ट्रासाउंड

दो महीने पहले ही GE कंपनी ने एक पाकेट साइज़ अल्ट्रासाउंड को लांच किया है। इस का वज़न केवल एक पांड है। और इसे डाक्टर स्टैथोस्कोप की तरह अपने साथ ही ऱख सकेंगे ताकि ज़रूरत पड़ने पर तुरंत मरीज़ का अल्ट्रासाउंड कर के उस का निदान किया जा सके।
इस से मरीज़ों को भी कितनी सुविधा होगी इस का अंदा़ज़ा वे लोग बेहतर ढंग से लगा पायेंगे जिन्हें अल्ट्रा-साउंड करवाने के लिये दूर दराज़ के गांवों से शहर की तरफ़ भागना पड़ता था ----केवल अल्ट्रासाउंड करवाने के लिये।
अभी मैंने सुना तो नहीं कि यह मशीन यहां पहुंच गई है ---लेकिन अगर बाहर लांच हो गई है तो इधर  आने में भी कितना समय लगेगा!!

शनिवार, 2 मई 2009

प्राइवेट लैबों के नियंत्रण के लिये कोई कानून नहीं

सूचना के अधिकार वाला कानून भी ऐसी ऐसी बातें सतह पर ला रहा है जिन के बारे में बीसियों सालों से किसी ने कभी सोचा ही नहीं। केरल की एक सामाजिक संस्था दा प्रापर चैनल ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक ऐप्लीकेशन दिया। यह समाचार कल के दा हिंदु अंग्रेज़ी अखबार में छपा है ( 1मई2009).

इस के जवाब में केरल सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने यह जवाब दिया है कि राज्य सरकार के पास इस समय ऐसा कोई कानून या नियंत्रण ढांचा नहीं है जिस के द्वारा निजी लैबों की कार्यप्रणाली पर कंट्रोल रखा जा सके। यहां तक कि इन प्राइवेट लैबों को शुरू करने से संबंधित भी कोई कानून-वानून नहीं है जिस के तहत इन को रैगुलेट किया जा सके।

चलिये यह तो सूचना के अधिकार कानून ने बता दिया। लेकिन वैसे भी देश में जगह जगह क्या हो रहा है क्या हम नहीं जानते हैं। हमारी समस्या केवल यही है कि हम लोग जानते तो बहुत कुछ हैं लेकिन हम लोगों ने प्रजातांत्रिक ढंग से अपनी बात किसी के आगे रखने की कसम सी डाल रखी है।

हर शहर में ,कसबे में या अब तो गांवों में भी इतनी लैब खुल गई हैं कि इन्हें देख देख कर यही लगता है कि इतनी सारी लैब क्या कर रही हैं, कौन सा काम कितनी व्यावसायिक मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा के अंदर रह कर कर रही हैं, यह कौन जानता है। मुझे याद है कि कुछ अरसा पहले मैंने अपने कुछ टैस्ट करवाने थे ---- मैं और मेरी पत्नी दो-तीन लैब पर गये लेकिन जैसे ही हम लोगों ने भीतर झांका, हमारी अंदर जाने की इच्छा ही न हुई।

आखिर हम लोग एक प्रसिद्ध लैब में ही गये जो कि सैंपल इक्ट्ठे कर के बाहर दिल्ली वगैरह भेजते हैं। मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से इस तरह की लैब की कोई सिफारिश बिल्कुल नहीं कर रहा ----यह काम मेरे बस का नहीं है। और न ही मैं यह कहना चाह रहा हूं कि जो सैंपल दिल्ली से चैक होने जाते हैं उन सभी की ही रिपोर्टिंग परफैक्ट होती है। मेरी बात का यह मतलब बिलकुल नहीं लिया जाये।

लेकिन दो-तीन कंपनियां ऐसी हैं जिन के कलैक्शन सैंटर कईं शहरों में खुले हुये हैं ---और इन की वेबसाइट आदि पर जा कर देखा है तो यही पाया है कि इन के स्टैंडर्डस यहां वहां नौसीखिये टैक्नीशियन्ज़ द्वारा खोली गई लैब्ज़ की तुलना में कहीं ज़्यादा अच्छी होती हैं।

