रविवार, 13 मार्च 2011

प्रो-बॉयोटिक्स ड्रिंक्स में ऐसा क्या है जो दही में नहीं !

आज शाम को मैं एक शापिंग माल गया हुआ था...वहां मैंने देखा कि एक खूब लंबी शेल्फ प्रो-बॉयोटिक की छोटी छोटी बोतलों से सजी पड़ी थी। मैंने देखा कि यह 65 मि.ली की पांच बोतलों के पैक हैं....दस रूपये की एक बोतल और पांच बोतलें पचास रूपये की... खुली नहीं मिलती, पूरा पैकेट लेना ही होगा। ब्रांड का नाम तो चाहे कोई जापानी सा ही था लेकिन तैयार कहीं यहीं दिल्ली विल्ली के पास ही हुआ था .....वैसे भी उस पर Fermented Milk Drink लिखा हुआ था और साथ में प्रो-बॉयोटिक की प्रशंसा के पुल बांधे गये थे।

और यह भी लिखा गया था कि अच्छी सेहत के लिये इसे रोज़ाना इस्तेमाल किया करें ...एक्सपॉयरी तारीख तैयार होने के छःमहीने तक थी। मैं इसी सोच में पड़ गया कि यार, सुबह का दही तो इस देश में शाम को लोगों के हलक से नीचे नहीं उतरता कि यह खट्टा है, यह पुराना है, यह वो और यह वो ...... लेकिन अब जापानी नाम वाले ब्रांड हमें यह पतले दही जैसा पेय भी छः छः महीने पुराना खिला के छोड़ेंगे !!

बड़ी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां इन प्रो-बॉयोटिक प्रोडक्ट्स की तारीफ़ों के जितने भी पुल बांध लें, लेकिन हिंदोस्तानी दही इन सब से कईं गुणा बेहतर है।

प्रो-बॉयोटिक ड्रिंक्स में कुछ ऐसे जीवाणु होते हैं जो हमारे पेट एवं आंतड़ियों के स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक होते हैं, इन्हें लैक्टोबैसिलाई (Lactobacilli) कहा जाता है, वैसे तो ये हमारे पाचन-तंत्र अर्थात् आंतड़ियों में हमेशा उपलब्ध रहते हैं और भोजन को पचाने में सहयोग देते हैं लेकिन कईं बार शरीर में कुछ रोगों की वजह से अथवा कुछ दवाईयों के कारण इस तरह के लाभदायक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जिस की वजह से इन्हें बाहर से दिया जाना होता है। अधिकतर केसों में इस तरह की कमी रोज़ाना दही का इस्तेमाल करने से पूरी हो जाती है लेकिन बहुत कम बार ऐसा भी होता है कि फिज़िशियन इस तरह के जीवाणुओं को कैप्सूल के रूप में भी चंद दिनों के लिये लेने की सलाह देते हैं....लेकिन यह बहुत कम ही होता है।

अकसर पेट-वेट खराब होने पर आप के फैमली डाक्टर भी आप को दही भात, खिचड़ी दही, दही केला आदि ही लेने की सलाह देते हैं, और लोग ये सब खाने से एक दम फिट हो जाते हैं।

ऐसे में इन प्रो-बॉयोटिक ड्रिंक्स के चक्कर में पड़ने से क्या होगा ! --- कुछ भी नहीं होगा, अगर आप रोज़ाना दही लेते हैं तो इन सब के चक्कर में पडने की कोई ज़रूरत है नहीं। और अगर दही वही नहीं लेते तो फिर उस कमी को पूरा करने के लिये बहुत से प्रयास करने पड़ सकते हैं।

इस प्रो-बॉयोटिक ड्रिंक पर यह तो लिखा ही गया था – fermented milk product .. फर्मैंट से मतलब वही जामन लगा कर खमीर करने वाली बात, और इस के लिये स्किमड् मिल्क (skimmed milk) के इस्तेमाल करने की बात की गई है --- जो भी हो, मुझे लगता है कि इस तरह के प्रोडक्ट्स साधारण दही का कहां मुकाबला कर पाते होंगे --- दही इतना संवेदनशील और सजीव कि तैयार होने के कुछ घंटों के बाद ही उस की प्रवृत्ति ही बदल जाती है लेकिन ये बाज़ारी प्रोडक्ट्स छः छः महीने तक ठीक रह सकते हैं, इन्हें तो पता नहीं कैसे हम लोग पचाएंगे, जबकि यह बात ही नहीं पच रही।

इसे छः छः महीने तक ठीक रखने के लिये कुछ तो प्रोसैसिंग होती ही होगी, कुछ तो अन्य कैमीकल इस्तेमाल होते ही होंगे ... शापिंग माल में दूसरे अन्य प्रोसैसेड फूड्स की क्या कमी थी कि उस में ये प्रो-बॉयोटिक ड्रिंक्स भी शामिल कर दिये गये हैं। इसलिये बिना वजह इन के चक्कर में न ही पड़ा जाए तो बेहतर होगा। जिस तरह से इस तरह की वस्तुओं की बिक्री को बढ़ावा देने के लिये विज्ञापन दनादन आते हैं लगता तो यही है कि ये कंपनियां भी अपने मंसूबों में देर-सवेर कामयाब हो ही जाएंगी।

दही की इतनी तारीफ़े तो कर डाली लेकिन इस बात का ध्यान रखना तो ज़रूरी है ही कि यह भी तो कहीं कैमिकल युक्त दूध से तो तैयार नहीं किया गया !

Further reading ---
An Introduction to Probiotics
एक प्रश्न जिस से मैं बहुत परेशान हूं 



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी बात बताई है. अब थोडा मौसम सुधरे तो लस्सी पी जाए.
    आपके इस पोस्ट से लस्सी पीने का मज़ा दस गुना हो जाएगा.

    जवाब देंहटाएं
  2. जरा कर्ड (दही ) और योगहर्ट का फर्क बतायिगा !

    जवाब देंहटाएं
  3. चोपड़ा जी, नमस्कार.....................
    दही का गिलास ! और ६५ ml की बोतल !
    एक मैं सेहत, एक मैं दिखावा ,
    एक मैं अपनापन ,दूजी मैं छलावा ||

    खुश रहें और सेहत आप बाँट रहें है |
    अशोक सलूजा

    जवाब देंहटाएं
  4. 'प्रो-बॉयोटिक्स ड्रिंक्स में ऐसा क्या है जो दही में नहीं!'- ''मार्केटिंग''.

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...