आज से ३६ वर्ष पहले -- १९७८ में जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ा करता था...स्कूल की मैगजीन का स्टूडैंट संपादक था तो मैंने इसी सर्दी-खांसी-जुकाम के ऊपर एक लेख लिखा था.. मैंने अभी तक उसे अपने पास रखा हुआ है ..और जो पिछले वर्षों में अखबारों में लेख छपे हैं, उन में से मेरे पास कितने हैं, कितने नहीं है, वह कोई बात नहीं
(लेकिन स्कूल के मेगजीन में प्रकाशित सभी लेख जीर्ण अवस्था में अभी भी मेरे पास हैं)...
उस के बाद जब हम लोग कालेज पहुंचे तो यह सुनने लगे कि यह बीमारी कॉमन-कोल्ड इलाज करने पर एक हफ्ते में ठीक हो जाती है और बिना किसी इलाज के इसे ठीक होने में सात दिन लग जाते हैं।
पिछले लगभग २५ वर्षों से देखा कि इस साधारण सी बीमारी के लिए इतने सारी ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी जाती हैं कि इस बात की बहुत आलोचना होती भी रही है और हो भी रही है। अभी अभी यह न्यूज़ रिपोर्ट देख रहा था कि किस तरह से विकसित देशों में भी कॉमन-कोल्ड के कितने ज्यादा मरीज़ों को ये ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी जाती हैं....जिस की वजह से ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों ने काम करना ही बंद कर दिया है.. (Antibiotic resistance)
चलिए, एक काम करता हूं कि अपने पुराने लेखों (जो आज भी उतने ही काम के हैं) के लिंक तो दे ही दूंगा इस पोस्ट के नीचे, एक काम करता हूं अपने ही से शुरू करता हूं कि मैं इस कॉमन-कोल्ड के लिए क्या क्या करता हूं।
Antibiotics use for colds 'rises 40%' (BBC Report)
जब तक अपनी मां का सिक्का चलता था, उन्हें जैसे ही पता चलता कि हमें यह तकलीफ़ थोड़ी होने लगी है, तो तुरंत बेसन को घी में भून कर, बादाम डाल कर और ऊपर से पानी और चीनी मिला कर (पंजाबी में हम लोग इसे लसबी के नाम से पुकारते हैं) ..गर्मागर्म पीने को देतीं......और दो-तीन बार लेने से --विशेषकर रात को पीने से बहुत अच्छा लगता था। कहती वह अब भी हैं कि बना दूं, लेकिन मैं कोई न कोई बहाना बना कर मना कर देता हूं......क्योंकि अब मुझे समझ आ गया है कि उस में भी काफ़ी मेहनत लगती है और मां को क्यों इतनी तकलीफ़ देना?