विषय तो यह बहुत बड़ा है –इस पर आगे भी लिखता रहूंगा --- लेकिन यह देख कर दुःख होता है कि जगह जगह पर टैक्नीशियन्ज़ के चेलों-चपाटों ने रक्त-पेशाब-मल-वीर्य की जांच की हट्टियां खोल रखी हैं। यह बहुत चिंताजनक मामला है।

अब मैं पाठकों के लिये किसी लैब को रिक्मैंड करूं यह मेरे से ना होगा। चलिये , मैं इस बात का जवाब दे देता हूं कि जब मेरे को किसी टैस्ट की ज़रूरत होती है तो मैं क्या करता हूं ..... तो , पिछले कुछ सालों से जब से ये अच्छी खासी लैबों के कलैक्शन सैंटर शहरों में खुल गये हैं तब से मैं तो इन्हें ही प्रेफर करता हूं । वरना, कभी ऐसे शहर में गये हों कि वहां पर कोई बहुत प्रसिद्ध लैब है जिसे कोई एम.डी ( पैथालाजी), माइक्रोबॉयोलॉजी अथवा एमएससी ---माइक्रोबॉयोलॉजी, बॉयोकैमिस्ट्री आदि चला रहे होते हैं तो मैं वहां से ही अपनी जांच करवाना पसंद करता हूं।
मैं अपनी बात कहूं तो मैं किसी ऐसी लैब की तरफ़ न तो खुद ही जाता हूं और न ही किसी को भेजता हूं जिस के बोर्ड से यह भी पता नहीं चलता कि इसे चलाने वाला कोई प्रशिक्षित बंदा है कि नहीं।

ऐसी ही चालू जगह से टैस्ट करवाने से रिपोर्टों में तो गड़बड़ हो ही जाती है ---दूसरी तरह की परेशानियां भी हो सकती हैं। अब क्या क्या गिनवायें....। हरेक मरीज़ की हरेक रिपोर्ट उस के लिये एक महत्वपूर्ण, निर्णायक दस्तावेज़ है –उस ने कौन सी दवाई खानी है और कितनी मात्रा में कितने दिन तक खानी है ...यह सब हमारी रिपोर्टें ही तय करती हैं।

मैं भी बहुत बार सोचता हूं कि इन लैबों पर नियंत्रण होना ही चाहिये ----हम लोग बड़े शहरों के जिन होटलों में मैदू-वड़ा भी खाने बैठते हैं उन की तो स्थानीय प्रशासन ने ग्रेडिंग की होती है लेकिन इन लैबों के संबंध में इतनी ढिलाई क्यों बरती जाती है। रिपोर्ट ठीक नहीं आई तो शायद इतना बड़ा ज़ुर्म नहीं है लेकिन अगर चालू तरह की लैबोरेट्री में स्टैरीलाइज़ेशन का ध्यान नहीं रखा जाता तो समझ लीजिये टैस्ट करवाने गई पब्लिक को कहीं लेने के देने ही न पड़ जायें।

तो , यहीं विराम लेता हूं ---इसी उम्मीद के साथ कि हम चिट्ठाकारों के अपने वकील साहब , डियर द्विवेदी जी इस तरह के कानून की आवश्यकता पर प्रकाश डालेंगे और इस के लिये क्या करना होगा, इस का भी ज़िक्र करेंगे।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

होल्टर-मॉनीटर टैस्ट – 24 घंटे तक चलने-वाली चलती-फिरती ईसीजी !!

होल्टर-मॉनीटर एक ऐसा यंत्र है जिसे हम एक पोर्टेबल ईसीजी मशीन कह सकते हैं जिस से किसी व्यक्ति के हृदय की गतिविधि 24 से 48 घंटे तक रिकार्ड की जाती है । यह तो हम जानते ही हैं कि ईसीजी के द्वारा हमारे हृदय की इलैक्ट्रिक गतिविधि चंद मिनटों के लिये जांची जाती है और होल्टर –मॉनीटर के द्वारा हमारे हृदय की लय ( cardiac rhythm) को हास्पीटल के बाहर 24 से 48 घंटे तक रिकार्ड कर लिया जाता है।

और इस दौरान उस मरीज़ की सारी दैनिक क्रियायें चलती रहती हैं यहां तक की उस के सोते रहते भी यह मशीन चालू रहती है। इस से डाक्टरों को ऐसे लक्षणों को देखने का अवसर मिलता है जो कुछ समय के लिये आते हैं फिर खत्म हो जाते हैं लेकिन इन के साथ साथ हृदय की लय में बदलाव भी होता है ।

