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सोमवार, 11 अगस्त 2014

किशोर युवतियों में कॉपर-टी लगा देना क्या सही है?

अमेरिका के कोलोरेडो की खबर अभी दिखी कि वहां पर किशोर युवतियों को गर्भ धारण करने से बचाने के लिए इंट्रा-यूटरीन डिवाईस फिट कर दिया जाता है। इसे संक्षेप में आईयूडी कहते हैं। मैंने पाठकों की सुविधा के लिए कॉपर-टी लिख दिया है।

रिपोर्ट में आप देख सकते हैं कि पांच साल से यह प्रोग्राम चल रहा है --किसी व्यक्ति ने इस महान काम के लिए २३ मिलियन डालर का गुप्तदान दिया है कि किशोर युवतियों को इस अवस्था में गर्भावस्था से बचाया जाए। और इस से कहा जाता है कि इस उम्र की किशोरियों में प्रेगनेंसी की दर ४०प्रतिशत कम हो गई है।

अमेरिका जैसे संभ्रांत एवं विकसित देशों में स्कूल जाने वाली किशोरियों में प्रेगनेंसी होना कोई छुपी बात नहीं है। और कहा जा रहा है कि कोलोरेडो में इस तरह की सुविधा मिलने से टीन्ज़ को बड़ी राहत मिल गई है। वैसे तो वहां पर कॉपर-टी जैसे उपकरण फिट करवाने में ५०० डालर के करीब का खर्च आता जो कि ये लड़कियां करने में असमर्थ होती हैं और अपने मां-बाप से इस तरह के खर्च के लिए मांगने से झिझकती हैं।

ऐसा नहीं है कि इस तरह की दान-दक्षिणा वाले काम का कोई विरोध नहीं हो रहा.......वहां पर कुछ संगठन इस तरह की विरोध तो कर ही रहे हैं कि इस तरह से तो आप किशोरियों को एक तरह से फ्री-सैक्स करने का परमिट दे रहे हैं कि बिना किसी झँझट के, बिना किसी फिक्र के वे अब इस अवस्था में ही सैक्स में लिप्त हो सकती हैं। और यह भी चेतावनी दी गई है कि १३-१५ वर्ष की बच्चियों के यौन संबंध बनाने में वैसे ही कितने नुकसान हैं। और इन सब के अलावा यह यौन जनित बीमारियों (STDs--Sexually transmitted diseases) को बढ़ावा देने जैसा है।

दुनिया आगे तो बढ़ रही है, बड़ी एडवांस होती दिख रही है .....भारत ही में देख लें कि अभी तो हम असुरक्षित संभोग के तुंरत बाद या फिर चंद घंटों के बाद उस एक गर्भनिरोधक टेबलेट के लिए जाने के बारे में ही चर्चा कर रहे हैं कि किस तरह से उस टेबलेट का दुरूपयोग हो रहा है।

मैं कोई नैतिक पुलिस के मामू की तरह बात नहीं कर रहा हूं.... लेकिन जो है वही लिख रहा हूं कि कितनी अजीब सी समस्या दिखती है कि स्कूल जाने वाली १३-१५ की बच्चियों में इस तरह के कॉपर-टी जैसे उपकरण फिट कर दिए जाएं ताकि वे गर्भावस्था के झंझट से बच पाएं।

विकसित देशों की अपनी सोच है....हमारी अपनी है.......क्या किशोरावस्था में इस तरह के डिवाईस लगवा कर प्रेगनेंसी से बचना ही सब कुछ है, सोचने वाली बात है, कोई भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव, कोई पढ़ाई-लिखाई में रूकावट, यौन-संक्रमित बीमारीयां जैसे मुद्दे भी तो कोई मुद्दे हैं।

