गुरुवार, 31 मार्च 2016

अपना हर पल ऐसे जियो...जैसे कि आखिरी हो!

बहुत बहुत बधाई, यार....सेहतमंद रहो हमेशा 
कल रात मैं कुछ दिन पुरानी अखबारों को देख रहा था...कुछ भी नया था ही नहीं, वही मार-धाड़, लूटपाट, डकैती, छीना-झपटी..लेकिन एक तस्वीर देख कर मुझे बहुत खुशी हुई...अंबानी के बेटे की तस्वीर थी, सोमनाथ मंदिर में पूजा करते हुए...इस बंदे की दाद देनी पड़ेगी ..इसने कुछ महीनों में ७० किलो वजन कम किया है .. बेशक, अमेरिकी ट्रेनर-वेनर कोई आया हुआ है ऐसा कह रहे हैं...लेिकन फिर भी अंबानी जूनियर की हौंसलाफ़जाई तो करनी चाहिए...

बहुत अच्छे भाई..लगे रहो...शुभकामनाएँ एवं बधाईयां...बहुत अच्छे दिख रहे हो, इतना वजन कम करने के बाद..

मैं यही सोचने लगे कि कोई भी आदमी अगर ठान ले कुछ करने को तो क्या नहीं कर सकता! इकबाल फिल्म तो आपने देखी ही होगी...उसमें भी एक अलग तरह के संघर्ष की कहानी है ... न ट्रेनर कोई अमेरिकी था, बेचारा भेवड़ा था, और संघर्ष करने वाला भी बिल्कुल आम गांव वाला लेकिन बस कुछ कर गुज़रने की तमन्ना थी और उसी के बलबूते वह अपनी मंज़िल तक पहुंच गया...


मोटापे से ध्यान आया कि आज के दौर में  अधिकतर बच्चों और युवाओं का खानपान बहुत ही बेकार है ... पहले तो ये लोग बेकार का जंक एवं फास्ट फूड खा लेते हैं, फिर विटामिन की गोलियों में पोषण तलाशते फिरते हैं...मुझे तो कईं बार लगता है कि आज कर आशीष देते समय एक जुमला यह भी जोड़ देना चाहिए...ईश्वर, गॉड, अल्ला, जीसस, वाहेगुरू तुम्हें अच्छा पौष्टिक खाना नसीब दे।

हर तरफ़ पैसे की बरबादी है फिर भी पौष्टिक कहीं नहीं है बाज़ारू खाने में ...हो भी नहीं सकती .. और एक ध्यान आ रहा था मुझे कि अब वे दिन लद रहे हैं और लद भी जायेंगे कि महिलायें ही खाना-वाना करेंगी...आज के दौर की सब से बड़ी मांग है कि हर लड़के को भी खाना बनाना आना चाहिए..कम से कम अपना पेट तो भर सके यार कोई बंदा......बाज़ार में बाज़ारवाद है, न ही कभी पोष्टिकता मिलेगी और न ही कभी मिली थी...

बहुत से युवकों से मिलता हूं जिन की नई नई नौकरियां लगी हैं...खाने की बात चलती है तो बताते हैं कि स्वयं खाना बनाते हैं...अच्छा लगता है .... बैकग्राउंड या अपब्रिंगिंग तो भाई यही बढ़िया हो गई कि बच्चे अपने लिए अच्छे खाने का जुगाड़ कर लेते हैं अपने आप ....और यह इन के चेहरों की चमक से पता भी चल जाता है ...

कहां से कहां निकल गया मैं भी ... चलिए, वापिस लौट आते हैं ....उस में क्या है!

आज ही टाइम्स ऑफ इंडिया पेपर से पता चला कि हैवेल के इस विज्ञापन की वजह से बड़ा हल्ला हो गया था....मैंने तो अभी यू-ट्यूब पर इसे पहली बार देखा ... No comments on this, आप जो भी समझना चाहें समझ लीजिए... लेकिन उस एड को यहां लगा जरूर रहा हूं..



कुछ तस्वीरें और भी दिखीं आज पेपर में जिन्हें शेयर करना चाह रहा हूं...
बस इंतज़ार करिए थोड़ा, यहां भी यह सब हो ही जायेगा...वैसे आज यहां बैंक रात तक खुले रहेंगे ...कर दो जो भी जमा करना है....
इसे डिटॉक्स होते देख ईर्ष्या हुई...हम भी सास-बहू के सीरियलों के ज़माने से टीवी केवल से भी कुछ हफ्तों के लिए डि-टॉक्स किया करते थे..
अब क्या और बातें करें...उठता हूं, तैयार होऊं काम धंधे के लिए ... रात में सत्संग में बैठे थे..मेरे आगे जो भक्त थे, उन के हाथ में एक कापी थी...भजन और प्रवचन लिखे थे उस में ...उन्होंने मुझे दिखाई...मुझे देख कर बहुत अच्छा लगा...सत्संग के प्रति इतना समर्पण देख कर मन गदगद हो गया..बता रहे थे कि हम तो पढ़े-लिखे नहीं हैं, मैंने कहा कि आपने तो इतना बढ़िया सुलेख लिखा हुआ है ...हंसने लगे, कहने लगे ...आप महान हैं...लेकिन मैं उन की महानता से बहुत प्रेरित हुआ..एक अच्छे शिष्य की तरह से सत्संग में बैठना और फिर ग्रहण की हुई चीज़ों को लिखना ...इन की भावना को नमन....ईश्वर मुझे भी ऐसी सद्बुद्धि दे...मैं तो पता नहीं कितनी बार घड़ी को ही ताकता रहता हूं ...सत्संग में ज़्यादा मन टिकता नहीं......लेिकन फिर भी जाते हैं, पता नहीं कब असर हो जाए । आमीन!!


अब आते हैं चुप रहने की ज़रूरत पर ....मुझे शायद इस की बहुत ज़रूरत है ...कुछ दिन पहले पेपर के ग्रैफिटी कॉलम में यह देखा तो लगा कि जैसे मेरे लिए ही कोई कह रहा हो ...मुझे इच्छा है कि इस का पोस्टर बना लूं, वरना प्रिंट-ऑउट अपने कमरे में टांग लूं....a useful reminder to stay cool! 

पिछले दिनों गोवा में घूमते हुए पता चला कि रोहित शैट्टी अपनी फिल्मों की शूटिंग गोवा में ही करता है ...तुरंत इस गीत की तरफ ध्यान चला गया...यह भी तो गोवा में ही शूट किया गया होगा...बेहतरीन मैसेज ...बेहतरीन प्रेरणा... अपना हर पल ऐसे जियो जैसे कि आखिरी हो ... I love this song!

बुधवार, 30 मार्च 2016

जिनकी फितरत छुपी रहे ....

मुझे मोशन सिकनैस की तकलीफ है...बचपन से ही है ..लेकिन घर बैठे बैठे ही यह कईं बार हो जाती है जब मैं सोशल मीडिया पर कुछ ज्ञानी लोगों के महान् ज्ञान आवंटन को देखता हूं...

सब से पहले आप यह गीत तो सुनिए...कहीं भूल गया तो पोस्ट का ज़ायका ही जाता रहेगा...


हां, तो मैं बात कर रहा था...डबल स्टैंडर्ड्स की, मल्टी स्टैंडर्डस की....सच में यह हो रहा है..लेिकन मुझे समझ में नहीं आता कि यह सब हम आखिर करते क्यों हैं! किस की नज़र में उठना चाहते हैं, और आखिर क्यों!

यही सोच कर मुझे लगता है कि सभी सोशल मीडिया खाते बंद करूं और इत्मीनान से रहूं...कुछ ऐसे लोगों का ज्ञान जब दिख जाता है ना तो सिर चकरा जाता है ..कुछ लोग जो अपनी दसों अंगुलियों में दस तरह की अंगूठियां पहने रहते हैं...कमरे में दुनिया भर के लगभग सभी धर्मों की तस्वीरें टांगने से नहीं चूकते... यानि अपनी धार्मिक छवि बिना ब्रासो के ही चमका के रखते हैं...लेिकन हर तरह के गोरखधंधों में लिप्त .... लेिकन सोचने वाली बात यही है कि आखिर इस से होगा क्या... कुछ भी तो नहीं... किसी को इंप्रेस क्यों करना, जैसे हैं कम से कम वैसे तो बने रहें....

हां, मैं दसों अंगुलियों में दस मुंदरियों की बात कर रहा था, गले में तरह तरह के धार्मिक चिन्हों की बात कर रहा था और दफ्तर में आठ दस देवी देवतों और धर्म-गुरूओं की तस्वीरों की बात कर रहा था...लेिकन फिर भी इन में से कुछ लोग आम आदमी पर इतना ज़ुल्म ढहा रहे होते हैं कि क्या कहें!  इन्होंने किसी कोने को भी बिना निचोड़े छोड़ा नहीं होता...सब कुछ समेट कर, बेकार में फिर ये लोग फिज़ूल का ज्ञान बांटने कूद पड़ते हैं....और मेरे जैसों की तबीयत बिगाड़ देते हैं... 

मुझे कईं बार यही लगता है कि हमारी समस्याओं की जड़ ही यही है ...हम सोचते कुछ हैं, करते कुछ अलग हैं और दिखाते कुछ अलग है .....बस, बेकार में इसी छवि चमकने-चमकाने की जद्दोजहद में ही लाइफ का कबाड़ा कर लेते हैं...मैं भी ऐसा ही हूं ...बस न तो अंगूठियां पहनता हूं, न ही देवी देवताओं की तस्वीरों की नुमाइश करता हूं और न ही किसी पर ज़ुल्म करता हूं .... लेकिन मनसा, वाचा, कर्मा एक रखने वाली बात हो नहीं पाती....शायद यह हो भी न पाए, पता नहीं कभी हो पाएगा भी या नहीं! लेकिन इतनी भी जल्दी नहीं है!!

 वैसे तो हमें सत्संग में महात्मा लोग यही समझाते हैं कि आईने में अपनी ही तस्वीर देखनी चाहिए....लेिकन पता नहीं क्यों यह कभी कभी दूसरों की तरफ़ मुड़ जाता है अपने आप... जैसे की अभी मेरा कुछ भी लिखने का मन नहीं था, लेकिन जैसे ही कुछ दिन पहले ज्ञान बांटने वालों की शक्ल दिख गई तो मोशल सिकनेस होने लगी हो जैसे बैठे बैठे ....उन की अंगुठियां, उन के दिखावे, उन के आडंबर, और उन की लूट याद आ गई ......लेकिन इतना सा लिख कर मन कुछ हल्का तो हुआ ही।
Be yourself!