यह टैस्ट करवाने से पहले किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है --- जिन पुरूषों की छाती पर बहुत से बाल हैं उन्हें उन की शेव करने के लिये कहा जा सकता है।

यह टैस्ट होता कैसे है ? – डाक्टर के पास अथवा किसी डॉयग्नोस्टिक लैब में काम कर रहा टैक्निशियन मरीज को होल्टर-मॉनीटर फिट कर देता है और इसे इस्तेमाल करने की उचित सलाह दे देता है । मरीज़ की छाती पर पांच स्टिकर लगा दिये जाते हैं—इन के साथ जुड़ी तारों को होल्टर-मॉनीटर के साथ जोड़ दिया जाता है। इन तारों के द्वारा आप के हृदय का दिन भर का इलैक्ट्रिक पैटर्न मॉनीटर में रिकार्ड हो जाता है और इस स्टोर किये जा चुके डैटा का डाक्टर बाद में विश्लेषण करते हैं।

होल्टर मॉनीटर का साइज़ इतना होता है कि यह किसी के पर्स में अथवा जैकेट की जेब में आसानी से आ जाता है , वैसे इसे स्ट्रैप की मदद से कंधे पर भी लटकाया जा सकता है।

इस के लगे रहते ही आप को अपनी दैनिक क्रियायें करनी होती हैं ---बस इतना ध्यान रखना होता है कि जब तक आप इसे धारण किये रहते हैं उस समय तक आप को नहाना नहीं होता और दूसरा यह कि आप को एक छोटी डॉयरी इस लिये दी जाती है ताकि आप उस में ऐसे किसी भी अजीबोगरीब लक्षण को ( समय के साथ) अपने पास लिख कर रखें – ऐसा लक्षण जो आप को थोड़ा बहुत भी चिंताजनक सा लगा हो !!

टैस्ट के बाद डाक्टर आप की डॉयरी के साथ साथ होल्टर मानीटर में स्टोर किये गये डैटा को यह जानने के लिये स्टडी करता है कि आप के द्वारा बताये गये ( लिख कर रिकार्ड किये गये लक्षण ) लक्षण क्या हृदय के किसी रोग की वजह से हैं !!

इस टैस्ट को करवाने से कोई रिस्क नहीं है – बस, आप को मॉनीटर हास्पीटल को वापिस लौटाना होता है !! बाद में इस रिकार्डिंग का प्रिंट-आउट लेकर डाक्टर इस का अध्ययन करते हैं।

संक्षेप में बताया जाये तो यही है कि कुछ एंजाइना ( angina) के मरीज़ ऐसे होते हैं जिन में डाक्टर को लगता है कि इनमें इस्कीमिक हार्ट डिसीज़ ( हृदय को मिलने वाले रक्त की सप्लाई की कमी) हो सकती है लेकिन इन की ईसीजी नार्मल आ रही है ---तो फिर दिन भर सारी सामान्य दैनिक क्रियाओं के दौरान ऐसे मरीज़ों के हृदय की एक्टीविटी रिकार्ड करने के लिये होल्टर-मानीटर टैस्ट करवाया जाता है।

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

आईये मैडीकल टैस्टों के बारे में जानें 3. लैपरोस्कोपी

लैपरोस्कोपी का नाम तो आप सब ने बहुत बार सुन रखा होगा। लैपरोस्कोपी- सर्जरी की एक ऐसी विधि है जिस के द्वारा डाक्टर मरीज के पैल्विस एवं एबडॉमन( pelvis and abdomen) के अंदर वाले अंगों को बिलकुल छोटे से कट्स के माध्यम से देख पाते हैं और उन का आप्रेशन कर पाते हैं । बहुत प्रकार की अबडॉमीनल सर्जरी लैपरोस्कोपी के द्वारा की जा सकती है जैसे कि बांझपन अथवा पैल्विक एरिया में दर्द की डायग्नोसिस एवं इलाज, गाल-ब्लैडर अथवा अपैंडिक्स को निकालना( gall bladder or appendix removal), और गर्भवस्था से बचाव के लिये ट्यूबल लाईगेशन( जिसे आम तौर पर कह देते हैं महिलाओं में बच्चे बंद करने वाला दूरबीनी आप्रेशन)।
लैपरोस्कोपी किसी सर्जन अथवा स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा की जाती है। अगर आप नियमित तौर पर एस्पिरिन अथवा इस श्रेणी ( non-steroidal anti-inflammatory drugs) की अन्य दवाईयां लेते हैं जिस से रक्त के जमने में कुछ दिक्कत हो सकती है ( medicines that affect blood clotting) तो आप को डाक्टर से बात करनी होगी। हो सकता है कि कुछ समय के लिये आप की वह दवा बंद कर दी जाये अथवा लैपरोस्कोपी से पहले आप की डोज़ को एडजस्ट किया जाये।