टीनएज प्रेगनेंसी विकसित देशों में (यहां का पता नहंीं, कोई आंकड़े नहीं...)एक विषम समस्या तो है ही, लेिकन उस से झूझने का यह तरीका मेरी समझ में तो आया नहीं। ठीक भी नहीं लगता कि कोई और ढंग का तरीका --उन की सोच बदलने का प्रयास- आजमाने की बजाए यह कॉपर-टी या इंप्लांट ही फिट कर दिए जाएं........न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.. .......नहीं, नहीं, इस तरह की स्कीमों में दम नहीं है।

भारत में तो विमेन-एक्टिविस्ट एवं महिलारोग विशेषज्ञ अभी उस असुरक्षित संभोग के बाद ली जाने वाले टेबलेट के कुछ युवतियों-महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले दुरूपयोग के बारे में ही जन-जागरूकता बढ़ा रही हैं कि इस गोली को नियमित बार बार लेना सुरक्षित नहीं है, हर पक्ष से......... हर पक्ष का मतलब तो आप जानते ही हैं।

Colorado birth control scheme casues drop in teen pregnancy  (BBC Report) 

रविवार, 10 अगस्त 2014

किशोरावस्था के अहम् मुद्दे...

अभी कुछ सर्च कर रहा था तो यह पन्ना दिख गया...अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स का तैयार किया हुआ.. इस की विश्वसनीयता के बारे में आप पूरी तरह से आशवस्त हो सकते हैं। बिल्कुल विश्वसनीय जानकारी है ...इस पेज पर यह बताया गया है कि किशोरावस्था में कौन से मुद्दे किशोरों को परेशान किए रहते हैं.......

मोटी आवाज़ --- लड़के जब किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो उन की आवाज़ भारी भरकम हो जाती है। इस से उन्हें बड़ी परेशानी सी होती है.....एम्बेरेसमैंट महसूस करते हैं, यह इस लेख में लिखा गया है तो मैं लिख रहा हूं लेकिन मेरे को नहीं लगता कि इस देश में यह कोई मुद्दा भी है। मैंने नहीं नोटिस किया कि आवाज़ के इस बदलाव से बच्चे परेशान होते हैं, पता नहीं मेरे अनुभव में यह बात आई ऩहीं।

गीले सपने (वेट ड्रीम्ज़).....यह अकसर होता है कि बच्चा सुबह उठता है तो उस का पायजामा और चद्दर भीगे हुए हों। यह पेशाब की वजह से नहीं बल्कि गीले सपने या रात में वीर्य के स्खलन की वजह से होता है, जो रात में सोते सोते ही हो जाता है। इस का मतलब यह नहीं कि लड़के को कोई कामुक सपना आ रहा था। लेकिन ऐसा हो भी सकता है (यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है)

लड़के के बापू को अपने बेटे को इस बार के बारे में बता चाहिए, उस के साथ इस विषय पर बात करनी चाहिए और उसी इस बात के लिए पूरी तरह से आश्वस्त करें कि आप को पता है कि इस के ऊपर उस (लड़के) का कोई नियंत्रण नही है..और वह इसे रोक नहीं पायेगा। बड़े होने की प्रक्रिया का यह वेट-ड्रीम्ज़ भी एक हिस्सा ही है।

अपने आप ही शिश्न का खड़ा हो जाना (involuntary erection)-- किशोरावस्था में प्रवेश करने पर लड़कों का पिनिस बिना उसे टच किए या बिना किसी प्रकार के कामुक विचारों के.. अपने आप ही खड़ा हो जाता है..अगर ऐसा कभी किसी पब्लिक जगह पर जैसे कि स्कूल आदि में हो जाता है तो लड़के को एम्बेरेसिंग लग सकता है। अगर आप का लड़का उम्र की इस अवस्था में है तो उसे बता कर रखें कि इस तरह से पिनिस का अपने आप उस की उम्र में उठ जाना भी एक बिल्कुल सामान्य सी बात है और यह केवल इस बात का संकेत है कि उस का शरीर मैच्यओर हो रहा है। यह सभी लड़कों में इस उम्र में हो सकता है......और जैसे जैसे समय बीतेगा इन की फ्रिक्वेंसी कम हो जायेगी। जी हां, मेरे साथ भी उस उम्र के दौरान ऐसा कईं बार हुआ था।

