कुछ साल पहले यमुनानगर (हरियाणा) में हम लोगों के प्रवास के दौरान मैं अकसर बहुत ही बुज़ुर्ग हो चले एक इंसान को अकसर देखा करता ...जिनकी पीठ पूरी तरह से आगे की तरफ़ झुक चुकी थी ..लेकिन वह सुबह-शाम अपने बाज़ार के सारे काम खुद ही निपटाते दिखते..कैसे? वह एक साईकिल का सहारा लेकर उस के सहारे पैदल चल कर ही सब कुछ खरीदते दिखते...
मुझे ध्यान है यहां लखनऊ में भी मैंने कईं बार देखा कि बाज़ार में कभी कभी बुज़ुर्ग को साईकिल का सहारा लेकर अपनी खरीदारी करते हुए..
कईं बार सुबह टहलते हुए कोई बुज़ुर्ग महिला या पुरूष दिख जाता है जो वाकर की मदद से धीरे धीरे टहल रहे होते हैं...मुझे अपना समय याद आ जाता है ... १२ साल पहले मेरा फिश्चूला का जब आप्रेशन हुआ तो मुझे भी चिकित्सक ने रात के खाने के बाद थोड़ा टहलने की हिदायत दी ...और अस्पताल में दाखिल रहते हुए जब मैं रात को नीचे १०-१५ मिनट नीचे टहलने जाता तो मुझे कितना अच्छा लगता, यह मैं ब्यां भी नहीं कर सकता.. मुझे बस इसी बात का इंतज़ार रहता कि कब मैं ठीक से अपनी चाल चल पाऊंगा...
लेकिन हम लोग ठीक ठाक होने पर कैसे सब कुछ भूल जाते हैं..और सेहत को तो ऐसे समझते हैं जैसे कि हम लोगों को १०० साल की गारंटी मिल चुकी है ..नहीं, ऐसा नहीं है...
मुझे याद आ रहा है यहां लखनऊ में अपनी कॉलोनी में एक बुज़ुर्ग वाकर की मदद से टहला करते थे ..शायद अधरंग का शिकार थे ...साथ में उन की मदद के लिए एक हेल्पर भी होता था ...और कुछ महीनों के बाद उन की चाल के साथ साथ उन का चेहरा भी निखरने लगा था...
मैं अकसर यही बात शेयर करता हूं कि किसी की कैसी भी हालत हो वह अपने सामर्थ्य के अनुसार उठे, चले, भागे, दौड़े ....तभी बात बनने वाली है ..केवल पढ़ने-लिखने से कहां कुछ होता है ... ज्ञान तो हम सारा दिन वाट्सएप पर लेते-देते ही रहते हैं, उसमें क्या है! कल वाट्सएप पर किसी ने अखबार की एक कतरन शेयर की गई जिस में विश्वविख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डा त्रेहन का एक बीवियों को एक मशविरा छपा था कि वे अपने पति को तब तक नाश्ता न दें जब तक वह ५५ मिनट तक कसरत न कल लें...
आज भी सुबह मैंने लखनऊ की जेल रोड़ पर जाते हुए इस बुज़ुर्ग को ऐसे साईकिल को थामे हुए चलते देखा तो मुझे पहली बार तो दूर से देखने पर यही लगा कि पैंचर हो गई होगी साईकिल ..लेकिन फिर उन के स्पोर्टस शूज़ आदि देख कर लगा कि यह भी टहलते हुए एक सहारे के तौर पर ही इस साईकिल को इस्तेमाल कर रहे हैं..
रहा नहीं गया बिना पूछे...उन के पास रूक कर पूछ ही लिया कि साईकिल में खराबी है कोई?..."नहीं, नहीं, वैसे ही टहल रहा हूं." उन से अपेक्षित जवाब मिलने पर मैं इतना कह कर अागे निकल गया... "बहुत अच्छा, टहलना तो बहुत बढ़िया बात है!"
आगे जाते हुए मैं यही सोच रहा था कि जब भी मुझे ऐसा कोई शख्स मिल जाता है सड़क पर आते जाते तो मैं उस की फोटो खींच कर अपने ब्लॉग पर शेयर अवश्य करता हूं ...एक रिमांइडर की तरह ...और बस अाप को ही याद करवाने के लिए ही नहीं, अपने आप को भी याद दिलाने के लिए भी कि जब तो हाथ-पांव चल रहे हैं, इन को अच्छे से इस्तेमाल कर लेने में ही समझदारी है ...वरना बाद में तो वही बात है ...अब पछताए होत क्या...
पुरानी आदतें बदलनीं, नईं अच्छी आदतों को ओढ़ना....बहुत मुश्किल काम है ...इसलिए छोटी छोटी बातों के बारे में सचेत रहिए...मेरी तरह नहीं कि कईं महीनों से साईक्लिंग बस इस लिए बंद है क्योंकि साईकिल में हवा नहीं है, इस से ज़्यादा बेवकूफ़ाना बहाना भी कोई हो सकता है क्या अपने शरीर को कसरत से दूर रखने के लिए!