सर्जरी से कम से कम आठ घंटे पहले आप को कुछ भी न खाने की हिदायत दी जाती है। चूंकि निश्चेतन ( anaesthesia) करने के लिये जो दवाईयां इस्तेमाल की जाती हैं मितली होना( nausea) उन का साइड-इफैक्ट हो सकता है – इसलिये अगर पेट खाली होगा तो इस तरह की परेशानी से बचा जा सकता है।

कैसे होती है यह लैपरोस्कोपी ? – लैपरोस्कोपी को आप्रेशन थियेटर में किया जाता है। मरीज को जर्नल एनसथीसिया दिया जाता है जिस के प्रभाव से वह सोया रहता है और उसे कुछ भी पता नहीं चलता कि क्या चल रहा है। जर्नल एनसथीसिया के लिये मरीज को गैसों का एक मिक्सचर एक मास्क के माध्यम से सुंघाया जाता है। जब एनसथीसिया का प्रभाव शुरू हो जाता है तो मरीज के गले में एक टयूब डाल दी जाती है जिसके द्वारा वह सांस लेता रहता है।

वैसे बातें लिखने में ही बहुत बड़ी बड़ी डराने वाली लगती हैं---लेकिन जिन हाथों ने रोज़ काम ही यही करने हैं, उन के हाथों में आप पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं ---उन के लिये यह सब की-बोर्ड पर काम करने के बराबर ही होता है।
लैपरोस्कोपी के दौरान एक बिलकुल छोटा सा कैमरा एक बिल्कुल छोटे से कट ( एक इंच से भी कम) की मदद से अंदर डाला जाता है और इस यह कट नेवल (धुन्नी) के एरिये में या इस के ज़रा सा नीचे लगाया जाता है। इस के बाद कार्बन-डाईआक्साईड या नाइट्रस-आक्साईड जैसी गैस को मरीज के एबडॉमन में पंप किया जाता है ताकि एबडॉमिनल वाल ( abdominal wall) एबडॉमिनल अंगों से ऊपर उठ जाये और एबडॉमन के अंदर गया हुआ बिलकुल छोटा सा कैमरा उन अंगों को सही तरीके से देख सके।

अगर लैपरोस्कोपी के द्वारा केवल एबडॉमन अथवा पैल्विस को देखने के इलावा कोई जटिल सा प्रोसिजर भी करना होता है तो सर्जन एक या उस से अधिक कट्स (incisions)भी लगा सकता है जिस से कि अन्य औज़ार भी अबडॉमन के अंदर पहुंच सकें। पैल्विक सर्जरी के लिये तो ये एडिशनल कट्स आम तौर पर पयूबिक हेयर के थोड़ा नीचे लगाये जाते हैं।

लैपरोस्कोपी के लिये विभिन्न प्रकार के औज़ार इस्तेमाल किये जाते हैं। इन में से कुछ तो ऐसे होते हैं जिन में कुछ तो काटने के लिये और अंदरूनी अंगों को क्लिप करने के लिये इस्तेमाल होते हैं, कुछ औज़ार पैल्विस के स्कार टिश्यू अथवा दर्दनाक एरिया को जलाने के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं, अथवा कुछ ऐसे औज़ार होते हैं जिन को बायोप्सी का सैंपल लेने के लिये और यहां तक कि अंदरूनी अंगों को पूरा बाहर निकालने के लिये भी औज़ार उपलब्ध होते हैं---( आम तौर पर छोटे छोटे टुकड़ों के ज़रिये ताकि एबडॉमन पर बड़े कट्स न लगाने पड़ें) और डाक्टर अपना काम करते हुये यह सारी प्रक्रिया को एक टैलीवीज़न की स्क्रीन पर देखता रहता है।

