महिलाओं की सेहत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
महिलाओं की सेहत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 11 अगस्त 2014

किशोर युवतियों में कॉपर-टी लगा देना क्या सही है?

अमेरिका के कोलोरेडो की खबर अभी दिखी कि वहां पर किशोर युवतियों को गर्भ धारण करने से बचाने के लिए इंट्रा-यूटरीन डिवाईस फिट कर दिया जाता है। इसे संक्षेप में आईयूडी कहते हैं। मैंने पाठकों की सुविधा के लिए कॉपर-टी लिख दिया है।

रिपोर्ट में आप देख सकते हैं कि पांच साल से यह प्रोग्राम चल रहा है --किसी व्यक्ति ने इस महान काम के लिए २३ मिलियन डालर का गुप्तदान दिया है कि किशोर युवतियों को इस अवस्था में गर्भावस्था से बचाया जाए। और इस से कहा जाता है कि इस उम्र की किशोरियों में प्रेगनेंसी की दर ४०प्रतिशत कम हो गई है।

अमेरिका जैसे संभ्रांत एवं विकसित देशों में स्कूल जाने वाली किशोरियों में प्रेगनेंसी होना कोई छुपी बात नहीं है। और कहा जा रहा है कि कोलोरेडो में इस तरह की सुविधा मिलने से टीन्ज़ को बड़ी राहत मिल गई है। वैसे तो वहां पर कॉपर-टी जैसे उपकरण फिट करवाने में ५०० डालर के करीब का खर्च आता जो कि ये लड़कियां करने में असमर्थ होती हैं और अपने मां-बाप से इस तरह के खर्च के लिए मांगने से झिझकती हैं।

ऐसा नहीं है कि इस तरह की दान-दक्षिणा वाले काम का कोई विरोध नहीं हो रहा.......वहां पर कुछ संगठन इस तरह की विरोध तो कर ही रहे हैं कि इस तरह से तो आप किशोरियों को एक तरह से फ्री-सैक्स करने का परमिट दे रहे हैं कि बिना किसी झँझट के, बिना किसी फिक्र के वे अब इस अवस्था में ही सैक्स में लिप्त हो सकती हैं। और यह भी चेतावनी दी गई है कि १३-१५ वर्ष की बच्चियों के यौन संबंध बनाने में वैसे ही कितने नुकसान हैं। और इन सब के अलावा यह यौन जनित बीमारियों (STDs--Sexually transmitted diseases) को बढ़ावा देने जैसा है।

दुनिया आगे तो बढ़ रही है, बड़ी एडवांस होती दिख रही है .....भारत ही में देख लें कि अभी तो हम असुरक्षित संभोग के तुंरत बाद या फिर चंद घंटों के बाद उस एक गर्भनिरोधक टेबलेट के लिए जाने के बारे में ही चर्चा कर रहे हैं कि किस तरह से उस टेबलेट का दुरूपयोग हो रहा है।

मैं कोई नैतिक पुलिस के मामू की तरह बात नहीं कर रहा हूं.... लेकिन जो है वही लिख रहा हूं कि कितनी अजीब सी समस्या दिखती है कि स्कूल जाने वाली १३-१५ की बच्चियों में इस तरह के कॉपर-टी जैसे उपकरण फिट कर दिए जाएं ताकि वे गर्भावस्था के झंझट से बच पाएं।

विकसित देशों की अपनी सोच है....हमारी अपनी है.......क्या किशोरावस्था में इस तरह के डिवाईस लगवा कर प्रेगनेंसी से बचना ही सब कुछ है, सोचने वाली बात है, कोई भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव, कोई पढ़ाई-लिखाई में रूकावट, यौन-संक्रमित बीमारीयां जैसे मुद्दे भी तो कोई मुद्दे हैं।

टीनएज प्रेगनेंसी विकसित देशों में (यहां का पता नहंीं, कोई आंकड़े नहीं...)एक विषम समस्या तो है ही, लेिकन उस से झूझने का यह तरीका मेरी समझ में तो आया नहीं। ठीक भी नहीं लगता कि कोई और ढंग का तरीका --उन की सोच बदलने का प्रयास- आजमाने की बजाए यह कॉपर-टी या इंप्लांट ही फिट कर दिए जाएं........न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.. .......नहीं, नहीं, इस तरह की स्कीमों में दम नहीं है।

भारत में तो विमेन-एक्टिविस्ट एवं महिलारोग विशेषज्ञ अभी उस असुरक्षित संभोग के बाद ली जाने वाले टेबलेट के कुछ युवतियों-महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले दुरूपयोग के बारे में ही जन-जागरूकता बढ़ा रही हैं कि इस गोली को नियमित बार बार लेना सुरक्षित नहीं है, हर पक्ष से......... हर पक्ष का मतलब तो आप जानते ही हैं।

Colorado birth control scheme casues drop in teen pregnancy  (BBC Report) 

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

इंडोनेशिया में दाईयां भी करती हैं दादागिरी

आज एक खबर देख कर पता चला किस तरह से इंडोनेशिया में दाईयां दादागिरी पर उतर आती हैं... इन का स्टाईल तो भाई बंबई के हफ्ता-वसूली करने वाले भाई लोगों जैसा ही लगा ...एक औरत की उदाहरण से यह सारी बात बीबीसी की इस स्टोरी में बताई गई है।

हां तो कैसी दादागिरी इन दाईयों की? – अगर कोई महिला बच्चे को जन्म देने के पश्चात् इन दाईयों की फीस नहीं चुका पातीं तो ये उस के बच्चे को मां को देती ही नहीं ---उसे अपने पास ही रख लेती हैं। और कुछ केसों में तो ये उन बच्चों को आगे बेच भी देती हैं....और जो कर्ज़ इन्होंने महिला की डिलिवरी करने के एवज़ में लेना होता है, वह इसलिये बढ़ता रहता है क्योंकि उस में बच्चे के पालन-पोषण का खर्च भी जुड़ने लगता है। हुई कि न घोर दादागिरी ? --- Indonesian babies held hostage by unpaid midwives.

एक महिला अपनी दास्तां ब्यां कर रही है ... इस रिपोर्ट में वह बता रही है कि गर्भावस्था के दौरान उस का अल्ट्रासाउंड हुआ नहीं, इसलिये प्रसव के दौरान ही पता चला कि उस ने तो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है ... लेकिन अस्पताल वाले दो बच्चों को डिलिवर कराने के लिए डबल फीस मांगने लगे ...उस दंपति के पास पांच सौ डालर जितनी रकम थी नहीं .... तो क्या था, वही हुआ जिस का डर था!!

बच्चे को क्लीनिक वालों ने अपने कब्जे में रख लिया ...और वह दंपति अस्पताल की दोगुनी फीस जमा करने का जुगाड़ करने लगे... और जब पैसे इक्ट्ठे हो गये तो दाई के पास गये तो पता चला कि बच्चा तो आगे बिक चुका है। खैर, किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता की सहायता से बच्चा तो वापिस मिल गया।

खबर देख कर यही लग रहा था कि दुनिया में क्या क्या हो रहा है, यार, इस हिसाब से अपना देश तो बहुत बेहतर हुआ ....मतलब दाईयों की दादागिरी तो नहीं है कम से कम.... लेकिन नवजात शिशुओं की यहां वैसे ही कितनी समस्याएं हैं इस पर एक लेख लिखने की कितने दिनों से सोच रहा हूं .... लेकिन इस विषय पर लिखते समय मन टिकता नहीं ....टिके भी कैसे, जिस दिन से कोलकाता में एक साथ 18 नवजात् शिशुओं के मरने की खबर सुनी है, बहुत बुरा महसूस हो रहा है।

बुरा महसूस इसलिये भी होता है कि किसी नामी-गिरामी महंगे अस्पताल में तो किसी की डिलीवरी के समय महिला डाक्टर के अलावा बच्चों का विशेषज्ञ(Paediatrician) तो क्या, नवजात् बच्चों का विशेषज्ञ (Neo-natologist) भी मौजूद रहता है और जनता जनार्दन को किस तरह से दाईयों के हत्थे चढ़ने पर मजबूर होना पड़ता है ....और कईं बार तो अस्पतालों की चौखट पर ही माताएं बच्चे जन देती हैं.... आप इस से कैसे इंकार कर सकते हैं क्योंकि ऐसी खबरें अकसर मीडिया में कभी कभी दिख ही जाती हैं..... जो भी है, गनीमत है कि मेरे भारत महान् में दाईयों की ...गर्दी (नहीं, यार, दादागिरी ही ठीक है) नहीं चलती ....लेकिन क्या पता कुछ कुछ चलती भी हो, लोग तो वैसे ही कहां कुछ बोलते हैं!!

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

औरतों के बिना वजह आप्रेशन ...लेकिन कहे कौन ?