मंगलवार, 29 मार्च 2016

सोने से पहले रेडियोसिटी ...

मैं अभी सोने लगा तो रेडियोसिटी एफएम चैनल लगाया...

गाना चल रहा है ...प्रेम कहानी में इक लड़का होता है, इस लड़की होती है...



 नींद तो उड़ गई ..पुराने दिनों के बेहतरीन गानों की याद फिर से लौट आई...

पुराने गीत बहुत बढ़िया थे....अभी मैं कुछ दिन पहले गोवा में था तो वहां बीच में एक रिसोर्ट में यह गीत बज रहा था...बहुत बढ़िया माहौल बना हुआ था..  आओ झूमें गायें ..मिलके धूम मचाएं...



होली का जश्न चल रहा था उन िदनों तो यह गीत बार बार सुनने को मिला...आज न छोड़ेंगे..बस हमजोली खेलेंगे हम होली...चाहे भीगे तेरी चुनरिया....



पुराने फिल्मी गीतों का जादू भी अलग ही है...झट से हमें किसी दूसरी दुनिया में ले जाते हैं...
बस, यही विराम लगाता हूं...गुड नाइट ...

अगर आप पानमसाला, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, सुरती, पान इस्तेमाल करते हैं..

मैं इधर उधर के विषयों के बारे में कुछ भी लिख कर टाइमपास करता रहूं लेकिन एक विषय जिस पर मेरा ध्यान सारा दिन टिका रहता है वह यही है कि किस तरह से लोगों के मन में तंबाकू के विभिन्न प्रोडक्ट्स के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके।

शायद ही कोई दिन ऐसा निकलता हो जब मैं एक या दो ऐसे मरीज़ों को नही देखता जिन में तंबाकू की वजह से मुंह में होने वाली किसी भयंकर बीमारी का अंदेशा न होता हो। 

अभी ध्यान आया कि कुछ इस तरह का लिखूं कि अगर आप कुछ भी खाने-चबाने के शौकीन हैं, पानमसाला, गुटखा, सुरती, पान, बीड़ी, सिगरेट ...तंबाकू वाले मंजन ...कुछ भी तो आप को किस हालात में किसी क्वालीफाईड दंत चिकित्सक से अपना मुंह दिखवा लेना चाहिए...

मुंह में घाव जो १५ दिन में नहीं भर रहा हो

ठीक है, यह कहा जाता है ..लेिकन मैंने देखा है कि लोगों के मन में इस से डर ज़्यादा बैठा हुआ है ..बहुत से मुंह के घाव जिन्हें मरीज़ समझता है कि कुछ नहीं है, ऐसे ही है, वे सब से खतरनाक किस्म के हो सकते हैं और जिन्हें मरीज समझता है कि ये भयंकर हैं, वे चंद दिनों में अपने आप ठीक होने वाले हो सकते हैं।

तो इस का समाधान यही है कि कोई अनुभवी एवं क्वालीफाइड दंत चिकित्सक ही आप का मुंह देख कर आप के मुंह के घाव के प्रकार का पता लगा सकता है ..क्योंकि वह सारा दिन मुंह के अंदर ही झांकता है, छोटे से छोटे बदलाव भी वह देख लेता है और आप को समुचित इलाज के लिए प्रेरित करता है।


अगर बीड़ी सिगरेट पीने वाले में मुंह के अंदर होठों के कोनों के पास जख्म हैं तो तुरंत डैंटिस्ट को दिखाईए... एक बात यहां बताना ज़रूरी है कि बीड़ी सिगरेट से मुंह के अलग हिस्से प्रभावित होते हैं ..और अन्य तंबाकू उत्पादों जैसे कि गुटखा, पान मसाला से अन्य हिस्से प्रभावित होते हैं।
सिगरेट बीड़ी पीने वालों में इसी तरह के घाव से शुरूआत होती है ..

 दांतों का अपने आप हिलना

अब यह एक बहुत ही आम समस्या है ..बहुत से लोगों के दांत अपने आप हिलते हैं, बेशक पायरिया आदि की वजह से ही होता है यह अधिकतर या वृद्धावस्था में कईं बार जबड़े की हड्डी की पकड़ ढीली पड़ने की वजह से भी यह होता है ..लेकिन कईं बार अपने आप ही किसी एक तरफ़ के दांतों का हिलना, और इतना हिलना कि अपने आप ही उखड़ जाना...यह एक खतरनाक सिग्नल है ...इसे पढ़ कर घबराने की ज़रूरत नहीं ...क्योंिक मरीज़ों में ऐसा देखते हैं इसलिए लिख रहा हूं...जितने मरीज़ हम लोग ओपीडी में देखते हैं दांत हिलने से परेशान...शायद एक प्रतिशत मरीज़ों में ही यह दांतों का अपने आप हिलना मुंह के कैंसर की वजह से होता है...लेिकन यह कोई फिक्स नहीं है...अकसर मसूड़ों आदि का कैंसर जब जबड़े की तरफ़ बढ़ जाता है तो इस तरह की जटिलता पैदा होती है।

अचानक पानी के बताशे खाने में दिक्कत हो ...

अगर आप पानमसाला गुटखा लेते हैं और आप को कभी यह लगे कि मैं तो पानी के बताशे भी ठीक से नहीं खा पा रहा हूं ..इस का मतलब यही है कि आप के मुंह की चमड़ी की लचक कम हो रही है या हो चुकी है ...उसी दिन से पानमसाले-गुटखे को त्याग कर डैंटिस्ट से अपने मुंह की निरीक्षण करवाएं।

मुंह पूरा न खुल पाना यह एक बहुत आम समस्या होने लगी है ...मैंने बीसियों लेख इसी ब्लॉग पर इसी समस्या को लेकर लिखे हैं... लेिकन होता यह गुटखा, पानमसाला, सुपारी की वजह से ही है ...कुछ अन्य कारण भी हैं जिन में मुंह कुछ दिनों के लिए कम खुलता है....जैसे किसी दांत में इंफेक्शन, कईं बार दांतों के इलाज के लिए मुंह में जो टीका लगता है उस की वजह से भी कुछ दिन मुहं पुरा खोलने में दिक्कत आ जाती है, कईं बार कुछ दिनों के लिए अकल की जाड़ हड्डी के अंदर दबी हुई या आधी-अधूरी निकली हुई भी परेशान किए रहती है ...लेकिन यह सब कुछ िदनों के लिए ही होता है ...डैंटिस्ट को देखते ही सही कारण समझ में आ जाता है।

इसे भी ज़रूर पढ़िएगा...मुंह न खोल पाना- एक आम समस्या: ऐसे भी और वैसे भी ..(इस लिंक पर क्लिक करिए)

मुंह के किसी घाव से खून आना, कोई मस्सा होना मुंह में..सूजन होना जो दवाईयों से न जा रही हो, ये सब इतनी नान-स्पेसेफिक से इश्यू हैं कि लोगों के मन में बिना वजह डर पैदा हो जाता है जब कि ये सब मुंह के कैंसर के अलावा ही अधिकतर देखा जाता है...कैंसर तो चुपचाप अपना काम करता रहता है ..इसीलिए ज़रूरी नहीं कि इस तरह के लक्षण हों तो तभी आप डैंटिस्ट से मिलें ...और अगर ये लक्षण नहीं हैं तो आप को डेंटिस्ट से नियमित परीक्षण करवाने की ज़रूरत ही नहीं है, ऐसा बिल्कुल नहीं है, सलाह यही है कि हर छः महीने के बाद दंत चिकित्सक से मिल लिया करें...अगर आप ये सब चीज़ें नहीं भी इस्तेमाल करते तो भी दांतों की कैविटी, पायरिया आदि की रोकथाम के लिए या उन्हें प्रारंभिक अवस्था में पकड़ने के लिए भी यह रेगुलर विज़िट जरूरी होती है।

अब कितना लिखें यार इस विषय पर ...पिछले पंद्रह सालों से लिखे ही जा रहा हूं ...निरंतर ...लेिकन पता नहीं ऐसा क्या है, इस ज़हर में कि लोग छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे ....यह कब किसे अपनी चपेट में ले लेगा, कोई नहीं जानता..आप के हाथ में बस इतना है कि इन उत्पादों से दूर रहिए, और दंत चिकित्सक से रेगुलर चैक-अप करवाते रहिए। बोर हो गये हैं यार लिखते लिखते इस विषय पर ....लेिकन बोर होने से बात बनने वाली नहीं है ...

मैं जब भी किसी मुंह के कैंसर के मरीज़ को देखता हूं पहली बार तो मुझे सब से मुश्किल बात यही लगती है कि यार, इसे बताएं कैसे ...क्योंकि बायोप्सी आदि तो बाद में होती ही है, अधिकतर केसों में पता चल ही जाता है ...यह बड़ा फील होता है कि वह तो ऐसे हल्के फुल्के अंदाज़ में दांत मसूड़े की किसी तकलीफ़ के लिए दवाई लेने आया और मुझे इसे कुछ और बताना पड़ेगा...

समय के साथ उस को इस के बारे में बताने का तरीका भी आने लगता है...पहली बार में कितना कहना है, कितना नहीं, उसे सदमा भी नहीं लगना चाहिए, लेकिन वह हमारी बात को इतना हल्के में भी न ले कि फिर दिखाने ही न आए...सभी बातों का संतुलन रखते हुए मुझे हर ऐसे मरीज़ के साथ पंद्रह मिनट अलग से बिताने ही होते हैं...जिस में मैं पहली ही विज़िट में उस का मनोबल इतना बढ़ा देता हूं कि वह पूरे इलाज के तैयार हो जाए और उसी दिन से ही पान, तंबाकू-वाकू को हमेशा के लिए थूक दे..

बचपन में मास्साब कहानियां सुनाते थे तो बाद में उस से मिलने वाली शिक्षा का भी ज़िक्र होता था... लालच बुरी बला है, एकता में बल है, याद है ना आप सब को ...बस, मेरी इतना आग्रह है कि मेरी ऊपर लिखी बातों को पढ़ कर समझें या न समझें, याद रखें या न रखें, लेिकन इन उत्पादों से हमेशा दूर रहें....यह आग का खेल है...खेल उन सिनेस्टारों के लिए है जिन्होंने कभी इन चीज़ों को इस्तेमाल नहीं किया होता लेिकन करोड़ों रूपये के लालच में युवाओं का बेड़ागर्क करने में भी नहीं चूकते ....और ये हीरो आज के युवाओं के रोल-माडल हैं!.... अफसोस...




थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है ..

