अकसर इस तरह की बात खाने के साथ चलती है ...भर पेट खाना....लगभग पंद्रह वर्ष पहले की बात है मैंने जयपुर के एक चौराहे पर एक होटल के बाहर इस तरह का बोर्ड देखा था कि इतने रूपये में आप भरपेट खाना खा सकते हैं...पहली बार इस तरह की विज्ञापन देखा था...वरना हम तो यही जानते हैं कि भर पेट खाना या तो घर में मिलता है या फिर गुरुद्वारे के लंगर में...
इसलिए आज लखनऊ के चारबाग एरिया में इस तरह का भर पेट पानी वाला स्टॉल देखा तो उत्सुकता हुई इस के बारे में जानने के लिए...रूक गया मैं वहीं...
बोर्ड तो आप देख ही रहे हैं कि २ रूपये में भर पेट पानी पीजिए...और ब्रांड भी एक तूफ़ानी सा ही लगा...घनघोर ठंडा पानी.. डिस्पोज़ेबल पानी के गिलास में आप २ रूपये में जितना भी पानी पीना चाहें पी सकते हैं...
मुझे उत्सुकता हुई इस सेवा के बारे में कुछ जानने की ...
रुक तो मैं गया ही था...यह जो लड़का पानी के स्टाल को संंभाले हुए है...इस के पास ही एक अधेड़ उम्र का बंदा इस का मालिक लग रहा था..एक कुर्सी पर बैठा हुआ ...लोगों को चेता रहा था कि देखो, भई, पानी फैंको मत।
अब मुझे लगा कि इस से बात शुरू कैसे करूं, प्यास मुझे है नहीं... मैंने ऐसे ही पूछा एक बेवकूफ़ाना सा प्रश्न उस की तरफ़ उछाल ही दिया...चाहे कोई एक बोतल पानी पी ले?
उसने कहा कि जी हां, डिस्पोजेबल गिलास में अगर पानी पी रहा है कोई तो वह २ रूपये में जितना भी पीना चाहे पी ले... और एक बात कि अगर किसी के पास पैसे नहीं है तो वह भी बिना गिलास के कैंटर की टोटी के नीचे मुंह लगा कर अपने हाथ से पानी पी सकता है ..
मैंने उस की पीठ थपथपाई....कहने लगा कि बाऊ जी, यह काम ३० सालों से चला रहे हैं...सुबह से शाम सभी दिन यह पानी की सेवा चलती है ...बेशर्ते की बिजली आ रही है क्योंकि इन सभी कैंटरों में पानी जो भरा जाता है वह बोरिंग का पानी होता है ...और मोटर चलाने के लिए बिजली होनी ज़रूरी है ! आप उधर देख रहे हैं, यह एक लेबर भी रखा हुआ है पानी लाने के लिए!
एक बात उसने और भी कही कि अगर कोई दिव्यांग है तो उसे मुफ्त पानी पिलाया जाता है ...
मैंने उस बंदे को कहा कि इस के बारे में तो अखबारों में आना चाहिए....उसने कहा कि बहुत सी अखबारों में आता रहता है ...और लोग फोटो खींच ले जाते हैं और इस के बारे में नेट पर भी चलता रहता है ...(शायद यू-ट्यूब पर भी किसी ने अपलोड़ किया हो !)
मैंने भी उस से वायदा किया कि मैं भी इस के बारे में इंटरनेट पर शेयर करूंगा....
चलिए, यह बंदा तो अच्छा काम कर रहा है...इस को साधुवाद देना चाहूंगा...
लेकिन मुझे सारे रास्ते आज से ४० साल पहले हमारे स्कूली दिनों के ज़माने की छबीलें और प्याऊ याद आते रहे ..दुर्ग्याणा मंदिर के दशहरा ग्राउंड के पास ही सेवा समिति के उस प्याऊ में जो बुज़ुर्ग हमें स्कूल से आते वक्त ठंडा पानी पिलाया करता था उन की उम्र कम से कम ८० की तो होगी ...हम लोग पांचवी कक्षा में थे और प्याऊ का इंतजा़र किया करते थे... १०-११साल की उम्र में इतनी अकल भी आ चुकी थी कि पानी पीने के बाद ५० पैसे के जेब-खर्च में से जो पांच दस पैसे बचे हुए हैं उसे उस प्याऊ की स्लैब पर रख देना है ....ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था ..उस बुज़ुर्ग ने कभी मांगे नहीं और कभी हमारे रखे पैसों की तरफ़ देखा भी नहीं और न ही कभी मुंह से कुछ भी कहा ....बहुत से रिक्शा वाले और दूसरे राहगीर भी वहां ज़रूर पानी के लिए रुकते.... शायद उस बुज़ुर्ग और उस तरह के कुछ लोगों से मिली प्रेरणा ही है कि मेरी Wish-list में कुछ प्याऊ खोलना और उस के अंदर बैठ कर लोगों को पानी पिलाने की सेवा करने की बहुत तमन्ना है....कभी ऐसा कुछ ज़रूर करूंगा..अभी पहले ढिंढोरा तो पीट लूं और TRP तो बटोर लूं...😀😀😀😬😬
पानी पर बहुत कुछ लिखा है पहले ही ..लेकिन जब पोस्ट के बाद पानी से जुड़ा कोई गीत लगाने की बारी आती है तो मुझे बस यही गीत याद आता है ....पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...