आज से पच्चीस-तीस पहले लोगों ने दबी-सी मंद आवाज़ में यह चर्चा शुरू करनी कर दी थी कि आज कल इतने ज़्यादा बच्चे बड़े आप्रेशन से ही क्यों पैदा होने लगे हैं। जब यह सिलसिला आने वाले समय में थमा नहीं, तो लोगों ने इस के बारे में खुल कर कहना शुरू कर दिया। मीडिया में इस विषय को कवर किया जाने लगा कि पहले तो इतने कम केसों में इस बड़े आप्रेशन की ज़रूरत पड़ा करती थी लेकिन अब क्यों यह सब इतना आम हो गया है?

मैं न तो स्त्री रोग विशेषज्ञ ही हूं और न ही इस संबंध में किसी विशेषज्ञ का साक्षात्कार कर के ही आया हूं लेकिन यह तो है कि जब मीडिया में यह बात उछलने लगी तो कहीं न कहीं उंगलियां मैडीकल प्रोफैशन की तरफ़ भी उठने लगीं, यह सब जग-ज़ाहिर है। दौर वह भी देखा कि लोग डिलिवरी के नाम से डरने लगे कि इस पर इतना ज़्यादा खर्च हो जायेगा।

लेकिन आप को क्या लगता है कि मीडिया में इतना हो-हल्ला उठने के बाद कुछ फर्क पड़ा? ....उन दिनों यह भी बात सामने आई कि कुछ उच्च-वर्ग संभ्रांत श्रेणी से संबंध रखने वाले लोग डिलिवरी नार्मल करवाने की बजाए बड़ा आप्रेशन इसलिये करवा लिया करते थे या करवा लेते हैं ताकि सब कुछ “पहले जैसा” बना रहे......यह भी एक तरह की भ्रांति ही है क्योंकि साईंस यही कहती है कि सब कुछ पहले जैसा ही “मेनटेन” रहता है, सब कुछ पहले जैसे आकार एवं स्थिति में शीघ्र ही आ जाता है।

मैं अकसर सोचता हूं कि जिस तरह से जबरदस्त हो-हल्ला मचने के बाद दूध में मिलावट बंद नहीं हुई, रिश्वतखोरी बंद नहीं हुई, जबरदस्ती ट्यूशनों पर बुलाना बंद नहीं हुआ, एक कड़े कानून के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या बंद नहीं हुई, पब्लिक जगहों पर बीड़ी-सिगरेट पीने से लोग नहीं हटे, दहेज के कारण नवविवाहितें जलाई जानी कम नहीं हुई, कुछ प्राव्हेट स्कूलों का लालच नहीं थमा......और भी अनेकों उदाहरणें हैं जो नहीं हुआ.....ऐसे में यह बड़े आप्रेशन द्वारा (सिज़ेरियन सैक्शन) द्वारा बच्चे पैदा होने का सिलसिला कैसा थम सकता है, सुना है अब लोग इस के भी अभ्यस्त से हो गये हैं, क्या करें जब जान का सवाल हो तो चिकित्सा कर्मी की बात मानने के अलावा चारा भी क्या रह जाता है!


चलिए, इस बात को यहीं विराम देते हैं .... जिस बात का कोई हल ही नहीं, उस के बारे में जुबानी जमा-घटा करने से क्या हासिल। लेकिन एक नया मुद्दा कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में दिख गया .... राजस्थान के दौसा जिले में पिछले छः महीने में 226 महिलाओं का गर्भाशय आप्रेशन के द्वारा निकाल दिया गया। न्यूज़-रिपोर्ट में तो यह कहा गया है कि यह सब कुछ पैसे के लिये किया गया है..... चलिए मान भी लें कि मीडिया वाले थोड़ा मिर्च-मसाला लगाने में एक्सपर्ट तो होते ही हैं लेकिन बात सोचने वाली यह भी तो है अगर धुआं निकला है तो कहीं न कहीं कुछ तो होगा !!

इस खबर में यह बताया गया है कि तीन प्राइवेट अस्पताल जो राज्य सरकार की जननी सुरक्षा योजना के लिये काम कर रहे हैं इन में ये आप्रेशन किये गये हैं। बांदीकुई में काम कर रहे एक गैर-सरकारी संगठन – अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इन सब बातों का पता सूचना के अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल कर के लगाया। और यह संस्था यह आरोप लगा रही है कि चिकित्सकों ने बारह हज़ार से चौदह हज़ार रूपये कमाने के चक्कर में महिलाओं का यूट्रस (गर्भाशय, बच्चेदानी) आप्रेशन कर के निकाल दिया। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि महिलाओं को यहां तक डराया गया कि अगर वे बच्चेदानी नहीं निकलवाएंगी तो वे मर जाएंगी। 90 प्रतिशत महिलाएं ओबीसी, शैड्यूल्ड कॉस्ट, शैड्यूल्ड ट्राईब से संबंध रखती थीं जिन की उम्र 20 से 35 वर्ष थीं। जैसा कि अकसर ऐसे बातें बाहर आने पर होता है, मामले की जांच के लिये एक कमेटी का गठन हो चुका है जिस की रिपोर्ट 15 दिन में आ जायेगी।

चलिये, रिपोर्ट की इंतज़ार करते रहिए...........मैं यह न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ते यही सोच रहा था कि पता नहीं राजस्थान की महिलायें पर ही सारा कहर क्यों बरप रहा है, अभी हम लोग उदयपुर में गर्भवती महिलाओं को प्रदूषित ग्लूकोज़ चढ़ाए जाने से 14-15 महिलाओं की दुर्भाग्यपूर्ण को भूल ही नहीं पाये हैं कि यह बिना वजह आप्रेशन वाली बात सामने आ गई है।

तो क्या आपको लगता है कि इस तरह के आप्रेशन केवल राजस्थान के दौसा ज़िले में ही हो गये होंगे --- नहीं, ये इस देश के हर ज़िले में होते होंगे, देश ही क्यों विदेशों में भी यह समस्या तो है ही.... लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं है ---यहां पर गरीबी, अनपढ़ता और शोषण हमारी मुश्किलों को और भी जटिल बना देती है।

मुझे अच्छी तरह से याद है कि कुछ अरसा पहले मैं अंबाला से दिल्ली शताब्दी में यात्रा कर रहा था... मेरी पिछली सीट पर दो महिला रोग विशेषज्ञ बैठे हुए थे ..चंडीगढ़ से आ रहे थे ....अपने किसी साथी की बात कर रहे थे कि वह कैसे बिना किसी इंडीकेशन के भी हिस्ट्रैक्टमी ( Hysterectomy, गर्भाशय को आप्रेशन द्वारा निकाल जाना) कर देता है, वे लंबे समय पर इस मुद्दे पर चर्चा करते रहे।

गर्भाशय या बच्चेदानी को आप्रेशन के द्वारा कुछ परिस्थितियों में निकाला जाना ज़रूरी हो जाता है.... अगर किसी महिला को फॉयबरायड है, रसौली है, और इन की वजह से बहुत रक्त बहता है अथवा विभिन्न टैस्टों के द्वारा जब विशेषज्ञों को लगता है कि गर्भाशय के शरीर में पड़े रहने से कैंसर होने का अंदेशा है तो भी इसे आप्रेशन द्वारा निकाल दिया जाता है।

और रही बात कमेटियां बना कर इस तरह के केसों की जांच करने की, इस के बारे में क्या कहें, क्या न कहें..........आप सब समझदार हैं, मुझे नहीं पता इन सब केसों में से कितने केस जैन्यून होंगे कितने ऐसे ही हो गये !! मुझे तो बस यही पता है कि इस का पता तो केवल और केवल आप्रेशन करने वाले चिकित्सक के दिल को ही है, वरना कोई कुछ भी कर ले, सच्चाई कैसे सामने आ सकती है, ऐसा मुझे लगता है, मैं गलत भी हो सकता हूं..........लेकिन मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि ऐसे केसों में कागज़ों का पेट भी अच्छी तरह से ठूस ठूस कर तो भरा ही जाता होगा.................................लेकिन कुछ भी हो, सब कुछ सर्जन के दिल में ही कैद होता है।

हां, तो मैं जिन दो महिला रोग विशेषज्ञों की बात कर रहा था जिनकी बातें मैं गाड़ी में बैठा सुन रहा था ..उन्होंने अपने साथी के बारे में यह भी कहा था .. वैसे सर्जरी उस की परफैक्ट है, सरकारी अस्पताल में टिका ही इसलिये हुआ है कि कहता है कि वहां इन आप्रेशनों पर हाथ अच्छा खुल जाता है............शायद उन की बात थी बिल्कुल सीधी लेकिन मैं इस के सभी अर्थ समझने के चक्कर में पता नहीं कहां खो गया कि मुझे दिल्ली स्टेशन आने का पता ही नहीं चला !
Source : Uterus of 226 women removed in Dausa Hospitals

रविवार, 25 अप्रैल 2010

यौन-रोग हरपीज़ के बारे में जानिए -- भाग 1.

