निर्धन से निर्धन और रईस से रईस के बच्चों को मिल चुका हूं ---इन्हें बिस्कुट के पैकेट, चिप्स, और तरह तरह के जंक फूड के प्यार ने एकता की माला में पिरो कर रखा हुआ है।
यह भी मैंने देखा है कि कारण कोई भी हो मां बाप इस के लिये ज़्यादा टैंशन लेते नहीं हैं और मूर्खता की हद तब दिखती है जब बड़ी शेखी बघेरते हुये हम से ही यही कहते हैं कि इसे तो बस बिस्कुट ही पसंद हैं, जब भी खाता है पूरा पैकेट तुरंत खत्म कर देता है। यह क्या है ? ---- शर्तिया तौर पर मोटापा, ब्लड-प्रैशर, मधुमेह जैसी बीमारियों को आमंत्रण है और क्या है ?
एक बात और बहुत नोटिस की है कि अकसर लोग बिस्कुटों को जंक-फूड में शामिल नहीं करते, लेकिन ऐसी बात नहीं है --- दिन में एक दो बिस्कुट खाने की बात और है और पूरा पूरा पैकेट लपेट लेना कहां की अकलमंदी है ? अब अगर बच्चे पूरा पूरा पैकेट खाने लगेंगे तो खाने के लिये कहां से जगह बचेगी और हो भी यही सब कुछ ही रहा है ।
मुझे बड़ी खीझ होती है कि जब इन्हीं बच्चों के अभिभावक यही कहते हैं कि हमें तो यही लगता है कि बच्चा है ,इस के खाने के यही दिन हैं ---क्या फर्क पड़ता है। लेकिन बहुत फर्क पड़ता है क्योंकि खाने पीने की सारी अच्छी बुरी आदतों की शुरूआत ही इसी उम्र में ही होती हैं।
एक समस्या और भी है कि हमारे यहां दुकानदारों ने एक अच्छा ब्रॉंड तो शायद ही रखा हो लेकिन चालू किस्म के लोकल ब्रांड के बिस्कुटों के दर्जनों ब्रांड इन के यहां मिल जायेंगे।
बिस्कुटों की इतनी खिंचाई होते देख आप को लगता होगा कि क्या डाक्टर बिस्कुट नहीं खाता होगा ? --- ऐसा नहीं है कि मैं नहीं खाता, खूब खाये हैं, पहले इतना कहां लोग सोचा करते थे --खास कर बेकरी वाले बिस्कुट मुझे बहुत ही पसंद हैं। लेकिन वैसे 40 की उम्र पार करने पर बहुत कुछ सोचना ही पड़ता है ----मैं बेकरी वाले बिस्कुट नहीं खाता ---क्योंकि तरह तरह की मिलावटों के बारे में पढ़ कर मन इतना भर चुका है कि जब इन्हें खाने की तलब लगती है तो बेकरियों द्वारा इन के बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले घी के बारे में सोच लेता हूं तो अपने आप तलब शांत हो जाती है ।
कुछ लोग यह भी कह देते हैं कि उस में क्या है, हम लोग अपने सामने अपने मैटीरियल से बेकरी से बिस्कुट तैयार करवा लेते हैं ----शायद यह अच्छा विकल्प है लेकिन फिर भी 35-40 से ऊपर वाली उम्र के लोग इस तरह के पदार्थ जो घी, चीनी भरे होते हैं उऩ से थोड़ा सा बच कर रहा जाये तो ठीक ही लगता है, आप क्या सोच रहे हैं ?
अब तो मैं केवल ब्रिटॉनिया मैरी जैसे एक-दो बिस्कुट ही लेता हूं और मेरे बहुत से डाक्टर मित्र भी यही लेते हैं --- यह कोई पब्लिसिटी शटंट नहीं है --- यह बिस्कुट वैसे ही बहुत हल्का फुल्का है और ब्रिटॉनिया की क्वालिटी के बारे में तो आप जानते ही हैं !!