इसलिए आज लखनऊ के चारबाग एरिया में इस तरह का भर पेट पानी वाला स्टॉल देखा तो उत्सुकता हुई इस के बारे में जानने के लिए...रूक गया मैं वहीं...
बोर्ड तो आप देख ही रहे हैं कि २ रूपये में भर पेट पानी पीजिए...और ब्रांड भी एक तूफ़ानी सा ही लगा...घनघोर ठंडा पानी.. डिस्पोज़ेबल पानी के गिलास में आप २ रूपये में जितना भी पानी पीना चाहें पी सकते हैं...
मुझे उत्सुकता हुई इस सेवा के बारे में कुछ जानने की ...
रुक तो मैं गया ही था...यह जो लड़का पानी के स्टाल को संंभाले हुए है...इस के पास ही एक अधेड़ उम्र का बंदा इस का मालिक लग रहा था..एक कुर्सी पर बैठा हुआ ...लोगों को चेता रहा था कि देखो, भई, पानी फैंको मत।
अब मुझे लगा कि इस से बात शुरू कैसे करूं, प्यास मुझे है नहीं... मैंने ऐसे ही पूछा एक बेवकूफ़ाना सा प्रश्न उस की तरफ़ उछाल ही दिया...चाहे कोई एक बोतल पानी पी ले?
उसने कहा कि जी हां, डिस्पोजेबल गिलास में अगर पानी पी रहा है कोई तो वह २ रूपये में जितना भी पीना चाहे पी ले... और एक बात कि अगर किसी के पास पैसे नहीं है तो वह भी बिना गिलास के कैंटर की टोटी के नीचे मुंह लगा कर अपने हाथ से पानी पी सकता है ..
मैंने उस की पीठ थपथपाई....कहने लगा कि बाऊ जी, यह काम ३० सालों से चला रहे हैं...सुबह से शाम सभी दिन यह पानी की सेवा चलती है ...बेशर्ते की बिजली आ रही है क्योंकि इन सभी कैंटरों में पानी जो भरा जाता है वह बोरिंग का पानी होता है ...और मोटर चलाने के लिए बिजली होनी ज़रूरी है ! आप उधर देख रहे हैं, यह एक लेबर भी रखा हुआ है पानी लाने के लिए!
एक बात उसने और भी कही कि अगर कोई दिव्यांग है तो उसे मुफ्त पानी पिलाया जाता है ...
मैंने उस बंदे को कहा कि इस के बारे में तो अखबारों में आना चाहिए....उसने कहा कि बहुत सी अखबारों में आता रहता है ...और लोग फोटो खींच ले जाते हैं और इस के बारे में नेट पर भी चलता रहता है ...(शायद यू-ट्यूब पर भी किसी ने अपलोड़ किया हो !)
मैंने भी उस से वायदा किया कि मैं भी इस के बारे में इंटरनेट पर शेयर करूंगा....
चलिए, यह बंदा तो अच्छा काम कर रहा है...इस को साधुवाद देना चाहूंगा...
लेकिन मुझे सारे रास्ते आज से ४० साल पहले हमारे स्कूली दिनों के ज़माने की छबीलें और प्याऊ याद आते रहे ..दुर्ग्याणा मंदिर के दशहरा ग्राउंड के पास ही सेवा समिति के उस प्याऊ में जो बुज़ुर्ग हमें स्कूल से आते वक्त ठंडा पानी पिलाया करता था उन की उम्र कम से कम ८० की तो होगी ...हम लोग पांचवी कक्षा में थे और प्याऊ का इंतजा़र किया करते थे... १०-११साल की उम्र में इतनी अकल भी आ चुकी थी कि पानी पीने के बाद ५० पैसे के जेब-खर्च में से जो पांच दस पैसे बचे हुए हैं उसे उस प्याऊ की स्लैब पर रख देना है ....ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था ..उस बुज़ुर्ग ने कभी मांगे नहीं और कभी हमारे रखे पैसों की तरफ़ देखा भी नहीं और न ही कभी मुंह से कुछ भी कहा ....बहुत से रिक्शा वाले और दूसरे राहगीर भी वहां ज़रूर पानी के लिए रुकते.... शायद उस बुज़ुर्ग और उस तरह के कुछ लोगों से मिली प्रेरणा ही है कि मेरी Wish-list में कुछ प्याऊ खोलना और उस के अंदर बैठ कर लोगों को पानी पिलाने की सेवा करने की बहुत तमन्ना है....कभी ऐसा कुछ ज़रूर करूंगा..अभी पहले ढिंढोरा तो पीट लूं और TRP तो बटोर लूं...😀😀😀😬😬
पानी पर बहुत कुछ लिखा है पहले ही ..लेकिन जब पोस्ट के बाद पानी से जुड़ा कोई गीत लगाने की बारी आती है तो मुझे बस यही गीत याद आता है ....पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...