सर्जरी पूरी होने पर सभी औज़ार बाहर निकाल लिये जाते हैं, एबडॉमन में भरी गैस को निकाल दिया जाता है और कट्स को सिल दिया जाता है। तुरंत एनसथीसिया रोक दिया जाता है ताकि मरीज़ लैपरोस्कोपी होने के कुछ ही मिनटों के बाद “नींद” से जाग जाता है।

लैपरोस्कोपिक सर्जरी के बाद मरीज रैगुलर एबडॉमिलन सर्जरी की तुलना में ( जिसे अकसर ओपन सर्जरी भी कह दिया जाता है) बहुत जल्दी ठीक ठाक हो जाते हैं क्योंकि कट्स के जख्म इतने छोटे छोटे होते हैं। जिस भी कट्स के अंदर से औज़ार अंदर गये हैं वहां पर छोटा सा सीधा स्कार (small straight scar) – एक इंच से भी कम – होता है।

यह तो बस थोड़ी सी इंट्रोडक्शन थी लैपोस्कोपी के बारे में ताकि कभी अगर आप के कान में कहीं पड़ जाये कि यह शब्द पड़ जाये तो आप समझ सकें कि आखिर यह माजरा है क्या । उदाहरण के तौर पर अगर किसी से सुनें कि उस ने लैप-कोली करवाई है तो उस का मतलब है कि उस का पित्ता (gall bladder) लैपरोस्कोपी के द्वारा निकाल दिया गया है --- लैपरोस्कोपी को ब्रीफ में कह देते हैं...लैप और कोली का पूरा फार्म है कोलीसिस्टैक्टमी ( अर्थात् पित्ते को आप्रेशन से निकाल देना) !!

शायद, आप को लैपरोस्कोपी का कंसैप्ट थोड़ा क्लियर हो गया होगा लेकिन लिखते लिखते मुझे नानी याद आ गई कि मैडीकल बातों को हिंदी में लिखना अच्छा खासा मुश्किल काम है। लेकिन अब अगर इसे भी एक चैलेंज के रूप में नहीं लिया जायेगा तो कैसे चलेगा !!

शनिवार, 18 अक्टूबर 2008

आईये...मैडीकल टैस्टों के बारे में जानें ..2. एक्सरसाईज़ स्ट्रैस टैस्ट

एक्सरसाईज़ स्ट्रैस टैस्ट जिसे ट्रैडमिल टैस्ट अथवा एक्सरसाईज़ टॉलरैंस टैस्ट भी कह दिया जाता है---इस से यह पता चलता है कि जब आप का हार्ट सख्त काम कर रहा होता है ( जैसे कि एक्सरसाईज़ के दौरान) उस समय क्या उसे पर्याप्त रक्त की सप्लाई एवं ऑक्सीजन मिलती है।

सामान्यतयः स्ट्रैस टैस्ट उन लोगों का किया जाता है जो छाती में दर्द होने की शिकायत करते हैं अथवा जिन का मैडीकल परीक्षण अथवा ई.सी.जी करने के बाद यह लगता है कि उन्हें कॉरोनरी आर्टरी डिसीज़ हो सकती है।
वैसे कईं बार तो स्ट्रैस टैस्ट को हार्ट डिसीज़ के इलाज का असर देखने से लेकर किसी व्यक्ति को बताई गई एक्सरसाईज़ की सेफ्टी की जांच के लिये भी किया जाता है।

दिल की बीमारी को डॉयग्नोज़ करने के लिये यह स्ट्रैस टैस्ट अति श्रेष्ट है और रिसर्च के अनुसार तो कईं बार इस टैस्ट को ऐसे किसी व्यक्ति में हार्ट डिसीज़ का रिस्क जानने के लिये भी किया जा सकता है जिस में हार्ट-डिसीज़ तो नहीं है लेकिन हाई-कोलैस्ट्रोल जैसे रिस्क फैक्टर्ज़ मौजूद हैं। अगर आप चालीस साल से ऊपर हैं और आप को कॉरोनरी आर्टरी डिसीज़ होने का रिस्क है क्योंकि आप धूम्रपान करते हैं या आप को हाई-ब्लडप्रैशर है या कोई अन्य रिस्क फैक्टर्ज़ हैं, तो आप अपने डाक्टर से बात कीजिये कि क्या आप अपना यह टैस्ट करवा सकते हैं।

