नतीजा यह है कि स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी एक महमारी के रूप में हमारे सामने है। एक नैचुरल सी बात है कि इस महामारी के बारे में इतनी सारी खबरें आ रही हैं कि किसी भी आदमी का सिर चकरा जाए। कुछ को तो यही लग रहा है कि जो लोग महंगे महंगे टैस्ट करवा लेंगे और हर समय मास्क पहने रखेंगे, वे इस के प्रकोप से बच जायेंगे। लेकिन ऐसी बात नहीं है, यह बीमारी भी अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं रखती । कुछ बातें केवल मन को तसल्ली देने का काम ज़रूर कर लेती हैं।
महांमारी तो अब आ ही गई है, आगे चल कर यह क्या रूप अख्तियार करेगी, इस रहस्य का जवाब तो समय की कोख में छुपा हुआ है। लेकिन इतना मुझे ज़रूर लग रहा है कि इस महांमारी का जो खौफ़ पैदा हो गया है आने वाले समय में वह मार्कीट में कुछ वस्तुओं का बाज़ार ज़रूर गर्म कर देगा।
मैं पढ़ रहा था कि अगर फलां-फलां तरह के साबुन से हाथ धोयें जायें या ऐसे हैंड-रब का इस्तेमाल किया जाये तो इस से बचा जा सकता है। सोच रहा हूं कि क्या लोगों को इस तरह की सलाह दी जाये और अगर सलाह दी भी जाये तो क्या वे इस को मान लेंगे। कहां से मान लेंगे ? ---- उन की दूसरी प्राथमिकतायें भी तो हैं ( मेरी मां का दो दिन पहले रोहतक से फोन आया कि मेरा भाई चार-छः दुकानों पर पता कर आया है, चीनी नहीं मिल रही , इसलिये गुड़ की चाय पी रहे हैं !!)---- जिस देश के करोड़ों लोगों को नहाने के लिये अंग्रेज़ी क्या कपड़े धोने वाला साबुन भी उपलब्ध नहीं है और करोड़ों ऐसे लोग जो हाथ धोने के लिये मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कैसे आप कह सकते हैं कि अब अगर आपने स्वाईन-फ्लू से बचना है तो फलां फलां साबुन खरीद लो।----करोड़ों लोगों के लिये बस यह एक शायद खोखली सी सलाह ही होगी क्योंकि चाह कर भी वे यह सब खर्च नहीं कर पाते।
जहां तक मेरी समझ है कि साबुन कोई भी हो लेकिन अगर इसी महांमारी के बहाने ही सही हमारा देश खांसना और छींकना सीख जाये तो भी बचाव ही बचाव है। हज़ार में से एक ने अगर मास्क खरीद भी लिया तो भी क्या यह महांमारी रूक जायेगी।
इस महांमारी का हम सब को मिल जुल कर सामना करना होगा ---- यह नहीं कि डा चोपड़ा तो घर में बहुत ही महंगे साबुन इस्तेमाल कर लेगा, अल्होकल युक्त हैंड-रब भी खरीद कर लेकर आयेगा, ज़रूरत पड़ने पर फेस-मास्क भी मिल ही जायेंगे, इसलिये उसे दूसरों के साथ क्या। शायद उसे दूसरों के साथ कोई सरोकार न होता अगर वह अपने किसी प्राइवेट प्लेनेट पर रह रहा होता और उसे हर समय अपने ही घर में रहना होता, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसे भी दिन में 10-12 घंटे पब्लिक के बीच ही रहना है, उन के बीच ही रहना है, सांस भी वहीं लेना है, बैंक एवं डाकखाने की लाइन में खड़े भी होना है, ठसाठस भरी बस में भी यात्रा करनी है, उस के बच्चों ने भी स्कूल जाना है, सब के साथ मिक्स होना है------------तो, फिर बात वहां पर आकर खत्म होती है कि यह महांमारी किसी एक बंदे के द्वारा सारी सावधानियां बरत लेने से थमने वाली नहीं।
हमें पब्लिक को सचेत करना होगा कि मास्क नहीं है तो कोई गम नहीं है, ज़रूरत पड़ने पर आप अपने रूमाल को ही मास्क की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं और फिर उसे अच्छी तरह धो सकते हैं। बहुत से स्कूलों के बच्चों की जेब में रूमाल ही नहीं होता, उन्हें यह बताने का यह एक उचित अवसर है कि रूमाल रखने से कैसे आप की अपनी सेहत की ही रक्षा होती है। और खास बात और कि ज़रूरी नहीं सारे बच्चे बाज़ार से ही रूमाल खरीदें, आखिर घर में बने किसी रूमाल में या अगर रूमाल नहीं भी है तो किसी साफ़,सुथरे सूती कपड़ा का स्कूली बच्चों द्वारा रूमाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है तो इस में क्या बुराई है !!