देखता हूं आज कुछ करता हूं...मानना ना मानना आप के अपने हाथ में है, जो भी हो, इस तरह के बुज़ुर्ग राह में चलते-फिरते शायद हमें कुछ भूले हुए पाठ याद दिलवा देते हैं...
जाते जाते एक बात याद आ गई ...सरकारें बदलती हैं तो वफ़ादार भी बदल जाते हैं...नियम कायदे बहुत कुछ बदलता है ..पुरानी सरकारों के फैसलों के निर्णयों की समीक्षा होने लगती है, उन के घोटालों की खोजबीन होने लगती है..लेकिन शायद आटे के साथ घुन भी पिस जाता है ...कुछ दिन पहले खबर थी कि यूपी में पिछले शासन-काल के दौरान जो सड़कों के किनारे साईक्लिंग पथ बने हैं ..Cycle Track.. बने हैं, उन की समीक्षा भी होगी कि क्या उन्हें रखा जाएगा या नहीं....मेरा व्यक्तिगत विचार है कि चाहे साईकिल किसी एक पार्टी का चुनाव-चिन्ह है, लेकिन फिर भी इन साईकिल ट्रैकों को इस रद्दोबदल की आंच से दूर से रहने दिया जाए....लंबे अरसे के बाद देश में साईकिल चलाने वालों के बारे में भी कुछ हुआ है ...बेहतर होगा इस से प्रेरणा लेकर यह काम आगे बढ़ाया जाए.. वरना एक बार समीक्षा की खबरें तो बाहर आ ही गई हैं ...और वैसे भी ये जो सड़कों-रास्तों पर कब्जा कर के बैठ जाते हैं..उन्हें तो बस एक इशारा ही काफ़ी होता है!
मुझे ध्यान है यहां लखनऊ में भी मैंने कईं बार देखा कि बाज़ार में कभी कभी बुज़ुर्ग को साईकिल का सहारा लेकर अपनी खरीदारी करते हुए..
कईं बार सुबह टहलते हुए कोई बुज़ुर्ग महिला या पुरूष दिख जाता है जो वाकर की मदद से धीरे धीरे टहल रहे होते हैं...मुझे अपना समय याद आ जाता है ... १२ साल पहले मेरा फिश्चूला का जब आप्रेशन हुआ तो मुझे भी चिकित्सक ने रात के खाने के बाद थोड़ा टहलने की हिदायत दी ...और अस्पताल में दाखिल रहते हुए जब मैं रात को नीचे १०-१५ मिनट नीचे टहलने जाता तो मुझे कितना अच्छा लगता, यह मैं ब्यां भी नहीं कर सकता.. मुझे बस इसी बात का इंतज़ार रहता कि कब मैं ठीक से अपनी चाल चल पाऊंगा...
लेकिन हम लोग ठीक ठाक होने पर कैसे सब कुछ भूल जाते हैं..और सेहत को तो ऐसे समझते हैं जैसे कि हम लोगों को १०० साल की गारंटी मिल चुकी है ..नहीं, ऐसा नहीं है...
मुझे याद आ रहा है यहां लखनऊ में अपनी कॉलोनी में एक बुज़ुर्ग वाकर की मदद से टहला करते थे ..शायद अधरंग का शिकार थे ...साथ में उन की मदद के लिए एक हेल्पर भी होता था ...और कुछ महीनों के बाद उन की चाल के साथ साथ उन का चेहरा भी निखरने लगा था...
मैं अकसर यही बात शेयर करता हूं कि किसी की कैसी भी हालत हो वह अपने सामर्थ्य के अनुसार उठे, चले, भागे, दौड़े ....तभी बात बनने वाली है ..केवल पढ़ने-लिखने से कहां कुछ होता है ... ज्ञान तो हम सारा दिन वाट्सएप पर लेते-देते ही रहते हैं, उसमें क्या है! कल वाट्सएप पर किसी ने अखबार की एक कतरन शेयर की गई जिस में विश्वविख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डा त्रेहन का एक बीवियों को एक मशविरा छपा था कि वे अपने पति को तब तक नाश्ता न दें जब तक वह ५५ मिनट तक कसरत न कल लें...
आज भी सुबह मैंने लखनऊ की जेल रोड़ पर जाते हुए इस बुज़ुर्ग को ऐसे साईकिल को थामे हुए चलते देखा तो मुझे पहली बार तो दूर से देखने पर यही लगा कि पैंचर हो गई होगी साईकिल ..लेकिन फिर उन के स्पोर्टस शूज़ आदि देख कर लगा कि यह भी टहलते हुए एक सहारे के तौर पर ही इस साईकिल को इस्तेमाल कर रहे हैं..
रहा नहीं गया बिना पूछे...उन के पास रूक कर पूछ ही लिया कि साईकिल में खराबी है कोई?..."नहीं, नहीं, वैसे ही टहल रहा हूं." उन से अपेक्षित जवाब मिलने पर मैं इतना कह कर अागे निकल गया... "बहुत अच्छा, टहलना तो बहुत बढ़िया बात है!"
