सुबह के नाश्ते की बात चलते ही मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं....याद नहीं कि किसी दिन बिना ढंग से नाश्ता खाए हम लोग स्कूल-कालेज गये हों..दो परांठे..और साथ में दही शक्कर का नाश्ता अपना फेवरेट हुआ करता था...लेकिन जब मैं अपने बेटों के बारे में नाश्ते की बात करता हूं तो यह लगता है कि शायद ही कोई दिन हो जब वे नाश्ता कर के स्कूल गये हों......बस, एक गिलास दूध पी लेने से क्या होता है।
याद आ रहा है कि जब हम कालेज में थे तो ओपीडी में खड़े खड़े अगर किसी छात्रा को चक्कर जैसा महसूस होता था तो हमारे प्रोफैसर लोग लड़कियों को बड़ा डांट दिया करते थे कि तुम लोग सुबह का नाश्ता न करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ लेती हो।
आज इस नाश्ता की बातों का ध्यान फिर से इसलिए आ गया क्योंकि आज विश्व डॉयबीटीज़ दिवस होने की वजह से अखबारों में खूब लिखा गया है इस की रोकथाम के बारे में ...टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में साफ़ साफ़ लिखा है कि एक पौष्टिक सुबह का नाश्ता भी मधुमेह रोग से बचाता है।
सोचने वाली बात यही है कि क्या हम लोग यह नहीं जानते......जानते तो हैं लेकिन आज कल की युवा पीढ़ी अपने नाश्ते को गोल करने के चक्कर में पड़ी है, वह अपने आप में जीवनशैली से संबंधित बीमारियों को एक खुला आमंत्रण जैसा है।
मैं अकसर सुबह सुबह देखता हूं कि कुछ श्रमिक ईंटों के बीच आग जला कर जो नाश्ता बना रहे होते हैं ...मोटी मोटी रोटियां और साथ में कोई सब्जी पका रहे होते हैं....नाश्ता इस तरह से करने पर ही वे फिर दिन भर मेहनत के लिए तैयार हो पाते हैं।
उस दिन मैं एक हृदय-रोग विशेषज्ञ की बातें आपसे साझा कर रहा था तो वह भी यही बात कह रहे थे कि सुबह का पौष्टिक नाश्ता तो बहुत ज़रूरी है ही क्योंकि यह िदन भर आप के एनर्जी के स्तर को कायम रखता है।
अब पौष्टिक की परिभाषा क्या है, इसे भी समझना ज़रूरी है.....रोटी-सब्जी, दलिया, दोसा, इडली...कुछ भी जो आम तौर पर हम लोग खाते हैं यह अच्छे नाश्ते की ही श्रेणी में आता है। लेिकन बड़े शहरों में जाते जाते रास्ते में वड़ा-पाव ले कर खा लेना, कचौड़ी-समोसा रोज ही खाना, कुछ भी बिस्कुट-पाव-टोस्ट लेकर खाना....यह पौष्टिक नाश्ते के उदाहरण नहीं हैं और ना ही रोज़ रोज़ घी में तैर रहे परांठे आदि खाना ही सेहत के लिए ठीक है।
अब देखते हैं कि यह भी साधन संपन्न लोगों में एक ट्रेंड हो गया कि नाश्ते के साथ फलों का रस लेना...और वह भी ब्रांडेड किसी कंपनी का ही......नहीं, या तो ताज़ा फ्रूट जूस ही लें, अन्यथा फ्रूट ही खाना ठीक है। यह बोतल वोतल वाले फलों के रस एक आध दिन के लिए तो ठीक हैं, रोज़ रोज़ इन्हें लेना मुनासिब नहीं है...वैसे यह कोई मुद्दा नहीं है क्योकि ९९.९प्रतिशत लोग इस देश में रोज़ाना सुबह नाश्ते के साथ जूस लेते भी नहीं है, ले पाने में असमर्थ भी होते हैं और इस तरह के नाश्ते हिंदी सीरियलों में ही दिखते हैं....