बस इतना सा कहना ही उस किशोर के मन पर जादू सा काम करेगा, भारी भरकम बोझ उतर जाएगा उस के सिर से कि पता नहीं यह सब क्यों होता है।

स्तन बड़े होना -- इन वर्षों में कईं बार किशोरों के स्तन थोड़े बढ़ जाते हैं और वे इस के बारे में चिंतित रहने लगते हैं लेकिन इस के लिए कुछ करना नहीं होता, अपने आप ही यह सब कुछ ठीक हो जाता है। इस और पता नहीं कभी मैंने तो ध्यान दिया ही नहीं।

एक अंडकोष दूसरे से बड़ा होना......एक अंडकोष का दूसरे से बड़े होना सामान्य भी है और एक आम सी बात भी है।

आप ने देखा कि किस तरह के कुछ छोटी छोटी दिखने वाली बातें किशोरों के मन का चैन छीन लेती हैं उस समय के दौरान जब उन का पढ़ाई लिखाई में मन लगा होना चाहिए। लेकिन अफसोस अभी तक हम लोग यही निर्णय नहीं कर पा रहे कि किशोरों को सैक्स ऐजुकेशन दी जानी कि नहीं, कितनी दी जानी चाहिए........आप भी ज़रा यह सोचिए कि अगर किशोरावस्था में बच्चों को ये सब बातें बता दी जाएंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा।

मुझे मेरे मित्र बार बार कहते रहते हैं कि यार तुम इंगलिश में लिखा करो.........लेकिन अकसर इंगलिश में लिखने की इच्छा इसलिए नहीं होती क्योंकि इतनी सुंदर जानकारी हर विषय पर नेट पर इंगलिश में उपलब्ध है लेकिन हिंदी पढ़ने वालों की ज़रूरत कैसे पूरी हो, उन्हें क्यों विश्वसनीय जानकारी से वंचित रखा जाए, बस यही जज्बा है जो मेरे से हिंदी में कुछ भी लिखवाता रहता है।

प्रमाण --->>   Concerns boys have about puberty   और साथ में मेरे व्यक्तिगत अनुभव का आधार. अगर अभी भी किशोरों तक यह सब जानकारी न पहुंचे तो मैं क्या कहूं ?

Generally we take for granted that our adolescent boys know all this. No, they don't know the truth explained above. They just know distorted facts dished out to them by vested interests and peer-groups. Take care--- Stay informed, stay care-free!!

शनिवार, 9 अगस्त 2014

केवल गुटखा-पानमसाला ही तो नहीं है विलेन...

हिंदी की एक अखबार के पहले पन्ने पर एक विज्ञापन देखा --एक पानसाले का..
उस मे लिखे शब्दों पर ध्यान दीजिए..
अच्छा खाईये निश्चिंत रहिये
वो स्वाद जिसमें छुपी हैं अनमोल खुशियां
भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय पान मसाला
साफ---सुरक्षित-- स्वादिष्ट
0%Tobacco   0%Nicotine

ठीक है, ठाक है .. एक कोने में छुपा कर यह भी लिखा है .... पानमसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

अब आप बताएं कि इस तरह का विज्ञापन हो और आप के शहर में हर तरफ़- आप के दोस्त, परिवारजन, अध्यापक, डाक्टर हर तरफ पान मसाला गुटखा चबाने में लगे हों तो फिर कैसे एक स्कूल-कालेज जाने वाला लोंडा इस से बच सकता है।

