बचपन के दिनों की एक याद यह भी है कि जब कभी किसी डाक्टर के पास जाना होता तो अकसर देखा करता था कि वह लगभग हर मरीज़ को अच्छे से चैक कर रहा है, उस से दो-चार बातें कर रहा है उस की तकलीफ़ के बारे में, ज़रूरत पड़ने पर उसे कॉउच पर लिटा कर पेट एवं अन्य जांच भी करता था... इस में दो राय नहीं कि मरीज़ और डाक्टर के बीच में संवाद अलग किस्म का हुआ करता था।
अब एक जर्नल परसेप्शन सी बन चुकी है कि डाक्टर ज़्यादा बात नहीं करते.....हाथ तक लगा कर नहीं देखते। मैं इस बारे में सोचता हूं कि शायद कुछ डाक्टरों का क्लीनिकल अनुभव इतना होता है कि उन्हें मरीज़ से लंबी बातचीत की ज़रूरत ही नहीं होती, वे तुरंत मरीज़ का रोग समझ जाते हैं और नुस्खा लिख कर उसे थमा देते हैं।
लेकिन फिर भी मरीज़ की संतुष्टि होनी बहुत ज़रूरी होती है। एक तो उसे यह आभास होना लाज़मी है कि उस की सभी बातें डाक्टर ने सुन ली हैं और दूसरा यह कि डाक्टर ने उस की अच्छे से जांच कर ली है।
ऐसी भी एक धारणा बनती जा रही है कि डाक्टर लोग टेस्ट बड़े लिखते हैं......और अधिकतर डाक्टर किसी एक लैब के ही टेस्ट मानते हैं। यही नहीं, अब टेस्ट, एक्स-रे आदि भी ज़्यादा ही होने लगे हैं।
शायद हमें लगता होगा कि विभिन्न कारणों की वजह से यह समस्या हमारे जैसे देशों की ही होती होगी......लेकिन कल मैंने देखा कि अमेरिका जैसे देश में भी किस तरह से बिना किसी ज़रूरत के ही बच्चों के एक्स-रे करवाये जा रहे हैं।
आप इस लिंक पर पहुंच कर डिटेल पढ़ सकते हैं.. Many kids exposed to unneeded x-rays.
वहां पर हुए इस अध्ययन से पता चला कि लगभग 88 प्रतिशत केसों में जिन बच्चों के छाती के एक्स-रे किये गये, उन का उन बच्चों के इलाज के साथ कोई संबंध नहीं था.....कहने का अभिप्रायः यह कि उस एक्स-रे ने उन का इलाज का निर्णय करने में कुछ मदद नहीं मिली-- 88% x-rays did not influence treatment.
खर्च बढ़ने के साथ साथ बिना ज़रूरत के एक्स-रे किये जाना सेहत के लिए भी ठीक नहीं है क्योंकि इस से शरीर में रेडिऐशन्ज़ इक्ट्ठा होती रहती है जो हानिकारक है।
समस्या तो यह भारत में भी है, लेकिन इस का कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता... और इस धंधे में नीम-हकीम भी बढ़ चढ़ कर लगे हुए हैं।
इस तरह की प्रैक्टिस पर कैसे काबू पाया जाए, यह आसान काम नहीं है। कोई भी चिकित्सक किसी मरीज़ को जब कोई टेस्ट करवाने के लिए कहता है तो मरीज़ बेचारा या उस के मां-बाप कहां इतने दबंग होते हैं कि वे टेस्ट नहीं करवाएं। एक बार लिखा गया है तो टेस्ट हो कर ही रहेगा।
भारत में इस तरह की बातों के बारे में काफ़ी लिखा जा रहा है.....लेकिन कुछ होता दिख नहीं होता।
वैसे भी अगर हम अपने आप को मरीज़ का जगह पर रख कर देखें तो पाएंगे कि वह कितना मजबूर प्राणी है...उसे बिना किसी किंतु-परंतु के सारी बातें अच्छे बच्चों की तरह माननी ही हैं।