सर्दी का थोड़ा सा भी अहसास होने बीवी एक सैट्रीज़ीन की टेबलेट लेने के लिए कहती हैं.......दिन में एक बार- दो तीन दिन तक....मैं कभी भी इस काम के लिए सैट्रीज़ीन लेना नही चाहता लेकिन फिर भी एक दो दिन तो एक टैबलेट ले ही लेता हूं.....सुबह उठने पर बड़ी सुस्ती सी लगती है इसे खाने से।
अच्छा आगे चलें, और मैं क्या करता हूं.......गले की खिचखिच के लिए मैं गर्रारे ज़रूर करता हूं. नमक वाले गर्म पानी से .. इसे करने पर मुझे इतनी राहत मिलती है कि मैं अपने पेरेन्ट्स का मन ही मन बहुत धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने बचपन में हमें इस की आदत डाल दी थी। सच बताऊं जब बच्चे थे और गला दर्द करने पर जब पेरेन्ट्स गर्रारे करने के लिए कहते थे तो बहुत गुस्सा आता था..चिढ़ होती थी .. एक तो गला दुःख रहा था, और ऊपर से नमक वाले गर्म पानी से गर्रारे करो........मुझे अच्छे से याद है कि एक गिलास भर कर हमारी मां जो हमें थमा दिया करती थीं, उस में से आधे से ज़्यादा तो मैं नाली में गिरा ही दिया करता था। इसलिए शायद बचपन में समझ नहीं आया कि यह एक कारगर उपाय है इस तकलीफ़ से िनजात पाने के लिए।
अब तो इस तकलीफ़ के लिए जितनी बार हो सकता है गर्रारे करता हूं और एक दो िदन में ही सभी लक्षण गायब से हो जाते हैं। और जितनी राहत मिलती है उसे ब्यां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। अब बच्चों को और अपने मरीज़ों को भी इस के िलए प्रेरित करता हूं..बच्चे तो कभी कभी सुन लेते हैं और कहते हैं कि अच्छा है।
आगे चलें, बचपन ही से एक आदत और डाल दी पेरेन्ट्स ने.. शुक्र करता हूं उन का......कि कॉमन-कोल्ड के समय जो गले में दर्द और खाऊं खाऊं की शिकायत होती है, उस के लिए हमें मुलैठी चूसने के लिए दी जाती थी....और कईं बार तो हम लोग स्कूल में भी इसे चबाते रहते थे।
और अभी तक यह आदत बरकरार है.. बडी राहत मिलती है इस से। अब तो बाबा रामदेव के पतंजलि चिकित्सालय का एक पैकेट १५ रूपये में मिलता है जिस में मुलैठी के छोटे छोटे टुकड़े किए रहते हैं......चबाना मेरे लिए भी अब इसे ज़्यादा आसान है क्योंकि दो-तीन दांत मैं भी खराब कर चुका हूं। लेकिन यह बहुत ही बढ़िया उपाय है गले को दुरूस्त करने का। मैं तो कईं बार रात को सोते वक्त उसे मुंह में ही दबा के सो जाता हूं।
लेकिन जब अपनी ओपीडी में इसे चबा रहा होता हूं तो अकसर अपने मरीज़ों को कह देता हूं कि यह पान नहीं है, मुलैठी है.....कहीं आप लोग यह मत समझ लेना कि मैं तंबाकू चबा रहा हूं। हंसने लगते हैं वे भी। यूपी में रहता हूं..यहां सब लोग बिना किसी भेदभाव के -- डाक्टर हो या अधिकारी -सभी गुटखे-पानमसाले, पान का लुत्फ़ उठाते नज़र आते हैं, इसलिए मुझे सफाई देनी ज़रूरी हो जाती है।
अच्छा, एक बात और.......कॉमन कोल्ड के दौरान दो एक दिन शरीर का तापमान थोड़ा बड़ा रहता है और शरीर दुखने लगता है तो मैं एक टेबलेट ZUPAR की सुबह और ज़रूरत पड़ने पर एक दो िदन ले लेता हूं.......ऊपर से चाय पी कर लेट जाता हूं ..बस अच्छा लगने लगता है। इस जुपार टेबलेट में आईबूप्रूफन और पैरासिटामोल होता है... मैं तो इस ब्रांड को ही प्रेफर करता हूं।
और एक बात यह कि मैं उन एक दो दिनों में चाय खूब पीता हूं........ शायद पांच छः बार ... और सर्दी में अदरक आदि डाल कर। और पहले तो चाय में नमक भी मिला लिया करता था।
पिछले कुछ सालों में स्ट्रेपसिल्स और विक्स भी शायद कभी ली होंगी लेकिन अभी पता नहीं कितने वर्षों से इन्हें नहीं लिया.....हां, एक कैंडी के तौर पर शायद खा लिया हो, वो बात अलग है।