कितनी खतरनाक बात लिखी है कि पानमसाले में तंबाकू नहीं, निकोटीन नहीं... बहुत से पानमसालों पर यह लिखने लगे हैं.. लेकिन फिर भी क्यों इसे खा कर युवक अपनी ज़िंदगी बरबाद कर लेते हैं। उस का कारण है सुपारी ---और नाना प्रकार के अन्य कैमीकल जो इस में मौजूद रहते हैं और जिन्हें खाने से रोटी खाने के लिए मुंह तक न खुलने की नौबत आ जाती है...इस अवस्था को ओरल-सबम्यूकसफाईब्रोसिस कहते हैं और यह मुंह के कैंसर की पूर्व अवस्था भी है।
अब आप ही बताईए की गुटखा तो विलेन है ही जिस में तंबाकू-वाकू मिला रहता है लेकिन यह पान मसाला भी कितना निर्दोष है?

सब से पहले तो मैं बहुत से मरीज़ों से पूछता हूं कि क्या आप गुटखा-पान मसाला खाते हैं तो जवाब मिलता है कि नहीं, नहीं वह तो हम बिल्कुल नहीं लेते, कभी लिया ही नहीं, या बहुत पहले छोड़ दिया। लेकिन थोड़ी बात और आगे चलने पर कह देते हैं कि बस थोड़ी बहुत बीड़ी से चला लेता हूं। ऐसे किस्से मेरे को बहुत बार सुनने को मिलने लगे हैं.....बहुत बार......और कितने युवक यह कह देते हैं कि और किसी चीज़ का नशा नहीं, बीड़ी सिगरेट नहीं,  बस कभी कभी यह सुपारी वारी ले लेते हैं.......फिर उन की भी क्लास लेने पड़ती है कि ये सब के सब आग के खेल हैं।

आज मेरे पास एक महिला आई..सारे दांत बुरी तरह से घिसे हुए.....ये जो देसी मंजन बिकते हैं न बाज़ार में ये बेइंतहा किस्म के खुरदरे होते हैं....और इन को दांतों पर लगाने से दांत घिस जाते हैं। उसने कहा कि उसने इन्हें कभी इस्तेमाल नहीं किया.... मैं भी हैरान था कि ऐसे कैसे इस के दांत इतने ज़्यादा घिस गये। कहने लगी नीम की दातुन पहले करती थी गांव में. मैंने कहा कि उस से दांत इस तरह खराब नहीं होते। बहरहाल, अभी मैं सोच ही रहा था कि उसने कहा कि एक बात आप से छुपाना नहीं चाहती.......कहने लगी कि मैं गुल मंजन इस्तेमाल करती हूं. बस, फिर मैंने उसे समझा दिया कि क्यों गुल मंजन को छोड़ना ज़रूरी है......और बाकी तो उस का इलाज कर ही दूंगा, घिसे हुए दांत बिल्कुल नये जैसे हो जाते हैं आज कल हमारे पास बहुत से साधन मौजूद हैं।

उस के बाद अगला मरीज़ था, एक दो दांतों में दर्द था, मेरा प्रश्न वही कि गुटखा-पानमसाला लेते हैं, तो कहने लगा कि कभी नहीं यह सब किया. लेकिन कुछ अरसे से दांत में जब दर्द होता है तो तंबाकू-चूना तेज़ सा मिक्स कर के दांत के सामने गाल में दबा लेता हूं. .आराम मिल जाता है।

यहां यह बताना चाहूंगा कि तंबाकू की लत लगने का एक कारण यह भी है कि लोग दांत के दर्द के लिए मुंह में तंबाकू या नसवार (पिसा हुआ तंबाकू) रगड़नी शुरू कर देते हैं......मेरी नानी को भी तो यही हुआ था, दांत में दर्द होता रहता था, पहले डाक्टर वाक्टर ढंग के कहां दिखते थे, नीम हकीम ही दांत उखाड़ देते थे (अभी भी बहुत जगहों पर यही चल रहा है).. सो, मेरी नानी को नसवार मसलने की लत लग गई..... और फिर वह आदत नहीं छूटी......इस तरह की आदत का शिकार लोगों को मसाने में भयंकर रोग होने का रिस्क तो रहता ही है, बस इसी रोग ने हमारी चुस्त-दुरूस्त नानी हम से छीन ली। अफसोस, मुझे उन दिनों पता ही नहीं था कि यह नसवार इतनी खराब चीज है, वह बहुत झिझकते हुए हमें हमारे स्कूल-कालेज के दिनों में बाज़ार से नसवार की डिब्बी लाने को कहती और हम भाग कर हरिये पंसारी से खरीद लाते।