कुछ दिन पहले गुड-फ्राय-डे वाले दिन मैं मुंबई की एक चर्च के बाहर खड़ा था...पास ही एक दुकान से ठक-ठक की आवाज़ आ रही थी।

उधर देखा तो यादव जी बड़ी तल्लीनता से एक पत्थर की धार लगाने में मस्त थे...यादव उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं...आठ दस से बंबई में हैं... बंबई में भी क्या हैं, बस पापी पेट के चक्कर में टिके रहते हैं वहां छःसात महीने...उस के बाद गांव लौट आते हैं...क्या बताया था नाम, शायद आजमगढ़ ...

मैं भी उन्हें उस पत्थर को तलाशते हुए देखने लगा...यादव जी एक चक्की चलाते हैं...यह भाड़े की दुकान है ... जिस का किराया ३० हज़ार रूपये महीना है ..बस इतनी ही जगह है जितनी आप इस तस्वीर में देख पा रहे हैं...

चक्की के पत्थर की कुछ दिनों के बाद धार लगानी होती है ...वरना आटा बारीक नहीं पिस पाता...यादव ने बताया...

एक पत्थर की धार लगाने में तीन घंटे लग जाते हैं

मुझे किराये की रकम सुन कर बहुत हैरानगी हुई ..मैंने फिर से पूछा...मैंने पहली बार ठीक ही सुना था..तीस हज़ार...इस में बिजली का बिल भी शामिल है...और जब वे पांच महीने के लिए गांव कूच कर जाते हैं तो इस ठीये (अड्डे को...बंबईया भाषा) किराये पर उठा जाते हैं...बता रहे हैं यादव कि वे कुछ नहीं लेते उस से...उसे किराया भरना होता है और बाकी कमाई अपने पास रख सकता है जिसे वह यह दुकान आगे किराये पर उठा कर जाते हैं।

मुझे यह सोचना ही इतना कष्टदायक लग रहा था कि पहले तो बंदा महीने में तीस दिन काम करे ..बिना नागा...फिर रोज़ कमाई का पहला एक हज़ार भाड़े का निकाले...उस के बाद उस की कमाई की बात शुरू हो...बता रहे थे कि किराया निकालने के बाद भी दस-पंद्रह-बीस हज़ार बच ही जाते हैं.. यादव वही बता रहे थे कि रोज़ का फिक्स नहीं है, बारह सौ, पंद्रह सौ, दो हज़ार ..

बड़े शहरों में हम सब जानते ही हैं कि survival का प्रश्न होता है ....जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही होती है ..लेकिन फिर भी ये लोग खुश दिखते हैं ... आप को क्या लगता है?

बिल्कुल छोटे छोटे काम धंधे करते हैं...गुज़ारा चलाते हैं ...एक ट्रैफिक सिग्नल पर यह बंदा गनेरियां (गन्ने के छोटे२ टुकड़े) प्लास्टिक की पन्नी में डाल कर बेचता हुआ दिखा..अच्छा है, अपना अपना जुगाड़ किए हुए हैं लोग...लेकिन उसी समय मेरा ध्यान उन बदकिस्मत किसानों की तरफ़ चला गया जो अपनी फसल की उचित कीमत न मिलने पर या अपना कर्ज़ न चुकता कर पाने की हालत में फंदे पर लटक जाते हैं ..लेिकन उन की मेहनत से दूसरे लोग पलते हैं....
बंबई के ट्रैफिक सिग्नल पर बिकती गनेरियां 
चलिए यह गनेरियां वाला तो ठीक है...बच्चे पाल रहा है, लेकिन किसान के उगाये गेहूं का आटा कंपनियों द्वारा ४५-५० रूपये किलो. के हिसाब से बिकता है ....लेकिन कब से कह तो यही रहे हैं कि उस के भी अच्छे दिन आयेंगे......देखते हैं..


लोग हर शहर में हर तरफ़ हर समय मेहनत तो कर ही रहे होते हैं ..दो दिन पहले हम लोग लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट से रात में साढ़े बारह बजे आ रहे थे तो अचानक यह ट्रक दिख गया..इतना बड़ा ट्रक पहली बार दिखा था...टैक्सी ड्राईवर ने बताया कि इस के १२० पहिये हैं और यह मैट्रो रेल के ट्रैक को लाद कर ले जा रहा है ....हमने पहली बार इस तरह की माल-ढुलाई देखी थी... मैट्रो का सारा सामान इधर-उधर ले जाने का काम रात के उसी दौर में ही चलता है..

जब सिर्फ़ साईकिल का ही सहारा रह जाता है ..

यह बात मैंने आज से दस साल पहले यमुनानगर में नोटिस की...हम किराये के एक मकान में रहते थे..पास ही एक बुज़ुर्ग ..बहुत बुज़ुर्ग ८०-८५ साल से ऊपर की उम्र होगी...साथ में कमर पूरी तरह से मुड़ी हुई थी...बहुत ही कमज़ोर, आंखों की रोशनी भी बहुत कम ...मैं अकसर उन्हें देखा करता था कि घर से साईकिल पर निकलते थे...कुछ भी सामान लाने के लिए..अपनी दिनभर की ज़रूरतों को स्वयं जा कर खरीदते थे..

मुझे कितने ही महीने लग गये यह नोटिस करने में यह महाशय साईकिल पर निकलते तो हैं लेिकन कभी साईकिल इन्हें चलाते तो देखा नहीं...मैं यह तो सोचा ही करता था कि यह साईकिल चला तो पाते नहीं होंगे, फिर इसे साथ लेकर निकलते क्यों हैं, फिर बात मेरी समझ में आ गई कि यह साईकिल को एक सहारे की तरह इस्तेमाल किया करते हैं...

एक बार यह बात समझ में आ गई तो फिर मुझे ऐसे बुज़ुर्ग बहुत सी जगहों पर दिखने लगे...यहां लखनऊ में भी मैंने देखा ..अपने अस्पताल के बाहर ही कईं मरीज़ों को जो साईकिल पर आते तो हैं, उस की सवारी कर के नहीं, बस उसे एक सहारे की तरह इस्तेमाल करते हुए...उम्र के हिसाब से किसी के घुटने नहीं चलते, किसी को चलने में दिक्कत है, किसी के पैर लड़खड़ाते हैं, किसी को िदखता कम है, किसी के शरीर में अब पैडल मारने की शक्ति नहीं है ...लेकिन साईकिल का सहारा लेकर वे धीरे धीरे अपनी मंज़िल की तरफ़ चल निकलते हैं। 

कल रात मुझे यह बुज़ुर्ग दिखे ..

कल रात मैं भी साईकिल पर ऐसे ही घूम रहा था...मैंने लखऩऊ एलडीए एरिया में एक बुज़ुर्ग को देखा तो मुझे पहले तो यही ध्यान आया कि यह पैदल क्यों चल रहे हैं, लेकिन फिर तुरंत ध्यान आ गया..कि यह भी अकेले बचे साईकिल के सहारे वाला ही केस है। 

बेशक ऐसे लोगों का मेरे मन में बहुत सम्मान है जो उम्र की किसी भी अवस्था में हार नहीं मानते..बस ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए मस्त रहते हैं...यही ज़ज्बा है जो सब से ज़रूरी होता है उम्र के उस दौर में शायद ...फिर से एक थ्यूरेटिक बात कर रहा हूं शायद....पता नहीं। 

कईं बार हम सब ने नोटिस किया है कि सब कुछ होते हुए भी ...धन दौलत, सेहत ...रहने को अच्छा आशियाना..लेकिन फिर भी खुशी गायब होती है कुछ बुज़ुर्गों की ज़िंदगी से ...और कुछ इतने मस्त-मौला होते हैं कि बिल्कुल परवाह ही नहीं करते ...मुझे एक बात याद आ गई ...कुछ महीने पहले मेरे पास एक ८०वर्ष के करीब बुज़ुर्ग आए...मुंह में दो या तीन दांत ही बचे थे हिलते हुए....मुझे लगा कि इन्हें उखड़वाने आए होंगे...लेकिन नहीं, उन्हें तो बस उन में कभी कभी दर्द होता था..कोई मामूली सी दवा लेने आए थे...मैंने हैरान हो कर पूछा कि आप खाना कैसे खाते हैं?..उस बुज़ुर्ग ने मुझे निःशब्द कर दिया यह कह कर कि डाक्टर साहब, मैं तो कोई ऐसी चीज़ है ही नहीं जिसे खाता न होऊं...सब कुछ खाता हूं, मजे में हूं...कोई दिक्कत नहीं है। 

लेकिन मैं भी अपनी आदत से मजबूर ... मैंने पूछा कि आप भुने ही चने तो नहीं खा पाते होंगे...वह कहने लगे ...नहीं, खूब खाता हूं..ग्राईंडर में पिसवा लेता हूं। मुझे उन से मिल कर उस दिन बहुत खुशी हुई ..इतना सकारात्मक रवैया अपनी सिचुएशन के प्रति....यह बुज़ुर्ग मुझे हमेशा याद रहेंगे। 

कुछ दिन पहले अखबार में एक विज्ञापन देखा ....दो तीन बार देखा ...ऐसा लगा कि बुज़ुर्ग महिला का चेहरा जान पहचाना लग रहा है ...अनुमान लगाया कि शायद यह कामिनी कौशल हों, तुरंत गूगल बाबा से पूछा...अनुमान सही निकला....आप देखिए उम्र के इस पढ़ाव में भी किस तरह से काम में लगे हुए हैं...कामिनी कौशल सिनेजगत की एक जानी मानी हस्ती रही हैं... पारिवारिक, साफ-सुथरे मनोरंजन के लिए बहुत मशहूर नाम। 

तभी मुझे ध्यान आया कि यह तो प्रिंट मीडिया का विज्ञापन है ...शायद यू-ट्यूब पर भी कोई ऐसा विज्ञापन हो ...मिल गया, वहां भी ....और उस को मैं यहां एम्बेड कर रहा हूं....भाषा शायद कोई और है, लेकिन उस से क्या, हमें मैसेज तो पहुंच ही रहा है...मैं इन विज्ञापन बनाने वालों से बहुत मुतासिर हूं...विशेषकर जब वे  'Slice of life' टाइप के विज्ञापन हमें परोसते हैं...सर्फ के ही इतने बेहतरीन विज्ञापन हमें याद हैं...दाग अच्छे हैं वाला विज्ञापन जब बच्चे दोस्त बन जाते हैं कीचड़ में खेलते खेलते. ...और एक वह वाला जिस में एक टीचर के डॉगी की डेथ हो जाती है, बहुत उदास हैं, स्कूल नहीं आतीं और शाम के वक्त उस का एक नन्हा सा छात्र कीचड़ में लथपथ उस की खोज-खबर लेने पहुंच जाता है ...उसे देख कर टीचर जी हंस पड़ती है...


