मैं इस विषय पर बहुत सोचता हूं कि आखिर अच्छी सेहत का फंडा है क्या। सोच विचार करने के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि सेहत के लिये कुछ बातें करने की ज़रूरत है और कुछ न करने की।
न करने वाली बातों में सब से अहम् है कि तंबाकू,गुटखे के किसी भी तरह के उपयोग से दूर रहा जाये। शराब -चाहे कितनी भी महंगी क्यों न हो और चाहे कितने ही डाक्टर कहें कि थोड़ी पीने से कुछ नहीं होता --- से पूरी तरह से दूर रहा जाए।
यह लिखते लिखते ध्यान आ रहा है कि सेहत की फंडे की जब बात करते हैं तो यह भी नहीं है कि हम लोग इन बातों से पहले से वाकिफ़ नहीं हैं -- अधिकांश बातें हम लोग पहले से जानते हैं लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि हमें इन बातों को आपस में बार बार दोहराने की ज़रूरत होती है।
कुछ दिनों पहले मैं एक इंटरव्यू लेने गया हुआ था ---वहां नॉन-मैडीकल मैंबर भी थे लेकिन वे सब बिना शक्कर वाली चाय पी रहे थे । कुछ समय बाद मेरे एक सीनियर से बात हो रही थी -बता रहे थे कि उन्होंने कभी भी दूध में चीनी नहीं डाली। शक्कर आदि की ढ़ेरों बुराईयां गिना रहे थे और मेरा बढ़ता वजन देख कर मुझे भी कह रहे थे कि तुम्हें भी मीठे पर कंट्रोल करना चाहिये।
अगर हम लोग इस तरह की छोटी छोटी बातों पर बार बार बात करते हैं तो पता नहीं किस समय किस के मन में कौन सी बात बैठ जाती है।
इसी तरह नमक के इस्तेमाल में भी बहुत ही ज़्यादा एहतियात रखने की ज़रूरत है। वरना कौन सा रोग किसी की कब धर दबोचे यह सब बिना किसी दस्तक के ही हो जाता है।
कुछ भी हो सेहत के लिये परहेज़ तो करना ही होगा, कुछ भी मुंह में डालने से पहले पूरी तरह से सचेत रहते हुये यह निर्णय करना होगा कि इस खाध्य पदार्थ में क्या क्या मिला हुआ है और इन में से किन किन इंग्रिडिऐंट्स के मिलावटी होने की पूरी पूरी आशंका है, क्या यह मेरी सेहत के लिये ज़रूरी है और क्या मैं इस के बिना रह सकता हूं ?
मुझे लगता है कि अगर हम लोग कुछ भी खाने से पहले यह सोच लें तो काफ़ी हद तक हम बहुत सा कचरा खाने से बच सकते हैं ----वैसे मैंने भी यह अप्रोच रखी हूई है और इसी कारण मैं बाज़ार की बहुत सी वस्तुओं से बचने की कोशिश कर लेता हूं।
न करने वाली बातों में सब से अहम् है कि तंबाकू,गुटखे के किसी भी तरह के उपयोग से दूर रहा जाये। शराब -चाहे कितनी भी महंगी क्यों न हो और चाहे कितने ही डाक्टर कहें कि थोड़ी पीने से कुछ नहीं होता --- से पूरी तरह से दूर रहा जाए।
यह लिखते लिखते ध्यान आ रहा है कि सेहत की फंडे की जब बात करते हैं तो यह भी नहीं है कि हम लोग इन बातों से पहले से वाकिफ़ नहीं हैं -- अधिकांश बातें हम लोग पहले से जानते हैं लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि हमें इन बातों को आपस में बार बार दोहराने की ज़रूरत होती है।
कुछ दिनों पहले मैं एक इंटरव्यू लेने गया हुआ था ---वहां नॉन-मैडीकल मैंबर भी थे लेकिन वे सब बिना शक्कर वाली चाय पी रहे थे । कुछ समय बाद मेरे एक सीनियर से बात हो रही थी -बता रहे थे कि उन्होंने कभी भी दूध में चीनी नहीं डाली। शक्कर आदि की ढ़ेरों बुराईयां गिना रहे थे और मेरा बढ़ता वजन देख कर मुझे भी कह रहे थे कि तुम्हें भी मीठे पर कंट्रोल करना चाहिये।
अगर हम लोग इस तरह की छोटी छोटी बातों पर बार बार बात करते हैं तो पता नहीं किस समय किस के मन में कौन सी बात बैठ जाती है।
इसी तरह नमक के इस्तेमाल में भी बहुत ही ज़्यादा एहतियात रखने की ज़रूरत है। वरना कौन सा रोग किसी की कब धर दबोचे यह सब बिना किसी दस्तक के ही हो जाता है।
कुछ भी हो सेहत के लिये परहेज़ तो करना ही होगा, कुछ भी मुंह में डालने से पहले पूरी तरह से सचेत रहते हुये यह निर्णय करना होगा कि इस खाध्य पदार्थ में क्या क्या मिला हुआ है और इन में से किन किन इंग्रिडिऐंट्स के मिलावटी होने की पूरी पूरी आशंका है, क्या यह मेरी सेहत के लिये ज़रूरी है और क्या मैं इस के बिना रह सकता हूं ?
मुझे लगता है कि अगर हम लोग कुछ भी खाने से पहले यह सोच लें तो काफ़ी हद तक हम बहुत सा कचरा खाने से बच सकते हैं ----वैसे मैंने भी यह अप्रोच रखी हूई है और इसी कारण मैं बाज़ार की बहुत सी वस्तुओं से बचने की कोशिश कर लेता हूं।
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