मैं आज सुबह एक न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ रहा था कि 14 से 49 वर्ष के आयुवर्ग अमेरिकी लोगों का लगभग 16 प्रतिशत भाग जैनिटल हरपीज़ (genital herpes) से ग्रस्त हैं।

 यौन संबंध के द्वारा फैलने वाला एक ऐसा रोग है जो हरपीज़ सिम्पलैक्स वॉयरस (herpes simplex virus) टाइप1 (HSV-1) अथवा टाइप2 (HSV-2). अधिकतर जैनिटल हरपीज़ के केस टाइप2 हरपीज़ सिम्पलैक्स वॉयरस के द्वारा होते हैं। HSV-1 द्वारा भी जैनिटल हरपीज़ हो तो सकता है लेकिन ज़्यादातर यह मुंह, होठों की ही इंफैक्शन करती है जिन्हें ("फीवर ब्लिस्टर्ज़) कह दिया जाता है---अकसर लोगों में बुखार आदि होने पर या किसी भी तरह की शारीरिक अस्वस्थता के दौरान होठों आदि पर एक-दो छाले से निकल आते हैं जिन्हें अकसर लोग कहते हैं ---"यह तो बुखार फूटा है!"

ध्यान देने योग्य बात यह है कि अधिकांश लोगों में हरपीज़ इंफैक्शन से कोई लक्षण पैदा ही नहीं होते। लेकिन जब कभी इस के  लक्षण पैदा होते हैं, तो शुरू में यौन-अंगों के ऊपर अथवा आसपास या गुदा मार्ग में (they usually appear as 1 or more blisters on or around the genitals or rectum) एक अथवा ज़्यादा छाले से हो जाते हैं। इन छालों के फूटने से दर्दनाक घाव हो जाते हैं जिन्हें ठीक होने में चार हफ्ते तक का समय लग सकता है। एक बार ठीक होने के बाद कुछ हफ्तों अथवा महीनों के बाद ये छाले फिर से हो सकते हैं, लेकिन ये पहले वाले छालों/ ज़ख्मों से कम उग्र रूप में होते हैं और कम समय में ही ठीक हो जाते हैं।

एक बार संक्रमण (इंफैक्शन) होने के बाद ज़िंदगी भर के लिये यह शरीर में रहती तो है लेकिन समय बीतने के साथ साथ इस से होने वाले छालों/घावों की उग्रता में कमी आ जाती है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जिस समय किसी व्यक्ति को स्वयं तो इस के कोई भी लक्षण नहीं हैं, उस हालात में भी उस के द्वारा यह इंफैक्शन आगे फैलाई जा सकती है।

क्या जैनीटल हरपीज़ एक आम समस्या है ? ---  जी हां, यह समस्या आम है। हमारे देश के तो आंकड़े मुझे पता नहीं ---वैसे भी हम लोग कहां ये सब बातें किसी से शेयर करते हैं, स्वयं ही सरसों का तेल लगा कर समझ लेते हैं कि किसी कीड़े ने काट लिया होगा, अपने आप ठीक हो जायेगी।

अमेरिकी आंकड़े हैं --- अमेरिका के 12 साल एवं उस के ऊपर के साढ़े चार करोड़ लोग जैनीटल हरपीज़ से ग्रस्त हैं। जैनीटल HSV2 पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक पाई जाती है---चार में से एक महिला को और आठ में से एक पुरूष को यह तकलीफ़ है। इस के पीछे कारण यह भी है कि महिलाओं को जैनीटल हरपीज़ एवं अन्य यौन-संबंधों से होने वाले इंफैक्शन (sexually transmitted infections -- STIs) आसानी से अपनी पकड़ में ले लेते हैं।

यह हरपीज़ फैलती कैसे है ? ---किसी जैनीटल हरपीज़ से संक्रमित व्यक्ति के यौन-अंगों एवं गैर-संक्रमित व्यक्ति के यौन-अंगों के संपर्क में आने से, अथवा संक्रमित व्यक्ति के यौन-अंगों के साथ किसी का मुंह संपर्क में आए ....(one can get genital herpes through genital-genital contact or genital-oral contact with someone who has herpes infection). लेकिन अगर चमड़ी में किसी तरह का घाव नहीं है तो भी यह इंफैक्शन हो सकती है और यह भी ज़रूरी नहीं कि संक्रमित व्यक्ति से केवल संभोग द्वारा ही यह फैलती है।

हरपीज़ के लक्षण --- ये लक्षण विभिन्न लोगों में अलग अलग हो सकते हैं। जैनीटल हरपीज़ से ग्रस्त बहुत से लोगों को तो इस बात का आभास भी नहीं होता कि वे इस रोग से ग्रस्त हैं।

किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन-संबंध बनाने के  लगभग दो सप्ताह के भीतर इस के लक्षण आने लगते हैं जो कि अगले दो-तीन हफ्तों तक परेशान कर सकते हैं। शुरूआती दौर में इसके ये लक्षण होते हैं ...

----यौन-अंगों पर अथवा गुदा द्वार पर खुजली एवं जलन का होना।
----फ्लू जैसे लक्षण ( बुखार सहित)
----- ग्रंथियों का सूज जाना ( swollen glands)
-----टांगों, नितंबों एवं यौन-अंगों के एरिया में दर्द होना
---- योनि से डिस्चार्ज होना (vaginal discharge)
---- पेट के नीचे वाली जगह पर दवाब जैसा बने रहना

कुछ ही दिनों में उन जगहों पर छाले दिखने लगते हैं जिन स्थानों से वॉयरस ने शरीर में प्रवेश किया था ---जैसे कि मुंह, लिंग (शिश्न,penis) अथवा योनि(vagina). और ये छाले तो महिलाओं की बच्चेदानी (cervix) एवं पुरूषों के मू्त्र-मार्ग (urinary passage) को भी अपनी चपेट में ले सकते हैं। ये लाल रंग के छाले शुरू में तो बि्ल्कुल छोटे छोटे होते हैं जो कि फूट कर घाव का रूप ले लेते हैं। कुछ ही दिनों में इन घावों पर एक क्रस्ट सी बन जाती है और यह बिना किसी तरह का निशान छोडे़ ठीक हो जाते हैं। कुछ केसों में, जल्द ही फ्लू जैसे लक्षण और ये घाव फिर से होने लगते हैं।

होता यह है कि कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं होते। और वैसे भी छोटे मोटे घाव को वे किसी कीड़े का काटा समझ कर या फिर यूं ही समझ कर अनदेखा सा कर देते हैं। लेकिन सब से अहम् बात यह भी है कि बिना किसी तरह के लक्षण के भी संक्रमित व्यक्ति द्वारा दूसरों तक फैलाया जा सकता है। इसलिये, अगर किसी व्यक्ति में हरपीज़ के लक्षण हैं तो उसे अपने चिकित्स्क से मिल कर यह पता करना चाहिये कि क्या वह इंफैक्टेड है ?

बुधवार, 11 नवंबर 2009

ब्रेस्ट कैंसर से बचाव सारी महिलायों का हो तो बात बने !!