जीवन में प्रेरणा ज़रूरी नहीं कि हमें बड़े बड़े लोगों की बातों से ही मिले....हम अपने आस पास ही से प्रेरणा लेते हैं...मुझे भी कल ध्यान आ रहा था कि रिटायरमैंट के बाद जिस भी शहर में रहने का अवसर मिलेगा...वहां पर तीन चार अस्पताल में निःशुल्क सेवा किया करूंगा...बड़ी तमन्ना है...आगे आगे देखते हैं होता है क्या!...लेकिन रिटायरमेंट के बाद करना कुछ ऐसा ही है। वैसे भी जितनी भी जान मार लूंगा ...एक करोड़ से ज़्यादा तो क्या इक्ट्ठा कर पाऊंगा रिटायरमेंट के बाद ...और इतने में एक ढंग का फ्लैट भी नहीं मिलता...फिर इतनी सिरदर्दी मोल ही क्यों ली जाए...मैं तो यही सोच कर शांत हो जाता हूं। 

सक्रिय रहने के इस ज़ज्बे को सलाम 
जो लोग विशेषकर बुज़ुर्ग हार नहीं मानते उन्हें देखना ही अपने आप में एक प्रेरणा है ... कुछ दिन पहले मैंने गोवा के एक बाज़ार में एक बहुत व्यस्त रोड़ पर एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला को देखा ...होगी ज़रूर ९० वर्ष के करीब की होगी...हाथ में लाठी और टार्च....और समुद्री तट पर एक ९० वर्ष की औरत भी मिली जो रोज़ाना दूर से टहलने आती हैं...अपने पति के साथ...

ज़्यादा क्या लिखना है दोस्तो, आप सब समझते ही हैं....दुनिया बड़ी तेज़ी से बदल रही है, हमारा सब कुछ बदल रहा है...पहले हम लोग डबल स्टैंडर्डस की बात किया करते थे, अब तो भई multi-standards की बात करनी चाहिए...जहां तक हो सके, खुश रहें और सब को खुश रखें, हर हालात में ईश्वर का शुक्रिया अदा करते रहें, किसी आध्यात्मिक सत्संग से जुड़िए...कुछ न कुछ असर तो देर सवेर हो ही जाएगा... 

और एक काम की बात....एक बहुत पापुलर गीत है ..तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो...तुम को अपने आप ही सहारा मिल जाएगा... बस, अब के लिए इतना ही आज का विचार....वैसे इस तरह की विचार मुझे आज से चार वर्ष पहले भी आया था...जिसे मैं यहां दर्ज कर दिया था... तुम बेसहारा हो तो 

सोमवार, 28 मार्च 2016

दिन में एक घंटा अपने लिए...बस!


सुबह सुबह का एक घँटा हमें अपने लिए ऱखना चाहिए...यही तो सुनते हैं हम लोग प्रवचनों में दिन भर...दिन में कुछ वक्त अपने आप को भी देना चाहिए...

लेकिन मैंने यह देखा है कि यह शोर हमारा पीछा वहां भी नहीं छोड़ता...शोर..अंदरूनी भी और बाहरी भी ...अंदरूनी शोर तो शांत होते होते होगा..लेिकन यह बाहरी शोर भी हमें अपने आप से मिलने नहीं देता...

जिस पार्क में टहलने जाता हूं वहां पर लोग योगाभ्यास कर रहे होते हैं...अच्छा लगता है, एक बार मैं भी एक जगह गया, योगाभ्यास करते करते बीच बीच में राजनीति का तड़का लगते देखा तो अजीब सा लगा...फिर से इच्छा नहीं हुई...ऐसा भी नहीं है कि राजनीति की बात ही करना मुनासिब नहीं है, लेकिन वह समय इस के लिए मुफीद नहीं था....बिना वजह उत्तेजित हो जाना...

आज भी देखा कि पार्क में मेरे आगे एक ७०-७५ वर्ष के बुज़ुर्ग टहल रहे थे, अचानक एक फोन...बातचीत से लग रहा था कि किसी "अपने"का ही होगा..लखनऊ के बाशिंदों का बातचीत करने का लहज़ा तो नफ़ीस है ही, बेशक, वे भी कुछ समय तक बड़े आराम से किसी घरेलू समस्या के बारे में फोन करने वाले से बात करते रहे...फिर वे थोड़ा ऊंचा बोलने लगे...फिर उन्हें शायद यह ज़रूरत महसूस हुई कि ये बातें टहलने वाले ट्रैक पर करने की बजाए, पार्क के अंदर किसी बेंच में बैठ कर की जानी चाहिए... लेकिन तब तक उन का स्वर बहुत उग्र हो चुका था... मुझे उन की सेहत की चिंता हो रही थी...

मुझे यह देख कर बहुत बुरा लगा ..इसलिए कि एक बंदा सुबह सवेरे घर से अपने आप से कुछ लम्हे बिताने आया है लेिकन ये फोन करने वाले कमबख्त वहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ते ... और वह सुबह पौने सात बजे के करीब का
समय तो इन सब पचड़ों के लिए होता ही नहीं है...

वह बुज़ुर्ग बंदा कुछ समय पहले पेड़ों पर नये नये कपोलों को निहारते हुए ...उन की कोमलता और रंग-रूप का आनंद लेते हुए मजे ले रहा था...लेिकन उस कमबख्त फोन करने वाले ने इस रंग में भंग डाल दिया हो जैसे...कितनी भी ज़रूरी फोन क्यों न हो, इतना ज़रूरी नहीं हो सकता कि यह आधा घंटा इंतज़ार न कर सकता हो..

 नईं फूटी कोमल हरी पत्तियां देख कर बहुत खुशी हुई 

लेकिन लिखते लिखते यह भी ध्यान आ रहा है कि हर शख्स की अपनी मजबूरियां हैं....अपनी अलग परिस्थितियां हैं, ऐसे में क्या टिप्पणी करें!

मैं जिस योग कक्षा की बात कर रहा हूं...वहां पर मैंने जाते जाते सुना एक बंदा वाट्सएप पर वॉयरल हुई उस बात की चर्चा कर रहा था कि पाकिस्तानी क्रिकेट टीम भारत आने से पहले भारत से यह कहती थी कि पहला सुरक्षा दो तभी आएंगे ..लेकिन हारने के बाद अपने देश से यह कहने लगी कि सुरक्षा दो तभी लौटेंगे....यह सुन कर सारे लोग ठहाके लगाने लगे....सारे लोग तो वाट्सएप से जुड़े नहीं होते, ऐसे में जो लोग पहली बार यह सुनते हैं वे भी एंज्वाय करते हैं।



सुबह सुबह का समय अपने लिए तो होता ही है, लेकिन मैंने देखा है कि कुछ यार-दोस्त जो मस्ती से टहल रहे होते हैं वे खूब हंसी मज़ाक करते हुए टहलते हैं ...उन्हें खुश देख कर अपना मन भी खुश हो जाता है ... आज प्रातःकालीन भ्रमण से लौटने के बाद पेपर में इसी विषय पर एक अच्छा सा छोटा लेख दिख गया...ओशो की बात करता हुआ..हंसी मज़ाक के मायने बताता हुए...आप भी पढ़िए.....




एक बार मेरे मन में यह इच्छा हुई कि उन बुज़ुर्ग को कहूं कि भाई साहब, आप करिए इस फोन को बंद कुछ लम्हों के लिए ..और लीजिए मैं आप को एक नुस्खा देता हूं..

शनिवार, 19 मार्च 2016

अमोल पालेकर - दा ग्रेट

अभी कुछ दिनों से फ्लिपकार्ट का एक विज्ञापन दिख रहा है ...अचानक ध्यान आया कि यह तो अमोल पालेकर जो हमें स्कूल-कालेज के दिनों से एन्टरटेन करते आ रहे हैं..


अभी कुछ पोस्ट लिखने लगा था..लखनऊ के बॉटेनिकल गार्डन के बारे में ...और एक ९५ वर्ष की बुज़ुर्ग की सीख के बारे में...सोचा, फिर कभी देख लेंगे...ज्ञान तो बंटता ही रहता है ..आज बातें न करी जाएं, चुपचाप अमोल पालेकर के गीतों का चित्रहार सुना जाए....क्या वही बार बार, पोस्ट पे पोस्ट, उस से क्या हो जायेगा, कुछ भी नहीं...कभी भी मन की भी सुन लेनी चाहिए...

मुझे जो भी अपने स्कूल कालेज के दिनों के गीत याद आए मैंने उन्हें यू-ट्यूब पर देखा और यहां पेस्ट कर दिया...आप भी देखिए जिसे आप देखना-सुनना चाहें... Amol Palekar, a great actor of all times!... family entertainer!

आजकल  कुछ वेबमास्टर्ज़ मुझे अपनी साईट्स पर गेस्ट ऑथर के तौर पर कुछ लिखने को कह रहे हैं... मुझे पता है वे साइटें बहुत अच्छा बिजनेस कर रही हैं, लेकिन जब मैं पूछता हूं कि terms क्या रहेंगी...तो जवाब मिलता है, सर, वह अभी नहीं हो पाएगा... मैं भी कहने लगा हूं मुझे भी कोई जल्दी नहीं है, जब वह हो जायेगा तो कर लेंगे... Nothing comes free actually....सारा काम ही फ्री किया है इन पंद्रह सालों में...लेकिन अब मैं इंतज़ार कर रहा हूं कि कब मुझे ब्लॉगिंग से कुछ कमाई शुरू हो और मैं ऐच्छिक सेवानिवृत्ति की एप्लीकेशन जमा करूं...it is just a matter of time!... वैसे मैंने अभी तक तो अपने ब्लॉग पर कभी विज्ञापन भी नहीं लगाए हैं।

जो भी हो, फ्री काम तो मैं वही करता हूं जिसे करने में मुझे खुशी मिलती है, मैं हल्का महसूस करता हूं...जैसे यह ब्लॉगिंग...मैं इस के लिए जितनी भी दिन में मेहनत करूं...I just love to blog...and it happens effortlessly, i swear... becaue i enjoy what i am doing... अगर किसी के कहने पर किसी विषय पर लिखना है तो उस के लिए तो मुझे प्रयास करना होगा...और वह काम कभी फ्री नहीं हो सकता, न ही होगा...with some exceptions, of course if some NGO site is doing it for philantropic or bigger reason...for that i am always available 24X7.


