चलिए , यह भी एक इत्मीनान की ही बात है कि इन चित्रकारों का टेलेंट तो रेलगाड़ी के बाथरूमों तक ही सीमित रहता है। उन की यह कला उस से बाहर न ही आए तो ही ठीक है, नहीं तो गदर मच जाएगा। जब ये तरह तरह की अश्लील बातें अथवा ऊट-पटांग बातें मोटे मोटे अक्षरों में वहां लिखते हैं तो यह क्यों भूल जाते हैं कि इन पर समाज के हर आयु वर्ग के लोगों की नज़र पढ़ेगी। कई बार तो अबोध बच्चे भी यह सब पढ़ कर, चित्रकारी देख कर हैरान परेशान हो जाते होंगे। मैं अकसर सोचता हूं कि इस देश के अबोध बच्चों की यौन-शिक्षा के पहले पाठ तो शायद यहीं लिखे रहते हैं...।अफसोस तो बस इसी बात का ही होता है कि इन बाथ-रूम बलागरों को भी लगता है कि अपनी कला के जौहर दिखाने का उचित मौका मिला नहीं। इस अजीबो-गरीब बलागरी का दुनिया भी कुछ इंटरनैट ब्लागरी जैसी ही चलती है----अर्थात् कई लोग तो ये विवरण देख कर एवं लाइन ड्रांईंग देख कर इतने भड़क जाते हैं कि उन्होंने टिप्पणी के रूप में अपना करारा सा जवाब भी लिखा होता है। इस तरह की ग्रैफिटी रेल के बाथरूमों में ही नहीं, कईं बार तो मुझे मुंबई की लोकल गाड़ीयों में भी देखने को मिलीं। लेकिन बम्बई में इस तरह की ग्रैफिटी के ऊपर तुरंत कुछ पेंट पोत दिया जाता है...भई, ऐसे तो हज़ारों लोगों की नज़रों में यह सब आ जाएगा। कई बार तो नोटों पर भी इस तरह की ग्रैफिटी देखने को मिलती है, लेकिन वह बड़ी शालीन सी ही दिखती है। बंटी लव्स बबली या पिंचू लव्स पिंकी तक ही यह सीमित होती है। लेकिन कईं बार तो ये कलाकार एतिहासिक स्थानों को भी स्पेयर नहीं करते-- और उन पर भी अपनी छाप छोड़ने की पूरी कोशिश करते हैं। अरे भाई, कुछ ऐसी छाप ही छोड़नी है तो शाहजहां का अनुसरण करिए......उस ने कैसे अपने प्यार को अमर ही कर दिया। इन छोटी-मोटी हरकतों से तो कुछ हासिल होने से रहा, rather you are only corrupting the tender yound minds of our dear youngsters which happen to be our greatest assets!!
काश!! ऊपर वाला इन आत्माओं को सदबुद्धि प्रदान करें ताकि वे अपनी कलम के जौहर दिखाने के लिए बलागरी में पांव रखें।
जहांगीर नहीं बे शाहजहां बोल!
जवाब देंहटाएं