पिछली कुछ महीनों से एक और समस्या है कि मैं घर में आने वाली दो अखबारें --टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदी की हिन्दुस्तान--ढंग से नहीं पढ़ पाता। वही पुराना बहाना स्कूल कालेज के दिनों वाला कि पढ़ते ही नींद आने लगती है। लेकिन फिर भी स्नैप डील और फ्लिपकार्ट की सभी पेशकशें बेटे के मार्फ़त शाम तक काफ़ी हद तक याद हो जाती हैं......चाहे उन से कुछ लेना देना नहीं होता, बस ऐसे ही जिसे जुबानी जमा-खर्च कहते हैं ना, एक शुगल सा।
कल जब मैंने कुर्बानी पर कुर्बान का पहला लेख लिखा तो मुझे ईद के बारे में मेरे मन में उमड़े बहुत से प्रश्नों का सवाल मिल गया था।
आज सुबह जल्दी नींद खुल गई....होता है कभी कभी ऐसा भी। अब टीवी में मेरी रूचि कम हो गई है....जब से बच्चन और आमिर द्वारा केबीसी और जागते रहो के हर एपीसोड के लिए मेहनताना लेने की रकम का पता चला है, उस दिन से बिल्कुल भी रूचि रही नहीं.....बिग-बॉस वैसे ही पहली ही देखने की हिम्मत जुटा पाया था......उसे देख कर यही डर लगता है कि यार, कहीं घर में हम सारे ही ऐसे ही चलने और बतियाने ना लगें.....नज़रिया अपना अपना.......बहरहाल, कल की टाइम्स ऑफ इंडिया पड़ी हुई थी। सोचा कि इसे भी पलट लूं........
जैसे ही मैं संपादकीय पन्ने पर पहुंचा तो दा स्पीकिंग ट्री के अंतर्गत एक लेख के शीर्षक पर नज़र पड़ गई...... Find your Ismail and Sacrifice it... ईद के विषय से संबंधित मेरे जो बचे खुचे सवाल थे, वे भी जैसे धोने के लिए ही यह सुंदर लेख मुझे आज सुबह सुबह दिख गया था....मैंने इसे पढ़ कर राहत की सांस ली, लेकिन यह मेरी राहत की सांस लेने से हुआ क्या, सोचने की बात है कुछ नहीं........वैसे भी मेरी राहत की सांस लेनी इतनी ज़रूरी कहां थी, ज़रूरी तो कुछ और था....मेरे जैसे बुद्दिजीवियों की बस इतनी कहानी..........है इतना फ़साना है इतनी कहानी.........
कल शाम को फेसबुक पर एक बहन की पोस्ट पढ़ी ......
ताको कौन हवाल का मतलब नहीं पता था तो उन से ही पूछ लिया.... तुरंत जवाब मिल गया....
"यानि वे किसके हवाले ? उनका क्या होगा ? उनका कौन मालिक ? वे किसके भरोसे ?"
कल जब मैंने कुर्बानी पर कुर्बान का पहला लेख लिखा तो मुझे ईद के बारे में मेरे मन में उमड़े बहुत से प्रश्नों का सवाल मिल गया था।
आज सुबह जल्दी नींद खुल गई....होता है कभी कभी ऐसा भी। अब टीवी में मेरी रूचि कम हो गई है....जब से बच्चन और आमिर द्वारा केबीसी और जागते रहो के हर एपीसोड के लिए मेहनताना लेने की रकम का पता चला है, उस दिन से बिल्कुल भी रूचि रही नहीं.....बिग-बॉस वैसे ही पहली ही देखने की हिम्मत जुटा पाया था......उसे देख कर यही डर लगता है कि यार, कहीं घर में हम सारे ही ऐसे ही चलने और बतियाने ना लगें.....नज़रिया अपना अपना.......बहरहाल, कल की टाइम्स ऑफ इंडिया पड़ी हुई थी। सोचा कि इसे भी पलट लूं........
जैसे ही मैं संपादकीय पन्ने पर पहुंचा तो दा स्पीकिंग ट्री के अंतर्गत एक लेख के शीर्षक पर नज़र पड़ गई...... Find your Ismail and Sacrifice it... ईद के विषय से संबंधित मेरे जो बचे खुचे सवाल थे, वे भी जैसे धोने के लिए ही यह सुंदर लेख मुझे आज सुबह सुबह दिख गया था....मैंने इसे पढ़ कर राहत की सांस ली, लेकिन यह मेरी राहत की सांस लेने से हुआ क्या, सोचने की बात है कुछ नहीं........वैसे भी मेरी राहत की सांस लेनी इतनी ज़रूरी कहां थी, ज़रूरी तो कुछ और था....मेरे जैसे बुद्दिजीवियों की बस इतनी कहानी..........है इतना फ़साना है इतनी कहानी.........
कल शाम को फेसबुक पर एक बहन की पोस्ट पढ़ी ......
"बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल,
जे नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल" - कबीर।
सभी बकरियों व बकरों के स्वस्थ प्राकृतिक दीर्घजीवन की शुभकामनाएँ।
"यानि वे किसके हवाले ? उनका क्या होगा ? उनका कौन मालिक ? वे किसके भरोसे ?"