सब से पहले तो रोज़ाना अपनी डॉयरी में रोज़ कुछ न कुछ लिखते रहिए....इतना बड़ा दिन होता है, इतने लोगों से हम मिलते हैं, इतने नज़ारे नज़र आते हैं, मोबाइल से सारा दिन चिपके रहते हैं, इतना कुछ देखते हैं, पढ़ते हैं और कभी कभी सोचने का भी वक्त तो मिल ही जाता है ...बस, इन में जो भी अच्छा, बुरा लगे जो भी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आए या अगर कुछ उदास कर जाए, उसे अपनी नोटबुक में लिख कर फ़ारिग हो जाइए...
मैं तो अपने आप को कोई लेखक-वेखक भी नहीं मानता ..क्योंकि सरकारी नौकरी में होने की वजह से अपनी कलम पर कुछ तो लगाम कसे रखनी पड़ती है ...वरना, आप अकेले-थकेले पड़ जाते हैं, कोई भी आप के साथ नहीं खड़ा होता अगर कोई लफड़ा हो जाता है ...जब नौकरी से छूट जाएंगे तो देखेंगे कोई लगाम पकड़नी भी है या नहीं, वह तो बाद में देखेंगे....खैर, मेरे ब्लॉग्स के नीचे जो कमैंट्स आते हैं या व्यक्तिगत तौर पर मुझे जो लोग कहते हैं वह यही बात है कहते हैं कि आप का लेखन बड़ा नेचुरल है ....हां, अगर किसी को ऐसा लगता है तो उसका भी एक ही कारण है कि जो मन में आए, लिख दो ...कोई परवाह न करो ..(बस, जब तक नौकरी-चाकरी है तब तक बच के रहिए..., बाद में मेमॉयर्स की कश्ती पर तो अकसर लोग सवार होते ही हैं , वहां जी भर कर दिल खोल लीजिेए...😎)
लिखने के लिए इतना कुछ है कि ऐसे लगता है कि क्या लिखें, क्या छोड़ें ....एक बात यहां बता दूं कि २०-२२ बरस पहले जब मेैंने लिखना शुरू किया और अखबारों, पत्रिकाओं में लेख भेजने शुरू किए तो मैंने एक बार ऐसे ही एक फेहरिस्त सी बनाई कि आखिर कितने लेेख हैं जिन के बारे में मैं लिख सकता हूं ...मुझे ख्याल आ रहा है कि यही कोई ४०-४५ लेखों की लिस्ट बन पाई थी ...क्योंकि मेरी सोच तब वहां तक ही थी...
अब जैसे जैसे लिखते लिखते आप की सोच का दायरा बढ़ने लगता है तो पता चलता है कि लिखने पढ़ने की दुनिया तो समंदर है ..अगर आप सारा दिन भी लिखते रहें तो भी ज़िंदगी कट जाएगी और पता चलेगा कि आपने धूल के एक कण के बराबर भी न कुछ लिखा, और न ही पढ़ा....इसलिए जो लिखने की शुरुआत करना चाहते हैं उन के लिए मेरा नुस्खा यह है कि रोज़ कुछ न कुछ लिखा करें ...स्कूल में मास्टर लोग हमारी लिखावट सुंदर करने के लिए रोज़ाना एक पन्ना सुलेख का लिखवाते थे कि नहीं...बस, अपने लेखन में कुदरती प्रवाह लाने के लिए आप भी कुछ न कुछ रोज़ लिखिए ...और खूब पढ़िए..जो भी मन को भाए....सब कुछ पढ़िए...अच्छा, बुरा ...लेकिन अच्छा, बुरा तो कुछ होता ही नहीं, सब लिखने वाले अपने अनुभव लिख रहे हैं..आप पढ़िए सब कुछ, राय अपनी बनाइए...बार बार मुझे एक मशहूर नावलकार सुरेंद्र मोहन पाठक की बात याद आ जाती है (३०० से ज़्यादा नावल लिख चुके हैं..) ....
दो -ढाई बरस पहले जब पाठक जी दिल्ली में मिले तो इन से बात कर के मज़ा आया ...मैंने सोचा एक सेल्फी भी ले ली जाए... |
एक इंटरव्यू में बता रहे थे कि उन्हें पढ़ना का इतना शौक है कि जिस लिफाफे में मूंगफली खाते हैं, उसे भी फैंकने से पहले फाड़ के ज़रूर पढ़ लेते हैं ...हा हा हा ह ाहा ....कल मैं भी मैं अपना कोई १५ बरस पहले लिखा ब्लॉग पढ़ रहा था ...उस दिन मैंने शकरकंदी खाई जिस कागज़ में उस पर एक कविता लिखी थी ..जो मेरे मन को छू गई और मैंने उस पर एक पोस्ट लिखी थी ...अभी शेयर करता हूं उस का स्क्रीन शॉट...