 तू जो मेरे सुर में सुर मिला दे.. 

एक अकेला इस शहर में...
दो दीवाने इस शहर में ..
आने वाला पल जाने वाला है, हो सके तो इस में ज़िंदगी बिता दो पल जो यह जाने वाला है ...
आज से पहले ..आज से ज़्यादा ...
न जाने क्यों होता है यह ज़िंदगी के साथ...
गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा, मैं तो गया मारा आ के यहां रे ..
कहिए सुनिए..कहिए सुनिए..(बातों बातों में) 
रजनी गंधा फूल तुम्हारे .. 
कईं बार यूं भी देखा है ..
मुझे प्यार तुम से नहीं है ..नहीं है ..
इक बात कहूं अगर मानो तुम...सपनों में ना आना जानो तुम 
न बोले तुम न मैंने कुछ कहा ... 
मैं अमोल पालेकर के गीत देख रहा था तो अचानक राज्यसभा के एक एपीसोड में अमोल पालेकर की इंटरव्यू का वीडियो दिख गया...मैंने भी अभी नहीं देखा, लेकिन उसे यहां एम्बेड कर रहा हूं..आप देखिएगा..
अमोल पालेकर - दा ग्रेट का इंटरव्यू 
जाते जाते एक बात का ध्यान आ रहा है कि फेसबुक पर मुझे अजीबो गरीब प्रोफाइल वाले लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट आती रहती हैं ...ये काम अपने ही आस पास के जान पहचान के ही लोग करते हैं... उन के लिए विनम्रता से एक ही संदेश है .... हम भी बंदे वही हैं... मूर्ख के दास, चतुर के गुरू. (मेरा एक प्रबुद्ध किस्म का मरीज़ मुझे यह लाइन सुना गया था... मुझे भी उसी समय लगा था कि यार, मैं भी तो ऐसा ही हूं....बेवकूफ आदमी का दास बनने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं और .....!!!!   http://emoticony.leestone.co.uk/emoticons_standard/smile-big.png

मूर्ख तो मैं अव्वल दर्जे का हूं ही ...तभी तो गोलमाल जैसी फिल्म को ही भूल गया..अभी याद आया...

गोल माल है भई सब गोल माल है...

इक दिन सपने में देखा सपना ...

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

माल्या के मायाजाल से हमें क्या लेना देना...

पिछले दिनों मुझे मेरा आयकर जोड़ने की तरफ़ इतना ध्यान नहीं था, जितना यह पता करने में मन बेचैन था कि आखिर किन किन बैंकों के करोड़ों निकल गये...है कि नहीं बिना वजह अपने दिमाग पर जोर देने वाली बात... माल्या के मायाजाल से मुझे क्या लेना देना...यह बहुत बड़ी खेल है, मंजे खिलाड़ियों के बस का है यह सब ...आम आदमी के तो छोटा मोटा हज़ारों का लोन लेने में जूते घिस जाते हैं ...इतनी औपचारिकताएं, यह लाओ, वो लाओ. यह गवाही, वह कागज़ात, इतनी फोटो...आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड.

दो िदन पहले मुझे माल्या की बहुत याद आ रही थी..मैं यही सोच रहा था कि उस बंदे ने इतना बड़ा काम कैसे कर लिया...यहां मुझे तो बैंक में इंक्म टैक्स जमा करवाना था, पानी बरस रहा था, उस बंदे ने मेरा ऐसा इंटरव्यू लिया ..कहां का खाता है, आप कहां रहते हो, यह इंक्म टैक्म इस ब्रांच से पहली बार भर रहे हो...बस, वह जैसे मुझसे यह जाना चाह रहा हो कि मेरे पास इस समय क्या नहीं है। आखिर सवाल में मैं पकड़ लिया गया, जैसे ही उसने पूछा कि पैन कार्ड है, मैंने कहा, इस समय तो नहीं है...उस ने बस उसी आफिस आफिस सीरियल की तरज पर कह दिया ..नहीं हो पायेगा तब तो। मैंने कहा कि भाई, सीबीएस ब्रांचें हैं आज कल... पैन दिया तो ही खाता खुला ...

ऩहीं, वह नहीं माना.. मैंने कहा, अच्छा मैं लेकर आता हूं...उसे उस में भी तकलीफ़, कहां रहते हो, मैंने कहा ..यहां से पांच मिनट की दूरी है, आ जाऊंगा...कहने लगा, ले आओ, देखते हैं, अगर टाइम हुआ तब तक तो .....मैं गया, पैन ढूंढा, कापी करवाई, उस के पास पहुंचा, उस ने पैन की तरफ़ देखा भी नहीं, साथ बैठी अपनी एक महिला कुलीग की तरफ़ मुझे भेज दिया कि इन का भी टैक्स भरना है।

हो गया, लेकिन फिजूल की धौड-धूप ...पता नहीं मुझे तो अब बैंक के नाम से ही डर लगने लगा है...कापी अपडेट करवानी हो तो आटोमैटिक प्रिंटिंग मशीन या तो ठीक नहीं होती, या तो उस में पासबुक फंस जाती है, दो तीन बार मेरे साथ हो चुका है, नहीं तो पासबुक प्रिंट करने वाला प्रिंटर खराब चल रहा है, अगर वह ठीक है तो नेटवर्क नहीं है, अगर नेटवर्क है तो स्लो है, अगर सब कुछ है तो आज उस सीट पर कोई है ही नहीं...और भी कईं तरह के पचड़े हैं, मुझे तो बैंक जाने में ही बड़ा आलस आता है ..मजबूरी होती है, पांच छः महीने में एक बार तो जाना ही पड़ता है ...वरना एटीएम बढ़िया है...

हां, तो बात तो माल्या साहेब की हो रही थी, बीच में मैं अपने संस्मरण कहां से ले आया?...तीन दिन पहले मुझे पता चला कि एक लिस्ट आई है पेपर में बैंकों की लिस्ट के साथ कि किस किस बैंक ने कितने कितने करोड़ कर्ज दिया...

कल फिर से पेपर में यह देखा तो इत्मीनान हुआ.... अपनी आंखों से देख कर ... स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इस लिस्ट में टॉप कर रहा है, इसने माल्या को १६०० करोड़ का उधार दे दिया। इस सूचि में टोटल १७ बैंक हैं जिन्होंने ५०- ६०-१५०-३००-४००-५००-६००-८००करोड़ का कर्ज़ माल्या साहेब को दे दिया..

सोशल मीडिया पर लोग खूब मजे ले रहे हैं..लिख रहें हैं लोग कि जो किसान बेचारे हज़ारों का कर्ज़ लेते हैं, न चुका पाने की दशा में फंदे पर झूल जाते हैं.. ऐसे में उन्हें माल्या से ट्रेनिंग दिलवानी चाहिए कि बैंकों के भारी कर्ज़ के बावजूद भी अपना वजूद कैसे बनाए रखा जाए... जब माल्या साहेब गये तो कुछ दिनों बाद पेपर में आया कि वह कह रहे हैं कि मैं न भागा हूं न भगोड़ा हूं, दो तीन दिन बाद पेपर से पता चला कि वे कह रहे हैं कि अभी हालात मेरे लिए वापिस लौटने के लिए मुफ़ीद नहीं हैं, फिर पता चला कि वे ईडी के सामने पेशी के लिए टाइम मांग रहे हैं, कल केन्द्रीय मंत्री ने डिक्लेयर कर दिया है कि पाई पाई ले लेंगे ...आज अभी टीवी बता रहा है कि ईडी (प्रवर्त्तन निदेशालय) ने २ अप्रैल तक माल्या को हाज़िर होने की मोहलत दे दी है ...अब वही बात है ..सन्नी दयोल का वह डॉयलाग .. तारीख पे तारीख ... तारीख पे तारीख...अब इस केस में यह सिलसिला चलता रहेगा..


हां, इस सब पर मुझे ब्लाग लिखने का ध्यान पता है कैसे आया ?.... कल की एक अखबार के पहले पन्ने पर एक फुल पेज विज्ञापन है ...स्टेटबैंक ऑफ इंडिया का .. पता नहीं यह कोई डैमेज कंट्रोल एक्सरसाईज़ है या क्या है, मुझे नहीं पता... एसीबाई कह रहा है कि 50 लाख फेसबुक फोलोअर हो गये हैं और अभी भी जुड़ रहे हैं.. और अपने आप को इस विषय में विश्व में प्रथम स्थान पर डिक्लेयर कर रहा है ....नीचे बड़ा सा हैडिंग है .. डिजिटल इंडिया का बैंक...

लेकिन मैं इस से ज़रा भी इंप्रेस नहीं हुआ...डिजिटल इंडिया का बैंक तो है, निःसंदेह ... जहां कुछ भी काम करने के लिए इस तरह का टोकन मिलता है ...और अगर बारी निकल गई तो निकल गई...फिर से ऐसा ही टोकन लीजिए...लेिकन बात सोचने लायक या छानबीन लायक यह है कि इतनी मुश्तैदी और इतने कड़कपन के बावजूद इतना बड़ा लोन - 1600 करोड़ का कोई ले कर चला गया...और वसूली का अभी तो कुछ अता पता नहीं ..कल निलामी थी माल्या की 200 करोड़ रूपये की एक किंगफिशर इमारत की बंबई में ...किसी ने बोली में भाग ही नही लिया....लोग क्या करें, उन के पास पहले ही से बहुत पचड़े हैं, कौन समझदार आदमी इस तरह के लफड़े वाले सौदे में पड़ना चाहेगा..
एसबीआई के पचास लाख फॉलोअर कुछ खास कहां हैं वैसे भी...  मेरे जैसे बिल्कुल रद्दी लेखक के गूगल प्लस फॉलोवर की संख्या ही अढ़ाई लाख के करीब हो चुकी है ...आप स्वयं इसे इस लिंक पर जाकर चैक कर सकते हैं..

कुछ बातें न कहने में अच्छी लगती हैं न लिखने में ...  लेिकन समझते हम सब हैं कि क्या हुआ होगा और आगे क्या होगा...पूरी समझ रखता है देश का हर नागरिक...

जाते जाते ध्यान आ रहा है ..माल्या साहेब को पार्टी शार्टी में बड़ी दिलचस्पी है ..खूब महंगी, हाई फाई वाली पार्टीयां ..वैसे एक छोटी मोटी पार्टी यहां भी तो चल रही है .. काका जी की बात में दम तो है ...







गुरुवार, 17 मार्च 2016

लोहे वाले नमक के बारे में आप का क्या ख्याल है?

