राजू इस समय बहुत मुसीबत में है...किसी मित्र के रेफरेंस के साथ मेरे से बातचीत कर के मार्ग-दर्शन के लिये कुछ दिन पहले आया था। वह 30-35 साल का एक स्वस्थ नौजवान है....शादीशुदा है, बाल-बच्चे हैं। उसे चार वर्ष से एक ही समस्या है कि पेशाब करने के बाद भी कुछ कुछ पेशाब की बूंदे टपकने की वजह से उस की पैंट गीली हो जाती है। चार वर्ष पहले उस ने इस के लिये किसी डाक्टर के कहने पर एक अल्ट्रा-साऊंड करवाया था.....उस में बाकी सब कुछ तो नार्मल था, लेकिन प्रोस्टेट ग्लैंड ( इस एरिया में तो इसे गदूद ही कहते हैं) में सूजन आई थी। तब, उसे इस के लिये कुछ दवाईयां किसी डाक्टर ने दे दी। उस डाक्टर ने उसे यह भी समझा दिया कि ज़्यादा मिर्च-मसाले मत खाया करो, सादा आहार लिया करो........खैर, इन चार सालों में वह कईं तरह तरह के डाक्टरों के पास चक्कर काट काट कर परेशान हो चुका है.....इन सब पर खूब खर्चा कर चुका है। जिस दिन वह मेरे से बात करने आया था तो उस से पहले भी वह किसी डाक्टर से मिल कर ही आ रहा था, सो उस के हाथ में केवल एक दवाईयों का नुस्खा और वही चार साल पुरानी अल्ट्रा-साउंड की रिपोर्ट थी।
मैंने उस की पूरी पर्सनल हिस्ट्री लेने के बाद जब यह जानना चाहा कि तकलीफ़ जो चार साल से चल रही है, उस में इन दिनों क्या कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। तब उस ने मन खोल कर बात की कि उसे शायद पेशाब करने के बाद भी बूंद-बूंद टपकने से कोई परेशानी नहीं है। लेकिन पिछले चार-महीनों से उसे सैक्स में थोड़ी कठिनाई होने लगी है। उस समय मेरा उस से यह पूछना ज़रूरी था कि किस किस्म की कठिनाई.....मैं जानना चाह रहा था कि किसी तरह का डिस्चार्ज तो नहीं होता, कहीं से कोई रक्त तो नहीं बहता...........लेकिन उस ने झट से बतला ही दिया कि मुझे यह सब कुछ नहीं है ....लेकिन उसे अपनी पत्नी के पास जाने में हिचकिचाहट सी होने लगी है.....और वह भी इरैक्शन में तकलीफ़ की वजह से !....मैंने उस से यह पूछा कि तुम अभी जिस डाक्टर से दवा लेकर आ रहे हो,उसे इस के बारे में बताया था.....तो उसने कहा कि उन के पास उस समय बहुत से मरीज़ खड़े थे और उन्होंने उस बूंद-बूंद वाली शिकायत सुनने के बाद आगे कोई सवाल पूछा ही नहीं था।
राजू नाम के शख्स को मिलने के बाद मैं काफी समय यही सोचता रहा कि जिन मरीज़ों को सही समय पर सही विशेषज्ञ के पास रैफर कर दिया जाता है ...वे बहुत भाग्यवान होते हैं....नहीं तो अकसर देखते हैं कि छोटे छोटे रोग यूं ही विकराल रूप धारण कर लेते हैं जिन की वजह से सेहत की , रूपये-पैसे की बर्बादी तो होती ही है और साथ ही साथ जो परेशानी होती है उस का तो कोई हिसाब ही नहीं । राजू यह भी बता रहा था कि जिस डाक्टर को भी मिला है उन सब ने यही कहा है कि कुछ नहीं है....बस, तुम खाना-पीना हल्का खाया करो। लेकिन राजू की आदतें जानने से नहीं लगता कि इस तरह की बातों में कोई गड़बड़ है...उसे न तो कोई व्यसन है और न ही वह दूसरी औरतों वगैरा के चक्कर में है। मैं भी यही सोच रहा था कि जिन जिन चिकित्सकों को यह बंदा मिला है उन्होंने बस दवाईयां देकर ही उसका इलाज करना चाहा....