यह टैस्ट करवाने के लिये आपको ढीले-ढाले कपड़े एवं अथलैटिक शूज़ पहनने चाहिये। अगर आप सोचते हैं कि आप किसी भी हैल्थ से संबंधित कारण( जैसे आर्थराईटिस) के कारण ट्रैडमिल पर नहीं चल पायेंगे तो डाक्टर को यह बता दें। अगर आप को डॉयबिटीज़ है तो इस की जानकारी भी डाक्टर को होनी चाहिये क्योंकि एक्सरसाईज़ के दौरान ब्लड-शूगर का स्तर गिर सकता है ....हो सकता है कि डाक्टर टैस्ट करने से पूर्व आप के ब्लड-शूगर के स्तर की जांच कर के यह सुनिश्चित करना चाहे कि यह स्तर इतना कम नहीं है।

अगर टैस्टिंग वाले दिन आपने छाती में दर्द या भारीपन महसूस किया है तो टैस्टिंग रूम में डाक्टर अथवा किसी अन्य स्वास्थ्य-कर्मी को इस बारे में सूचित करें। ठीक टैस्ट से पहले कुछ भी लंबा-चौडा खाने से परहेज़ ही करें क्योंकि इस से एक्सरसाईज़ करने में असुविधा होती है।

कैसे होता है यह स्ट्रैस टैस्ट ? – सब से पहले लेटे हुये और खड़ी हुई अवस्था में आप की ई.सी.जी की जाती है। ब्लड-प्रैशर देखा जाता है। आप की बाजुओं एवं एक टांग के साथ एक टेप का इस्तेमाल करते हुये कुछ प्लासटिक कोटेड तारें अथवा लीड्स लगा दी जाती हैं जिन के द्वारा एक्सरसाईज़ के दौरान आप के हार्ट का इलैक्ट्रिक-पैटर्न रिकार्ड होता है। टैस्ट के दौरान आप का ब्लड-प्रैशर एवं हार्ट-रेट भी मॉनीटर किया जाता है। ट्रैडमिल पर आप को तकरीबन 10 मिनट तक चलना होता है।

लेकिन अगर टैस्ट के दौरान आप को छाती में दर्द या भारीपन सा लगे, सांस फूले, टांग में दर्द अथवा कमज़ोरी सी अनुभव हो, और इस के इलावा कुछ भी अजीब सा लगे और अगर टैस्ट के दौरान किसी भी स्टेज पर यह भी लगे कि आप और एक्सरसाईज़ नहीं कर पायेंगे तो इस के बारे में आप टैस्ट करने वाले व्यक्ति को बता दें। सामान्यतयः टैस्ट की अवधि समाप्त होने के पश्चात् आप का ब्लड-प्रैशर दोबारा देखा जायेगा।

अगर ट्रैडमिल पर चलते समय आप को छाती में डिस्कम्फर्ट महसूस हो, सांस फूले, अथवा सिर घूमने सा लगे ( chest discomfort, shortness of breath, or dizziness) और इन लक्षणों के साथ साथ ई.सी.जी में भी कुछ ऐसे बदलाव दिखें जिन से यह पता चले कि हार्ट के कुछ हिस्सों में रक्त की सप्लाई अपर्याप्त है तो इस से कॉरोनरी आर्टरी डिसीज़ होने का मजबूत संकेत मिलता है।

अगर आप बिनी किसी तरह के लक्षण के अथवा बिना किसी तरह के ई.सी.जी चेंजेज़ के यह टैस्ट कर पाते हैं तो इस की रिपोर्ट को नार्मल माना जाता है।

बहुत से लोगों को छाती में असुविधा तो होती है लेकिन ई.सी.जी चेंजेज़ नहीं होते अथवा कुछ लोगों में ईसीजी में बदलाव होने के बावजूद छाती में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती। इन केसों में इस एक्सरसाईज़ टैस्ट से कोई खास मदद नहीं मिलती और टैस्ट के रिजल्ट से यही मान कर चला जाता है कि कॉरोनरी आर्टरी डिसीज़ है तो लेकिन पक्का नहीं है। इसलिये ऐसे केसों में और भी कुछ टेस्ट किये जाते हैं ताकि किसी तरह का कोई संदेह न रहे।

कुछ हार्ट-डिसीज़ के मरीजों को इस टैस्ट के बारे में यह चिंता होती है कि यह करवाना कोई जोखिम मोल लेने के बराबर है, लेकिन यह ध्यान रहे कि अगर टैस्ट से पहले डाक्टर आप की जांच कर के यह देख लेता है कि आप यह टैस्ट करवाने के लिये सक्षम हैं तो यह बेहद सुरक्षित टैस्ट है।

