मंगलवार, 15 मार्च 2016

लखनऊ के साईकिल ट्रैक..अच्छे लगते हैं!

आज सुबह कोई भजन-नुमा गीत नहीं सुना....थोड़ा नीरस लग रहा है, अभी सुन लेते हैं.. अभी यह याद आ रहा है ...

आज सुबह सात बजे के करीब साईकिल चलाने निकला तो मैंने देखा कि घर के आस पास ही कुछ दिनों में ही साईकिल ट्रैक बन कर तैयार हैं...it was a pleasant surprise!...शायद इस तऱफ़ कुछ दिनों के बाद निकला था..

लखनऊ में एक काम आज कर ज़ोरों शोरों से हो रहा है मैट्रो रेल का और दूसरा साईकिल ट्रैक बनाने का काम.. शहर में जगह जगह पर ट्रैक बनते देख रहा हूं पिछले कुछ अरसे से। 

यहां हर एरिया के ट्रैक की कुछ विशेषताएं हैं जो मैंने नोटिस की हैं...एक व्ही आई पी एरिया है ..बंदरिया बाग .. इस तरफ़ मुख्यमंत्री का आवास है .. पास ही राज भवन है ..राज्यपाल का आवास है... इस तरफ़ जो साईकिल ट्रैक हैं, वे भी बहुत बढ़िया हैं...अच्छे से रंग बिरंगे पेन्ट से पुते हुए हैं..देखने में ही बड़े आकर्षक लगते हैं...कहीं कहीं स्वास्थ्य संबंधी संदेश भी देखने को मिलते हैं..साईकिल पर चलने की प्रेरणा देते,  मैंने उस एरिया के साईकिल ट्रैक की तस्वीरें एक बार खींची तो थीं..लेकिन अब पता नहीं कहां हैं। 

लखनऊ का एक पॉश एरिया है गोमती नगर...कुछ महीने पहले मैंने देखा था कि वहां पर भी साईकिल ट्रैक बन रहे हैं ..लेकिन यहां पर कुछ ट्रैक सड़क के बीचों बीच डिवाईडर की जगह पर बनते दिखे... वह कोई इश्यू नहीं है .. लेिकन मैंने देखा कि जो ट्रैक कुछ तैयार भी हो चुके थे, उस के रास्ते में लोगों ने कुछ न कुछ अवरोध पैदा कर रखे थे...


बदलाव हमेशा कष्टदायक होता है लोगों के लिए...लेकिन बेहतरी के लिए बदलाव तो प्रकृित का अटल नियम है ही। ये सब शुरूआती मुश्किलें हैं, जैसे ही ये ट्रैक अच्छे से तैयार हो जाएंगे, लोग अपने अपने रास्ते को क्लियर करवा ही लेंगे, उस की चिंता नहीं है। 

वैसे भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी साईकिल चलाने के शौकीन हैं...बहुत बार विभिन्न समारोहों में इन्हें साईकिल पर देखा है ... ऐसे में लखनऊ में बहुत से साईकिल ट्रैक एक साथ तैयार हो रहे हैं, यह कोई हैरानगी की बात नहीं...इस पहल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। 

हां, तो मैं अपने पड़ोस वाले साईकिल ट्रैक की बात कर रहा था... मैंने देखा कि साईकिल ट्रैक जहां तैयार हैं वहां पर साईकिल चलाने वाले उस के अंदर न चल कर, बाहर चले जा रहे थे...थोड़ा आगे चलने पर समझ में आया कि ट्रैक चाहे तैयार हैं, लेिकन मलबा या दूसरे तरह के अवरोधों की वजह से लोग उस के अंदर चल नही पा रहे हैं, कुछ कुछ जगहों पर तो निर्माण कार्य चल रहा है.. कुछ जगहों पर कुछ दुकानदारों ने अपना सामान उस जगह में सरका दिया है.. मुझे लगता है कि प्रशासन जल्दी ही इस को क्लियर करवा ही लेगा...यह कोई बड़ी बात नहीं है। 

