रिप्ड जीन्स के बारे में पता तो यही कोई १०-१५ बरस पहले लग गया था ...इस पहने हुए जवान लोग दिखने लगे थे ...लेकिन एक बार मैं दंग रह गया था ...यही कोई आठ दस बरस पहले की बात है ...एक ५-६ साल का बच्चा आया अपनी मां के साथ ....बच्चों को सजने-संवरने का शौक होता ही है ...हम भी उस उम्र में अपने ज़माने में बीस पैसे की वो मोमजामे वाली ऐनक लगा कर पता नहीं खुद को क्या समझने लगते थे ..समझें भी क्यों ने ....वक्त ही ऐसा होता है वो... हां, तो उस छोटे लड़के ने बड़े गॉगल-शॉगल लगाए हुए थे, जीन और टीशर्ट , कैप भी पहनी थी और पूरी फार्म में था ...अचानक मेरी नज़र उस की जीन्स की तरफ़ गई जो मुझे एक दो जगह से फटी दिखी...
यह तुम्हारी जीन्स कैसे फट गई -मैंने उसे पूछा.
डा.साहब, यह फटी नहीं है, इस डैमेज जीन्स को खुद इस की फरमाईश पर खरीदा गया है , उस की मां ने राज़ खोल दिया।
मुझे उस दिन बड़ी हैरानी हुई कि पांच छः साल का बच्चा भी डैमेज जीन्स पहन रहा है ...और इतने सालों में वाट्सएप पर भी बहुत से वीडियो आते जाते रहते हैं कि बुज़ुर्ग दादी अपने पोते को कुछ पैसे दे कर कहती है कि लाडले, जा, जा के अच्छी से पतलून ले ले ...यह देख कैसे फट चुकी है...। फिर वह दादी को समझाता है कि बेबे, यह फटी नहीं है, इसे पहनने का रिवाज़ है...
वक्त के साथ युवाओं के रोल-मॉडल भी बदल रहे हैं...जो तस्वीर दो दिन पहले अखबार में थी ...उसमें तो पूरी थी, लेकिन यहां इतनी ही लगाना मुनासिब जान पड़ा.... |
इन रिप्ड जीन्स का लफड़ा एक और भी है.....इन्हें पहन कर अमीर तो और भी रईस दिखने लगता है, लेकिन एक औसत आदमी बेचारा मांगने वाला कोई फरियादी टाइप दिखने लगता है ...अमीर, रईस लोगों का तो पहनना सब की समझ में आ जाता है कि यह कूल, हॉट, मॉड...जो भी कोई समझ ले, वह दिखने के लिए पहनते हैं..और जीन्स जितनी ज़्यादा रिप्ड होगी पहनने वाले का रूआब, रुतबा, ईज्ज़त समाज में, मीडिया में उतनी ही ज़्यादा बढ़ जाती है ..है कि नहीं...अब देखिए दो दिन पहले एक सिने-तारिका की फोटो मैंने अखबार में जब देखी तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा, क्योंकि अकसर मुंबई के लोकल स्टेशनों पर, और दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे फेशनेबुल कपड़े पहने मॉड लोग दिख जाते हैं.....दिख जाते हैं तो भई दिख जाते हैं, क्या करे कोई आंखों पर पट्टी थोड़े न बांध ले...
फैशन के लिए हम कुछ भी करेगा....शौक की कोई कीमत नहीं होती... |
लेकिन कईं बार कुछ ऐसे लोग भी रिप्ड जीन्स पहने दिख जाते हैं जिन्हें देख कर लगता है कि इन्होंने फेशन के लिए पहनी है या मजबूरी में .....बस, लफड़ा इन केसों में ही होता है जब समझ नहीं आती, लेकिन वही बात है कुछ लोगों को बेकार में सिरदर्दी मोल लेने की आदत होती है, क्या करना बेकार के इस हिसाब-किताब के चक्कर में पड कर ...तुम्हारी राह चलो, वह उस की ज़िदगी है, उसे जी लेने दो ...
यही कोई पांच छः साल पहले की बात है, मैं एक दिन ज़ारा के शो रूम में गया बेटों के साथ...वहां मैं एक फटी-पुरानी टी-शर्ट देख कर हैरान रह गया...उसे देख कर हैरानगी की बात उस का कटा-फटा होना न था, बल्कि उस पर ३५०० रूपये को टैग लगा हुआ था...जिस तरह की वह टी-शर्ट थी अकसर उस तरह की टी-शर्ट लोग घर में फटका लगाने के लिए भी इस्तेमाल न करें....ऐसा मैं समझता हूं तो समझता फिरूं ...लेकिन शौक की कोई कीमत नहीं होती ...मैं भी तो सौ साल पुरानी विंटेज किताबे, डेढ़ सौ साल पुरानी डिक्शनरीयां, ६० साल पुराने मैगज़ीन और नावल ढूंढता रहता हूं ..कुछ तो चीथड़े हो चुके होते हैं लेकिन खरीदता हूं न मुंह मांगे दामों पर क्योंकि वे मेरे काम की चीज़े ंहैं ...इसी तरह ये चीथड़े दिखने वाले कपड़े भी किसी के कितने काम के होंगे, मैं क्यों इस सब के चक्कर में पढ़ कर अपना सिर दुःखाने का जुगाड़ कर रहा हूं ....और वह भी सुबह-सवेरे।
जान-बूझ कर अच्छी भली पतलून को फड़वा लिया बंदे ने फैशन के चक्कर में......दो दिन पहले दिखा बांदरा स्टेशन पर ... |
रिप्ड जीन्स के बारे में यह टुकड़ा लिखने से पहले मैंने सोचा चलो गूगल करता हूं .....मुझे कुछ गलती लगी मैंने लिखा रिग्ड - Rigged jeans - लेकिन गूगल बहुत समझदार है, उसने बराबर मुझे रिप्ड जीन्स का पन्ना खोल कर दे दिया ..कुछ सवाल जवाब भी थे ...एक दो ही पढ़े, बाकी न पढ़ पाया, अगर वे भी पढ़ने लग जाता तो मुमकिन था यह पीस लिखने से रह जाता या फिर आज ड़यूटी पर बेटे की कोई रिप्ड जीन्स पहन कर ही निकल पड़ता ...वैसे एक बार मैंने उसे पहना था घर ही में...सच में उस दिन समझ आई कि ये सब जवानों के काम हैं, बूढ़ी टांगों और घिसे-पिटे घुटनों पर तो ये रिप्ड जीन्स बहुत भद्दी दिखती हैं, कूल-हॉट तो क्या, बंदा सदियों का बीमार दिखने लगता है, मैंने उसी वक्त उसे उतार के परे रख दिया....मैं उस दिन बच्चो ं से मज़ाक कर रहा था कि अब मैं भी यह पहन कर जाया करूंगा ....और वो जैसे हैं ..हां, हां, डैड, पहनो ज़रूर पहनो, यू लुक कूल इन दिस....😎..... i know their satire!!
