कल मेरे पास एक १८ वर्षीय युवक आया..देखने में वह लगभग २५ के करीब लग रहा था, मैंने पूछा कि क्या जिम-विम जाते हो, उसने जब हां कहा तो मैंने पूछ लिया कि कहीं बॉडी-बिल्डिंग वाले पावडर तो नहीं लेते। उसने बताया कि नहीं वह सब तो नहीं लेता, लेकिन घर में गाय-भैंसें हैं, इसलिए अच्छा खाते पीते हैं।
बहरहाल उस का वज़न भी काफ़ी ज़्यादा था, इसलिए मैंने उसे संयम से संतुलित आहार लेने की ही सलाह दी। लेकिन अभी उस समस्या के बारे में तो बात हुई नहीं जिस की वजह से वह मेरे पास आया था।
वह मुंह में छालों से परेशान था और उस का मुंह पूरा नहीं खुलता, इस लिए वह परेशान था। मेरे पूछने पर उस ने बताया कि वह गुटखा-पान मसाला पिछले दो वर्षों से खा रहा है, और लगभग १० पाउच तो रोज़ ले ही लेता है लेकिन पिछले ७ दिनों से उसने ये सब खाना बंद कर दिया है क्योंकि मुंह में जो घाव हैं उन की वजह से उन्हें खाने में दिक्कत होने लगी है।
इतने में उस की अम्मी ने कमरे के अंदर झांका तो मैंने उन्हें भी अंदर बुला लिया।
मैंने उस का पूर्ण मुख परीक्षण किया और पाया कि इस १८ वर्ष के युवक को ओरल-सबम्यूक्सफाईब्रोसिस की बीमारी है…यह गुटखे-पानमसाले के सेवन से होती है ..धीरे धीरे मुंह खुलना बंद हो जाता है और मुंह की चमड़ी बिल्कुल चमड़े जैसी सख्त हो जाती है ..और मुंह में घाव होने की वजह से खाने पीने में बेहद परेशानी होती है।
१८ वर्ष की उम्र में इस तरह के मरीज़ हमारे पास कम ही आते हैं……आते तो हैं लेकिन इतनी कम उम्र में यह कम ही आते हैं……ऐसा नहीं है कि यह बीमारी इस उम्र में हो नहीं सकती, ज़रूर हो सकती है और होती है। मैंने इसे १२ वर्षीय एक लड़की में भी देखा था जो राजस्थान से थी और बहुत ही ज़्यादा लाल-मिर्च खाया करती थीं। जी हां, यह बीमारी उन लोगों में भी होती है जो लोग बहुत ज़्यादा लाल-मिर्च का सेवन करते हैं।
२०-२१ वर्ष के युवकों में तो यह बीमारी मैं पहले कईं बार देख चुका हूं और वे अकसर कहते हैं कि वे पिछले पांच सात वर्षों से गुटखे का सेवन कर रहे हैं। लेकिन शायद यह मेरे लिए यह पहला ही केस था कि उस युवक ने दो वर्ष ही गुटखे का सेवन किया और इस बीमारी के लफड़े में पड़ गया।
मैंने उस से दो तीन बार पूछा कि क्या वह दो वर्षों से गुटखा-पानमसाला खा रहा है, उस ने बताया कि हां, बिल्कुल, दो वर्षों से ही वह इन सब का सेवन कर रहा है। वह इंटर में पढ़ता है। बताने लगा कि दसवीं तक तो स्कूल में बड़ी सख्ती थी, हमारे स्कूल-बैग कि अचानक तलाशी ली जाती थी, इसलिए कक्षा दस तक तो इन के सेवन से बिल्कुल दूर ही रहा। लेकिन ग्याहरवीं कक्षा में जाते जाते इस की लत लग गई।
मैंने उसे बहुत समझाया कि अब इसे नहीं छूना….लगता है समझ तो गया है, वापिस पंद्रह दिन बाद बुलाया है।
दुःख होता है जब हम लोग इतनी छोटी उम्र में युवाओं को इस मर्ज़ का शिकार हुआ पाते हैं…..जैसा कि मैं पहले कईं बार अपने लेखों में लिख चुका हूं कि यह बीमारी कैंसर की पूर्वावस्था है (oral precancerous lesion)……कहने का अभिप्रायः है कि यह कभी भी कैंसर में परिवर्तित हो सकती है।
और धीरे धीरे कितने वर्षों में यह कैंसर पूर्वावस्था पूर्ण रूप से कैंसर में तबदील हो जाएगी और किन लोगों में होगी, यह कुछ नहीं कहा सकता …जैसे कि कल मैंने १८ वर्ष के युवक में इस अवस्था को देखा और कईं बार ३०-३५ वर्ष के युवाओं में यह तकलीफ़ कईं कईं वर्ष के गुटखे सेवन के बाद यह तकलीफ़ होती है, इन के लिए िकसी भी व्यक्ति की इम्यूनिटि (रोग प्रतिरोधक क्षमता), उस ने कितने गुटखे खाए, उस के खान-पान का सामान्य स्तर कैसा है…. बहुत सी बातें हैं जो यह निश्चित करती हैं कि कब कौन कितने समय में इस अजगर की चपेट में आ जाएगा।
इतना पढ़ने के बाद भी अगर किसी का मन गुटखा-पानमसाला मुंह में रखने के लिए ललचाए तो फिर कोई उस को क्या कहे…………..दीवाना और क्या!! जान के भी जो अनजान बने, कोई उस को क्या कहे, दीवाना, है कि नहीं?
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