अब तो प्राइवेट अस्पतालों को भी स्वाईन फ्लू टैस्टिंग की एवं इलाज की अनुमति मिल गई है, इसलिये मुझे लगता है कि बहुत से अस्पताल तो इस से संबंधित विज्ञापन भी समाचार-पत्रों में जारी करने की तैयारी में जुटे होंगे। देखते हैं आने वाले समय में स्वाईन-फ्लू की टैस्टिंग के लिये कैसी होड़ लगती है।
और एक बेहद ज़रूरी बात यह भी है कि जहां तक हो सके अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने की चेष्टा करनी चाहिये ---अगर वॉयरस शरीर में चली भी जाये तो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही उसे धर-दबोचे। और इस के लिये सात्विक आहार लेना होगा जो संतुलित भी हो, उपर्युक्त मात्रा में पानी पीना चाहिये और इन सब से बहुत ज़रूरी है कि कम से कम अब तो प्राणायाम् करना शुरू कर लिया जाये।
बस, इतना कुछ ही कर लें। और कर भी क्या सकते हैं। मैं भी घर में मौजूद साधारण साबुन ही इस्तेमाल कर रहा हूं , लेकिन बार बार हाथ धो लेने में कभी भी आलस नहीं करता हूं -------लेकिन इस महांमारी की वजह से अब अपने एवं दूसरों के खांसने-छींकने के बारे में ज़्यादा सचेत रहना होगा ----- इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं होगा। बस, जो कुछ सहज-स्वभाव से बचाव के लिये कर पायें, बिल्कुल ठीक है, बाकी इस प्रभु पर छोड़ दें, जो भी होगा अच्छा ही होगा !!a
महांमारी तो अब आ ही गई है, आगे चल कर यह क्या रूप अख्तियार करेगी, इस रहस्य का जवाब तो समय की कोख में छुपा हुआ है। लेकिन इतना मुझे ज़रूर लग रहा है कि इस महांमारी का जो खौफ़ पैदा हो गया है आने वाले समय में वह मार्कीट में कुछ वस्तुओं का बाज़ार ज़रूर गर्म कर देगा।
मैं पढ़ रहा था कि अगर फलां-फलां तरह के साबुन से हाथ धोयें जायें या ऐसे हैंड-रब का इस्तेमाल किया जाये तो इस से बचा जा सकता है। सोच रहा हूं कि क्या लोगों को इस तरह की सलाह दी जाये और अगर सलाह दी भी जाये तो क्या वे इस को मान लेंगे। कहां से मान लेंगे ? ---- उन की दूसरी प्राथमिकतायें भी तो हैं ( मेरी मां का दो दिन पहले रोहतक से फोन आया कि मेरा भाई चार-छः दुकानों पर पता कर आया है, चीनी नहीं मिल रही , इसलिये गुड़ की चाय पी रहे हैं !!)---- जिस देश के करोड़ों लोगों को नहाने के लिये अंग्रेज़ी क्या कपड़े धोने वाला साबुन भी उपलब्ध नहीं है और करोड़ों ऐसे लोग जो हाथ धोने के लिये मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कैसे आप कह सकते हैं कि अब अगर आपने स्वाईन-फ्लू से बचना है तो फलां फलां साबुन खरीद लो।----करोड़ों लोगों के लिये बस यह एक शायद खोखली सी सलाह ही होगी क्योंकि चाह कर भी वे यह सब खर्च नहीं कर पाते।
जहां तक मेरी समझ है कि साबुन कोई भी हो लेकिन अगर इसी महांमारी के बहाने ही सही हमारा देश खांसना और छींकना सीख जाये तो भी बचाव ही बचाव है। हज़ार में से एक ने अगर मास्क खरीद भी लिया तो भी क्या यह महांमारी रूक जायेगी।