मैं साईकिल पर चलता हुआ यही सोच रहा था कि पता नहीं यह ट्रैक कैसे बनाते होंगे ..क्योंकि इस तरह की चौड़ी सपाट सड़कों पर तो इन्हें बनाने में कोई दिक्कत है ही नहीं...मैं थोड़ा सा ही आगे चला तो मुझे पता चला कि इस की क्या प्रक्रिया है ...पहले खड्ढा खोदा जाता है, उस के बाद एक सीमेंट से तैयार की गई इस आकार की सिल्ली को उस में फिट कर दिया जाता है ...


आगे देखा तो पता चला कि एक ट्रक से सिल्लियां उतर रही थीं.. यानि कि यह काम ज़ोरों शोरों पर चालू है। एक जगह कोई खबर यह भी पढ़ी थी कि लखनऊ में देश का सब से बड़ा साईकिल ट्रैक बनेगा....बहुत अच्छी बात है ...

एक साईकिल सवार भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगा, बहुत से लोग (मेरे जैसे) जो peak hours के दौरान साईकिल को सड़क पर ले जाने में डरते हैं, वे भी साईकिल पर निकला करेंगे ... बच्चे स्कूल जाने के लिए साईकिलों पर निकला करेंगे ..यह सब सोच कर के ही बहुत अच्छा लगता है..! वरना तो हम बिना किसी शारीरिक श्रम के फैलते जा रहे हैं.. एक अच्छी बात आज की टाइम्स ऑफ इंडिया की ग्रैफिटि में लिखी मिली ...पढ़ कर आप को भी अच्छा लगेगा...

मैं इस ब्लाग में बहुत बार अपने साईकिल प्रेम का इज़हार कर चुका हूं...बहुत पसंद है साईकिल से चलना, ऐसे ही बिना वजह साईकिल पर नईं नईं जगहें देखने निकल जाना... यह मैं सन् २००० से कर रहा हूं...बड़ा आलसी जीव हूं, बीच में कईं बार महीनों की छुट्टी भी कर लेता हूं ...कारण बताऊं या बहाना शेयर कर दूं?...साईकिल में हवा नहीं है, अब बाज़ार से भरवाने का झंझट ...क्योंकि अब इतने समझदार हो चले हैं कि खुद भरने में शर्म लगती है ..

३०-४० मिनट भी आप साईकिल रोज़ चलाएंगे तो बहुत तरोताज़ा महसूस करेंगे....आजमा के देखिए... कितना अच्छा हो कि अगर लखनऊ शहर से प्रेरणा लेकर देश के अन्य शहरों में भी इस तरह के ट्रैक तैयार होने लगें...सच में मज़ा आ जायेगा...win-win situation...सेहत बढ़िया रहेगी,  जनता जनार्दन की भी और पर्यावरण की भी। 

एक बात शेयर करनी थी...मुझे याद है बात अमृतसर शहर की है ..हम स्कूल में थे ..यही चौथी-पांचवी कक्षा में रहे होंगे...हमारी कालोनी के ग्राउंड में इस तरह के आयोजन हुआ करते थे कि कोई साईकिल सात दिन निरंतर चलायेगा ... साईकिल पर ही सब शारीरिक क्रियाएं ..खाना, पीना, सुस्ताना ...सब कुछ। यह भी देखने वाला मंज़र हुआ करता था... हम तो जब फ्री हुआ करते थे, वह नज़ारा देखने चले जाया करते थे... शोर फिल्म आई थी उन्हीं दिनों...उस का यह गीत भी बिल्कुल वही नज़ारा दिखा रहा है .......दिखा तो रहा ही है, बहुत ही बातें हमारे काम की भी बता रहा है अगर हम इन्हें इस्तेमाल करना चाहें तो ... मुझे यह गीत बहुत पसंद हैं..इसे सुनते ही मैं ४० साल पुराने दिनों की मधुर यादों में खो जाता हूं....आप भी सुनेंगे?
जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम... 

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