क्या करें, अंकल, वक्त के साथ कदम के साथ कदम मिला कर चलना पड़ता है ... |
अच्छा, गूगल पर जो दो सवाल जवाब देखे, उसमें लिखा था कि लोग इन्हें पहनते क्यों है, जवाब लिखा था, कूल दिखने के लिए और दुनिया को यह बताने के लिए कि वह कैसे दिखते हैं, उन्हें इस की परवाह नहीं है....लेकिन पता नहीं मुझे लगता है कि कुछ और दिखने के लिए भी लोग इसे पहनते होंगे ...कूल, हॉट, अल्ट्रा-मॉड, हिप दिखने के लिए ....इन सब का एक ही मतलब होगा.....आज के दौर की स्लैंग ...
फेशन, शौक से मुझे याद आया हमारे परिवार का नन्हा सा सदस्य (जिस की फोटो यह है) इन दिनों मॉडलिंग में अपनी किस्मत आजमा रहा है ....इसे देखते ही लगता है ..."इन परिदों को भी मिलेगी मंज़िल एक दिन, ये हवा में खुले इन के पंख बोलते हैं..."
पोस्ट को बंद करते वक्त यह है मेरा आज का विचार ...जो मन करे पहनिए...फैशन करिए, कूल दिखिए और इस गर्मी उमस के मौसम में कूल बने भी रहिए...ज़िंदगी ने मिेलेगी दोबारा.....मुझे नहीं पता वह पंजाबी कहावत कैसे बनी ...पाईये जग भांदा ते खाईए मन भांदा....(पहनिए वह जो दुनिया को अच्छा लगे, खाइए वह जो आप को अच्छा लगे).....कोई क्यों न पहने वह सब जो उसे खुशी दे, उसे आराम दे, उस के मूड को अच्छा रखे .....खुश रहिए, मस्त रहिए ..रईसी के जलवे अलग हैं, लेकिन आम बंदे के लिए मेरी सलाह यही है कि दूसरे की रिप्ड देख कर अपनी अच्छी भली पतलून को कटवा-फड़वा लेना ठीक नहीं जान पड़ता ....इस से ईश्वर नाराज़ होता है, उस से वह समझता है हम नाशुक्रे हैं.....जैसे जिन लोगों के पास खाने को सब कुछ है, वे छरहरे दिखने के लिए क्या क्या नहीं करते ताकि भूख न लगे, उस के लिए दवाईयां तक ले लेते हैं , भूख अगर लगे भी तो कम ..ताकि वज़न न बढ़े......उन सब के लिए मैं इतना ही कहूंगा कि भूख लगना भी ईश्वर की सब से बड़ी नेहमत है ....जब कभी परिवार में किसी की भूख गायब हो जाती है न तो सारे कुनबे की भूख मर जाती है ...तब इस की क़ीमत पता चलती है......मैंने भी अपने परिवार में दो लोगों की भूख मरती देखी है ...तीन महीने नहीं टिक पाए थे उस के बाद ....उन को देख हमारी भी भूख मरने लगती थी ...इसलिए हमें ज़रूरत है हर वक्त शुकराने में रहने की ......जो मिल रहा है, खाने को पहनने को ..उसे खुशी खुशी पहनें ...सब से ज़्यादा ज़रूरी सांसे हैं, टांगे हैं .....उन को कैसे ढक रहे हैं या नहीं भी ढक पा रहे हैं, यह कुछ मायने नहीं रखता ....ज़िंदगी का जश्न उन सब चीज़ों के साथ मनाना हमें सीखना होगा जो हमें वरदान के रूप में मिली हुई हैं...आंखें, दिल, चलना-फिरना ......और भूख ....
इस रिप्ड जीन्स की बातों को दिल पर मत लेना यार, जो पहनना है पहनो, मैं भी वही पहनता हूं जो मुझे खुशी देता है, आज सुबह कुछ लिखने के लिए नहीं था, इसलिए यह सब लिख दिया....बस, यूं ही ....
बदलते फैशन के दौर में आपकी टिप्पणी कारगर है, समाज में फैलते नकारात्मक वेशभूषा को हम नजरंदाज नहीं कर सकते, सोशल ऐप्स पर आजकल अश्लिल हरकतें बढ़ गई है। इसे कैसे रोक सकते हैं,इसपर कटाक्ष करने की चेष्टा करता हूं
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