मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

ओव्हर-डॉयग्नोसिस से ओव्हर-ट्रीटमैंट का कुचक्र.. 2.

हां तो बात चल रही थी बिना वजह होने वाले सी.टी स्कैन एवं एम आर आई की .. यह सब जो हो रहा है हम पब्लिक को जागरूक कर के इसे केवल कुछ हद तक ही कम कर सकते हैं। मार्कीट शक्तियां कितनी प्रबल हैं यह आप मेरे से ज़्यादा अच्छी तरह से जानते हैं।

नितप्रतिदिन नये नये टैस्ट आ रहे हैं, महंगे से महंगे, फेशुनेबल से फेशुनेबल ... अभी दो दिन पहले ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एक थ्री-डी मैमोग्राफी को हरी झंडी दिखाई है। वैसे तो अब मैमोग्राफी की सिफारिशें भी संशोधित की जा रही हैं ... वैसे भारत में तो यह समस्या (बार बार मैमोग्राफी करवाने वाली ) भारत में देखने को बहुत कम मिलती है ... क्योंकि विभिन्न कारणों की वजह से यहां महिलायें ये टैस्ट करवा ही नहीं पातीं... और विशेषकर वह महिलायें जिन्हें इन की बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती है..... इन दिनों विदेशों में इस टैस्ट के बारे में भी गर्म चर्चा हो रही है ...और जिस उम्र में यह टैस्ट किया जाना शुरू किया जाना चाहिए अब उसे आगे बढ़ा दिया गया है ...

भारत में तो महिलायें अगर वक्ष-स्थल के नियमित स्वतः निरीक्षण (regular self-examination of breasts) के लिये भी जागरूक हो जाएं तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी ...ताकि समय रहते वे किसी भी गांठ को अपनी डाक्टर को दिखा कर शंका का निवारण कर सकें।

अब थोड़ी बात करते हैं ..पौरूष-ग्रंथी (prostate gland) के लिये किये जाने वाले टैस्टों के बारे में ...एक उम्र के बाद पुरूषों के नियमित चैक-अप में प्रोस्टेट ग्लैंड की सेहत पता करने के लिये भी एक टैस्ट होता है .. Prostate specific antigen. यह एक तरह की रक्त की जांच है और इस की वेल्यू नार्मल से बढ़ी होने पर कईं बार अन्य टैस्टों को साथ रख कर देखते हुये प्रोस्टेट ग्रंथी के कैंसर से ग्रस्त होने की आशंका हो जाती है और पिछले कुछ महीनों में यह इसलिये चर्चा में है क्योंकि इस टैस्ट के अबनार्मल होने की वजह से प्रोस्टेट के इतने ज़्यादा आप्रेशन कर दिये गये और बहुत से लोगों को तो कैंसर का इलाज भी दे दिया गया  ...लेकिन चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बाद में यह निष्कर्ष निकाला कि केवल इस टैस्ट की वेल्यू बढ़ी होने से ही इस ग्रंथी के इलाज के बारे में कुछ भी निर्णय लेना उचित नहीं है। इसलिये अब प्रोस्टेट ग्लैंड की बीमारी जानने के लिेये दूसरे पैरामीटर्ज़ पर भी ज़ोरों-शोरों से काम चल रहा है।

अमेरिका में हर साल 10 लाख बच्चों के टोंसिल का आप्रेशन कर के उन के टौंसिल निकाल दिये जाते हैं...और इन की उम्र 15 वर्ष से कम की होती है...लेकिन अब ताज़ा-तरीन सिफारिश कह रही है कि नहीं, नहीं, मॉडरेट केसों के लिये यह टौंसिल निकालने का आप्रेशन बंद किया जाए ....

तो, ये तो थी केवल कुछ उदाहरणें ... बातें केवल यही रेखांकित करती हैं कि हम लोग कभी भी शैल्फ-डॉयग्नोसिस के चक्कर में न ही पड़ें तो ठीक है, वरना तो रिस्क ही रिस्क है। और आप देखिये कि मैडीकल साईंस में रोज़ाना बदलाव हो रहे हैं.... विभिन्न तरह के टैस्टों की, दवाईयों की, आप्रेशनों की सिफारिशें नये शोध के मद्देनज़र अकसर बदलती रहती हैं, ऐसे में अगर कोई समझ ले कि नेट पर सेहत के बारे में दो बातें पढ़ कर वह स्वयं कोई टैस्ट करवा लेगा और स्वयं भी अपनी तकलीफ़ का निदान और शायद चिकित्सीय उपचार भी ढूंढ ही लेगा, तो ऐसा सोचना एकदम फ़िजूल की बात है.... इस जटिल शरीर-प्रणाली को समझते जब डाक्टरों की उम्र बीत जाती है तो फिर आम जन कहां ....!! लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि सामान्य बीमारियों, जीवनशैली से संबंधित रोगों के बारे में अपना ज्ञान ही न बढ़ाया जाए .....यह बहुत ज़रूरी है, इस से हमें होलिस्टिक जीवनशैली (holistic lifestyle) अपनाने के बारे में सोचने का कम से कम अवसर तो मिलता ही है।
शेष ...अगली पोस्ट में..



1 टिप्पणी:

  1. सामान्य जन जागरण के लिए लिखा गया एक बेहतरीन लेख ! आभार आपका !

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