बचपन में एक विक्स इन्हेलर आया करता था उसे भी सूंघ लिया करते थे .. बंद नाक को राहत देने के लिए। और पच्चसी वर्ष पहले एक बार मेरा जुकाम इतना बिगड़ गया कि नाक साफ करने पर रक्त आने लगा, ईएनटी विशेषज्ञ को दिखाने पर उन्होंने पांच सात दिन के लिए ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी थीं, और बस, सब ठीक हो गया था। शायद तब ही इस तकलीफ के लिए ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां ली थीं.......लेकिन बचपन में डैड भी कैमिस्ट से दो-चार खुराक कैप्सूल की लाते तो थे, शायद वह भी कुछ टैट्रासाईक्लिन जैसा कुछ होता होगा, लेकिन खुली दवाई का क्या पता चलता है। वे मुझे जुकाम होता देख कर मुझ से ज़्यादा परेशान हो जाया करते थे.....।
लगता है अब बस करूं......समझने वालों को इशारों ही काफ़ी होता है ...वे तो मेरी बात अच्छे से समझ चुके हैं।
एक प्रश्न जो आप को तंग कर रहा होगा ... कि अब जब किसी डाक्टर के पास जाएं इस कॉमन कोल्ड के लिए तो उसे कैसे कहें कि ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां न लिखे.......नहीं, ऐसा नहीं हो सकता मैं मानता हूं लेकिन कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि इधर उधर किसी भी चिकित्सक के पास जा कर या कैमिस्ट के पास जा कर यह बात न छेड़ दें कि डाक्टर साहब, कौन सा ऐंटीबायोटिक लें।
और मेरा व्यक्तिगत विचार है कि इनती कामन की तकलीफ़ कॉमन-कोल्ड के लिए पहले तो सदियों पुराने घरेलू दादी-नानी के नुस्खे ही आजमा लें......... दो तीन दिन तो मौका दें यार अपने शरीर की इम्यूनिटि को काम करने का ......अगर कोई जटिलता दिखे तो डाक्टर कौन सा कहीं भागे हुए हैं। वैसे यह निर्णय आप के अपने विवेक पर निर्भर करता है।
सात साल पुराना मेरा एक लेख .. सर्दी लग जाने पर क्या करें
गले खराब होने का दिल के रोग से संबंध
ऐंटोबॉयोटिक दवाईयां और खतरे की घंटी
(लेकिन स्कूल के मेगजीन में प्रकाशित सभी लेख जीर्ण अवस्था में अभी भी मेरे पास हैं)...
उस के बाद जब हम लोग कालेज पहुंचे तो यह सुनने लगे कि यह बीमारी कॉमन-कोल्ड इलाज करने पर एक हफ्ते में ठीक हो जाती है और बिना किसी इलाज के इसे ठीक होने में सात दिन लग जाते हैं।
पिछले लगभग २५ वर्षों से देखा कि इस साधारण सी बीमारी के लिए इतने सारी ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी जाती हैं कि इस बात की बहुत आलोचना होती भी रही है और हो भी रही है। अभी अभी यह न्यूज़ रिपोर्ट देख रहा था कि किस तरह से विकसित देशों में भी कॉमन-कोल्ड के कितने ज्यादा मरीज़ों को ये ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी जाती हैं....जिस की वजह से ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों ने काम करना ही बंद कर दिया है.. (Antibiotic resistance)
चलिए, एक काम करता हूं कि अपने पुराने लेखों (जो आज भी उतने ही काम के हैं) के लिंक तो दे ही दूंगा इस पोस्ट के नीचे, एक काम करता हूं अपने ही से शुरू करता हूं कि मैं इस कॉमन-कोल्ड के लिए क्या क्या करता हूं।
Antibiotics use for colds 'rises 40%' (BBC Report)
जब तक अपनी मां का सिक्का चलता था, उन्हें जैसे ही पता चलता कि हमें यह तकलीफ़ थोड़ी होने लगी है, तो तुरंत बेसन को घी में भून कर, बादाम डाल कर और ऊपर से पानी और चीनी मिला कर (पंजाबी में हम लोग इसे लसबी के नाम से पुकारते हैं) ..गर्मागर्म पीने को देतीं......और दो-तीन बार लेने से --विशेषकर रात को पीने से बहुत अच्छा लगता था। कहती वह अब भी हैं कि बना दूं, लेकिन मैं कोई न कोई बहाना बना कर मना कर देता हूं......क्योंकि अब मुझे समझ आ गया है कि उस में भी काफ़ी मेहनत लगती है और मां को क्यों इतनी तकलीफ़ देना?