दो दिन पहले हिंदी के अखबार के पहले पन्ने के आधे हिस्से में  टाटा के लोहे वाले नमक का विज्ञापन पसरा हुआ था..खुशी हुई कि ऐसा नमक भी मिलने लगा है ..वैसे टीवी में तो विज्ञापन आ ही रहे हैं...

टाटा कंपनी है, इसलिए गुणवत्ता के बारे में तो कोई चिंता करने की बात ही नहीं, टाटा के नमक का नाम आते ही याद आ जाता है वह विज्ञापन...नमक हो टाटा का, टाटा नमक..

इस तरह से नमक की आयोडीन, आयरन जैसी तत्वों से फोर्टीफिकेशन बहुत आधुनिक तकनीक से किया जाता है, टाटा कंपनी कभी अपने किसी भी प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर समझौता नहीं करती ..वैसे भी इस तरह की तकनीक डिवेल्प करने में नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूट्रीशन का पूरा सहयोग रहा है। 

निःसंदेह यह एक बहुत बड़ा कदम है देश में लोगों की रक्त की कमी (एनीमिया) से जूझने का। मुझे बहुत खुशी है कि शुरूआत हुई है...इस के साथ साथ लोगों को बहुत सी बातें समझाने की ज़रूरत है ...विशेषकर यह बात कि बस, यह लोहे वाला नमक कोई जादू ही न कर देगा...इस के लिए अपने खान पान के चुनाव का भी ध्यान देना होगा...मेरा इशारा महंगे खाद्य-पदार्थों की तरफ़ नहीं है, बस जंक फूड, फास्ट फूड को त्याग कर पौष्टिक खाने को अपनाने की बात है ..तभी तो रक्त बनेगा।

मैंने पिछले चार दिन से इस विषय पर जो रिसर्च की उस के मुताबिक अभी जनता को इस के बहुत से पहलूओं के बारे में बताया जाना बहुत ज़रूरी है.. पता नहीं इतने दिनों से मीडिया में कुछ दिखा क्यों नहीं इस विषय पर ..शायद इसलिए कि यह प्रोडक्ट वैसे तो बड़े शहरों में २०१३ से ही चल रहा है, मुझे इस की जानकारी नहीं थी, नेट से ही पता चला...

मुझे मेरे एक प्रश्न का जवाब क्लियर कहीं नहीं मिला...इस कंपनी की हेल्पलाइन पर फोन भी किया लेकिन बात नहीं हो पाई, मैडीकल कालेज के एक प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष को ई-मेल से भी पूछा.... अभी जवाब नहीं आया...सब से विश्वसनीय साईट्स भी खंगाल लीं...लेकिन इस विषय पर कुछ नहीं दिखा कि अगर कोई व्यक्ति है जिस का हीमोग्लोबिन सामान्य है, क्या वह इस तरह के फोर्टीफाईड नमक (fortified with iron and iodine)का इस्तेमाल कर सकता है..प्रामाणिक जानकारी नहीं मिली मुझे अभी तक। 


लोहे वाले टाटा नमक के विज्ञापन में इस बार की तरफ़ विशेष ध्यान आकर्षित किया जा रहा है कि इसे दस ग्राम खाने से रोज़ाना आप की ऑयरन (लोहे) की दिन भर की ज़रूरत का आधा हिस्सा आप को मिल जायेगा...

बात यह विचार करने योग्य है कि एक परिवार में जिन लोगों का एचबी स्तर ठीक है, नार्मल है, इस का मतलब वे आॉयरन ठीक ठीक मात्रा में पहले ही से ले रहे होंगे, तभी तो सब कुछ दूरूस्त है...अब अगर ऊपर से यह नमक में मौजूद ऑयरन भी उन्हें मिलने लगेगा तो क्या शरीर में इस से कोई हानि तो नहीं होने लगेगी, ऑयरन शरीर के विभिन्न अंगों में जमने तो नहीं लगेगा....कुछ शारीरिक तकलीफ़ें हैं जो शरीर में ऑयरन की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा होने पर भी हो जाती हैं. 
निःसंदेह अधिकतर महिलाओं, बच्चों, किशोरावस्था में, युवावस्था में, गर्भवती महिलाओं में, स्तनपान करवाने वाली माताओं के लिए इस तरह का प्रोड्क्ट एक तोहफे जैसा है...और कैसे भी बिना किसी किंतु-परंतु के उन्हें तो इसे इस्तेमाल करना शुरू कर ही देना चाहिए, एक बार अपने चिकित्सक से पूछ कर। 
कोई यह तर्क भी दे सकता है घर में इतने सारे लोगों के लिए अगर यह प्रोड्क्ट इतना बढ़िया है तो हरिये का क्या, वह अपना अलग नमक इस्तेमाल कर ले, मैंने भी ऐसे सोचा है, लेकिन यह यथार्थ नहीं हैं, जिस तरह से देश में खाना तैयार होता है, यह संभव नहीं होगा कि "मर्द" के लिए अलग खाना बने अलग नमक के साथ, यह हो नहीं पायेगा...न तो इतनी अवेयरनैस ही है, और न ही इतना झंझट हो पायेगा...होगा वही कि अगर कहीं से यह सुगबुगाहट भी हो गई कि यह तो हरिया के लिए ठीक नहीं है, तो न चाहते हुए भी फिर यह नमक घर में आया ही नहीं करेगा...क्योंकि देश में   आम तौर पर सब से कीमती जान घर के "मर्द" की ही मानी जाती है...साथ में बेटों की (छोटे मर्द)...बाकी सब लोग तो जैसे तैसे काम चला ही लेते हैं..

इसलिए मेरे विचार में जल्दी से इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए...मैं अपने स्तर पर भी कोशिश करूंगा, मैडीकल कालेज के प्रोफैसर से मिलूंगा... इस के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के बाद आप के पास वापिस आऊंगा.. आप भी अपने स्तर पर इस का जवाब ढूंढिएगा...प्रश्न ज़रूरी है ...आप की सेहत का मसला है, कहीं यह भी न हो कि जानकारी के अभाव में लोग बाग इसे ज़्यादा इसलिए खाने लगें कि यह लोहे वाला है ...और इसी चक्कर में ब्लड-प्रेशर का स्तर बढऩे लग जाए।
कंपनी की साइट पर ही FAQs में एक प्रश्न है कि क्या यह साल्ट केवल आयरन की कमी वालों के लिए ही है , इस का जवाब यह दिया गया है कि चूंकि हम इस का इस्तेमाल रोज़ाना कुकिंग के लिए कर सकते हैं तो इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है जो सब्जियां खाना पसंद नहीं करते और न ही ऑयरन के सप्लीमैंट्स ही लेते हैं...

आने वाले दिनों में बहुत सी बातें क्लियर हो जाएंगी...लेकिन जो प्रश्न मैंने आप के समक्ष रखा है, उसे ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय लीजिए..तब तक आप यह कर सकते हैं कि घर में कम रक्त की कमी से परेशान बाशिंदों को तो इसे इस्तेमाल करने की सलाह दे ही दें....मैंने टाटा प्लस की साइट पर भी इस प्रश्न का जवाब ढूंढना चाहा तो वे भी इस बात का गोलमोल जवाब दे रहे हैं...ऊपर देखिए स्क्रीनशॉट...आप इस लिंक पर जा कर इस प्रोडक्ट के बारे में अधिक जानकारी पा सकते हैं...  इस तरह के नमक के स्वाद के बारे में और कुछ अन्य ज़रूरी जानकारी भी यहां आप को मिल जायेगी...

मैं भी कैसी ऊट-पटांग नमकीन, कसैली बातें लेकर बैठ गया ..होली के सीजन में, वह भी लखनऊ शहर में ...जब बातें गुजिया, गुलाल, फूलों और रंगों की होनी चाहिए..बस....





टहलना तो बस एक बहाना होता है शायद!

शुरूआत करते हैं जह्ान्वी के इस बेहतरीन डायलाग से ... शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है, अगर यही जीना है तो मरना क्या है...मुझे यह डॉयलाग बहुत पसंद है...अनेकों बार सुन चुका हूं और सुनता रहता हूं ...जैसा आधुिनक जीवन का सार सिमट कर रख दिया हो इसमें...आप भी सुनिए....


यह तो था विद्या बालन का विचार ...मेरा आज का विचार यह है कि टहलना तो बस एक बहाना है, तन मन चुस्त दुरूस्त रखने के साथ साथ टहलने के दौरान हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है, आज प्रातःकाल भ्रमण करते हुए यही ध्यान आ रहा था कि सुबह सवेरे जब हम लोग प्रकृति की गोद में आते हैं तो मानो यह भी अपने सारे खज़ाने खोल देती है ...

जितनी चाहो जिस तरह की चाहो प्रेरणा बटोर लीजिए, जोश भर लीजिए, जीवन जीने की कला और दूसरों को खुश रखने का हुनर सीख लीजिए।

मैं अकसर यह शेयर करता हूं अगर आप रोज़ रोज़ एक ही उद्यान में भी जाते हैं तो परवाह नहीं, बस जाते रहिए, हर दिन आप को कुछ नया दिखता है, कुछ नये नये अनुभव होते हैं ...बहुत कुछ रोमांचित घट रहा होता है हर तरफ़। आप को क्या ऐसा नहीं लगता!

