कल नेट पर तो शाम को आ गया था कि स्मृति इरानी ने ट्रायल रूम में खुफिया कैमरा पकड़ा है लेकिन उस की पूरी जानकारी अभी हिन्दुस्तान पेपर के पहले पन्ने पर छपी पहली खबर से हासिल हुई कि स्मृति वहां कपड़े खरीदने गई थी। तभी उस की नज़र ट्रायल रूम के बाहर लगे खुफिया कैमरे पर पड़ी और उस ने इस का विरोध किया।
इस तरह की खबरें आती रहती हैं ..लेकिन इस तरह के काम करने वालों के मन में खौफ़ नाम की चीज़ नहीं है, ऐसा लगता है।
अगले पन्नों पर कुछ सावधानियां बरतने को कहा गया था... बड़ी रोचक सी लगीं, इसलिए यहां शेयर करने आ गया।
खुफिया कैमरों से बचें
इन खास जगहों पर छिपाए जाते हैं खुफिया कैमरे..
ट्रायल रूम की छत या दीवार में
होटल के कमरे में रखे फूलदान में
फोटो फ्रेम में, पंखे में
टॉयलेट या बाथरूम के शॉवर में
जब भी किसी ट्रायल रूम में जाएं तो सब से पहले ऊपर के कोनों और शीशों को चेक करें।
मोबाइल की फ्लेश लाइट जलाएं और उसे शीशे की तरफ करें। यदि लाइट प्रतिबिंबित होकर वापस लौट रही है तो निश्चिंत रहें। लेकिन लाइट शीशे के पार जा रही है तो सावधान हो जाएं वहां कैमरा हो सकता है।
मोबाइल फोन के जरिए कीजिए जांच
ट्रॉयल रूम में घुसने से पहले अपने मोबाइल से कॉल करें। जांचें सिग्नल हैं या नहीं। ट्रायल रूम में घुसने के बाद फिर से कॉल करे। यदि कॉल नहीं लग पा रहा है तो सतर्क हो जाएं। वहां छिपा कैमरा हो सकता है। कारण, कैमरा में लगा फाइबर ऑप्टिकल केबल मोबाइल के सिग्नल को बाधित करता है, जिससे कॉल नहीं हो पाती।
ट्रायल रूम में जाने के बाद वहां की सभी लाइट बंद कर दें। देखें कहीं लाल या हरी रंग की बत्ती तो नहीं जल रही। यदि दिख रही है तो वह किसे छिपे हुए कैमरे की हो सकती है।
शीशे के पीछे छिपा कैमरा जांचने के लिए शीशे की उंगली रखें
अगर शीशे पर रखी गई उंगली और शीशे में दिख रही उंगली के बीच जगह रहती है तो डरने की जरूरत नहीं। लेकिन अगर शीशे पर रखी गई उंगली के बीच में जगह नहीं रहती है तो और वे जुड़ी रहती हैं तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी। रहती है तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी।
यह ऊपर लिखी बातें पढ़ कर आप को कैसा लगा?.....मुझे तो बहुत अजीब लगा... स्मृति इरानी अलर्ट हैं...उसने यह सब ढूंढ निकाला... हिंदोस्तान की आम गृहिणियां कहां इस तरह की चीज़ें जानती-पहचानती हैं।
और ऊपर जो सुझाव लिखें...वे भी समझने के लिए इंटर में कम से कम साईंस का होना ज़रूरी लगता है ...ऐसा मुझे लगा। मुझे खुद कईं बातें समझ नहीं आईं....