अभी जो उसकी मौजूदा शिकायत है( इरैक्टाइल डिस्फंक्शन वाली ) उस के लिये भी उसे यही कहा गया कि देखो, ऐसा कुछ नहीं हो सकता, यह तो तुम्हारे मन की ही उपज है। लेकिन मरीज कितना इंटैलीजैंट है ...उस से बात कर के पता चल जाता है.....राजू को अपनी नौकरी के सिलसिले में दो-तीन महीने किसी दूर जगह पर तैनात रहना पड़ता है....उसे इस दौरान कभी कभार स्वपन-दोष( night-fall) भी होता है जिसकी उसे कोई टैंशन नहीं है क्योंकि किसी चिकित्सक ने उसे यह बतला दिया हुया है कि वह सब नार्मल है। जागरूकता के इतने स्तर के बारे में जान कर तसल्ली भी हुई ।
बात सोचने की है कि एक 30-35 साल का स्वस्थ नौजवान दिन में कईं बार रैज़िडूयल यूरीन की वजह से पैंट गीली होने की बात कर रहा है और अब चार महीने से उस की सैक्सुयल लाइफ भी डिस्टर्ब हो रही है............ऐसे में क्या कुछ कैप्सूल-गोलियां थमा देने से सब कुछ ठीक ठाक हो जायेगा। बिना किसी तरह की प्रोस्टैट की ढंग से जांच किये बगैर कैसे आप किसी को यह कह सकते हो कि सब कुछ तुम्हारे मन में ही है....हां, अगर किसी विशेषज्ञ ने सारे टैस्ट कर लिये होते, सब कुछ दुरूस्त मिलता तो बहुत माइल्डली समझाया जा सकता है कि सब कुछ ठीक हो जायेगा.....तुम इस की बिल्कुल भी चिंता न किया करो।
तो, मैंने तो उसे यही सलाह दी कि उसे किसी अच्छे यूरोलॉजिस्ट से मिल लेना चाहिये.......वह प्रोस्ट्रेट-ग्लैंड को क्लीनिकली चैक करेगा, उस का नया अल्ट्रा-साउंड करवायेगा, शायद कुछ ब्लड-यूरिन टैस्ट वगैरा भी होंगे........यह सब कुछ करने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि आखिर प्रोस्ट्रेट ग्लैंड इतने सालों से क्यों प्राबल्म कर रहा है, क्यों हो रही है इस तरह की सैक्सुयल समस्या ....क्या इस का प्रोस्ट्रेट की सूजन से कोई संबंध है, इस पुरानी प्रोस्ट्रेट की तकलीफ के कारण किसी तरह की इंफैक्शन किसी दूसरी तरफ तो नहीं फैल चुकी, क्या इस तकलीफ का समाधान आप्रेशन से होगा.....क्या वह लैपरोस्कोपी(दूरबीन) से संभव है......इसी तरह के ढ़ेरों सवालों के जवाब उस विशेषज्ञ के पास ही हैं......बाकी लोग तो तुक्के मारते रहेंगे, टोटके बताते रहेंगे।
उम्मीद है कि मेरी इस पोस्ट के पीछे छिपी स्पिरिट को आप समझ गये होंगे कि आज कल हमें अगर सही समय पर सही सलाह मिल जाती है तो वह अनमोल है.........इसलिये कभी भी सैकेंड ओपिनियन लेने में भी नहीं झिझकना चाहिये। मानव की शरीर, उस की फिज़ियॉलॉजी, साईकॉलॉजी .....बहुत ही कंप्लैक्स बात है..........इसे हम लोग विशेषकर जब कोई किसी अंग की ऑरगैनिक व्याधि ( organic disease) से ग्रस्त हो तो ऐसे ही नीम-हकीमों के चक्कर में न पड़ते हुये किसी विशेषज्ञ चिकित्सक का रूख करने में ही बेहतरी है।
मैंने तो पूरी कोशिश की है कि अपनी बात प्रभावपूर्ण तरीके से आप के सामने रख सकूं,.....वैसे जाते जाते यह ज़रूर बतलाना चाहूंगा कि यह राजू वाला किस्सा शत-प्रतिशत सच्चाई पर आधारित है लेकिन उस का नाम मैंने ज़रूर बदला है-- Simply because of the fact there can never ever be any compromise with the confidentiality clause of doctor-patient relationship.