एक बार जो आपसे और शेयर करनी है कि जहां तक हो सके तो हमें  इन जगहों पर बिना एफ एम या एयरफोन्स के ही जाना चाहिए...मैं अकसर उद्यान में टहलते हुए एफएम पर फिल्मी गीत सुनना पसंद करता हूं ...आवाज़ धीमी रखता हूं ..एयरफोन्स का इस्तेमाल नहीं करता...बहुत वर्ष किया...जब लगने लगा कि थोड़ा थोड़ा ऊंचा सुनने लगा हूं तो यह शौक छोड़ दिया...हां, तो मैं कह रहा था कि एफएम सुनते हुए टहलता हूं...लेकिन विचार यह आ रहा था कि यह एफएम वाला शौक पूरा करने के लिए तो पूरा दिन है ...जितना हो सके, उस नैसर्गिक वातावरण के साथ मिलने की, उस के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए...सुबह तो कोशिश भी नहीं करनी पड़ती, यह स्वतः ही हो जाता है।

पार्क के गेट पर लोग योगाभ्यास का आनंद लेते हुए

मैं भी आज एफएम नहीं ले कर गया...तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा... सब से पहले तो देखा कि पार्क के बाहर ही लोग योग क्रिया में रमे हुए थे...अंदर जाते जाते किसी ज्ञानी की एक बात कान में पड़ गई... कि आदमी भी जानवरों से ही सब कुछ सीखता है, परिंदों की उड़ान से सीख ली और हवाई जहाज बन गया...हाथी से सीख ली तो जेसीबी मशीन बन गई....
हमारे दौर की विद्या देवी 

आगे चलने पर आज ये पेड़ खूब दिखे...इन पर लगे ये हरे हरे फल हैं या फूल हैं ...पता नहीं लेिकन इस पेड़ की पत्तियों की यादें ढ़ेरों हैं बचपन की ...यही तो पेड़ है जिस की पत्ती हम लोग कापी-किताब में रख कर सोच लिया करते थे कि अब विद्या देवी हमारे पास है, सब कुछ याद भी हो जायेगा और परीक्षा परिणाम भी बढ़िया आयेगा...हर दौर की अपनी बातें, अपनी भ्रांतियां...innocent, foolish childhood myths!
बुजुर्गों के ठहाके ...दिल खोल लै यारां नाल नहीं ते डाक्टर खोलनगे औज़ारां नाल 
मुझे टहलते हुए अच्छा लग रहा था जब मैं बहुत से लोगों को अपने अपने कामों में मस्त हुआ देख रहा था, कुछ बुजुर्ग अपने ग्रुप में योग करते करते हास्य-योग्य कर रहे थे ....मुस्कान और हंसी भी बड़ी संक्रामक होती है।

इस पार्क में जगह जगह प्लेटफार्म भी बने हुए हैं जहां पर बैठ कर भी लोग योगाभ्यास करते रहते हैं।
यहां प्राणायाम् चल रहा है 
कहीं कोई दंपति प्राणायाम् करता दिखा.... कोई बुज़ुर्ग ध्यान मुद्रा में बैठा जल्दी से अपना परलोक सुधारने की फिराक में लगा दिखा। महान् देश के लोगों की सभी आस्थाओं, धारणाओं को सादर नमन।
मुझे आज सुबह जल्दी उठने का इनाम यह नज़ारा मिला ...थैंक गॉड
हां, कुछ यार दोस्त, खूब हंसते हंसते अपने मोबाइल से फिल्मी गीत सुनते हुए टहल रहे थे...अचानक जैसे ही यह गीत बजा ...थोड़ा रेशम लगता है, थोड़ा शीशा लगता है ... तो उन में से एक दोस्त ने चुटकी ली.....अच्छा, थोड़ा रेशम लगता है .........अच्छा....बस, फिर से उन के ठहाके।
ऐसे माहौल में शेल्फी भी ठीक ठाक आ जाती है ...एक और फायदा 
सुबह सुबह का वातावरण अलग ही होता है ...मैंने अचानक आसमान की तरफ़ देखा तो मुझे यह स्वर्णिम नज़ारा दिखा..चंद मिनटों के लिए ही रहा ..

सुबह सुबह ऐसे में टहलने से हमें किसी की खुशी में खुश होने की भी सीख मिलती हैं , वरना सत्संग में यह भी तो समझाते हैं कि आज का मानव दूसरे की खुशी से नाखुश है...उदास है ... और एक बात संक्रामक हंसी से याद आ गई ...

मैं सत्संग में सुनता हूं अकसर कि एक बार एक गुरु ने अपने दो शिष्यों को १००-१०० फूल दिए और उन्हें बांटने के लिए कहा ...शर्त यही रखी कि जो हंसता हुआ दिखे ... उसे ही एक फूल देना है....शाम के वक्त दोनों लौट आए, एक के पास सभी फूल वैसे के वैसे और दूसरे को झोला खाली ....जो चेला सारे फूल वापिस ले कर लौट आया, उन ने पूछने पर बताया कि बाबा, दुनिया है ही इतनी खराब, सारे के सारे उदासी में जिए जा रहे हैं, सुबह से शाम हो गई , मुझे तो कोई भी मुस्कुराता नहीं दिखा...

चलिए अब दूसरे की बारी आई....उसने कहा ... कि बाबा, लोग इतने अच्छे हैं, मैं जिसे भी मिला, मैं उसे देख कर जैसे ही मुस्कुराता, वह भी खुल कर मुस्कुरा देता..और मैं झोले में से गुलाब निकाल कर उसे थमा देता....गुरू जी, मेरे फूल तो एक घंटे में ही खत्म हो गये....मुझे तो यही लग रहा था कि मुझे और भी बहुत से फूल लेकर चलना चाहिए था।

सीख क्या मिलती है इस प्रसंग से, हम सब जानते ही हैं, हंसिए खुल कर हंसिए, और दुनिया आप के साथ हंसेगी...बांटिए, खुशियां बांटिए, मदर टेरेसा ने एक बार कहा था कि आप जिस से भी मुलाकात करो, उसे आप से मिलकर बेहतर महसूस करना चाहिए।
सूर्योदय का मनोरम नज़ारा...काश, बचपन में सूर्य नमस्कार ही सीख लिया होता..
मुझे लगता है हम सब का यही प्रयास होना चाहिए....लेकिन इस के लिए पहले हमें अपने अाप को तो खुश रखना सीखना होगा कि नहीं, just being at ease with ourselves....और सुबह का टहलने इन ढ़ेरों खुशियों को बटोरने का एक बहाना है ...पंक्षियों की चटचहाहट, ठंड़ी हवाएं, खुशगवार फिज़ाएं, हरियाली, खिलखिलाते फूल.....omg... बस करता हूं कहीं कवि ही न बन जाऊं...वरना दिक्कत यह हो जायेगी कि थोड़ा बहुत जितना भी काम का बचा हुआ हूं वह भी नहीं बच पाएगा।

हमारी कॉलोनी की सड़कों पर पसरा सन्नाटा 
मुझे अपनी हाउसिंग सोसायटी में टहलने का मन नहीं होता ...बिल्कुल सुनसान सन्नाटे वाली सड़कें...कंक्रीट का एक जंगल सा ..हरियाली तो है वैसे ..लेिकन फिर भी यह एक हमेशा सैकेंड ऑप्शन ही रहता है मेरे लिए...क्योंकि जैसा मैंने पहले ही कहा है कि टहलना तो बस एक बहाना है, उस दौरान हमें अपने रूह की खुराक भी इक्ट्ठा करनी होती है ...यह सब स्वतः होने लगता है...और फिर हम ने देखना है कि कैसे हम उस एनर्जी से अपने आस पास के वातावरण को अभिसिंचित कर सकते हैं, दिन भर ....यह भी प्रभु कृपा से अपने आप ही होने लगता है....

जाते जाते कल सत्संग में स्टेज पर विराजमान महात्मा ने एक बात समझाई ....जितना प्राप्त है, पर्याप्त है... हम ने नोट कर ली उसी समय, कागज़ पर तो हो गई, काश, हम लोगों के दिल में भी बस जाए यह बात...सहज जीवन का मूल-मंत्र....

एक बात और .....When you are good to others, you are best to yourself!  (यह पोस्टर मैंने विशेष तौर पर बनवाया था औरर होस्टल में अपने कमरे में टांगा हुआ था)....पढ़ते ही मजा आ जाता था...

बस, अब इजाजत लेने की बारी है ....हां, उन दोस्तों वाला गीत तो सुनते जाइए...थोड़ा रेशम लगता है .....

दरअसल मैंने भी यह गीत आज मुद्दतों बाद सुना...अभी देखा तो झट से याद आ गया कि यह तो ज्योति फिल्म का गीत है ...कालेज के पहले साल में देखी थी यह फिल्म --१९८१ की एक सुपर-डुपर हिट फिल्म...


मंगलवार, 15 मार्च 2016

लखनऊ के साईकिल ट्रैक..अच्छे लगते हैं!

आज सुबह कोई भजन-नुमा गीत नहीं सुना....थोड़ा नीरस लग रहा है, अभी सुन लेते हैं.. अभी यह याद आ रहा है ...

आज सुबह सात बजे के करीब साईकिल चलाने निकला तो मैंने देखा कि घर के आस पास ही कुछ दिनों में ही साईकिल ट्रैक बन कर तैयार हैं...it was a pleasant surprise!...शायद इस तऱफ़ कुछ दिनों के बाद निकला था..

लखनऊ में एक काम आज कर ज़ोरों शोरों से हो रहा है मैट्रो रेल का और दूसरा साईकिल ट्रैक बनाने का काम.. शहर में जगह जगह पर ट्रैक बनते देख रहा हूं पिछले कुछ अरसे से। 

यहां हर एरिया के ट्रैक की कुछ विशेषताएं हैं जो मैंने नोटिस की हैं...एक व्ही आई पी एरिया है ..बंदरिया बाग .. इस तरफ़ मुख्यमंत्री का आवास है .. पास ही राज भवन है ..राज्यपाल का आवास है... इस तरफ़ जो साईकिल ट्रैक हैं, वे भी बहुत बढ़िया हैं...अच्छे से रंग बिरंगे पेन्ट से पुते हुए हैं..देखने में ही बड़े आकर्षक लगते हैं...कहीं कहीं स्वास्थ्य संबंधी संदेश भी देखने को मिलते हैं..साईकिल पर चलने की प्रेरणा देते,  मैंने उस एरिया के साईकिल ट्रैक की तस्वीरें एक बार खींची तो थीं..लेकिन अब पता नहीं कहां हैं। 

लखनऊ का एक पॉश एरिया है गोमती नगर...कुछ महीने पहले मैंने देखा था कि वहां पर भी साईकिल ट्रैक बन रहे हैं ..लेकिन यहां पर कुछ ट्रैक सड़क के बीचों बीच डिवाईडर की जगह पर बनते दिखे... वह कोई इश्यू नहीं है .. लेिकन मैंने देखा कि जो ट्रैक कुछ तैयार भी हो चुके थे, उस के रास्ते में लोगों ने कुछ न कुछ अवरोध पैदा कर रखे थे...


