शनिवार, 15 मार्च 2008

बच्चों पर विश्वास नहीं करेंगे तो बहुत मुश्किल हो जायेगी !


मैं सोच रहा हूं कि जिस तरह से इंटरनेट का यूज़ दिन प्रति दिन बढ़ रहा है ....यकीनन इस के बेइंतहा फायदे तो हैं ही......लेकिन इस के दुष्परिणामों से कैसे हम अपने बच्चों को कच्ची उम्र में बचा सकते हैं। मेरे को तो एक ही ...केवल एक ही उपाय सूझ रहा है कि हमें अपने बच्चों पर विश्वास करना सीखना होगा। ज़माना बहुत बदल गया है और हमें अपने बच्चों पर विश्वास कर के उन का विश्वास जीतना ही होगा।
हां, एक बात मैंने कुछ दिन पहले कही थी कि अपने घर में इंटरनैट कनैक्शन को किसी कॉमन सी जगह जैसे कि लॉबी वगैरह में रखना एक अच्छा आइडिया है।
बात एक और भी है ना कि हमें अपनी उदाहरण से लीड करना होगा.....अगर हम चाहते हैं कि जब हम नैट पर बैठे हों तो बच्चे पास तक न फटकें तो इस से बच्चे चाहे छोटे ही हों उन्हें एक गलत मैसेज जाता है। उन्हें लगता है कि यार, अगर बापू ऐसा कर सकता है, अलग बैठ सकता है ..तो मैं क्यों नहीं ? उन में भी विद्रोह करने की एक ज्वाला सी धधकने लगती है....वैसे बात है भी तो सही...कायदे-कानून सब के लिये एक जैसे ही हों तो ही बात ठीक लगती है।
आज भी जब मैं अपने बच्चों को नेट की हिस्ट्री उड़ाने के बारे में कभी कभार पूछता हूं तो मुझे बहुत अपराध बोध होता है...मैं पहले अपने आप से पूछता हूं कि क्या मैंने यह नेट-हिस्ट्री खुद कभी नहीं उड़ाई......चाहे कभी भी यह काम किया हो , लेकिन किया तो था ना तो फिर अपने इस तरह के डबल-स्टैंडर्ड्ज़ मुझे परेशान करते हैं। और आज तो बच्चों के पास इस तरह की सैटिंग्स को बार-बार बदलने के लिये अपने ही कुछ टैक्नोलॉजी से जुड़े हुये कारण भी तो होंगे ( और हैं !)..................सीधी सी बात है कि मुझे तो कभी इस तरह के प्रश्न पूछने उन से ठीक लगते नहीं हैं..........बाकी सब की अपनी अपनी राय हो सकती है। मुझे लगता है कि मैं इस तरह के पुलिसिया सवाल पूछ कर उन के मन में अविश्वास के बीज रोप रहा हूं।
लेकिन मुझे लगता है कि बच्चों को अगर ऐसा लगता है कि उन के पेरेन्ट्स उन के ऊपर इतना ज़्यादा विश्वास करते हैं तो वे कभी भी (कुछ अपवाद हो सकते हैं) उन के विश्वास को ठेस पहुंचाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं।
मुझे याद है कि मुझे नेट से जुड़े लगभग 10 साल होने को हैं.....शुरू शुरू में मेरा बेटा मेरे साथ कभी कभी जाया करता था....उस ज़माने में मैं तो चैटिंग वैटिंग में मसरूफ रहता था और मैं बेटे को एक कंप्यूटर पर बिठा देता था ...............मुझे आज भी वो कहता है कि पापा, आप ने भी मेरा शुरू शुरू में बड़ा उल्लू बनाया, खुद तो बैठ जाते थे ...नेट पर और मुझे कंप्यूटर के सेवड़ पेजिज़ देखने में लगा देते थे। जी हां, वह 1999 का ज़माना भी तो वह था कि जब इंटरनेट पर चैटिंग को बड़ी अजीब सी बात माना जाता था। लेकिन शायद हम लोगों ने यह चैटिंग करते करते ही इंटरनेट के बेसिक्स सीखे।( और लोग समझते हैं कि इन हिंदी ब्लोगरों की सीधी एंट्री ही चिट्ठों पर ही हुई है) !!...
तब तो हमें यह भी नहीं पता होता था कि इन सर्च-वर्च इंजनों का क्या फंडा होता है.............बस चैटिंग का ही पता था। मुझे याद है कि एक बार मेरा बास अपने बच्चे की किसी बिमारी के बारे में बात कर रहा था और मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप ने यह सब नेट पर देखा होगा...............लेकिन मेरे मुंह से ये शब्द निकले थे........सर, आप को यह नेट में चैटिंग से पता चला होगा...............उस ने मुझे कोई खास जवाब नहीं दिया था।