सर्दी का थोड़ा सा भी अहसास होने बीवी एक सैट्रीज़ीन की टेबलेट लेने के लिए कहती हैं.......दिन में एक बार- दो तीन दिन तक....मैं कभी भी इस काम के लिए सैट्रीज़ीन लेना नही चाहता लेकिन फिर भी एक दो दिन तो एक टैबलेट ले ही लेता हूं.....सुबह उठने पर बड़ी सुस्ती सी लगती है इसे खाने से।
अच्छा आगे चलें, और मैं क्या करता हूं.......गले की खिचखिच के लिए मैं गर्रारे ज़रूर करता हूं. नमक वाले गर्म पानी से .. इसे करने पर मुझे इतनी राहत मिलती है कि मैं अपने पेरेन्ट्स का मन ही मन बहुत धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने बचपन में हमें इस की आदत डाल दी थी। सच बताऊं जब बच्चे थे और गला दर्द करने पर जब पेरेन्ट्स गर्रारे करने के लिए कहते थे तो बहुत गुस्सा आता था..चिढ़ होती थी .. एक तो गला दुःख रहा था, और ऊपर से नमक वाले गर्म पानी से गर्रारे करो........मुझे अच्छे से याद है कि एक गिलास भर कर हमारी मां जो हमें थमा दिया करती थीं, उस में से आधे से ज़्यादा तो मैं नाली में गिरा ही दिया करता था। इसलिए शायद बचपन में समझ नहीं आया कि यह एक कारगर उपाय है इस तकलीफ़ से िनजात पाने के लिए।
अब तो इस तकलीफ़ के लिए जितनी बार हो सकता है गर्रारे करता हूं और एक दो िदन में ही सभी लक्षण गायब से हो जाते हैं। और जितनी राहत मिलती है उसे ब्यां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। अब बच्चों को और अपने मरीज़ों को भी इस के िलए प्रेरित करता हूं..बच्चे तो कभी कभी सुन लेते हैं और कहते हैं कि अच्छा है।
आगे चलें, बचपन ही से एक आदत और डाल दी पेरेन्ट्स ने.. शुक्र करता हूं उन का......कि कॉमन-कोल्ड के समय जो गले में दर्द और खाऊं खाऊं की शिकायत होती है, उस के लिए हमें मुलैठी चूसने के लिए दी जाती थी....और कईं बार तो हम लोग स्कूल में भी इसे चबाते रहते थे।
और अभी तक यह आदत बरकरार है.. बडी राहत मिलती है इस से। अब तो बाबा रामदेव के पतंजलि चिकित्सालय का एक पैकेट १५ रूपये में मिलता है जिस में मुलैठी के छोटे छोटे टुकड़े किए रहते हैं......चबाना मेरे लिए भी अब इसे ज़्यादा आसान है क्योंकि दो-तीन दांत मैं भी खराब कर चुका हूं। लेकिन यह बहुत ही बढ़िया उपाय है गले को दुरूस्त करने का। मैं तो कईं बार रात को सोते वक्त उसे मुंह में ही दबा के सो जाता हूं।
लेकिन जब अपनी ओपीडी में इसे चबा रहा होता हूं तो अकसर अपने मरीज़ों को कह देता हूं कि यह पान नहीं है, मुलैठी है.....कहीं आप लोग यह मत समझ लेना कि मैं तंबाकू चबा रहा हूं। हंसने लगते हैं वे भी। यूपी में रहता हूं..यहां सब लोग बिना किसी भेदभाव के -- डाक्टर हो या अधिकारी -सभी गुटखे-पानमसाले, पान का लुत्फ़ उठाते नज़र आते हैं, इसलिए मुझे सफाई देनी ज़रूरी हो जाती है।