मुझे न्यू-यार्क टाइम्स की साइट पर एक चर्चा पढ़ने का अवसर मिला जिस का शीर्षक था ---ब्रैस्ट कैंसर ---किस की जांच होनी चाहिये ? इस चर्चा मे कुल 117 लोगों ने भाग लिया हुया था --पहले ही पेज़ पर शूरू शुरू के दो-तीन कमैंट्स का मैं हिंदी में अनुवाद कर के यहां लिख रहा हूं ---आशा है कि यह जानकारी आप के लिये भी उपयोगी होगी। मेरा ख्याल है कि मैमोग्राफी से तो अधिकांश पाठक परिचित ही होंगे---अगर इस के बारे में कुछ जानना चाहें तो यहां क्लिक करिये।
AL -- मैं जब अपनी छाती के इलाज के लिये ( mastitis) - वक्ष-स्थल की सूजन-- के लिये अपने डाक्टर के पास न्यूयार्क सिटी में पिछले हफ्ते गई तो उस ने मुझे कहा --- जब तुम 35 साल की हो जायोगी तो स्क्रिनिंग के लिये आना। अगर सब कुछ ठीक ठाक हुआ तो फिर अगले पांच साल तक ( जब तक तुम चालीस की नहीं हो जायोगी) तुम्हें मैमोग्राफी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
मैंने पूछा कि इतनी कम उम्र में ही इस तरह के चैक-अप का क्या लाभ जब कि अभी तक ठीक से रिसर्च से यह भी पता नही चला कि इस से कुछ लाभ भी होगा कि नहीं।
तब मेरे डाक्टर ने मुझे जवाब दिया -- मैंने अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि जिन महिलायों ने स्वयं अपनी छाती में किसी गांठ को महसूस किया और फिर बाद में उस का इलाज करवाया उन में से 75 फीसदी महिलायें 10 साल तक जीवित रहीं जब कि जिन महिलायों में यह मैमोग्राफी द्वारा पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट में कुछ गड़बड़ी है ऐसे महिलायो से फिगर 95 प्रतिशत थी।
स्टीफन -- मेरी पत्नी 1998 में 43 वर्ष की थी जब मैमोग्राफी के द्वारा यह पता चला कि उ की छाती में बिल्कुल मामूली सी कैल्सीफिकेशन सी है ---डाक्टरों को पूरा विश्वास था कि यह कुछ भी नहीं है लेकिन बॉयोप्सी से पता चला कि यह स्टेज0 कैंसर था। मेरी पत्नी का आप्रेशन कर के खराब टिश्यू को निकाल दिया गया और बाद में रेडियोथैरेपी दी गई --- डाक्टरों ने अनुमान लगाया कि 95प्रतिशत चांस हैं कि यह इलाज मुकम्मल हो गया है। लेकिन एक बार फिर वे गलत साबित हुये जब यही कैंसर दोबारा से वापिस लौट आया और यह बहुत उग्र तरह का कैंसर था। इस के लिये मेरी पत्नी का वक्ष-स्थल निकालना पड़ा ( mastectomy) और बाद में पलास्टिक सर्जरी कर दी गई ---और यह 1999 की बात है। सौभाग्यवश कैंसर आसपास के एरिया में ( lymph nodes) में फैला नहीं था । तब से लेकर अब तक उस का नियमित चैकअप होता है और कैंसर वापिस लोट कर नहीं आया।
यह बात साफ़ है कि मेरी पत्नी जो रूटीन मैमोग्राम 1998 में करवाया उसी ने उस को जीवन दान दे दिया। उस समय उसे कोई लक्षण नहीं थे, न ही किसी तरह की कोई गांठ आदि ही थी ----इसलिये अगर उस समय उस ने वह मैमोग्राम न करवाया होता तो कैंसर चुपचाप अंदर ही अंदर फैलता रहता और यह अपनी जड़े इस हद तक मजबूत करलेता कि फिर इस का इलाज ही संभव न होता।
यह ठीक है कि स्क्रीनिंग के तरीके परफैक्ट नहीं हैं लेकिन फिर भी कुछ न करवाने से तो बहुत बेहतर ही हैं।
-------
यह बातें हैं अमीर देशों की ---लेकिन महिलायों में छाती के कैंसर के बहुत से केस तो अपने देश में होते हैं। कभी कभी अखबार में विज्ञापन दे देने कि महिलायें अपने वक्ष-स्थल की स्वयं जांच किया करें ---- कोई भी कठोरता अथवा गांठ आदि का पता चलने पर तुरंत अपनी डाक्टर से मिलें।
जब टैक्नोलॉजी उपलब्ध है तो ऐसे में क्यों कोई भी महिला इस मैमोग्राफी का टैस्ट करवाने से वंचित रहे --- देश में इस टैस्ट के बारे में घोर अज्ञानता है ----इस के बारे में कुछ होना चाहिये। हर बड़े शहर में एक-दो ऐसे एक्स-रे क्लीनिक तो होते ही हैं जहां पर मैमोग्राफी करने की सुविधा होती है। सात-आठ सौ रूपये का खर्च आता है।
मुझे लगता है कि यह सुविधा मोबाईल यूनिट्स के द्वारा गांव गांव तक पहुंचनी चाहिये ----क्योंकि हमारे देश में ऐसे कईं कल्चरल कारण भी हैं कि अनेकों महिलायें इस तरह की तकलीफ़ आदि से परेशाना होते हुये भी ढंग से न तो डाक्टर के पास ही जाती हैं और न ही विभिन्न कारणों की वजह से उन का इलाज पूरा ही हो पाता है।
और हम तो इलाज की बात ही नहीं कर रहे ---हमारा तो लक्ष्य है कि किसी भी महिला को यह तकलीफ़ हो ही क्यों ----हम क्यों न उसे बिल्कुल प्रारंभिक अवस्था में ही डायग्नोज़ कर के दुरूस्त कर दें।
बहुत बड़ी बड़ी गैर-सरकारी संस्थायें बड़े बडे़ काम करती हैं, बढ़िया से बढ़िया धार्मिक स्थल तैयार किये जाते हैं लेकिन इस तरह की मशीनें धर्मार्थ अस्पतालों में लगाई जाएं जिस में सभी जरूरतमंद महिलायों का यह टैस्ट बिल्कुल कम दाम पर या मुफ्त किया जा सके------ और अकसर यह महिलायें वो हैं जिन्हें पता भी नहीं है कि इस टैस्ट की कितनी बड़ी उपयोगिता है। क्या इस तरह की सुविधा उपलब्ध करना किसी धर्मार्थ कर्म से कम है।
इन लेखों को भी अवश्य देखिये
दस साल में कितना कुछ बदल गया है
स्तन कैंसर पर आर अनुराधा का लेख
वैसे तो देखा जाये तो सभी सरकारी अस्पतालों में भी इस तरह की सुविधायें होनी ही चाहियें ------- कम पैसे की वजह से भला क्यों कोई किसी जीवन रक्षक टैस्ट से वंचित रहे ?

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

ताकत की दवाईयां --कितनी ताकतवर ?

अगर ताकत की दवाईयों में ज़रा सी भी ताकत होती तो चिकित्सक सब से ज़्यादा ताकतवर होते -- लेकिन ऐसा नहीं लगता। जब दिन में कितने ही मरीज़ किसी डाक्टर से यह पूछें कि डाक्टर साहब, ताकत के लिये भी कुछ लिख दीजिये, तो खीज की बजाए दया आती है इस तरह के प्रश्न करने वाले पर।
क्योंकि सच्चाई तो यही है कि इन ताकत की दवाईयों में ताकत होती ही नहीं हैं ---- पहले तो हम लोग यह ही नहीं जानते कि आम आदमी की ताकत की परिभाषा क्या है और यह ताकत वाली दवाई आखिर किस बला का नाम है।

जहां तक मुझे याद है इस ताकत की दवाई का इश्तिहार हम लोग पांचवी-छठी कक्षा में दीवारों पर लिखा देखा करता थे --- क्या ? ताकत के लिये मिलें ---फलां फलां हकीम से।

यह कौन सी ताकत की बात होती होगी यह आप जानते ही हैं --वैसे भी हिंदी के कुछ अखबारों में आजकल इस तरह के विज्ञापन बिछे रहते हैं।

लेकिन यहां पर हम ताकत के इस मसले की बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये सब बातें पहले काफी हो चुकी हैं। तो फिर आज एक दो कुछ और बातें करते हैं।

इतनी सारी महिलायें कमज़ोरी की शिकायत करती हैं और दूसरी दवाई के साथ कुछ ताकत के लिये भी लिखने के लिये कहती हैं। लेकिन लिखने वाला ज़्यादातर केसों में जानता है कि ये सब ताकत के कैप्सूल, गोलियां दिखावा ही है ---इन से कुछ नही ं होने वाला। हां, अगर महिला में खून की कमी (अनीमिया ) है और उस की तरफ़ ध्यान दिया जाये, उस के शरीर में कैल्शीयम की कमी को पूरा करने की बात हो तो ठीक है, वरना ये तथाकथित ताकत के कैप्सलू, टीके, टैबलेट क्या कर लेंगी ---- केवल मन को दिलासा देने के लिये बस ये सब ठीक हैं।

कुछ मातायें बच्चों के लिये टॉनिक की फरमाईश करती हैं ---- और आप को देखने पर लगता है कि बच्चा तो ठीक ढंग से खाना भी न खाता होगा। ऐसे में क्या करेंगे टॉनिक ?

लेकिन समस्या कुछ हद तक अब यह है कि ये ताकत की दवाईयां अब लोगों के दिलो-दिमाग पर इस कद्र छा चुकी हैं कि इन के बारे में ज़्यादा सच्चाई भी इन्हें नहीं पचती। अगर उन्हें इतनी लंबी चौड़ी नसीहत पिलाने की कोशिश भी की जाती है तो डाक्टर के चैंबर के बाहर जाकर वे उस नसीहत को थूक देते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो लोगों में इन ताकत की शीशियों, इंजैक्शनों एवं कैप्सूलों के बारे में ऐसी राय न देखने को मिलती जैसी कि आज दिख रही है।

अगली पोस्ट में देखेंगे कि आखर ताकत की दवाईयों से भला ताकत ही क्यों गायब है और इस के साथ साथ यह भी जानना होगा कि आखिर ये ताकत की दवाईयां किस बला का नाम है !!

संबंधित पो्स्टें ......