विश्वास के इलावा अब कोई चारा नहीं दिखता...........मैं सोच रहा हूं कि जब केबल टीवी आया तो लगभग 15 साल पहले कुछ चैनल बच्चों के लिये लॉक करने की बहुत बातें हुईं.....अब इंटरनेट पर कुछ तरह की साइट्स ब्लाक करने की बात हो रही है ....लेकिन टैक्नोलॉजी इतने ज़ोरों से बढ़ रही है कि इतना सब कुछ करना माथा-पच्ची के सिवाय कुछ नहीं लगता।
और इसी टैक्नोलॉजी के कारण ही बच्चे हमारे से बहुत आगे निकल चुके हैं....अब मुझे ही देखिये...केवल लिखने का काम मेरा है ...बाकी सब कुछ मुझे मेरे बेटे ने सिखाया ...यहां तक कि मंगल फांट के बारे में भी , इस ब्लोगवाणी को , चिट्ठाजगत को उसी ने कहीं ढूंढ निकाला......मेरे ब्लोग्स को ऐग्रिगेटर्ज़ पर डालने का आइडिया भी उसी का था जो उस ने बखूबी किया.............इन पोस्टों के फांट्स वगैरह के बारे में भी मुझे बताता रहता है और ये जो मेरी विभिन्न बलोग्स पर आप यू-टयूब से लिंक किये हुये तरह तरह के फड़कते हुये गीत सुनते हो ना ,इन सब को अपनी पोस्ट पर लगाने की विधि भी इस ने ही मेरे को बताई है। अभी सोच रहा हूं कि इस की नेट-अक्सेस पर अगर मैंने भी तरह तरह के अंकुश लगाये होते तो यह सब मेरे लिये भी कैसे संभव हो पाता। ऐसा है ना कि हम लोगों के पास टाइम नहीं होता और अपने बच्चों से कुछ भी सीखने में हमें कभी किसी तरह का कंप्लैक्स भी नहीं होता।
और हां, बात हो रही थी विश्वास करने की ..........सोच रहा हूं कि मेरे बीजी-पापा जी ने भी मुझ पर बेइंतहा विश्वास किया ....और मैंने भी कभी भी उन के इस विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाई ( एक नावल के इलावा !) ….हुया यूं कि जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था तो कहीं से एक नावल मेरे हाथ लग गया ....सारी ज़िंदगी में केवल वह एक ही नावल पढ़ा है.......उस के कुछ पन्ने पढ़ने मुझे बहुत अच्छे लगते थे( जितना बता रहा हूं उतने से ही इत्मीनान कर लीजिये.......!!)..और मैंने उन्हें फोल्ड कर के रख छोड़ा था...........और अकसर उस नावल को छिपा कर ही रखता था ...और जैसे ही मौका मिलता तो अपनी किसी बड़ी सी किताब के अंदर छिपा कर उस के वही पन्ने बार बार पढ़ कर अच्छा लगने लगा था। और मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब घर में कोई भी नहीं होता था तो मैं उस नावल को बहुत आराम से पढ़ता था। लेकिन मैं भी किधर का किधर निकल गया.............शायद यह सब याद करना भी ज़रूरी था ....और इस के साथ यह भी कि वो पुराने दिन वो थे जब मनोहर कहानियां, मायापुरी पढ़ना छोटे बच्चों के लिये ठीक नहीं समझा जाता था। लेकिन जो मज़ा उन दिनों ये मनोहर कहानियां ( खास कर एक दो विशेष कहानियां...) और वह भी बार-बार पढ़ कर आया करता था उस के क्या कहने ।
बात कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है ना तो मैंने सोचा कि इस विषय के अनुरूप मेरी बेहद पसंदीदा फिल्म रोटी का एक गीत आप की तऱफ़ फैंकू...............यार हमारी बात सुनो, ऐसा इक इंसान चुनो, जिस ने पाप ना किया हो , जो पापी न हो......लेकिन उस का लिंक कापी न हो सका किसी ने उस पर पहरा लगा रखा है , सो , अगर विचार बने तो यू-ट्यूब पर जा कर सर्च में केवल तीन शब्द ....यार हमारी बात ....ही लिख दीजियेगा वह गीत प्रकट हो जायेगा। इतना ज़बरदस्त गीत है कि सब कुछ इतने इफैक्टिव तरीके से कह देता है ...........ज़रूर सुनियेगा और बतलाईएगा कि कैसा लगा।

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