टैस्ट समाप्त होने के बाद अगर आप की ब्लड-प्रैशर में बहुत ज़्यादा उछाल आता है अथवा एक्सरसाईज़ के दौरान यह अचानक नीचे गिर जाता है तो टैस्ट के कुछ मिनट के बाद एक नर्स आपका ब्लड-प्रैशर देखेगी। अगर आप को छाती में दर्द सा महसूस होने लगे, तो आप को डाक्टर द्वारा नाइट्रोग्लैसरिन की टेबलेट दी जा सकती है जिस से कि आप की खून की नाड़ियों को दवाई से थोड़ा खोल कर आप के हार्ट के ऊपर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके ( If you develop chest pain, you might be given some nitroglycerin tablets to relieve the pain and lower the demand on your heart by dilating your blood vessels)..

रविवार, 12 अक्टूबर 2008

आइये, मैडीकल टैस्टों के बारे में जानें... 1. कार्डियक इको टैस्ट ( Cardiac Echo test)

इस टैस्ट का पूरा नाम है – ईकोकार्डियोग्राम – और यह दिल का अल्ट्रासाउंड है। एक ईकोकार्डियोग्राम के द्वारा डाक्टर किसी मरीज के हार्ट वाल्वस ( heart valves) चैक कर पाता है, उस के हार्ट के साइज़ का अनुमान लगा पाता है और इस बात का भी पता लगा पाता है कि मरीज का हार्ट अपनी काम कितना कुशलता से कर रहा है !

इस टैस्ट को करने के लिये किसी मरीज़ को एक टेबल पर लिटा देने के बाद एक क्लियर जैली को मरीज़ की छाती पर लगाया जाता है ताकि अल्ट्रासाउंड का सैंसर ( जो कि माइक्रोफोन की तरह दिखता है) मरीज़ की चमड़ी पर आसानी से मूव कर सके।

टैस्ट के दौरान मरीज के दिल की एक तस्वीर सामने पड़ी वीडियो-स्क्रीन पर आ जाती है। मरीज की छाती पर रखे अल्ट्रासाउंड सैंसर को आगे पीछे सरका कर डाक्टर हार्ट के विभिन्न व्यूज़ देख पाता है। कईं बार मशीन से आने वाली आवाज़ को भी ऑन ही रखा जाता है ताकि दिल की धड़कन एवं रक्त के बहाव की आवाज़ को सुना जा सके।

अगर डाक्टर मरीज के हार्ट को एक्शन में देखना चाहता है ( जब यह सख्त काम कर रहा होता है) ....तो मरीज़ की एक्ससाईज़ ईको ( Exercise Echo) की जाती है। इस एक्सरसाईज़ ईको में मरीज एक खड़ी हुई साईकिल पर पैडल मारता जाता है और इस के साथ साथ उस का ईकोकार्डियोग्राम होता जाता है।

एक दूसरी तरह का ईकोकार्डियोग्राम होता है –स्ट्रैस ईकोकार्डियोग्राम – इस टैस्ट को करने से पहले मरीज को एक इंजैक्शन दिया जाता है जिस से उस के हार्ट में रक्त का बहाव बढ़ जाता है।
ईकोकार्डियोग्राम करने से पहले मरीज को किसी तरह की तैयारी की ज़रूरत नहीं होती, इस टैस्ट में कोई भी रिस्क इंवाल्व नहीं है, और टैस्ट के बाद भी किसी भी विशेष बात का ध्यान रखने वाली कोई बात नहीं होती।

अगर यह टैस्ट एक डाक्टर करता है तो कुछ परिणाम मरीज़ को तुरंत ही पता चल जाते हैं। लेकिन अगर टैक्नीशियन यह टैस्ट करता है तो वह ईकोकार्डियोग्राम को एक वीडियो टेप पर रिकार्ड करता है जिसे बाद में कार्डियोलॉजिस्ट के द्वारा देखने पर रिपोर्ट तैयार की जाती है।

मुझे पूरी उम्मीद है कि आप इस टैस्ट को किसी भी तरह से इलैक्ट्रोकार्डिग्राम से कंफ्यूज़ नहीं कर रहे हैं--- Electrocardiogram यानि की ECG जिस से आप भली-भांति परिचित हैं।