आज जिस अखबार को देख कर मैंने दिन की शुरूआत की थी...उस में ये सुर्खियां थीं....अखबार के नाम से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वैसे भी अखबार ने वही छापा जो घटित हुआ...अखबार ठहरा समाज का आईना...ऐसे में मैं अपने आप से यह प्रश्न पूछ रहा हूं कि इस तरह से दिन की शुरूआत करना कितना मुनासिब है!.....सोच रहा हूं कि कल से सुबह अखबार नहीं देखा करूंगा....दोपहर-शाम को देखा करेंगे.....सुबह सुबह मूड बड़ा खराब होता है, सारी निगेटिविटि भर जाती है...
यह सब आज की सुर्खियां थीं....पढ़ते पढ़ते जब कोई थका महसूस करे तो स्फूर्ति लाने के लिए शिलाजीत और जापानी कैप्सूल तो थे ही और साथ में वशीकरण के भी जुगाड़..
ये सब सुर्खियां पाठकों के आगे बहुत सवाल छोड़ कर चली जाती हैं, रोज़ नितप्रतिदिन...
यह सब आज की सुर्खियां थीं....पढ़ते पढ़ते जब कोई थका महसूस करे तो स्फूर्ति लाने के लिए शिलाजीत और जापानी कैप्सूल तो थे ही और साथ में वशीकरण के भी जुगाड़..
ये सब सुर्खियां पाठकों के आगे बहुत सवाल छोड़ कर चली जाती हैं, रोज़ नितप्रतिदिन...