शुक्रवार, 1 मई 2009

जब थायरायड कम काम करने लगे ---- हाइपोथायरायडिज़्म

हाइपोथायरायडिज़्म एक ऐसी अवस्था है जिम में थायरायड पर्याप्त मात्रा में हारमोन्ज़ पैदा नहीं कर पाता। अगर इस अवस्था का इलाज नहीं किया जाये तो यह खतरनाक हो सकती है।

थायरायड की इस बीमारी की वजह से शरीर की सारी क्रियाएं एक दम सुस्त सी पड़ जाती हैं, इस बीमारी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –
थकावट
मानसिक अवसाद
सुस्ती छाई रहना
ठंड महसूस होना
शुष्क चमड़ी एवं बाल
कब्ज
मासिक-धर्म में अनियमितता

हाइपोथायरायडिज़्म निम्नलिखित अवस्थाओं की वजह से हो सकता है ---

---थायरायड ग्लैंड की तकलीफ़ की वजह से
----कुछ ऐसी दवाईयां अथवा बीमारियां जिन में थायरायड की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है
----शरीर की पिचुटरी ग्रंथि अगर पर्याप्त मात्रा में थायरायड-स्टिमूलेटिंग हारमोन( Thyroid stimulating hormone) ही न बना पाये।
---कई हाईपरथायरायडिज़्म ( जिस अवस्था में थायरायड हारमोन अधिक मात्रा में पैदा होने लगते हैं) के इलाज के लिये जब रेडियोएक्टिव आयोडीन दी जाती है या सर्जरी की जाती है।

इलाज –
हारपोथायरायडिज़्म का इलाज शरीर में उपर्युक्त मात्रा में थायरायड हारमोन पहुंचा कर किया जाता है। इस के लिये मरीज़ को थायरायड हारमोन थाईरोक्सिन ( टी- 4 अथवा लिवोथायरोक्सिन) की एक टेबलेट दी जाती है। इस टेबलेट को शूरू करने के दो हफ्तों के भीतर ही मरीज़ को आराम महसूस होने लगता है।

लेकिन जो ढीठ किस्म की थायरायड की बीमारी होती है उसे ठीक होने में लंबा समय भी लग सकता है। कुछ अलग से केसो में कभी कभी मरीज़ को टी-3 हारमोन भी दिया जा सकता है और कईं बार तो टी-3 और टी-4 हारमोन का मिश्रण भी दिया जाता है।

हाइपोथायरायडिज्म के अधिकतर केसों में तो यह टी-4 टेबलेट की टेबलेट उम्र भर के लिये देनी पड़ सकती है। और अपने चिकित्सक से नियमित परामर्श करते रहना होता है ताकि दवाई की डोज़ को बढ़ाया-घटाया जा सके।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

थायरायड ग्लैंड का हारमोनल लोचा ---- 1.



थायरायड ग्लैंड गले के अगले हिस्से में चमड़ी एवं मांसपेशियों के नीचे स्थित है। इस की आकृति एक तितली जैसी लगती है और इस का वज़न एक आउंस ( लगभग 25 ग्राम) से भी कम होता है।

इतना
छोटे होते हुये भी यह थायरायड ग्लैंड ( थायरायड ग्रंथि) बेहद महत्त्वपूर्ण हारमोन्ज़ उत्पन्न करते हैं। ये हारमोन्ज़ हमारे शरीर की विभिन्न प्रक्रियाओं के साथ साथ हमारी ग्रोथ ( growth) को नियंत्रण करता है।
थायरायड को अपना काम करने के लिये आयोडीन नामक एक कैमीकल ऐलीमेंट चाहिये होता है जिसे हमारा शरीर खाने एवं पानी से ग्रहण करता है। सारे शरीर में आयोडीन की कुल मात्रा 50 मिलीग्राम( अर्थात् एक ग्राम का भी बीसवां हिस्सा) होती है। इस में से 10-15 मिलीग्राम आयोडीन तो थायरायड ग्रंथि में ही जमा होता है। थायरायड इस आयोडीन को टायरोसीन( एक इशैंशियल अमाइनो एसिड) के साथ मिला कर बहुत महत्त्वपूर्ण हारमोन्ज़ (थायरायड हारमोनज़) पैदा करता है।
थायरायड ग्लैंड से ये थायरायड हारमोन्ज़ निकल कर रक्त में मिलने के पश्चात् शरीर की कोशिकाओं में पहुंचते हैं. ये हमारे विकास ( ग्रोथ) एवं हड्डियों की बनावट, हमारी यौवनावस्था ( प्यूबर्टी) के साथ साथ बहुत सी शारीरिक प्रक्रियाओं का नियंत्रण करती हैं। अगर थायरायड ग्लैंड ठीक से काम नहीं करता तो शरीर के बहुत से हिस्सों में बहुत सी परेशानियां हो जाती हैं।

थायरायड की बीमारी आखिर है क्या ?जब थायरायड उपर्युक्त मात्रा में हारमोन्ज़ उत्पन्न नहीं कर पाये तो उसे थायरायड की बीमारी कहते हैं। अगर यह ग्लैंड कुछ ज़्यादा ही काम ( ओवर एक्टिव) कर रहा है तो यह हमारे रक्त में ज़्यादा मात्रा में हारमोन्ज़ रिलीज़ कर देता है और इस अवस्था को हाइपरथायरायडिज़्म कहते हैं।

इस के विपरित हाइपोथायरायडिज़्म में थायरायड के द्वारा कम मात्रा में हारमोन्ज़ उत्पन्न किये जाते हैं और कोशिकाओं के स्तर पर सारी प्रक्रियायें धीमी पड़ जाती हैं।

ये दोनों अवस्थायें बिल्कुल अलग हैं लेकिन इन दोनों में ही थायरायड ग्लैंड का साइज़ बढ़ जाता है। एक बड़े आकार का थायरायड ग्लैंड गले के अगले हिस्से की चमड़ी के नीचे एक लंप की तरह फील किया जा सकता है। और अगर इस का आकार इतना बढ़ जाये कि यह बड़ा हुआ लंप दूर से ही दिखने लगे तो इसे ग्वायटर ( goiter) कह दिया जाता है। जिन लोगों को खान-पान में आयोडीन की मात्रा उपर्युक्त मात्रा में नहीं मिल पाती उन में यह ग्लैंड का आकार बड़ा हो जाता है।
---------
क्रमशः -----

सोमवार, 12 जनवरी 2009

आज की चर्चा का विषय है --- मैमोग्राफी

स्वास्थ्य से संबंधित अधिकांश शीर्ष संस्थानों की इस बारे में सहमति है कि 40 साल की उम्र के बाद महिलाओं को हर साल मैमोग्राम अवश्य निकलवाना चाहिये और इस के बारे में तो सर्व-सम्मति है कि 50 वर्ष की उम्र के बाद तो महिलाओं को यह हर वर्ष करवाना ही चाहिये।

मैमोग्राफी तकनीक द्वारा लिया गया मैमोग्राम छाती (स्तनों) का एक एक्स-रे है जिस के द्वारा या तो महिलाओं में छाती( स्तन) के ऐसे कैंसर पकड़े जाते हैं जो कि अभी इतनी प्रारंभिक अवस्था में हैं कि इन का छूने से पता नहीं पाता अथवा यह देखने के लिये भी मैमोग्राम किया जाता है कि कहीं महिला की छाती में जो गांठ है वह कैंसर के कारण है अथवा किसी अन्य कारण से है।

मैमोग्राफी से 85-90 प्रतिशत छाती के कैंसर पकड़ में आ जाते हैं – यहां तक कि एक चौथाई इंच वाले कैंसर का भी इस मैमोग्राम से पता चल जाता है जब कि आम तौर पर कोई भी ऐसी वैसी गांठ का तब तक पता ही नहीं चलता जब तक कि यह बढ़ कर साइज़ में इससे दोगुनी ही नहीं हो जाती ।
जिस दिन किसी महिला ने मैमोग्राफी करवानी हो उस दिन वह अपनी बगलों में अथवा छाती पर किसी डिओडोरैंट अथवा पावडर आदि का इस्तेमाल न करें क्योंकि उस से एक्स-रे को पढ़ने में दिक्कत आती है – Avoid using deodorant or powder on your underarms or breasts on the day of mammogram because they can make the x-ray picture hard to interpret.