इस महांमारी का हम सब को मिल जुल कर सामना करना होगा ---- यह नहीं कि डा चोपड़ा तो घर में बहुत ही महंगे साबुन इस्तेमाल कर लेगा, अल्होकल युक्त हैंड-रब भी खरीद कर लेकर आयेगा, ज़रूरत पड़ने पर फेस-मास्क भी मिल ही जायेंगे, इसलिये उसे दूसरों के साथ क्या। शायद उसे दूसरों के साथ कोई सरोकार न होता अगर वह अपने किसी प्राइवेट प्लेनेट पर रह रहा होता और उसे हर समय अपने ही घर में रहना होता, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसे भी दिन में 10-12 घंटे पब्लिक के बीच ही रहना है, उन के बीच ही रहना है, सांस भी वहीं लेना है, बैंक एवं डाकखाने की लाइन में खड़े भी होना है, ठसाठस भरी बस में भी यात्रा करनी है, उस के बच्चों ने भी स्कूल जाना है, सब के साथ मिक्स होना है------------तो, फिर बात वहां पर आकर खत्म होती है कि यह महांमारी किसी एक बंदे के द्वारा सारी सावधानियां बरत लेने से थमने वाली नहीं।
हमें पब्लिक को सचेत करना होगा कि मास्क नहीं है तो कोई गम नहीं है, ज़रूरत पड़ने पर आप अपने रूमाल को ही मास्क की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं और फिर उसे अच्छी तरह धो सकते हैं। बहुत से स्कूलों के बच्चों की जेब में रूमाल ही नहीं होता, उन्हें यह बताने का यह एक उचित अवसर है कि रूमाल रखने से कैसे आप की अपनी सेहत की ही रक्षा होती है। और खास बात और कि ज़रूरी नहीं सारे बच्चे बाज़ार से ही रूमाल खरीदें, आखिर घर में बने किसी रूमाल में या अगर रूमाल नहीं भी है तो किसी साफ़,सुथरे सूती कपड़ा का स्कूली बच्चों द्वारा रूमाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है तो इस में क्या बुराई है !!
अब तो प्राइवेट अस्पतालों को भी स्वाईन फ्लू टैस्टिंग की एवं इलाज की अनुमति मिल गई है, इसलिये मुझे लगता है कि बहुत से अस्पताल तो इस से संबंधित विज्ञापन भी समाचार-पत्रों में जारी करने की तैयारी में जुटे होंगे। देखते हैं आने वाले समय में स्वाईन-फ्लू की टैस्टिंग के लिये कैसी होड़ लगती है।
और एक बेहद ज़रूरी बात यह भी है कि जहां तक हो सके अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने की चेष्टा करनी चाहिये ---अगर वॉयरस शरीर में चली भी जाये तो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही उसे धर-दबोचे। और इस के लिये सात्विक आहार लेना होगा जो संतुलित भी हो, उपर्युक्त मात्रा में पानी पीना चाहिये और इन सब से बहुत ज़रूरी है कि कम से कम अब तो प्राणायाम् करना शुरू कर लिया जाये।
बस, इतना कुछ ही कर लें। और कर भी क्या सकते हैं। मैं भी घर में मौजूद साधारण साबुन ही इस्तेमाल कर रहा हूं , लेकिन बार बार हाथ धो लेने में कभी भी आलस नहीं करता हूं -------लेकिन इस महांमारी की वजह से अब अपने एवं दूसरों के खांसने-छींकने के बारे में ज़्यादा सचेत रहना होगा ----- इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं होगा। बस, जो कुछ सहज-स्वभाव से बचाव के लिये कर पायें, बिल्कुल ठीक है, बाकी इस प्रभु पर छोड़ दें, जो भी होगा अच्छा ही होगा !!a