१५ बरस पहले लिखी इस पोस्ट को देखा तो अच्छा लगा... वैसे मैं अपना पुराना कुछ भी लिखा पढ़ता नहीं हूं ... |
लिखने की शुरुआत कर रहे हैं तो सोशल-मीडिया पर या इस वॉट्सएप भी दिल खोलना सीखें ...कोई एप्रिशिएट करे या न करें ...सारे चुप रहें तो रहें ..कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ...एक बात बताऊं जिन लोगों की आप इस सोशल-मीडिया पर परवाह करते हैं, उन सभी (जी हां, सभी, आपने बिल्कुल सही पढ़ा) से हमारे रिश्ते कांच से भी ज़्यादा नाज़ुक हैं....हम कब तक सब को खुश ही करते रहेंगे ...कब तक सब की परवाह करते रहेंगे .... और एक बात ...ज़िंदगी ने मेरे फंड़े कुछ ज़्यादा ही क्लियर कर रखे हैं...जब भी मुझे लगता है कि कुछ लिखूं या न लिखूं ..दिल खोल के लिखूं या न लिखूं.....तो मैं अपने आप से यह कहता हूं कि ये जो कुछ सैंकड़ों लोगों की तुम परवाह के चक्कर में अपने एक्सप्रेशन को रोक रहे हो, यह भी सब छलावा है दोस्त ...अगर तुम्हें किसी दिन कुछ हो गया...तुम इस फ़ानी दुनिया से ही कूच कर गए तो मुमकिन है तुम्हारी कोई बात भी नहीं करेगा ...बस कुछ लोग RIP लिख कर वहां से कट लेंगे और ग्रुप में अगली पोस्ट किसी कॉमेडी-शो की होगी ...इसलिए किसी की भी परवाह करते रहना, अपने आप को दबाए रखना, अपने आप को खिलने ही न देना भी अपने साथ ही किया हुआ एक गुनाह तो है ही, समाज के साथ भी बेइंसाफी है क्योंकि हम में से हर एक के पास इतना कुछ कहने को है जिससे कोई न कोई कब कोई अहम् सबक ले ले, कोई प्रेरणा ही ले ले ....
यह जो टॉपिक मैंने शुरू कर तो दिया है ...पंगा सा ही ले लिया है ..क्योंकि मेरे पास इतना कुछ कहने को है, एक पोस्ट में तो आएगा नहीं.... लेकिन मैं इसे अपने दिल से लिखने की पूरी कोशिश करूंगा ..जो सीखा है, जो समझा या जो भी महसूस किया इस लिखने-पढ़ने की दुनिया में सब कुछ बांट दूंगा इन पोस्टों में ...वैसे मैंंने कुछ बरस पहले इंटरनेट पर लिखने के बारे में ५-७ पोस्टें भी लिखी थीं कि इंटरनेट पर लेखन के क्या कायदे-कानून हैं, दांव-पेंच हैं...वे भी ढूंढ कर अगली पोस्ट में शेयर करता हूं ..
कुछ बातें इधर उधर की भी शेयर करना चाह रहा हूं ..हमारे कुछ साथी हैं जिन से मुझे पिछले कुछ दिनों में दो-तीन बार कुछ ऐसा सुनने को मिला कि आज तो वह वक्त पर घर के निकल जाएंगे ....क्योंकि उन्हें बच्चों के साथ, मां के साथ वक्त बिताना है ...कहीं जाना है ...और यह कहते कहते वे मुझे इतने खुश दिखे कि उन की बात सुनते ही कोई भी भावुक हो जाए....काश, हम सब लोग ऐसा ही कर पाएं ...वर्क-लाइफ बेलेंस अच्छे से कर पाएं ...और अपनों को भी अपना वक्त दें ...उन के साथ वक्त बिताएं, घूमने जाएं, एक साथ बैठ कर बारिश का लुत्फ़ उठाएं...और कुछ नहीं तो बस सब लोग एक साथ बैठें और पुराने दिनों की मीठी यादों के पोखर में ही उछल-कूद करते रहें ...
और हां, एक बात और हैं ...दुनिया में रहते हुए हम लोग बहुत कुछ देखते हैं..कुछ के साथ धक्का होते देखते हैं, कुछ को बहुत से फेवर मिलते देखते हैं जिन के लिए वह हकदार भी नहीं होते, बस चाटुकारिता उन की सब से बड़ी स्पैशलिटी होती है ...Master in Sycophancy! 😎 लेकिन हम कुछ कहते नहीं....एक खतरनाक चुप्पी की चादर ओढ़े रखते हैं ...लेकिन लिखने वाले ये सब अपने दिल के ज़खीरे में सहेजे रहते हैं ...वे खुद नहीं जानते कब उन की कलम अल्फ़ाज़ की जगह, इस जमा हुए लावे को ही उगल दे...यह कोई नहीं बता सकता।
इस वक्त जब मैं यह लिख रहा हूं ...साथ में विविध भारती भी बज रहा हूं ...मुंबई ेमें बारिश हो रही है .... साथ में रेडियो पर बारिश के सुपर-डुपर गीत बज रहे हैं...एक से बढ़ कर एक ...सच में समझ ही नहीं आ रहा कि यहां पोस्ट में किस को एम्बेड करूं और किसे रहने दूं....
सही कहा आपने लिखना सीखने के लिए लिखना जरूरी है। कई लोग यही बात भूल जाते हैं। आगे आने वाली पोस्टों की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सर। इस पोस्ट को पूरे मनोयोग से पढने के लिए रख छोड़ा था। बहुत बड़ा मार्गदर्शन मिला है बहुत बहुत धन्यवाद सर।
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