शायद पाठकों में यह जानने की भी उत्सुकता होगी कि इस टैस्ट के दौरान होता क्या है ----- मैमोग्राम का काम अकसर एक्स-रे विभाग में ही किया जाता है। सामान्यतयः प्रत्येक वक्ष की दो तस्वीरें ( एक्स-रे) --- एक साइड से और दूसरी ऊपर के कोण से --- ली जाती हैं। प्रत्येक एक्स-रे लेते समय प्रत्येक वक्ष( स्तन) को दो समतल प्लेटों के बीच मात्र 10 सैकेंड के लिये प्रैस किया जाता है । छाती के सभी क्षेत्रों को सफ़ाई से देखने के लिये यह आवश्यक है।

मात्र 10 से 20 मिनट के बाद आप के आप के टैस्ट की रिपोर्ट बता दी जाती है लेकिन फाइनल रिपोर्ट अकसर एक-दो दिन के बाद ही दी जाती है। इस टैस्ट को करवाने से कोई रिस्क नहीं है, इस में बहुत ही कम स्तर की एक्स-रे किरणों का इस्तेमाल होता है।

और यह टैस्ट कुछ खास महंगा भी नहीं है --- पांच या छः सौ रूपये में हो जाता है। अगर आप महिला हैं और चालीस की उम्र पार चुकी हैं तो अपना एक मैमोग्राम तो जल्दी से करवा कर निश्चिंत हो ही जाइये। वैसे, अच्छे हास्पीटलों के महिलाओं के लिये वार्षिक हैल्थ-चैकअप प्लान में यह मैमोग्राम, पैप-स्मीयर टैस्ट आदि सम्मिलित ही होते हैं।

रविवार, 11 जनवरी 2009

महिलाओं के लिये किसी वरदान से कम नहीं --- पैप स्मियर टैस्ट !!

शायद ही आपने सुना हो कि महिलाओं को नियमित तौर पर यह पैप स्मियर टैस्ट -Pap Smear Test- करवाना अत्यंत आवश्यक है --- लेकिन मैंने आज तक कम ही देखा है कि महिलाएँ स्वयं किसी महिला-रोग विशेषज्ञ के पास इस टैस्ट के लिये गई हों--- और हमारे देश में तो महिलाओं के लिये यह टैस्ट करवाना और भी ज़रूरी है --- क्योंकि यहां पर गर्भाशय के कैंसर के बहुत केस पाये जाते हैं।

पैप स्मियर टैस्ट में होता क्या है ?- गर्भाशय के मुख ( cervix – the entrance to the uterus, located at the innere end of vagina) –से कुछ कोशिकायें ( cells) ले कर उन का निरीक्षण किया जाता है कि कहीं ये गर्भाशय के कैंसर से ग्रस्त तो नहीं हैं।

गर्भाशय का कैंसर जिस वॉयरस के कारण होता है उसे ह्यूमन पैपीलोमा वायरस ( human papillomavirus or HPV) कहा जाता है।

पैप स्मियर टैस्ट में इन कोशिकाओं को सूक्ष्मदर्शी उपकरण से देख कर यह पता लगाया जाता है कि कहीं ये कोशिकायें कैंसर से ग्रसित तो नहीं हैं, कहीं ये कैंसर की पूर्व-अवस्था में तो नहीं हैं !! आज कल तो पैप-स्मियर टैस्ट के अलावा HPV test के द्वारा यह भी ढूंढ निकालते हैं कि एचपीवी ( ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस) संक्रमण है या नहीं !!

वैसे तो जो महिलायें एचपीव्ही ( HPV) से बाधित है उन में से बहुत कम महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर उत्पन्न होता है लेकिन एक बात तो निश्चित है कि ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस के संक्रमण की वजह से यह जोखिम बढ़ जाता है।

सभी महिलाओं को यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जिन की आयु 21 वर्ष या उस से ज़्यादा है --- इस से कम उम्र की उन महिलाओं को भी यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जो कि सैक्सुयली एक्टिव हैं।

और यह पैप स्मियर टैस्ट महिलाओं को एक से लेकर तीन साल के भीतर ( जैसी भी आप की स्त्री-रोग विशेषज्ञ सलाह दे) रिपीट करवाना चाहिये --- अगर कोशिकाओं में किसी तरह के बदलाव पाये जाते हैं तो यह टैस्ट इस से पहले भी रिपीट करवाना पड़ सकता है।


महिलाओं का यह टैस्ट तभी किया जाता है जब वे मासिक-धर्म के पीरियड में न हों, इस टैस्ट को करवाने के 24 घंटे पहले संभोग नहीं किया जाना चाहिये। और टैस्ट से पहले योनि में किसी तरह की क्रीम( vaginal creams) का इस्तेमाल वर्जित है।

इस टैस्ट में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती --- इसे समझने के लिये एक बात सुनिये – अगर मुझे मुंह के कैंसर की जांच के लिये इस तरह का ही स्मियर टैस्ट( ओरल स्मियर) करना होता है तो मैं एक स्पैचुला ( आप यह समझ लें कि एक तरह का ऐसा औज़ार जिस से जुबान को थोड़ा नीचे दबा कर गले का निरीक्षण किया जाता है – tongue depressor की तरह से दिखने वाला एक औज़ार ) --- इस्तेमाल करता हूं --- मुंह के अंदर गाल पर इसे थोड़ा घिसने के बाद जो कोशिकाएं प्राप्त होती हैं उन्हें सूक्ष्मदर्शी उपकरण ( microscope) की सहायता से चैक किया जाता है) --- बिल्कुल उसी तरह से जो स्त्री-रोग विशेषज्ञ यह टैस्ट कर रही हैं वह एक गोलाकार स्पैचुला ( rounded spatula) को आहिस्ता से गर्भाशय की बाहरी सतह पर आहिस्ता से घिसने के बाद एकत्रित हुई कोशिकाओं को लैब में माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक किये जाने के लिये भेज देती हैं।

माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक-अप द्वारा यह देखा जाता है कि कहीं इन कोशिकाओं में कोई असामान्य ( abnormal) कोशिका तो नहीं है , और अगर है तो फिर स्त्री-रोग विशेषज्ञ समुचित उपचार की सलाह दे देती हैं।

एक अंग्रेज़ी कहावत है ---- a stitch in time saves nine !!---अगर समय रहते किसी फटे कपड़े को एक टांका लगा दिया जाये तो भविष्य में लगने वाले नौ टांकों से बचा जा सकता है --- और यहां भी पैप-स्मियर टैस्ट के लिये भी यह बात बिलकुल उसी तरह से लागू होती है ।

वैसे तो अच्छे प्राइवेट हास्पीटल में महिलाओं के हैल्थ-चैक अप प्लान में यह टैस्ट सम्मिलित होता ही है ------लेकिन मुझे अच्छा तब लगेगा अगर आप महिलाओं में से किसी ने अभी तक इस टैस्ट के बारे में सुना नहीं है, करवाया नहीं है तो बिना किसी तरह की स्त्री-रोग संबंधी ( without any gynaecological problem) शिकायत के भी अपनी स्त्री-रोग विशेषज्ञ से नियमित तौर पर मिलें और इस टैस्ट को करवाने के बारे में चर्चा करें। यह बहुत ही ----बहुत ही ----बहुत ही ----- बहुत ही ----- ज़रूरी है ......ज़रूरी है ।

PS……..पुरूष पाठको, आप ने यह पोस्ट पढ़ी--- बहुत बहुत धन्यवाद। लेकिन अगर आप इसे अपनी श्रीमति जी को भी पढ़वायेंगे तो आभार होगा---- और अगर इस का एक प्रिंट-आउट लेकर उन्हें थमा देंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी --- और उन्हें यह भी संदेश दें कि इस के बारे में अपनी सखी-सहेलियों से भी चर्चा करें।

यकायक ध्यान उस विज्ञापन की तरफ़ जा रहा है ---- जो सचमुच बीवी से करते प्यार, हॉकिंग्ज़ से कैसे करें इंकार ---- तो सुविधा के लिये हॉकिंग्ज़ की जगह पैप-स्मियर लगा दें, तो कैसा रहेगा !!

शनिवार, 26 जुलाई 2008

बच्चे पैदा करने की इतनी भी क्या जल्दी है !!