मुझे इस बात की भी बहुत फिक्र होती है कि जब लोग यह बताते हैं कि उन के बच्चे दालों, सब्जियों से दूर भागते हैं ---- यह अपने आप में एक बहुत ही ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात है --- यह एक ऐसी बात है कि जिस के लिये इन बच्चों के मां-बाप को शोक मनाना चाहिये क्योंकि ऐसे अधिकांश केसों में ऐसा होता है कि इस तरह के बच्चे बड़े होकर भी फिर पिज़्जा, बर्गर, हॉट-डॉग, हाका-नूडल्स पर ही पलते हैं और तरह तरह की शारीरिक व्याधियों के शिकार हुये रहते हैं।
हमारे सारे स्वाद बचपन में ही डिवेल्प होते हैं ----इसलिये यह बहुत ही ज़रूरी है कि हम बच्चों में सब दालों सब्जियों को स्वाद डिवेल्प करवायें। मुझे याद है कि मैं बचपन में केवल करेला खाने में थोड़ा नाटक किया करता था ----इतना बड़ा होने के बाद भी मुझे करेला कभी भी अच्छा नहीं लगा -----कभी कभी एक-दो खा तो लेता हूं लेकिन बस मजबूरी में।
बच्चे स्कूल की कैंटीन से जंक-फूड लेकर खाते रहते हैं ----कुछ अच्छे स्कूलों में तो अब कैंटीनें होती ही नहीं हैं लेकिन बच्चों को घर से भी दिया जाने वाला खाना सेहतमंद होना चाहिये ----लंच-बाक्स में बिस्कुट, चिप्स, भुजिये का क्या काम !!
सोच रहा हूं कि सेहत के फंडे में जितनी बातें पाठकों से शेयर करूंगा वे सभी मैं अपने आप से भी करूंगा, दोहराऊंगा और इंटरोस्पैक्शन करने का अवसर भी मिलता रहेगा कि कहीं दीपक के तले ही अंधेरा तो नहीं है।
यह भी मैंने देखा है कि कारण कोई भी हो मां बाप इस के लिये ज़्यादा टैंशन लेते नहीं हैं और मूर्खता की हद तब दिखती है जब बड़ी शेखी बघेरते हुये हम से ही यही कहते हैं कि इसे तो बस बिस्कुट ही पसंद हैं, जब भी खाता है पूरा पैकेट तुरंत खत्म कर देता है। यह क्या है ? ---- शर्तिया तौर पर मोटापा, ब्लड-प्रैशर, मधुमेह जैसी बीमारियों को आमंत्रण है और क्या है ?
एक बात और बहुत नोटिस की है कि अकसर लोग बिस्कुटों को जंक-फूड में शामिल नहीं करते, लेकिन ऐसी बात नहीं है --- दिन में एक दो बिस्कुट खाने की बात और है और पूरा पूरा पैकेट लपेट लेना कहां की अकलमंदी है ? अब अगर बच्चे पूरा पूरा पैकेट खाने लगेंगे तो खाने के लिये कहां से जगह बचेगी और हो भी यही सब कुछ ही रहा है ।
मुझे बड़ी खीझ होती है कि जब इन्हीं बच्चों के अभिभावक यही कहते हैं कि हमें तो यही लगता है कि बच्चा है ,इस के खाने के यही दिन हैं ---क्या फर्क पड़ता है। लेकिन बहुत फर्क पड़ता है क्योंकि खाने पीने की सारी अच्छी बुरी आदतों की शुरूआत ही इसी उम्र में ही होती हैं।
एक समस्या और भी है कि हमारे यहां दुकानदारों ने एक अच्छा ब्रॉंड तो शायद ही रखा हो लेकिन चालू किस्म के लोकल ब्रांड के बिस्कुटों के दर्जनों ब्रांड इन के यहां मिल जायेंगे।
