दोस्तो, लगभग बीस साल पहले किसी फिल्म में अपने शम्मी कपूर जी का एक डायलाग मुझे अब तक याद है ...कुछ बातें सच्ची होते हुए भी कहने-सुनने में उतनी अच्छी नहीं होती। डाक्टरों से बेहतर यह बात और कौन इतनी गहराई से समझ सकता है।
दोस्त, पिछले महीने मैं किसी परिचित को मिलने गया---उस व्यक्ति ने पी-पी कर अपना सारा लिवर खत्म कर रखा था---उसे लिवर की सिरोसिस ( Hepatic cirrhosis) था...पेट फूल रहा था, उस में पानी भरा हुया था जिसे ascites कहते हैं, दो-कदम चलने पर सांस फूल रही थी...देखने ही में वो बेचारा बेहद बीमार लग रहा था। कईं बार उसे खून की उल्टी हो चुकी थी। अब दिल्ली के मशहूर हास्पीटल से उस का इलाज चल रहा था....उस के बिस्तर के आस-पास ही दवाईंयों, टानिकों और एक्सरों, डाक्टरी रिपोर्टों एवं नुस्खों का अंबार लगा हुया था। वे बता रहे थे कि कितना महंगा इलाज चल रहा है, और कितने महंगे टीके लग रहे हैं।
उस बंदे के सामने बैठे ही उस की पत्नी ने एक प्रश्न पूछ लिया....डाक्टर साब, पैसे की तो कोई बात नहीं, बस यह ठीक हो जायें.....डाक्टर साहब , आपने सारी रिपोर्टें देखीं हैं, ये ठीक तो हो जाएंगे न ! अब ऐसी शिचुएशन में,दोस्तो, सोचो हम डाक्टरों की हालत कैसी हो जाती है। आप को सब कुछ पता है...लेकिन आप को फिर भी मरीज का, मरीज की बीवी का , उस के मां-बाप का , उस के बच्चों का ( जो आप की तरफ ऐसे देख रहे होते हैं जैसे उन के घर में कोई फरिश्ता ही उतरा आया हो) दिल रखना होता है, उन्हें डोलने नहीं देना होता........कितना बड़ा प्रैशर होता है , दोस्तो, किसी ऐसे सवाल का जवाब देना। पता तो बेचारे अभिभावकों को भी अंदर से सब कुछ होता ही है, लेकिन वे फिर भी शायद कुछ अच्छा सा सुनने की आस लिए बैठते हैं कि शायद.........!
लेकिन डाक्टर भी दोस्तो इस मामले में मंजे खिलाड़ी होते हैं.....अपने फेशियल एक्सप्रेश्नज़ से कभी भी कुछ ज़ाहिर नहीं करते.....और तो और दोस्तो इन soft skills की कोई ट्रेनिंग उसे किसी मैडीकल कालेज में नहीं दी जाती, लेकिन ये लोग ज़िंदगी की किताब पढ़ पढ़ कर अपने मरीज़ों से ही यह सब कुछ सीखते हैं.....शायद अपने को, अपने बच्चों को, अपनी बीवी को, अपनी बहन को, अपने मां-बाप को उस रिश्तेदार के अभिभावकों की जगह खड़ा कर के।
बस, फिर कुछ यूं ही कुछ आत्मबल बढ़ाने वाली बातें शुरू कर देते हैं जिस से मरीज को लगे ही नहीं कि वह बीमार है या जिन बातों से उन सब की आँखें आशाओं की किरणों से चौंधिया जाएं।
शायद मैंने भी उस दिन कुछ ऐसा ही किया....यार, आप सुबह उठ कर बाबा रामदेव के बताए तरीके से प्राणायाम किया करो---यार, इस में बड़ी ताकत है, देखते नहीं हो आप कैसे-कैसे मरीज वहां पर ठीक हो जाते हैं.....और हां, यार, आप आंवले का सेवन जरूर किया करो...यह पेट के लिए बहुत अच्छा है। ऐसी बातें करने से मरीज़ को थोड़ा अच्छा लगने लगता है।
दोस्तो, कईं बार हम डाक्टरों का ध्येय यही होता है कि मरीज को एवं उस के अभिभावकों को अच्छा अच्छा लगता ही रहे.......यकीन जानिए, अंदर से पता उन को भी सब होता है लेकिन वो भी बेचारे क्या करें....उन को भी यही उम्मीद होती है कि काश, हमारे घर में कोई चमत्कार ही हो जाए। और बाकी बातें, समय अपने आप धीरे धीरे खोल देता है।
लेकिन हां, डाक्टरों को यह भी बखूबी पता होता है कि किस मरीज के अभिभावकों को कुछ ज्यादा बताना है....अब किसी गरीब दिहाड़ीदार को कोई बहुत ही असाध्य रोग है तो उस के घरवालों को संभल कर थोड़ा ज्यादा भी बताना होता है ताकि वे ना तो किसी नीम-हकीम के चक्कर ही में पड़े और न ही हज़ारों रूपयों का कर्ज़ अपने सिर पर उठा लें......और बाद में पता चले कि बंदा तो चला गया, और उस की बीमारी पर लिया ऋण चुकाते चुकाते घर के एक-दो बंदे............
बस दोस्तो यहीं विराम लेता हूं......जो भी हो, डाक्टर लोग भी होते मंजे कलाकार ही हैं, क्या दोस्तो, कईं बार होना पड़ता है....किसी बंदे की आशा रूपी पतंग को हवा में लहराते देख कर कैसे उस की पतंग को अपनी अध-कचरी नालेज की सख्त डोर से झटका दे कर काट दूं.......Because miracles do happen !! And as we say sometimes medical science as yet is not complete.......what we understand about this universe is just equal to the size of a tiny sand particle. Then , how do we boost so much about our knowledge.................
Let's never ever forget....
Each day dawns with the bunch of opportunities.
डॉक्टरों का धर्मसंकट समझ में आता है। सच को कितना और कैसे बताना है, इसकी कला में जो डॉक्टर निपुण है, वह मरीजों का विश्वास अपने ऊपर बनाए रखता है और अंतिम समय तक आशा की ज्योति उसके भीतर जगाए रखता है।
जवाब देंहटाएंजिंदगी और मौत की डोर तो ऊपरवाले के हाथ में ही होती है, पर डॉक्टर अपना धर्म निभाते समय कलाकार का दिल भी रखे तो रोग के उपचार के दौरान उसकी चिंताएं और परेशानियाँ काफी कम हो सकती हैं।
मेरे विचार से डॉक्टर को सच और केवल सच बताना चाहिये और इलाज करने में अपनी समर्थता या असमर्थता बता देनी चाहिये और यह भी कि उनके हिसाब से सबसे बेहतर क्या करना रहेगा । मैं अपने से झूठ बोलने वाले डॉक्टर को कभी क्षमा नहीं करूँगी ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती