अमृतसर जाने का मौका मिला -- स्कूल का दोस्त रमेश -- लंबे समय तक हम लोग गप्पबाजी करते रहे। उसे सूचना के अधिकार कानून के बारे में काफी जानकारी है .. अकसर वह मेरे साथ अपने अनुभव शेयर करता रहता है।
एक बहुत ही अजीब सी बात उस से पता चली कि उस के बहुत से काम रूकने लगे हैं...अपने विभाग में भी उस के काम नहीं हो रहे -- कारण वही चूतिया सा एक संकीर्णता मानसिकता को दर्शाता हुआ कारण कि वह बहुत आरटीआई लगाता है।
और बताने लगा कि उसी के विभाग के बॉस ही उस के बारे में यह बात फैलाने लगे हैं -- कह रहा था कि सारे एक जैसे नहीं है लेकिन हर विभाग में एक दो तो होते हैं जो ......गुलामी (समझ गये कि नहीं) में एक दम फिट होते हैं ..बताने लगा कि वही लोग उस के बारे में कुछ लोगों को हर वक्त कहते रहते हैं कि यह आर टी आई करता है।
जब उस ने अचानक यह कहा कि क्या आरटीआई लगाना किसी को गाली देना है तो मुझे एक बार तो उस की बात सुन कर झटका सा लगा कि यह ऐसा क्यों कह रहा है। लेकिन वह भी अपनी धुन का पक्का है ...बताने लगा कि ये लोग तरह तरह की च..चालाकी( अभी भी नहीं समझे, धत्त तेरे की..) करके उस के इरादों से उसे डगमगा नहीं सकते।
मैं भी टकटकी लगा कर उस की बातें सुन रहा था ...बड़ा अजीब सा लग रहा था कि अगर कोई आरटीआई पूछ रहा है तो यह भी उस का एक अधिकार है जो वह इस्तेमाल कर रहा है, इस से जो डर रहा है वह क्यों डर रहा है, वह कईं किस्से बताने लगा।
उस ने मुझे कईं किस्से सुनाए जहां पर उस के बहुत से काम बनते बनते बिगड़ गए, केवल इसलिए कि उस से पहले उस की आरटीआई के चर्चे उस काम करने वाले बंदे तक पहुंचा दिए गये ---और वह उस चश्मे वाले बंदे का नाम भी मुझे बताने लगा .. दोस्त मिले थे बहुत दिनों बाद और बाद में उस ने उस के बारे में क्या क्या बताया, वह मैं यहां नहीं लिख सकता।
अच्छा एक और बात, रमेश ने जितने भी आरटीआई आवेदन लगाए अपने लिए ही लगाए .... अपनी सर्विस के बारे में कुछ पूछना क्या कोई ज़ुर्म करने जैसा है, नहीं ना तो फिर वह यही प्रश्न मेरे से पूछने लगा कि फिर आरटीआई के नाम से ही कुछ लोगों की ....ने क्यों लगती है, इस का सीधा मतलब है कि यह अपने आप में एक सक्षम हथियार है।
बहरहाल, हमारी डिस्कशन तो लंबी चलती है जिस में मैंने भी अपने आरटीआई अनुभव सांझे किये ... कुछ सुना बहुत कुछ सुनाया ...लेकिन अंत में एक बात अच्छे से समझ में आ गई ---जिन कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों के कारण ऐसा बढ़िया कानून बन गया उन को कोटि कोटि नमन....
पूरन के ढाबे पर खाने का लुत्फ़ उठाते उठाते उस ने मुझे एक बात ज़रूर कह दी .... कहने लगा कि यार आज की तारीख नोट कर लेना .. मैं पूछा क्या मतलब .... बताने लगा कि पहले तो वह था आरटीआई यूज़र लेकिन आज से एक आरटीआई एक्टिविस्ट तैयार हो गया.........शायद मैं उस की बात समझ नहीं पाता .. उस ने खुलासा किया कि वह अब दूसरों के लिए अर्थात् समाज की भलाई के लिए इस कानून का उपयोग करेगा।
मैं उस की बातें सुना जा रहा था ..सुने जा रहा था ...... और बहुत कुछ अपने आप से भी पूछ रहा था ....बाकी फिर ...
संगति का असर देखिए -- मैंने भी वापिस आते ही अपने इस आरटीआई ब्लॉग को खोला और इसे संवारने में लग गया हूं ...कोशिश करूंगा कि इस पर निरंतर लिखूं ... और पूरी इमानदारी से लिखूं ..अभी समझ नहीं पा रहा हूं कि इसे हिंदी में ही रहने दूं या फिर इंगलिश में आरटीआई पर लिखना शुरू करूं ...........लेकिन मैं उस दोस्त की बातों से इतना प्रभावित हुआ हूं कि मुझे भी लगता है कि मैं भी आर टी आई यूज़र से पदोन्नत हो कर .................. कुछ नहीं यार, कुछ नहीं ... यह गीत सुनिए जिस का ध्यान आ गया .... समझने वाले तो समझ ही जाएंगे ...............