लेिकन एक बात तो है कि अगर फैबइंडिया जैसे शोरूम में यह सब हो रहा था तो बहुत अफसोसजनक बात है...मैंने भी पिछले दो सालों में इन के बंबई और लखनऊ शोरूमों से कुछ कमीज़ें खरीदी हैं..रेट इन के काफी ज़यादा होते हैं.....कहते तो यही हैं कि इन का फायदा उन कपड़ों को तैयार करने वालों तक पहुंचता है.........लेकिन इन के शोरूमों की शानो-शौकत ..ए.सी की ठंडक और सामान्य एंबिऐंस देख कर मुझे कुछ हाई-प्रोफाइल महिलाओं की समाज सेवा की याद आ जाती हैं। अगर ये लोग गोवा जैसी हाई-प्रोफाइल जगह में अपने करिंदों पर नज़र नहीं रख पाते तो इस की साख पर तो आंच पहुंचनी तय ही है।
अगर कोई यह सोच रहा हो कि इस तरह के खुफिया कैमरे औरतों के लिए ही इस्तेमाल किये जाते होेंगे........उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि गोवा जैसी जगहों पर सभी तरह की रूचि वाले रोग घूमने आते हैं......पुरूष, बच्चे, छोटे शिशु ...उन्हें कुछ भी चलता है।
एक बात का ध्यान आया...दो साल पहले हमारे एक डाक्टर को अकेले में बंद कमरे में अंदर से सिटकनी लगा कर भीड़ पीट कर चली गई.. उसकी एक यूनियन नेता से कुछ कहा-सुनी हो गई थी...बाद में लोग उसे यही सलाह दे रहे थे कि तू भी यार थोड़ी तो भड़ास निकाल लेता..दो चार को तो हाथ जमा ही देता......ऐसे ही इस तरह की खुफिया कैमरों की हरकतें दिख जाने पर पुलिस के आने से पहले थोड़ी सी (बिल्कुल ह्लकी-फुल्की) भड़ास निकालने के बारे में आप क्या कहते हैं?...इन सिरफिरे, विक्षिप्त मानसिकता वाले लुच्चों की ऐसी की तैसी......कैमरे लगाने का इतना ही शौक है तो कमबख्तों अपने ही घर में लगाओ...
सुबह सुबह मुझे इतनी जासूसी की बातें सुन कर दो जासूस फिल्म का ध्यान आ गया तो मैंने यह गीत सुन लिया...बेटा का आज एग्ज़ाम है....इस गीत की आवाज़ सुन कर वह भी पढ़ाई छोड़ कर मेरे साथ बैठ गया...पहली बार इस गीत को सुन रहा था....राजकपूर को इस अंदाज़ में देख कर वाह-वाह करते हुए ठहाके लगा रहा है.....मैं उसे कह रहा हूं..पढ़ ले यार, पढ़ ले......जे ई ई का पेपर है, मज़ाक नहीं....फिर मैंने कहा कि अच्छा १० मिनट मेडीटेट कर लो.....दो मिनट के बाद ही उठ गया ..कहने लगा है कि पापा, इस से तो मेरा सिर और दुखने लग गया है..
चलिए आप तो इसे सुनिए...
इस तरह की खबरें आती रहती हैं ..लेकिन इस तरह के काम करने वालों के मन में खौफ़ नाम की चीज़ नहीं है, ऐसा लगता है।
अगले पन्नों पर कुछ सावधानियां बरतने को कहा गया था... बड़ी रोचक सी लगीं, इसलिए यहां शेयर करने आ गया।
खुफिया कैमरों से बचें
इन खास जगहों पर छिपाए जाते हैं खुफिया कैमरे..
ट्रायल रूम की छत या दीवार में
होटल के कमरे में रखे फूलदान में
फोटो फ्रेम में, पंखे में
टॉयलेट या बाथरूम के शॉवर में
जब भी किसी ट्रायल रूम में जाएं तो सब से पहले ऊपर के कोनों और शीशों को चेक करें।
मोबाइल की फ्लेश लाइट जलाएं और उसे शीशे की तरफ करें। यदि लाइट प्रतिबिंबित होकर वापस लौट रही है तो निश्चिंत रहें। लेकिन लाइट शीशे के पार जा रही है तो सावधान हो जाएं वहां कैमरा हो सकता है।
मोबाइल फोन के जरिए कीजिए जांच
ट्रॉयल रूम में घुसने से पहले अपने मोबाइल से कॉल करें। जांचें सिग्नल हैं या नहीं। ट्रायल रूम में घुसने के बाद फिर से कॉल करे। यदि कॉल नहीं लग पा रहा है तो सतर्क हो जाएं। वहां छिपा कैमरा हो सकता है। कारण, कैमरा में लगा फाइबर ऑप्टिकल केबल मोबाइल के सिग्नल को बाधित करता है, जिससे कॉल नहीं हो पाती।
ट्रायल रूम में जाने के बाद वहां की सभी लाइट बंद कर दें। देखें कहीं लाल या हरी रंग की बत्ती तो नहीं जल रही। यदि दिख रही है तो वह किसे छिपे हुए कैमरे की हो सकती है।
शीशे के पीछे छिपा कैमरा जांचने के लिए शीशे की उंगली रखें
अगर शीशे पर रखी गई उंगली और शीशे में दिख रही उंगली के बीच जगह रहती है तो डरने की जरूरत नहीं। लेकिन अगर शीशे पर रखी गई उंगली के बीच में जगह नहीं रहती है तो और वे जुड़ी रहती हैं तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी। रहती है तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी।
यह ऊपर लिखी बातें पढ़ कर आप को कैसा लगा?.....मुझे तो बहुत अजीब लगा... स्मृति इरानी अलर्ट हैं...उसने यह सब ढूंढ निकाला... हिंदोस्तान की आम गृहिणियां कहां इस तरह की चीज़ें जानती-पहचानती हैं।
और ऊपर जो सुझाव लिखें...वे भी समझने के लिए इंटर में कम से कम साईंस का होना ज़रूरी लगता है ...ऐसा मुझे लगा। मुझे खुद कईं बातें समझ नहीं आईं....