बिस्कुटों की इतनी खिंचाई होते देख आप को लगता होगा कि क्या डाक्टर बिस्कुट नहीं खाता होगा ? --- ऐसा नहीं है कि मैं नहीं खाता, खूब खाये हैं, पहले इतना कहां लोग सोचा करते थे --खास कर बेकरी वाले बिस्कुट मुझे बहुत ही पसंद हैं। लेकिन वैसे 40 की उम्र पार करने पर बहुत कुछ सोचना ही पड़ता है ----मैं बेकरी वाले बिस्कुट नहीं खाता ---क्योंकि तरह तरह की मिलावटों के बारे में पढ़ कर मन इतना भर चुका है कि जब इन्हें खाने की तलब लगती है तो बेकरियों द्वारा इन के बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले घी के बारे में सोच लेता हूं तो अपने आप तलब शांत हो जाती है ।
कुछ लोग यह भी कह देते हैं कि उस में क्या है, हम लोग अपने सामने अपने मैटीरियल से बेकरी से बिस्कुट तैयार करवा लेते हैं ----शायद यह अच्छा विकल्प है लेकिन फिर भी 35-40 से ऊपर वाली उम्र के लोग इस तरह के पदार्थ जो घी, चीनी भरे होते हैं उऩ से थोड़ा सा बच कर रहा जाये तो ठीक ही लगता है, आप क्या सोच रहे हैं ?
अब तो मैं केवल ब्रिटॉनिया मैरी जैसे एक-दो बिस्कुट ही लेता हूं और मेरे बहुत से डाक्टर मित्र भी यही लेते हैं --- यह कोई पब्लिसिटी शटंट नहीं है --- यह बिस्कुट वैसे ही बहुत हल्का फुल्का है और ब्रिटॉनिया की क्वालिटी के बारे में तो आप जानते ही हैं !!
मुझे इस बात की भी बहुत फिक्र होती है कि जब लोग यह बताते हैं कि उन के बच्चे दालों, सब्जियों से दूर भागते हैं ---- यह अपने आप में एक बहुत ही ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात है --- यह एक ऐसी बात है कि जिस के लिये इन बच्चों के मां-बाप को शोक मनाना चाहिये क्योंकि ऐसे अधिकांश केसों में ऐसा होता है कि इस तरह के बच्चे बड़े होकर भी फिर पिज़्जा, बर्गर, हॉट-डॉग, हाका-नूडल्स पर ही पलते हैं और तरह तरह की शारीरिक व्याधियों के शिकार हुये रहते हैं।
हमारे सारे स्वाद बचपन में ही डिवेल्प होते हैं ----इसलिये यह बहुत ही ज़रूरी है कि हम बच्चों में सब दालों सब्जियों को स्वाद डिवेल्प करवायें। मुझे याद है कि मैं बचपन में केवल करेला खाने में थोड़ा नाटक किया करता था ----इतना बड़ा होने के बाद भी मुझे करेला कभी भी अच्छा नहीं लगा -----कभी कभी एक-दो खा तो लेता हूं लेकिन बस मजबूरी में।
बच्चे स्कूल की कैंटीन से जंक-फूड लेकर खाते रहते हैं ----कुछ अच्छे स्कूलों में तो अब कैंटीनें होती ही नहीं हैं लेकिन बच्चों को घर से भी दिया जाने वाला खाना सेहतमंद होना चाहिये ----लंच-बाक्स में बिस्कुट, चिप्स, भुजिये का क्या काम !!
सोच रहा हूं कि सेहत के फंडे में जितनी बातें पाठकों से शेयर करूंगा वे सभी मैं अपने आप से भी करूंगा, दोहराऊंगा और इंटरोस्पैक्शन करने का अवसर भी मिलता रहेगा कि कहीं दीपक के तले ही अंधेरा तो नहीं है।
बहुत खूब प्रवीण जी, बहुत सही लिखा है आपने। आपने एक सामायिक मुद्दे को हमारे सामने रखा जिसे हम अक्सर नदरअंदाज कर देते है। आभार व्यक्त करता हूँ आपका, इस जानकारीं से भरे लेख को हमारे सामने रखने के लिए।
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