बच के रहो बई इन सब तंबाकू के रूपों से और हां, पानमसाले से भी....... कुछ दिन पहले मेरे पास एक मरीज आया ५० के करीब का रहा होगा, यही पानमसाले से होने वाला रोग था, मुंह नहीं खुल रहा था, घाव तो मुंह के पिछले हिस्से में थे ही, मुंह के अंदर की चमड़ी बिल्कुल सख्त चमड़े जैसी हो चुकी थी.....और साथ ही एक घाव मुझे ठीक नहीं लग रहा था जिस की टेस्टिंग होनी चाहिए और पूरा इलाज होना चाहिए......मैंने उसे समझाया तो बहुत था लेकिन वह वापिस लौट कर ही नहीं आया। यह युवक की बात केवल इसलिए की है कि पानमसाला छोड़ने के वर्षों बाद तक इस ज़हर का दंश झेलना पड़ सकता है, तो क्यों न आज ही, अभी ही से मुंह में रखे पानमसाले को दस गालियां निकाल कर हमेशा के लिए थूक दें।

तंबाकू-गुटखे की बातें लिख लिख कर थक गया हूं. लेकिन फिर भी बातों को दोहराना पड़ता है। हां, एक काम करिएगा, अगर मेरे इन विषयों से संबंधित लेख देखना चाहें तो इस ब्लॉग के दाईं तरफ़ जो सर्च का ऑप्शन है, उस में तंबाकू, गुटखा या पानमसाला लिख कर सर्च करिएगा। ये सब ज़हर आप हमेशा के लिए थूकने के लिए विवश न हो जाएं तो लिखिएगा।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

यौवन की दहलीज़ तो ठीक है लेकिन ...

कुछ दिन पहले मैं एक किताब का ज़िक्र कर रहा था ... यौवन की दहलीज़ पर जिसे यूनिसेफ के सहयोग से २००२ में प्रकाशित किया गया है।

इस के कवर पेज पर लिखा है...... मनुष्य के सेक्स जीवन, सेक्स के माध्यम से फैलने वाले गुप्त रोगों(एस टी डी) और एड्स के बारे में जो आप हमेशा से जानना चाहते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे कि किससे पूछें।

मैंने इस किताब के बारे में क्या प्रतिक्रिया दी थी, मुझे याद नहीं ..लेकिन शायद सब कुछ अच्छा ही अच्छा लिखा होगा --शायद इसलिए कि मैं पिछले लगभग १५ वर्षों से हिंदी भाषा में मैडीकल लेखन कर रहा हूं और मुझे हिंदी के मुश्किल शब्दों का मतलब समझने में थोड़ी दिक्कत तो होती है लेकिन फिर भी मैं कईं बार अनुमान लगा कर ही काम चला लेता हूं।

यह किताब हमारे ड्राईंग रूम में पड़ी हुई थी, मेरे बेटे ने वह देखी होगी, उस के पन्ने उलटे पलटे होंगे। क्योंकि कल शाम को वह मेरे से पूछता है --डैड, यह किताब इंगलिश में नहीं छपी?..... मैंने कहा, नहीं, यह तो हिंदी में ही है।