शादी के बाद बच्चे पैदा करने की इतनी भी क्या जल्दी कि इस के लिये कुदरत के नियमों से डायरैक्ट पंगा ही लेलिया और एक ऐसा उपाय इस्तेमाल कर डाला कि शायद मेरी तरह आप ने भी इस जल्दबाजी के लिये इस तरह केइस्तेमाल की बात न सुनी होगी।

यह तो आप जानते ही हैं कि आई.वी.एफ अर्थात् in-vitro fertilization तकनीक आज कल खूब चल निकलीहै...इस तकनीक में शरीर से बाहर ही अंडे एवं शुक्राणु का मेल करवा कर उसे महिला के गर्भाशय में डाक्टर द्वारारख दिया जाता है। जिन दंपतियों में शादी के बाद विभिन्न कारणों की वजह से बच्चा होने में दिक्कत होती है उनमें पूरी जांच के बाद इस तरह की तकनीक इस्तेमाल की जाती है।

लेकिन मुझे तो दोस्तो आज पता चला कि इस तकनीक का इस्तेमाल अमेरिका की एक बेहद सुप्रसिद्ध विवाहितहस्ती ने इसलिये किया कि वह नार्मल तरीके से गर्भधारण की इंतज़ार के झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी। इस केबारे में आज के इंगलिश न्यूज़-पेपर में एक ब्रीफ सी खबर छपी है।

उस खबर में बताया गया है कि उस हस्ती ने ऐसा इसलिये किया क्योंकि उस महिला को इस बात की बहुत हीजल्दी है कि जल्दी जल्दी ही उस के बहुत सारे बच्चे हो जाएं। और इस के लिये एक तो उस ने नैचुरल कंसैप्शन कीबजाए आई.व्ही.एफ का रास्ता चुना और यह रास्ता चुनने का दूसरा कारण यह भी है कि इस आई.व्ही.तकनीकद्वारा जुड़वा बच्चे होने का चांस नार्मल गर्भ-धारण की तुलना में 25 गुणा बढ़ जाता है। तो, फिर गुड-न्यूज़ यही हैकि उसे जुड़वा बच्चे पैदा हुये हैं।
वैसे तो हर किसी की अपनी लाइफ़ है, क्या परिस्थितियां हैं, हम लोग कैसे कोई टिप्पणी कर सकते हैं, लेकिन वोब्लागर ही क्या जो बिना-वजह टिप्पणी देने से बाज आ जाए। तो, मुझे तो भई यही लगता है कि यह तो कुदरत केनियमों के साथ बिलकुल डायरैक्ट पंगा है कि अब लोगों की बेताबी इतनी बढ़ गई है कि नार्मल कंसैप्शन का भीइंतज़ार इन्हें गवारा नहीं है।

एक बात और भी है ना ....उस छोटी सी खबर में यह भी बताया गया है कि उस हस्ती ने इस तकनीक के लिये 12 हज़ार डालर खर्च किये हैं.......सोच रहा हूं कि जब कोई बड़ी हस्ती इस तरह की तकनीक का सहारा ( केवलजल्दबाजी के लिये ही !!....... well, that is what is written in that snippet and let’s believe it ! ) लेती हैतो कईं बार दुनिया को इस का गलत मैसेज मिलता है.....कहीं यह भी कोई फैशन-फैड ही ना बन जाए कि कौननार्मल-कंसैप्शन के चक्कर में पड़े, पता नहीं कितने साईकल्ज़ व्यर्थ ही निकल जाएं.......अब अगर लोगों की सोचइस तरफ हो जायेगी कि नहीं, भई , हमें तो तुरंत रिज़ल्ट चाहिये.....तो फिर वही बात हो गई कि फास्ट-फूड ज्वाईंटसे कुछ भी लेकर खाने वाला कैसे चूल्हे-चौके में चक्कर में पड़े।

वैसे सोच रहा हूं कि अगर किसी हस्ती ने इस तरह की तकनीक का सहारा लिया भी है तो उसे मीडिया द्वारा इतनातूल क्यों दिया जाता है..........पता है क्यों ?..... ताकि हम हिंदी ब्लागरों को भी पता चलता रहे कि दुनिया में क्याक्या चल रहा है, दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है और किस कदर हम लोग मदर-नेचर से जबरदस्त पंगे लियेजा रहे हैं और फिर उसे ही कोसने लगते हैं।

मंगलवार, 10 जून 2008

महिलाओं को इस तरह के विषयों पर आपस में बात करते रहना चाहिये...भाग2

गर्भाशय के कैंसर से बचाव का इंजैक्शन....
कल मैंने एच.पी.व्ही इंफैक्शन की बात की थी....यह समझना बेहद ज़रूरी है कि इस इंफैक्शन का गर्भाशय के मुख (cervix of uterus) के कैंसर में सीधा रोल है। एच.पी.व्ही का पूरा नाम है....ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस ( Human papilloma-virus).
शायद आप को भी यह सोच कर थोड़ा अजीब सा लग तो रहा होगा कि क्या वॉयरस से भी कैंसर होते हैं ....लेकिन मैडीकल वैज्ञानिकों ने इस को प्रमाणित कर दिया है। अब जब हम यहां महिलाओं के गर्भाशय के मुख पर होने वाले कैंसर की बात कर रहे हैं तो इस के बारे में यह जान लेना ज़रूरी है कि इस के लिये इसी एच.पी.व्ही इंफैक्शन को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
महिलाओं के इस गर्भाशय के मुख के कैंसर के बारे में यह भी जानना ज़रूरी है कि हर वर्ष हज़ारों महिलाओं की जान ले लेने वाले इस कैंसर के भारत में सब से ज़्यादा केस पाये जाते हैं। महिलाओं में जितने भी कैंसर के केस होते हैं उन में से 24प्रतिशत केस इसी गर्भाशय के कैंसर के होते हैं और 20 प्रतिशत केस स्तन-कैंसर के होते हैं। भारत में एक लाख तीन हज़ार से भी ज़्यादा नये केस हर वर्ष डिटेक्ट होते हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार हर वर्ष यह बीमारी भारत में 74000महिलाओं की जानें लील लेती है।
अब खबर यही है कि इस एच.पी.व्ही इंफैक्शन से बचाव का भी इंजैक्शन आ गया है। इस ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस की भी कईं किस्में होती हैं ...और इन में से दो किस्में ऐसी होती हैं जिन्हें गर्भाशय के कैंसर के 70प्रतिशत केसों के लिये जिम्मेदार माना जाता है.....तो, बहुत बड़ी खुशखबरी यही है कि इन एच.पी.व्ही की दोनों किस्मों से बचाव के लिये यह इंजैक्शन शत-प्रतिशत कारगर है।
अमेरिका की सरकारी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन एजेंसी ने इस इंजैक्शन के 9 से 26 वर्ष की लड़कियों एवं युवा महिलाओं में इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यूरोप में भी यह इंजैक्शन चल रहा है। लेकिन भारत में अभी यह उपलब्ध नहीं है....वैसे तो यह अभी अच्छा-खासा महंगा भी है लेकिन महिलाओं को इतने भयानक एवं दर्दनाक जानलेवा रोग से बचाने के लिये शायद इस का मोल इस के इस्तेमाल के रास्ते में नहीं आयेगा।
वैसे अभी तो इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च कुछ ही दिनों में इस इंजैक्शन के लिये एक क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने जा रही है ...जो तीन वर्ष तक चलेगा और इस इंजैक्शन की भारतीय महिलाओं में सफलता सिद्ध होने के बाद ही इसे भारत में शुरू किया जायेगा।
इस नये वैक्सीन के बारे में यह बात भी बहुत ध्यान देने योग्य है कि यह वैक्सीन लड़कियों की एवं युवा महिलाओं की तो एच.पी.व्ही इंफैक्शन से रक्षा करता है लेकिन बड़ी उम्र की उन महिलाओं में जिन में पहले ही से एच.पी.व्ही इंफैक्शन मौजूद है उन में इस इंजैक्शन का कोई प्रभाव नहीं है।
एक बात और भी विशेष ध्यान देने योग्य है कि जिन महिलाओं को ये कैंसर से बचाव के ये इंजैक्शन दिये गये हैं ...उन को भी कैंसर के लिये नियमित जांच( cervical cancer screening) करवानी आवश्यक है।
गर्भाशय के कैंसर की स्क्रीनिंग से ध्यान आ रहा है कि विकसित देशों में इसी स्क्रीनिंग की वजह से ही इस के केसों में भारी कटौती संभव हो पायी है। लेकिन भारत में इस के केस बढ़ रहे हैं.....और अफसोस तो इसी बात का है कि इस तरह के कैंसर को इतनी आसानी से रोका जा सकता है, इस से बचा जा सकता है। इसी स्क्रीनिंग के लिये ही एक टैस्ट है ....पैप स्मीयिर( PAP Smear)…..यह बहुत ही सिंपल सा टैस्ट है जिस में बहुत ही आसानी से बिना किसी दर्द आदि के एक स्लाईड के ऊपर महिला के गर्भाशय से लिये कोशिकाओं की लैब में जांच की जाती है।( स्लाईड तैयार करने का काम स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाता है) । इस पैप-स्मीयर टैस्ट की वजह से बहुत सी जानें बच पाई हैं। लेकिन हमारे देश में आमतौर पर महिलाओं को आसानी से उपलब्ध नहीं है। और जहां है भी, वहां पर महिलायें अज्ञानता वश इसे करवाती नहीं हैं कि हमें क्या हुआ है, हम भली-चंगी तो हैं, ......लेकिन इस टैस्ट को बिना किसी तकलीफ़ के भी अपनी उम्र के अनुसार अपनी स्त्री-रोग विशेषज्ञ की सलाह अनुसार अवश्य करवाना चाहिये।
तो, कहने का भाव है कि गर्भाशय के कैंसर से बचाव के लिये इस्तेमाल किये जाने वाली इंजैक्शन की बातें तो हम ने कर लीं लेकिन हमारे यहां तो अभी तक महिलाओं में इस बीमारी के लिये रूटीन स्क्रीनिंग ( स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा नियमित परीक्षण, पैप-स्मीयर टैस्ट आदि) तक की जागरूकता नहीं है तो ऐसे में बिना नियमित स्क्रीनिंग के इस टीके का प्रभाव कितना कारगर होगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। वैसे भी इस समय ज़रूरत इस बात की है कि गर्भाशय कैंसर के लिये रूटीन स्क्रीनिंग को कैसे सब महिलाओं तक ...उन की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बिल्कुल भी कंसिडर न करते हुये.......पहुंचाया जाये।
जाते जाते यही ध्यान आ रहा है कि महिलाओं के अधिकारों का महिलाओं के इस गर्भाशय के कैंसर से सीधा संबंध है। भारत में लड़कियां छोटी उम्र में ब्याह दी जाती हैं, बार-बार वे गर्भावस्था से गुज़रती हैं ...और इन का अपने पति की यौन-आदतों के ऊपर किसी भी तरह का बिल्कुल कंट्रोल होता नहीं है......इन सब की वजह से महिला की अपनी रिप्रोडक्टिव हैल्थ खतरे में पड़ जाती है।
इतना लिखने के बाद ध्यान आ रहा है कि इस एच.पी.व्ही इंफैक्शन से होने वाले गर्भाशय के कैंसर के बारे में इतनी बातें हो गईं .....लेकिन एच.पी.व्ही इंफैक्शन के बारे में कुछ अहम् बातें करनी अभी शेष हैं......ये चर्चा कल करेंगे कि यह इंफैक्शन महिलाओं में अकसर आती कहां से है।

