मुझे याद है जब मैं आठ-दस वर्ष का था, हमारे पास एक बाबा आदम के जमाने का मर्फी रेडियो हुआ करता था जिस का सब से बड़ा फैन मेरा बड़ा भाई था, उसे फिल्मी गीत सुनना बड़ा अच्छा लगता था, सारे प्रयोग कर लिया करता था चंद गीतों को सुनने के लिए -- ऊपर छत पर ऐरियर जैसी तार किसी पत्थर के नीचे रख कर आना, आवाज़ में गड़गड़ होने पर उस को हल्के से दो-तीन हाथ भी लगा देता था.......अरे यार, जो स्विच को ऑन करने के बाद वह एक-डेढ़ मिनट का इंतज़ार हुआ करता था कि अब आई आवाज़, अब आई.......वह रोमांच भुलाए नहीं भूलता।
और हां, खबरें भी तो हम उसी पर सुना करते थे और जिस दिन देश में कोई घटना हो जाती तो पड़ोसी-वड़ोसी यह कह कर बड़ी धौंस जमाया करते थे कि अभी अभी बीबीसी पर खबर सुनी है। मुझे धुंधला धुंधला सा याद आ रहा है कि १९७१ के भारत-पाक की सही, सटीक जानकारी के लिए हम लोग किस तरह से बीबीसी रेडियो के कैच होने का इंतज़ार किया करते थे ...शायद अकसर यह रात ही के समय कैच हो जाता था, उस रेडियो के साथ पूरी मशक्कत करने पर.....उस ऐरियर वाली तार के जुगाड़ को कईं बार इधर उधर हिला कर। लेकिन यह क्या, दो मिनट सुन गया, फिर आवाज़ गायब........कोई बात, हम इस के अभ्यस्त हो चुके थे। बहुत सारा सब्र... कोई अफरातफरी नहीं।
उस के पंद्रह बीच वर्ष बाद जब फिलिप्स का वर्ड-रिसीवर लिया.....तब बीबीएस को सुनना हमारे एजेंडा से बाहर हो चुका था. बस १९९० के दशक के बीच तक हम केवल रेडियो पर एफएम ही सुनने के दीवाने हो चुके थे।
हां, अब मैं बात शुरू करूंगा बीबीसी हिंदी वेबसाइट की....... इसे आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं और आनंद ले सकते हैं। इस का यूआरएल यह है ... www.bbc.co.uk/hindi
इस वेबसाइट से मेरा तारूफ़ पांच वर्ष पहले हुआ.. मैं इग्न्यू दिल्ली में विदेशी विशेषज्ञों सें इंटरनेट लेखन की बारीकियां एक दो महीने के लिए सीखने गया था। वहां पर हमें अकसर बीबीसी साइट (इंगलिश) का उदाहरण लेकर कईं बातें समझाई जाती थीं, इसलिए धीरे धीरे इस साइट में मेरी भी रूचि बढ़ने लगी।
कैसे लिखना है, कितना लिखना है, लेखन को कैसे प्रेजैंट करना है, यह बीबीसी की अंग्रेजी और हिंदी वेबसाइट से बढ़िया कोई सिखा ही नहीं पाएगा, यह मैंने बहुत अच्छे से समझ लिया है।
जब भी इस वेबसाइट पर गया हूं अच्छा लगता है। एक बहुत बड़ी खूबी यह कि जो कुछ भी लिखा जाता है एकदम विश्वसनीय....यह इन की प्रशंसनीय परंपरा है।
एक बात और मजे की यह है कि इस पर हिंदी पत्रकारिता का कखग सीखने के लिए भी रिसोर्स है..... हिंदी पत्रकारिता पर हिंदी बीबीसी की वेबसाइट
एक बार और...जो मैंने नोटिस की कुछ बहुत ही लोकप्रिय हिंदी की वेबसाइटों के बारे में कि कुछ अजीब किस्म की चीज़ें अपनी साइटों पर डालने लगे हैं...सैक्स के फार्मूले, सैक्स पावर बढ़ाने के नुक्ते, बेड-रूम के सीन.......यानि कुछ भी ऐसा अटपटा खूब डालने लगते हैं ...शायद वे लोग यह नहीं समझते कि इस काम के लिए उन्हें इतनी मेहनत करने की ज़रूरत है ही नहीं, वैसे ही नेट इस्तेमाल करने वाले इस तरह की सामग्री से एक क्लिक की दूरी पर हैं, आप का काम है केवल हिंदी में साफ़-सुथरी उपलब्ध करवाना .......और इस महत्वपूर्ण वैश्विक सामाजिक दायित्व के काम के लिए मैं बीबीसी की हिंदी वेबसाइट को पूरे अंक देना चाहता हूं.....एक दम साफ सुथरी, ज्ञान-वर्धक, विश्वसनीय और बिना किसी अश्लील कंटैंट के ......इसलिए भी यह इतनी लोकप्रिय साइट है।