बदलाव हमेशा कष्टदायक होता है लोगों के लिए...लेकिन बेहतरी के लिए बदलाव तो प्रकृित का अटल नियम है ही। ये सब शुरूआती मुश्किलें हैं, जैसे ही ये ट्रैक अच्छे से तैयार हो जाएंगे, लोग अपने अपने रास्ते को क्लियर करवा ही लेंगे, उस की चिंता नहीं है। 

वैसे भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी साईकिल चलाने के शौकीन हैं...बहुत बार विभिन्न समारोहों में इन्हें साईकिल पर देखा है ... ऐसे में लखनऊ में बहुत से साईकिल ट्रैक एक साथ तैयार हो रहे हैं, यह कोई हैरानगी की बात नहीं...इस पहल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। 

हां, तो मैं अपने पड़ोस वाले साईकिल ट्रैक की बात कर रहा था... मैंने देखा कि साईकिल ट्रैक जहां तैयार हैं वहां पर साईकिल चलाने वाले उस के अंदर न चल कर, बाहर चले जा रहे थे...थोड़ा आगे चलने पर समझ में आया कि ट्रैक चाहे तैयार हैं, लेिकन मलबा या दूसरे तरह के अवरोधों की वजह से लोग उस के अंदर चल नही पा रहे हैं, कुछ कुछ जगहों पर तो निर्माण कार्य चल रहा है.. कुछ जगहों पर कुछ दुकानदारों ने अपना सामान उस जगह में सरका दिया है.. मुझे लगता है कि प्रशासन जल्दी ही इस को क्लियर करवा ही लेगा...यह कोई बड़ी बात नहीं है। 

मैं साईकिल पर चलता हुआ यही सोच रहा था कि पता नहीं यह ट्रैक कैसे बनाते होंगे ..क्योंकि इस तरह की चौड़ी सपाट सड़कों पर तो इन्हें बनाने में कोई दिक्कत है ही नहीं...मैं थोड़ा सा ही आगे चला तो मुझे पता चला कि इस की क्या प्रक्रिया है ...पहले खड्ढा खोदा जाता है, उस के बाद एक सीमेंट से तैयार की गई इस आकार की सिल्ली को उस में फिट कर दिया जाता है ...


आगे देखा तो पता चला कि एक ट्रक से सिल्लियां उतर रही थीं.. यानि कि यह काम ज़ोरों शोरों पर चालू है। एक जगह कोई खबर यह भी पढ़ी थी कि लखनऊ में देश का सब से बड़ा साईकिल ट्रैक बनेगा....बहुत अच्छी बात है ...

एक साईकिल सवार भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगा, बहुत से लोग (मेरे जैसे) जो peak hours के दौरान साईकिल को सड़क पर ले जाने में डरते हैं, वे भी साईकिल पर निकला करेंगे ... बच्चे स्कूल जाने के लिए साईकिलों पर निकला करेंगे ..यह सब सोच कर के ही बहुत अच्छा लगता है..! वरना तो हम बिना किसी शारीरिक श्रम के फैलते जा रहे हैं.. एक अच्छी बात आज की टाइम्स ऑफ इंडिया की ग्रैफिटि में लिखी मिली ...पढ़ कर आप को भी अच्छा लगेगा...

मैं इस ब्लाग में बहुत बार अपने साईकिल प्रेम का इज़हार कर चुका हूं...बहुत पसंद है साईकिल से चलना, ऐसे ही बिना वजह साईकिल पर नईं नईं जगहें देखने निकल जाना... यह मैं सन् २००० से कर रहा हूं...बड़ा आलसी जीव हूं, बीच में कईं बार महीनों की छुट्टी भी कर लेता हूं ...कारण बताऊं या बहाना शेयर कर दूं?...साईकिल में हवा नहीं है, अब बाज़ार से भरवाने का झंझट ...क्योंकि अब इतने समझदार हो चले हैं कि खुद भरने में शर्म लगती है ..

३०-४० मिनट भी आप साईकिल रोज़ चलाएंगे तो बहुत तरोताज़ा महसूस करेंगे....आजमा के देखिए... कितना अच्छा हो कि अगर लखनऊ शहर से प्रेरणा लेकर देश के अन्य शहरों में भी इस तरह के ट्रैक तैयार होने लगें...सच में मज़ा आ जायेगा...win-win situation...सेहत बढ़िया रहेगी,  जनता जनार्दन की भी और पर्यावरण की भी। 

एक बात शेयर करनी थी...मुझे याद है बात अमृतसर शहर की है ..हम स्कूल में थे ..यही चौथी-पांचवी कक्षा में रहे होंगे...हमारी कालोनी के ग्राउंड में इस तरह के आयोजन हुआ करते थे कि कोई साईकिल सात दिन निरंतर चलायेगा ... साईकिल पर ही सब शारीरिक क्रियाएं ..खाना, पीना, सुस्ताना ...सब कुछ। यह भी देखने वाला मंज़र हुआ करता था... हम तो जब फ्री हुआ करते थे, वह नज़ारा देखने चले जाया करते थे... शोर फिल्म आई थी उन्हीं दिनों...उस का यह गीत भी बिल्कुल वही नज़ारा दिखा रहा है .......दिखा तो रहा ही है, बहुत ही बातें हमारे काम की भी बता रहा है अगर हम इन्हें इस्तेमाल करना चाहें तो ... मुझे यह गीत बहुत पसंद हैं..इसे सुनते ही मैं ४० साल पुराने दिनों की मधुर यादों में खो जाता हूं....आप भी सुनेंगे?
जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम... 

सोमवार, 14 मार्च 2016

फ़क़त एक लाल मिर्ची ने कैसे ले ली एक बच्ची की जान !






पहले तो इस बात का यकीं ही नहीं हुआ..ऐसे लगा जैसे मुझे पढ़ने में कुछ गलती लगी हो..लेिकन फिर से पढ़ा आज की टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर छपी इस पहली खबर को ..दो साल की बच्ची ने एक लाल मिर्ची को खा लिया और इसी चक्कर में उस की जान चली गई....बहुत दुःखद, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण।


छोटे बच्चों के लिए हम लोग अपने स्विच बोर्ड चाइल्ड-प्रूफ कर लेते हैं.. मैंने कुछ रिपोर्टज़ देखीं कि छोटे बच्चों ने गेम्स में डलने वाले छोटे गोलाकार सेलों को निगल लिया...पेरेन्ट्स को आगाह तो करते ही हैं कि जिन रिमोट्स में भी छोटे गोलाकार सेल पड़ते हैं, उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाए, दवाईयों के बारे में तो कहते ही हैं...हां, दवाईयों से एक बात याद आई, कल से नईं बात पता चली पेपर से कि जिन दवाईयों की स्ट्रिप्स पर लाल लाइन लगी हो, उन्हें आप को बिना डाक्टर की सलाह के लेना ही नहीं है... उत्सुकता हुई, घर मे कुछ दवाईयां थीं, देखा उन पर लाल लाइन लगी हुई थी, इस बात का हमें आगे प्रचार करना चाहिए।


आगे से लाल लकीर का आप भी ध्यान रखिएगा.. इस संदेश को आगे भी पहुंचाइएगा
हां, मैं कह रहा था कि छोटी छोटी बातों के लिए छोटे बच्चों के पेरेन्ट्स को सावधान तो करते ही हैं लेिकन अब तो पेरेन्ट्स अपने आप बच्चों को इस लाल मिर्ची से भी दूर रखना होगा..

हां, तो दिल्ली में रहने वाली इस दो वर्ष की बच्ची के साथ यह हुआ कि इसने गलती से एक लाल मिर्ची को काट लिया....ज्यादा से ज्यादा होता, मुंह जलता या आंखों से पानी आता. थोड़ी शक्कर खाने से ठीक हो जाता, लेकिन नहीं, इस बच्ची की तो सांस लेने की प्रक्रिया ही फेल हो गई ...चिकित्सीय मदद के बावजूद वह चल बसी।

आल इंडिया मैडीकल इंस्टीच्यूट दिल्ली में इस बच्ची के शव की जांच (आटोप्सी) से पाया गया कि उस की सांस की नली में पेट के द्रव्य ( gastric juices) चले गये... जिस की वजह से उस की सांस लेने की प्रक्रिया बंद हो गई। दरअसल इस बच्ची को मिर्ची खाने के बाद उल्टीयां आने लगीं और बस, उसी दौरान उल्टी का कुछ हिस्सा सांस की नली में पहुंच गया...डाक्टरों की कोशिश के बावजूद बच्ची २४ घंटों में ही चल बसी।

यह वाकया तो कुछ महीने पहले का है, लेकिन यह मैडीको-लीगल जर्नल में अभी छपा है ..

ध्यान रखिए भई आप जिन के छोटे बच्चे हैं, मेरे जैसे बड़ों को भी यह समझना बहुत ज़रूरी है कि खाने के वक्त बातें नहीं करनी होतीं, चुपचाप खाना खाइए...वरना यह खतरा उस दौरान भी बना ही रहता है...कितनी बार तो हमारे साथ ही होता रहता है...कुछ बात बार बार दोहराने लायक होती हैं, शायद हमारे मन में बस जाएं....जैसे जहां शोच, वहां शोचालय के बारे में  विद्या बालन की डांट-डपट हम सुन सुन कर कुछ सुधरने लगे हैं..काकी, क्या करूं अब लोग तो सुनते नहीं, मक्खियां को ही कहना पड़ेगा कि इन के खाने पे मत बैठो।



 दूसरी खबर जो पहले ही पन्ने पर छपी है और परसों से टीवी पर बीसियों बार देख-सुन-समझ चुके हैं कि संघ वाले अब खाकी निक्कर की जगह भूरे रंग की पतलून पहना करेंगे....बहुत अच्छा ...मुझे समझ यह नहीं आया कि इस में ऐसी क्या बात है कि जो कि पेपर के पहले पन्ने पर इसे छापा गया और वह भी तस्वीर के साथ... तस्वीरों के बारे में भी पेपर वालों की दाद देनी पड़ेगी, पता नहीं क्या क्या इन्होंने अपने आर्काइव्ज़ ने सहेज रखा है, बच के रहना चाहिए..

पहले पन्ने पर एक खबर यह भी िदखी कि रेलवे अब कंबल को प्रत्येक इस्तेमाल के बाद साफ़ किया करेगी....लिखा है उस में किस तरह से नये डिजाईन के कंबल आएंगे...अभी कुछ गाड़ियों में ही इसे शुरू किया जायेगा... इसी चक्कर में मुझे आज सुबह आठ-दस साल पहली लिखी एक ब्लॉग-पोस्ट का ध्यान आ गया.. उसे आप के लिए ढूंढ ही लिया..

अब इस कंबल के बारे में भी सोचना पड़ेगा क्या! (इस पर क्लिक कर के इसे देख सकते हैं, अगर चाहें तो)..

मेरे विचार में अभी के लिए इतना ही काफ़ी है, मैं भी उठूं ...कुछ काम धंधे की फिक्र करूं....ये बातें तो चलती ही रहेंगी,..बिना सिर-पैर की, आगे से आगे... फिर मिलते हैं ...शाम में कुछ गप्पबाजी करेंगे...   till then, take care... may you stay away from Monday Blues!