सोमवार, 21 जनवरी 2008

अपने सारे स्क्रैप्स की गठड़ी इधर ही उतार कर थोडा़ हल्का हो लूं??


इस में आप को कोई आपत्ति तो नहीं होगी !! दोस्तो, पिछले लगभग 10-12 सालों से मीडिया की जिन बातों ने भी मुझे छुया, कुछ सोचने को मजबूर किया, किसी दीवार पर लिखी बात ने हंसाया, किसी ट्रक के पीछे लिखी किसी बात ने अपनी तरफ ध्यान खींचा, किसी करैंसी नोट पर किसी प्रेमी का अपनी प्रेमिका के लिए लिखे संदेश, मेरे किसी मरीज द्वारा बोली गई किसी पते की बात, किसी समाचार-पत्र में छपी किसी तस्वीर ने जब हिला दिया, किसी ट्रेन में यात्रियों की आपसी बातचीत, किसी प्लेटफार्म पर कोई रोचक सी घटना....कोई खास किस्म का संस्मरण, कोई ऐसी फोटो जो जब भी दिखती है तो हंसाती है, मेरे पिता जी द्वारा मुझे 10-12 साल पहले लिखी चिट्ठीयां, कुछ प्रेरणात्मक कहावतें जो किसी पत्रिका अथवा पत्र से नकल कर के रख लीं या उन की कतरन ही रख ली कि कभी इस्तेमाल करूंगा....किसी समाचार-पत्र में छपे किसी कार्टून ने जब बहुत हंसाया, किसी व्यंग्य लेख ने जब सारे घर वालों को खूब हंसाया, किसी घटना ने जब कुछ ज्यादा ही छू लिया, किसी की बात ने जब मेरा मन दुखाया, किसी का मन जब मैंने दुखाया, किसी ने जब मेरे साथ बदतमीजी की या मैंने जब किसी के साथ ठीक व्यवहार न किया, जो बातें मन को कहीं न कहीं कचोट रही हैं, जो बातें अंदर ही अंदर दबी हुई हैं, जो निकलना चाहती हैं लेकिन या तो गले के भीतर ही अटक कर रह जाती हैं या जुबान पर आकर उस पर ताला सा लग जाता है---खुद मैं ही इसे लगाने वाला हूं..किसे से क्या गिला-शिकवा—सब कुछ जो हमारे साथ घट रहा होता है, उस के लिए हम खुद ही तो जिम्मेदार होते हैं,और क्या, ...जिस किसी फिल्म ने मुझे हिला दिया, जो फिल्मी गीत मुझे झकझोर देते हैं.........अपने पिता जी के हाथों से लिखे कुछ कागज.........अपनी पांचवी कक्षा की मैरिट स्कालरशिप की फोटो, स्कूल के दिनों में स्कूल की पत्रिका में छपे लेख, .......अरे यार, मैं इतना लिखता जाऊंगा न तो बस शाम ऐसे ही हो जाएगी। तो, सीधी बात पर आता हूं कि इन सब बातों की मेरे पास एक कलैक्शन है.....पता नहीं और भी क्या क्या कचरा मैंने अपने स्टडी-रूम में रख छोड़ा है.....एक स्क्रैप बुक भी है जिस में इन के बारे में लिख छोड़ा है, लेकिन अब सोचता हूं कि इन सब से निजात पा ही लूं....क्योंकि इन सब के रहते मेरा स्टडी रूम पढ़ने वाला कमरा कम और कोई कबाड़खाना ज्यादा लगने लग गया है....ओह, माई गुडनैस, इतना कबाड़ कि मेरी ही वहां जाने की इच्छा नहीं होती , तो सोच रहा हूं कि इस सारे स्क्रैप को क्यों न इस आन-लाइन डायरी में ही डाल कर फारिग हो लूं.....तो ठीक है, दोस्तो, आज से इस काम में भी लग रहा हूं। मुझे आशीर्वाद दें कि मैं अपने स्टडी-रूम को पेपर-लैस करने में सफल हो सकूं। हां, तो दोस्तो, इस डायरी में लिखे स्क्रैप्स के लिए भाषा की कोई शर्त नहीं होगी, कुछ कुछ चीज़े आप को अंग्रेज़ी में दिखेंगी, कुछ पंजाबी में भी दिख सकती हैं जिसे मैं लिख तो देवनागरी स्क्रिप्ट में ही दूंगा......बस, और क्या?-----लेकिन मेरी गारंटी यही है कि आप को बोर नहीं होने दूंगा। हां, तो दोस्तो मैं कह रहा था न कि इस में कुछ कुछ वाक्य कईं बार यहां वहां से चुराए हुए भी होंगे, इसलिए बार बार उस सोत्र का नाम लेना मुझे याद रहे न रहे...चलिए, इस सत्य के व्रत को शुरू करने से पहले यह काम कर लूं कि उन सब महान आत्माओं के चरण-कमलों को भी याद कर लूं जिन के शब्दों के सहारों ने मुझे तूफानों में भी थाम कर रखा। एक बात और, मेरी किसी भी ब्लोग पर किसी भी लेख को आप भी अपना ही समझिए....जहां मन करे वहां बांटिए.....और मजे की बात तो यही है कि इस काम में मुझे किसी तरह के क्रेडिट की भी कोई तमन्ना नहीं है।