वह हंस कर कहने लगा कि डैड, इसे पढ़ने-समझने के लिए तो पहले संस्कृत में पीएचडी करनी होगी। उस की बात सुन कर मैं भी हंसने लगा क्योंकि किताब के कुछ कुछ भागों को देख कर मुझे भी इस तरह का आभास हुआ तो था.....पीएचडी संस्कृत न ही सही, लेकिन हिंदी भाषा का भारी भरकम ज्ञान तो ज़रूरी होना ही चाहिए इस में लिखी कुछ कुछ बातों को जानने के लिए।

अच्छा एक बात तो मैं आप से शेयर करना भूल ही गया ... इस के पिछले कवर के अंदर लिखा है...यह पुस्तक बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है। मुझे यह पढ़ कर बड़ा अजीब सा लगा ...कि यौवन की दहलीज पर लिखी गई किताब जिन के लिए लिखी गई है, वे इस के अंदर कैसे झांक पाएंगे अगर यह किताब बिकाऊ ही नहीं है।कहां से पाएंगे वे ऐसी किताबें.

मुझे जब इस में कुछ कुछ गूढ़ हिंदी में लिखी बातों का ध्यान आया तो मेरा ध्यान इस के पिछले कवर की तरफ़ चला गया जिस में लिखा था कि जिस ने इस पुस्तक में बतौर हिंदी अनुवादक का काम किया वह बीएससी एम ए (अर्थशास्त्र) एम ए (प्रयोजन मूलक हिंदी) अनुवाद पदविका (हिंदी) आदि योग्यताओं से लैस थीं.......उन की योग्यता पर कोई प्रश्न चिंह नहीं, हो ही नहीं सकता।

लेिकन फिर भी अकसर मैंने देखा है कि इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया जाता कि एक तो हम आम बोल चाल की हिंदी ही इस्तेमाल किया करें, सेहत से जुड़ी किताबों में जो किसी भी हिंदी जानने वाले को समझ में आ जाए। यह बहुत ज़रूरी है। किताबों में तो है ही बहुत ज़रूरी यह सब कुछ.... वेबसाइट पर तो इस के बारे में और भी सतर्क रहने की ज़रूरत है...किताबें तो लोग खरीद लेते हैं, अब एक बार खरीद ली तो समझने के लिए थोड़ी मेहनत-मशक्कत कर ही लेंगे, लेकिन नेट पर आज के युवा के पास कोई भी मजबूरी नहीं है......एक पल में वह इस वेबपेज से उस वेबपेज पर पहुंच जाता है, आखिर इस में बुराई भी क्या है, नहीं समझ आ रहा तो क्या करे, जहां से कुछ समझने वाली बात मिलेगी, वहीं से पकड़ लेता है।

ऐसे में हमें सेहत से जुड़ी सभी बातें बिल्कुल आम बोलचाल की भाषा ही में करनी होंगी...वरना वह एक सरकारी आदेश की तरह बड़ी भारी-भरकम हिंदी लगने लगती है। और उसी की वजह से देश में हम ने हिंदी का क्या हाल कर दिया है, आप देख ही रहे हैं......दावों के ऊपर मत जाइए। जो मीडिया आम आदमी की भाषा में बात करता है वह देखिए किस तरह से फल-फूल रहा है।

और दूसरी बात यह कि अनुवाद में भी बहुत एहतियात बरतने की ज़रूरत है। सेहत से संबंधित जानकारी को जितने रोचक अंदाज़ में अनुवादित किया जायेगा, उतना ही अच्छा है.. और इस में इंगलिश के कुछ शब्दों को देवनागरी लिपी में लिखे जाने से भला क्या आपत्ति हो सकती है।

बस यही बात इस पोस्ट के माध्यम से रखना चाह रहा था।

आप देखिए कि इंगलिश में कितनी बेबाकी से डा वत्स इन्हीं सैक्स संबंधी विषयों पर अपनी बात देश के लाखों-करोड़ों लोगों तक कितनी सहजता से पहुंचा रहे हैं........ आईए मिलते हैं ९० वर्ष के सैक्सपर्ट डा वत्स से।  (यहां क्लिक करें)