मैंने पिछले दिनों इस के रेडियो के भी कईं प्रोग्राम सुने और फिर उस के बारे में प्रोड्यूसर को फीड बैक भी भेजी.....मैंने भगवंत मान की इंटरव्यू सुनी थी और उसे इतने अच्छे तरीके से पेश किया गया था कि मुझे तुरंत प्रोग्राम प्रस्तुत करने वाले श्री जोशी जी को बधाई भिजवाने पर विवश होना पड़ा।
कुछ बातें इस वेबसाइट पर देख कर थोड़ा अजीब सा लगता है ......... सब से ज़्यादा अहम् बात तो यह है कि पता नहीं क्या कारण है, मेरी समझ से परे है, ये बीबीसी हिंदी वाले लोग (इंगलिश वाले भी) अपने पाठकों से सीधा संवाद क्यों नहीं स्थापित करना चाहते, इस के कारण मेरी समझ में नहीं आ रहे।
इंटरएक्शन और फीडबैक तो वेब 2.0 की रूह है यार और वही गायब हो तो ज़ायका कुछ खराब सा लगता है, कुछ नहीं बहुत खराब लगता है....ठीक है यार आप लोगों ने अपनी स्टोरी परोस दी, दर्शकों-पाठकों तक पहुंच भी गई, लेिकन उस की भी तो सुन लो, उस की प्रतिक्रिया कौन लेगा।
आप इन की किसी भी न्यूज़-रिपोर्ट के साथ नीचे टिप्पणी देने का प्रावधान पाएंगे ही नहीं, आज के वक्त में यह बात बड़ी अजीब सी लगती है, फीडबैक से क्यों भागना, बोलने दो जो भी कुछ दिल खोल कर कहना चाहता है, उस से दोनों का ही फायदा होगा, वेबसाइट का भी और सभी यूजर्स का भी। अपने दिल की बात लिखने से ज़्यादा क्या कर लेगा फीडबैक देने वाला.......आप चाहे तो मानिए, वरना विवश कौन कर रहा है। लेकिन इस तरह की पारदर्शिता से लोग उस वेबसाइट से सीधा जुड़ पाते हैं --एक रिश्ता सा कायम होने लगता है।
एक बात और मैंने नोटिस की.....वह शायद मुझे ही ऐसा लगा हो कि बीबीसी हिंदी का फांट इतना अच्छा नही है, अगर कोई बढ़िया सा और थोड़ा बड़ा फांट हो तो इस साइट को चार चांद लग जाएंगे।
बहरहाल, यह वेबसाइट हिंदी वेबसाइटों की लिस्ट में से मेरी मनपसंद वेबसाइटों पर बहुत ऊपर आती है.......क्योंकि यहां फीडबैक के प्रावधान के बिना शेष सब कुछ बढ़िया ही बढ़िया है............लेकिन आज के दौर में फीडबैक का अभाव अपने आप में एक उचित बात नहीं लगती, वह ठीक है, उन की अपनी पालिसी होगी। हां, संपर्क के लिए एक फार्म तो भरने के लिए कहते हैं........लेकिन यार यह नेट पर जा कर फार्म वार्म भरने का काम बड़ा पकाने वाला काम लगता है....कौन पड़े इन फार्मों के चक्कर वक्कर में........ दो एक बार भर भी दिया.....लेकिन ये लोग कभी उस का जवाब नहीं देते......कम से कम मैंने यह पाया कि ..they dont revert back!
फिर भी यह साइट रोज़ाना देखे जाने लायक तो है ही......... strong recommendation!
लीजिए इसी साइट पर रेडियो के एक प्रोग्राम को सुनिए.....बेहतरीन प्रस्तुति ..... (नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करिए) ..
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2014/08/140807_sikh_us_video_akd.shtml
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2014/08/140807_sikh_us_video_akd.shtml
आपको यह जानकर और सुखद आश्चर्य होगा कि बीबीसी हिंदी की वेबसाइट यूनिकोड हिंदी की सर्वप्रथम वेबसाइटों में से एक है!
जवाब देंहटाएंजी रवि जी, यकीनन यह जान कर खुशी हुई।
हटाएंऔर यह भी यहां दर्ज करना चाहूंगा कि २००७ में जब मेरा बेटा मेरे लिए नेट पर हिंदी लिखने का कुछ जुगाड़ ढूंढ रहा था तो आप ही की वेबसाइट के दर्शन सब से पहले हिंदी में हमें हुए थे.... निःसंदेह भारत में अंतर्जाल पर हिंदी में प्रयोग के लिए किये गये आप के प्रयास इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखे जाएंगे।
बहुत बहुत साधुवाद।