लेिकन एक बात तो है कि अगर फैबइंडिया जैसे शोरूम में यह सब हो रहा था तो बहुत अफसोसजनक बात है...मैंने भी पिछले दो सालों में इन के बंबई और लखनऊ शोरूमों से कुछ कमीज़ें खरीदी हैं..रेट इन के काफी ज़यादा होते हैं.....कहते तो यही हैं कि इन का फायदा उन कपड़ों को तैयार करने वालों तक पहुंचता है.........लेकिन इन के शोरूमों की शानो-शौकत ..ए.सी की ठंडक और सामान्य एंबिऐंस देख कर मुझे कुछ हाई-प्रोफाइल महिलाओं की समाज सेवा की याद आ जाती हैं। अगर ये लोग गोवा जैसी हाई-प्रोफाइल जगह में अपने करिंदों पर नज़र नहीं रख पाते तो इस की साख पर तो आंच पहुंचनी तय ही है।
अगर कोई यह सोच रहा हो कि इस तरह के खुफिया कैमरे औरतों के लिए ही इस्तेमाल किये जाते होेंगे........उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि गोवा जैसी जगहों पर सभी तरह की रूचि वाले रोग घूमने आते हैं......पुरूष, बच्चे, छोटे शिशु ...उन्हें कुछ भी चलता है।
एक बात का ध्यान आया...दो साल पहले हमारे एक डाक्टर को अकेले में बंद कमरे में अंदर से सिटकनी लगा कर भीड़ पीट कर चली गई.. उसकी एक यूनियन नेता से कुछ कहा-सुनी हो गई थी...बाद में लोग उसे यही सलाह दे रहे थे कि तू भी यार थोड़ी तो भड़ास निकाल लेता..दो चार को तो हाथ जमा ही देता......ऐसे ही इस तरह की खुफिया कैमरों की हरकतें दिख जाने पर पुलिस के आने से पहले थोड़ी सी (बिल्कुल ह्लकी-फुल्की) भड़ास निकालने के बारे में आप क्या कहते हैं?...इन सिरफिरे, विक्षिप्त मानसिकता वाले लुच्चों की ऐसी की तैसी......कैमरे लगाने का इतना ही शौक है तो कमबख्तों अपने ही घर में लगाओ...
सुबह सुबह मुझे इतनी जासूसी की बातें सुन कर दो जासूस फिल्म का ध्यान आ गया तो मैंने यह गीत सुन लिया...बेटा का आज एग्ज़ाम है....इस गीत की आवाज़ सुन कर वह भी पढ़ाई छोड़ कर मेरे साथ बैठ गया...पहली बार इस गीत को सुन रहा था....राजकपूर को इस अंदाज़ में देख कर वाह-वाह करते हुए ठहाके लगा रहा है.....मैं उसे कह रहा हूं..पढ़ ले यार, पढ़ ले......जे ई ई का पेपर है, मज़ाक नहीं....फिर मैंने कहा कि अच्छा १० मिनट मेडीटेट कर लो.....दो मिनट के बाद ही उठ गया ..कहने लगा है कि पापा, इस से तो मेरा सिर और दुखने लग गया है..
चलिए आप तो इसे सुनिए...