अच्छा, एक बात और.......कॉमन कोल्ड के दौरान दो एक दिन शरीर का तापमान थोड़ा बड़ा रहता है और शरीर दुखने लगता है तो मैं एक टेबलेट ZUPAR की सुबह और ज़रूरत पड़ने पर एक दो िदन ले लेता हूं.......ऊपर से चाय पी कर लेट जाता हूं ..बस अच्छा लगने लगता है। इस जुपार टेबलेट में आईबूप्रूफन और पैरासिटामोल होता है... मैं तो इस ब्रांड को ही प्रेफर करता हूं।
और एक बात यह कि मैं उन एक दो दिनों में चाय खूब पीता हूं........ शायद पांच छः बार ... और सर्दी में अदरक आदि डाल कर। और पहले तो चाय में नमक भी मिला लिया करता था।
पिछले कुछ सालों में स्ट्रेपसिल्स और विक्स भी शायद कभी ली होंगी लेकिन अभी पता नहीं कितने वर्षों से इन्हें नहीं लिया.....हां, एक कैंडी के तौर पर शायद खा लिया हो, वो बात अलग है।
बचपन में एक विक्स इन्हेलर आया करता था उसे भी सूंघ लिया करते थे .. बंद नाक को राहत देने के लिए। और पच्चसी वर्ष पहले एक बार मेरा जुकाम इतना बिगड़ गया कि नाक साफ करने पर रक्त आने लगा, ईएनटी विशेषज्ञ को दिखाने पर उन्होंने पांच सात दिन के लिए ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां दी थीं, और बस, सब ठीक हो गया था। शायद तब ही इस तकलीफ के लिए ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां ली थीं.......लेकिन बचपन में डैड भी कैमिस्ट से दो-चार खुराक कैप्सूल की लाते तो थे, शायद वह भी कुछ टैट्रासाईक्लिन जैसा कुछ होता होगा, लेकिन खुली दवाई का क्या पता चलता है। वे मुझे जुकाम होता देख कर मुझ से ज़्यादा परेशान हो जाया करते थे.....।
लगता है अब बस करूं......समझने वालों को इशारों ही काफ़ी होता है ...वे तो मेरी बात अच्छे से समझ चुके हैं।
एक प्रश्न जो आप को तंग कर रहा होगा ... कि अब जब किसी डाक्टर के पास जाएं इस कॉमन कोल्ड के लिए तो उसे कैसे कहें कि ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां न लिखे.......नहीं, ऐसा नहीं हो सकता मैं मानता हूं लेकिन कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि इधर उधर किसी भी चिकित्सक के पास जा कर या कैमिस्ट के पास जा कर यह बात न छेड़ दें कि डाक्टर साहब, कौन सा ऐंटीबायोटिक लें।
और मेरा व्यक्तिगत विचार है कि इनती कामन की तकलीफ़ कॉमन-कोल्ड के लिए पहले तो सदियों पुराने घरेलू दादी-नानी के नुस्खे ही आजमा लें......... दो तीन दिन तो मौका दें यार अपने शरीर की इम्यूनिटि को काम करने का ......अगर कोई जटिलता दिखे तो डाक्टर कौन सा कहीं भागे हुए हैं। वैसे यह निर्णय आप के अपने विवेक पर निर्भर करता है।
सात साल पुराना मेरा एक लेख .. सर्दी लग जाने पर क्या करें
गले खराब होने का दिल के रोग से संबंध
ऐंटोबॉयोटिक दवाईयां और खतरे की घंटी
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