तो , फिर आज से ही शुरूआत करते हैं.........

मेरे सामने एक इंगलिश के पेपर की छोटी सी कतरन पड़ी हुई है ....लिखा हुया है गाजियाबाद, जून 28...अब पता नहीं साल कौन सा है, पर दोस्तो, आप ने क्या लेना है साल है, गोली मारो साल को, क्योंकि वह खबर तो मुझे कल-परसों ही खबर मालूम पड़ रही है.......

“ Youth thrown out of running train”

Ghaziabad..June 28……A-28-year old youth was thrown out of a running train, following a brawl near the Baraut railway station while his fellow passengers remained mute spectators. Brij Kishore was thrown out of Delhi-Sharanpur Passenger by some unidentified men last evening when he tried to stop them from pulling the chain, police said. None of the passengers came forward to help Kishore, who lost both his legs and was rushed to Delhi in a critical condition, they said. ----------- PTI

और लीजिए , इस के साथ ही मैंने इस कतरन को फाड़ कर अपनी वेस्ट-पेपर बास्कट में डाल दिया। काश, मेरी इस रस्म-अदायिगी के साथ साथ अब इस तरह के किस्से होने ही तो बंद हो जाएं...ताकि मुझे फिर कभी इस तरह कतरनें की संभालने की ज़रूरत ही न पड़े, दोस्तो। हल्ला-बोल फिल्म वालो आपने भी यह खबर पढ़ी थी क्या ??

दोस्तो, जाते जाते मेरी टेबल के सामने बोर्ड पर लगा एक शेयर और मेरे सामने टंगी एक सुंदर सी सीनरी मुझे आप तक कुछ पहुंचाने के लिए उकसा रही है, तो सुनिए.....

माना कि परिंदों के पर हुया करते हैं,

ख्वाबों में उड़ना कोई गुनाह तो नहीं।।।।।

HAVE A NICE DAY !!

This morning is going to be great.

Greet with smile.

This afternoon will be the finest one.

Share with everyone.

This evening will be the prettiest time.

Enjoy with friends.

Today is a day with flowers and smiles .

Have fun and cheer !!

जब मेरे ही हास्पीटल में काम करने वाले किसी स्वास्थयकर्त्ता ने ऊपर लिखी परिंदों वाली बात की एक बार तारीफ करते हुए मुझे कहा कि इसे बार-बार पढ़ना मुझे अच्छा लगता है, मैं आज इसे लिख ही लेता हूं, तो मुझे एक बार फिर से आभास हुया कि शब्दों में कितनी ताकत है...ये हमें कहां से कहां पहुंचा देते हैं। आज सुबह ही अपने ही एक बलोगर बंधु मिहिर भोज की एक पोस्ट पढ़ी, यकीन मानिए मजा आ गया और शब्द रूपी हाथों से ही उन की पीठ थपथपा दी।

अच्छा , दोस्त, आज के लिए बस इतना ही सही....कहीं आप यह ही न सोचने लगें कि यार आज तो इस ने डायरी में स्क्रैप डालना शुरू ही किया है, अगर इतनी इतनी लंबी हांकने लगेगा तो आफत हो जाएगी।

इसलिए दोस्तो, अब विराम कर के डायरी बंद करता हूं और बलोग पोस्ट का पब्लिश बटन दबाता हूं।