इस बुज़ुर्ग के एक घुटने में बहुत दिक्कत लग रही थी...लेकिन फिर भी टहलना जारी है ! |
आगे जाते हुए मैं यही सोच रहा था कि जब भी मुझे ऐसा कोई शख्स मिल जाता है सड़क पर आते जाते तो मैं उस की फोटो खींच कर अपने ब्लॉग पर शेयर अवश्य करता हूं ...एक रिमांइडर की तरह ...और बस अाप को ही याद करवाने के लिए ही नहीं, अपने आप को भी याद दिलाने के लिए भी कि जब तो हाथ-पांव चल रहे हैं, इन को अच्छे से इस्तेमाल कर लेने में ही समझदारी है ...वरना बाद में तो वही बात है ...अब पछताए होत क्या...
पुरानी आदतें बदलनीं, नईं अच्छी आदतों को ओढ़ना....बहुत मुश्किल काम है ...इसलिए छोटी छोटी बातों के बारे में सचेत रहिए...मेरी तरह नहीं कि कईं महीनों से साईक्लिंग बस इस लिए बंद है क्योंकि साईकिल में हवा नहीं है, इस से ज़्यादा बेवकूफ़ाना बहाना भी कोई हो सकता है क्या अपने शरीर को कसरत से दूर रखने के लिए!
देखता हूं आज कुछ करता हूं...मानना ना मानना आप के अपने हाथ में है, जो भी हो, इस तरह के बुज़ुर्ग राह में चलते-फिरते शायद हमें कुछ भूले हुए पाठ याद दिलवा देते हैं...
जाते जाते एक बात याद आ गई ...सरकारें बदलती हैं तो वफ़ादार भी बदल जाते हैं...नियम कायदे बहुत कुछ बदलता है ..पुरानी सरकारों के फैसलों के निर्णयों की समीक्षा होने लगती है, उन के घोटालों की खोजबीन होने लगती है..लेकिन शायद आटे के साथ घुन भी पिस जाता है ...कुछ दिन पहले खबर थी कि यूपी में पिछले शासन-काल के दौरान जो सड़कों के किनारे साईक्लिंग पथ बने हैं ..Cycle Track.. बने हैं, उन की समीक्षा भी होगी कि क्या उन्हें रखा जाएगा या नहीं....मेरा व्यक्तिगत विचार है कि चाहे साईकिल किसी एक पार्टी का चुनाव-चिन्ह है, लेकिन फिर भी इन साईकिल ट्रैकों को इस रद्दोबदल की आंच से दूर से रहने दिया जाए....लंबे अरसे के बाद देश में साईकिल चलाने वालों के बारे में भी कुछ हुआ है ...बेहतर होगा इस से प्रेरणा लेकर यह काम आगे बढ़ाया जाए.. वरना एक बार समीक्षा की खबरें तो बाहर आ ही गई हैं ...और वैसे भी ये जो सड़कों-रास्तों पर कब्जा कर के बैठ जाते हैं..उन्हें तो बस एक इशारा ही काफ़ी होता है!
बढ़िया और आवश्यक लेख ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सतीश जी, हमें तो आप के जागिंग से जुड़े अनुभवों से भरी एक किताब का इंतज़ार है ...मैं तो उसे अपने मरीज़ों को भी पढ़वाऊंगा ...लगे रहिए... आप दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत हैं...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद..
आपने सही कहा...थोड़ा बहुत व्यायाम जीवन में बहुत जरूरी है और चलना सबसे सस्ता और सुलभ व्यायाम है... न किसी विशेष मशीन की जरूरत होती है और न ही किसी विशेष जगह की... सुन्दर लेख.
जवाब देंहटाएंमेरे घुटने में दर्द रहता है। ऑस्टियोअर्थराइटिस। अत: रोज जितना पैदल चलना चाहिये - लगभग 45-80मिनट; उतनी देर मैं साइकिल चला रहा हूं। आगे जब उसमें भी दिक्कत होने लगेगी, तब नया जुगाड़ तलाशूंगा।
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आपको पढ़ा. आप सही कह रहे हैं. व्यायाम, चाहे सैर ही सही कभी नहीं छोड़ना चाहिए.
जवाब देंहटाएंचलना एक अच्छा व्यायाम है, अफ़सोस कार्य में व्यस्तता के चलते यह प्रायः नियमित नहीं हो पाता..यह भी हमारे अति-विकास का परिणाम है ...कभी कभी मुझे लगता है कि जबसे घरों में टायलेट बनने लगे हैं हमारी सुबह सुबह जंगल-झाडे को जाने के साथ की आवश्यक व्यायाम का अंत होगया है जिसमें व्यायाम के लिए अतिरिक्त समय व्यर्थ नही करना पड़ता था .....आपका क्या ख्याल है क्या फिर से.....
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा....
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ...थोड़ा व्यायाम बहुत जरूरी है
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