सोमवार, 9 जून 2008

महिलायों को इन विषयों के बारे में आपस में बात करनी चाहिये....भाग..1.

पिछले कुछ अरसे से महिलायों के गर्भाशय के मुख के कैंसर से बचाव के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले टीके की बातें चल रही हैं। एक मैडीकल-राइटर होने के नाते मैंने कुछ महीने पहले एक महिला-चिकित्सक से इस एचपीव्ही इंफैक्शन के बारे में बात करनी चाही.....कि नेट पर तो इस इंफैक्शन की जानकारी की भरमार है, लेकिन अपने यहां के आंकड़े क्या कहते हैं । तो मुझे जो जवाब मिला वह बिल्कुल भी संतोषजनक ना था, मैं आज भी यह सोच कर हैरान हूं कि उस स्त्री-रोग विशेषज्ञ ने मुझे यह क्यों कहा कि यह समस्या तो बाहर के देशों की ज़्यादा है।

इसलिये सोच रहा हूं कि आज दो-चार बातें अपनी जानकारी के आधार पर महिलायों के स्वास्थ्य के बारे में विशेषकर महिलायों में होने वाले कैंसर के बारे में ही करते हैं। अकसर विभिन्न कारणों की वजह से हमारे देश की महिलायें अपने शरीर की देखभाल पूरी तरह से कर नहीं पाती हैं। उन का तो किसी चिकित्सक के पास जाने का फैसला भी ज्यादातर उन के पति की इच्छा के मुताबिक ही होता है।
स्तन कैंसर के रोग के बारे में भी इतनी जागरूकता है नहीं। कोई प्रिवैंटिव प्रोटोकॉल फॉलो नहीं किया जाता। बाहर के देशों में तो महिलायें जैसे ही 35 वर्ष की होती हैं वे महिला-रोग विशेषज्ञ से मिल कर अपनी नियमित जांच करवाती रहती हैं......क्लीनिकल चैक-अप के साथ-साथ वे अपनी मैमोग्राफी भी नियमित तौर पर चिकित्सक की सलाह के अनुसार करवाती रहती हैं।

मैमोग्राफी एक तरह का एक्स-रे ही है जिस के करवाने से महिलाओं के स्तन में आने वाले बारीक से बारीक बदलाव को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है। वैसे तो बाहर के देशों में और अब तो हमारे देश में भी महिलायें इसे करवाने लगी हैं.....लेकिन फिर भी हमारे यहां तो अभी भी यह स्तन में कोई तकलीफ़ होने पर ही करवाया जाता है। तो, यहां ज़रूरत है इस मैमोग्राफी तकनीक को पापुलर करने की। यह लगभग सात-आठ सौ रूपये में हो जाता है....कीमत विभिन्न जगहों पर अलग हो सकती है। आम तौर पर जिन सैंटरों में सीटी-स्कैन आदि की मशीन होती है वहां इस की भी सुविधा होती ही है। बाहर के देशों में स्त्रियां इस के बारे में बेहद चेतन हैं। इसलिये हमारे देश की महिलायों को भी अपने चिकित्सक की सलाह से इसे अवश्य करवा लेना चाहिये।....करवा क्या लेना चाहिये बल्कि नियमित करवाना चाहिये...जहां तक मुझे ध्यान है एक तो बेस-लाइन मैमोग्राफी 35 साल की उम्र में होनी चाहिये और उस के पांच –पांच साल के बाद इसे रिपीट किया जाना जरूरी होता है। इस की विस्तृत जानकारी एवं शैड्यूल आप को अपनी महिला रोग विशेषज्ञ से मिल जायेगा। उस के बाद एक उम्र के बाद तो इस मैमोग्राफी को हर साल के बाद रिपीट करने की हिदायत दी जाती है। यह बेहद लाज़मी है....क्योंकि अकसर देखा गया है कि हमारे देश में जब तक स्तन में किसी तरह की गांठ वांठ के लिये अपने चिकित्सक से मिलती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिये इस मैमोग्राफी की मदद से छोटे से छोटे बदलाव को बहुत सी आसानी से पकड़ कर किसी तरफ भी फैलने से पहले ही उसे काबू कर लिया जाता है।

वैसे तो स्त्री –रोग चिकित्सक महिलायों को अपने वक्ष-स्थल की स्वयं-जांच के लिये भी बताती ही रहती हैं....महिलाओं को इस का पालन भी करना चाहिये....और कुछ दिन पहले से कहीं पर पढ़ा है कि इस स्वयं-जांच का एक चार्ट सा जो अपने चिकित्सक से मिले उसे उन्हें अपने कपड़ों की अलमारी में चिपका लेना चाहिये....ताकि एक तो उस के अनुसार ही वे अपने वक्ष-स्थल की स्वयं जांच करती रहें और दूसरा यह कि यह चार्ट उन को यह काम करने की याद भी दिलाता रहेगा।

एक बात और जो बहुत ही ज़रूरी है कि वैसे तो बिना किसी तकलीफ़ के भी अपनी मैमोग्राफी करवानी बहुत ज़रूरी है लेकिन एक बात तो बहुत बहुत ही ज़रूरी है कि जिन महिलायों के परिवार में किसी नज़दीकी रिश्तेदार को स्तन-कैंसर की बीमारी हो चुकी है जैसे कि किसी की मां,बहन, नानी, मौसी .....ऐसे में इन महिलायों को तो अपनी नियमित जांच करवानी और भी बहुत महत्वपूर्ण है।

इस जानकारी को हिंदी में ब्लाग पर डालने के बारे में मैंने बहुत सोचा....लेकिन मुझे यह पोस्ट लिखने के लिये मज़बूर होना ही पड़ा। उसका पहला कारण तो यह कि पोस्ट पढ़ने वाले काफी पुरूष भी हैं और देश में महिलाओं के स्वास्थ्य की विडंबना भी यही है कि उस के शरीर से संबंधित फैसले अभी भी पुरूषों के हाथ ही में हैं। और, दूसरा यह कि जो महिला ब्लागर हैं ....मैं समझता हूं ये सब बेहद प्रबुद्ध महिलायें हैं जो अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं जिन्हें इस तरह की जानकारी पहले ही से होगी ....तो इन सभी बहनों से मेरी गुज़ारिश यही है कि अपने ग्रुप में .......अपनी घर काम करने वाली बाई से शुरू कर के , अपनी किट्टी पार्टी की सदस्याओं एवं अपने कार्य-क्षेत्र के इंफार्मल ग्रुप में इस तरह की चर्चायें किया जायें ....................क्योंकि यह आप के अपने स्वास्थ्य का प्रश्न है................आरक्षण बिल का तो हमें अभी पता नहीं क्या होगा, लेकिन बहनो, अभी अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी तो थामो।( यह सब कहना जितना आसान है , काश ! यह सब प्रैक्टीकल लाइफ में भी इतना ही आसान होता !!)…………फिर भी , .......Try to take control of your life from this moment onwards……….afterall it is the question of your well-being……….which is so very important for the well-being of your kids …..not only kids, but your whole family………even extended family !!
Wish all of you pink of health and spirits !!

कल दूसरे भाग में महिलायों के गर्भाशय के मुख के कैंसर के बारे में कुछ अहम् बातें करूंगा।