एक बहुत ही अजीब सी बात उस से पता चली कि उस के बहुत से काम रूकने लगे हैं...अपने विभाग में भी उस के काम नहीं हो रहे -- कारण वही चूतिया सा एक संकीर्णता मानसिकता को दर्शाता हुआ कारण कि वह बहुत आरटीआई लगाता है।
और बताने लगा कि उसी के विभाग के बॉस ही उस के बारे में यह बात फैलाने लगे हैं -- कह रहा था कि सारे एक जैसे नहीं है लेकिन हर विभाग में एक दो तो होते हैं जो ......गुलामी (समझ गये कि नहीं) में एक दम फिट होते हैं ..बताने लगा कि वही लोग उस के बारे में कुछ लोगों को हर वक्त कहते रहते हैं कि यह आर टी आई करता है।
जब उस ने अचानक यह कहा कि क्या आरटीआई लगाना किसी को गाली देना है तो मुझे एक बार तो उस की बात सुन कर झटका सा लगा कि यह ऐसा क्यों कह रहा है। लेकिन वह भी अपनी धुन का पक्का है ...बताने लगा कि ये लोग तरह तरह की च..चालाकी( अभी भी नहीं समझे, धत्त तेरे की..) करके उस के इरादों से उसे डगमगा नहीं सकते।
मैं भी टकटकी लगा कर उस की बातें सुन रहा था ...बड़ा अजीब सा लग रहा था कि अगर कोई आरटीआई पूछ रहा है तो यह भी उस का एक अधिकार है जो वह इस्तेमाल कर रहा है, इस से जो डर रहा है वह क्यों डर रहा है, वह कईं किस्से बताने लगा।
उस ने मुझे कईं किस्से सुनाए जहां पर उस के बहुत से काम बनते बनते बिगड़ गए, केवल इसलिए कि उस से पहले उस की आरटीआई के चर्चे उस काम करने वाले बंदे तक पहुंचा दिए गये ---और वह उस चश्मे वाले बंदे का नाम भी मुझे बताने लगा .. दोस्त मिले थे बहुत दिनों बाद और बाद में उस ने उस के बारे में क्या क्या बताया, वह मैं यहां नहीं लिख सकता।
अच्छा एक और बात, रमेश ने जितने भी आरटीआई आवेदन लगाए अपने लिए ही लगाए .... अपनी सर्विस के बारे में कुछ पूछना क्या कोई ज़ुर्म करने जैसा है, नहीं ना तो फिर वह यही प्रश्न मेरे से पूछने लगा कि फिर आरटीआई के नाम से ही कुछ लोगों की ....ने क्यों लगती है, इस का सीधा मतलब है कि यह अपने आप में एक सक्षम हथियार है।
बहरहाल, हमारी डिस्कशन तो लंबी चलती है जिस में मैंने भी अपने आरटीआई अनुभव सांझे किये ... कुछ सुना बहुत कुछ सुनाया ...लेकिन अंत में एक बात अच्छे से समझ में आ गई ---जिन कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों के कारण ऐसा बढ़िया कानून बन गया उन को कोटि कोटि नमन....
पूरन के ढाबे पर खाने का लुत्फ़ उठाते उठाते उस ने मुझे एक बात ज़रूर कह दी .... कहने लगा कि यार आज की तारीख नोट कर लेना .. मैं पूछा क्या मतलब .... बताने लगा कि पहले तो वह था आरटीआई यूज़र लेकिन आज से एक आरटीआई एक्टिविस्ट तैयार हो गया.........शायद मैं उस की बात समझ नहीं पाता .. उस ने खुलासा किया कि वह अब दूसरों के लिए अर्थात् समाज की भलाई के लिए इस कानून का उपयोग करेगा।
मैं उस की बातें सुना जा रहा था ..सुने जा रहा था ...... और बहुत कुछ अपने आप से भी पूछ रहा था ....बाकी फिर ...
संगति का असर देखिए -- मैंने भी वापिस आते ही अपने इस आरटीआई ब्लॉग को खोला और इसे संवारने में लग गया हूं ...कोशिश करूंगा कि इस पर निरंतर लिखूं ... और पूरी इमानदारी से लिखूं ..अभी समझ नहीं पा रहा हूं कि इसे हिंदी में ही रहने दूं या फिर इंगलिश में आरटीआई पर लिखना शुरू करूं ...........लेकिन मैं उस दोस्त की बातों से इतना प्रभावित हुआ हूं कि मुझे भी लगता है कि मैं भी आर टी आई यूज़र से पदोन्नत हो कर .................. कुछ नहीं यार, कुछ नहीं ... यह गीत सुनिए जिस का ध्यान आ गया .... समझने वाले तो समझ ही जाएंगे ...............