सीधी बात यह है कि इस बात का समाधान इतना आसान नहीं है, क्योंकि मैं समझता हूं कि इस तरह की प्रैक्टिस का सीधा सीधा संबंध डाक्टर के मन से भी, मार्कीट शक्तियों के प्रभाव या दबाव से भी ज़रूर होता है........इतनी इतनी महंगी करोड़ों की मशीनें ये डॉयग्नोस्टिक पर पहुंचती हैं तो उन्हें मुनाफ़े के लिए भी कुछ हद तक यह सब करना/करवाना ही पड़ता है....मुझे इस में कोई शक नहीं है।
बात वही है कि आखिर मरीज़ करे तो क्या करे........मुझे ऐसा लगता है कि सब से पहले तो यह जो नीम-हकीम हैं ना, इन के चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए। जगह जगह गांव, कसबों और बड़े शहरों में भी ये हर तरफ़ फैले हुए हैं, इन की लैब एवं एक्स-रे सैंटरों के साथ सांठ-गांठ एक दम पुख्ता होती है.(केवल इन्हीं की ही नहीं!!)......मैंने बहुत बार देखा है कि ये अपनी पर्ची पर जिस टेस्ट का नाम लिखते हैं, उस के बारे में जानना तो दूर, ये उस का नाम तक ढंग से नहीं लिख पाते। लेकिन मरीज़ का क्या है, उसे कहा गया है तो वह कैसे भी उसे करवा के ही लौटता है!!
मैं सरकारी अस्पताल में हूं ...मरीज़ मेरे को कहते हैं ना कि सिर दर्द के लिए एक सी.टी स्केन ही करवा दीजिए, पेट के िलेए अल्ट्रासाउंड, पीठ दर्द के लिए एम आर आई तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि कोई भी विशेषज्ञ यह बेहतर जानता है िक आप के लिए किस टेस्ट की ज़रूरत है। और मैं उन्हें यह भी कहता हूं कि बाहर प्राईवेट सेंटर में जा कर ऐसा कभी मत कहना अपनी इच्छा से कि मुझे यह टेस्ट करवाना है......यकीन मानिए अधिकतर निजी डॉयग्नोस्टिक केंद्रो में तुरंत हो जाएगा.......लेकिन क्या उस की ज़रूरत थी भी, यह केवल एक अनुभवी एवं प्रशिक्षित चिकित्सक ही बता सकता है।
वैसे मैं इस विषय पर लिखता तो जा रहा हूं लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि क्या इस तरह की प्रैक्टिस पर कंट्रोल कर पाना आसान काम है!..और मुझे नहीं लगता कि विभिन्न कारणों की वजह से यह सब इतनी आसानी से कंट्रोल हो पाएगा।
वैसे एक सुझाव है कि किसी भी टेस्ट के बारे में सटीक जानकारी पाने के लिए आप लैबटैस्टआनलाईन नामक साईट को भी विज़िट कर सकते हैं, यह रहा उस का लिंक... http://labtestsonline.org/
लैब टेस्टों की बात हुई तो ध्यान आ गया ....कल सुबह मैं भ्रमण कर रहा था, एफएम सुन रहा था.....किसी लैब का विज्ञापन चल रहा कि सर्दीयों का मौसम आ गया है..बहुत सी बीमारियां लेकर आया है यह मौसम इसलिए अपनी सभी जांचें एक पैकेज के रूप में घर बैठे करवाएं.......रक्त का सैंपल हम लोग घर से ही ले लेंगे। मुझे ध्यान आया कि यह सर्दी के मौसम से लोगों को डरा रहे हैं और देश के प्रधानमंत्री रेडियो पर मन की बात में सर्दी को स्वास्थ्य-वर्धक मौसम कह कर पुकारते हैं।
सोचने वाली बात है कि सब कुछ बिक रहा है........बस खरीददार थोड़ा सचेत रहें, शायद इस से ही हालात कुछ बदल जाएं....काश!!
मौसम की बात छिड़ी तो अचानक मौसमों की बात करते इस गीत का ध्यान आ गया......सुबह सुबह आप भी सुनिए...पतझड़-सावन-बसंत-बहार... एक बरस के मौसम चार..पांचवा मौसम प्यार का......ये लोग बढ़िया बातें सुना रहे हैं..