अब डबलरोटी का बात कर लें......अपनी अपनी च्वाईस है, मेरा बेटा ब्राउन ब्रैड देख कर यही समझता है कि यह गेहूं की क्वालिटी ही है जिसने ब्रेड को ब्राउन कर दिया है........नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहंीं है, जितना मैं समझा हूं ये सब कलर्ज़-वलर्ज़ का कमाल है......वरना ब्रेड तो ब्रेड ही है।
पता नहीं मैं अपनी पसंद क्यों बीच में घुसानी शुरू कर देता हूं.....लेकिन मुझे ब्रेड से बहुत नफ़रत है......सिंकी हुई ब्रेड तो मैं फिर महीने में एक आध बार खा लेता हूं लेकिन िबना सिंकी ब्रेड तो मैं चख भी नहीं पाता.....चलिए, हर बंदे की अपनी पसंद नापसंद है........वैसे ब्रेड बनती तो मैदे से ही हैं......और मैदा (refined flour) खाना सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है।
फिजूल में इतना कुछ लिख दिया कि नाश्ता कैसा हो, कैसा न हो.....हर बंदे को अपने सामर्थ्य के अनुसार पता ही रहता है कि अच्छा नाश्ता कैसा होता है...फिर भी हम लिखने वाले हैं, हमें तो बस लिख कर ही तसल्ली होती है। असल बात तो है सुबह सवेरे अच्छा सा नाश्ता करने की.......जैसा कि आप समझ ही गये हैं कि अच्छे का मतलब कदापि नहीं है कि महंगा.......सीधे, सादे, हिंदोस्तानी घर में तैयार नाश्ते से बढ़ कर भी क्या कोई ज़्यादा पौष्टिक सुबह का नाश्ता है?...नहीं।
बिना नाश्ता किए बच्चों का मन पढ़ाई में, काम करने वालों का काम में कैसे लगता होगा, यह भी एक रिसर्च का विषय है।
आशा है कि आप तो सुबह सवेरे एक अच्छा सा ब्रेकफास्ट ज़रूर कर ही लेते होंगे, बहुत अच्छा करते हैं, इस आदत को मत छोड़िएगा.....बहुत अच्छी और सेहतमंद आदत है।
याद आ रहा है कि जब हम कालेज में थे तो ओपीडी में खड़े खड़े अगर किसी छात्रा को चक्कर जैसा महसूस होता था तो हमारे प्रोफैसर लोग लड़कियों को बड़ा डांट दिया करते थे कि तुम लोग सुबह का नाश्ता न करने के चक्कर में अपनी सेहत बिगाड़ लेती हो।
आज इस नाश्ता की बातों का ध्यान फिर से इसलिए आ गया क्योंकि आज विश्व डॉयबीटीज़ दिवस होने की वजह से अखबारों में खूब लिखा गया है इस की रोकथाम के बारे में ...टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में साफ़ साफ़ लिखा है कि एक पौष्टिक सुबह का नाश्ता भी मधुमेह रोग से बचाता है।
सोचने वाली बात यही है कि क्या हम लोग यह नहीं जानते......जानते तो हैं लेकिन आज कल की युवा पीढ़ी अपने नाश्ते को गोल करने के चक्कर में पड़ी है, वह अपने आप में जीवनशैली से संबंधित बीमारियों को एक खुला आमंत्रण जैसा है।
मैं अकसर सुबह सुबह देखता हूं कि कुछ श्रमिक ईंटों के बीच आग जला कर जो नाश्ता बना रहे होते हैं ...मोटी मोटी रोटियां और साथ में कोई सब्जी पका रहे होते हैं....नाश्ता इस तरह से करने पर ही वे फिर दिन भर मेहनत के लिए तैयार हो पाते हैं।
उस दिन मैं एक हृदय-रोग विशेषज्ञ की बातें आपसे साझा कर रहा था तो वह भी यही बात कह रहे थे कि सुबह का पौष्टिक नाश्ता तो बहुत ज़रूरी है ही क्योंकि यह िदन भर आप के एनर्जी के स्तर को कायम रखता है।
अब पौष्टिक की परिभाषा क्या है, इसे भी समझना ज़रूरी है.....रोटी-सब्जी, दलिया, दोसा, इडली...कुछ भी जो आम तौर पर हम लोग खाते हैं यह अच्छे नाश्ते की ही श्रेणी में आता है। लेिकन बड़े शहरों में जाते जाते रास्ते में वड़ा-पाव ले कर खा लेना, कचौड़ी-समोसा रोज ही खाना, कुछ भी बिस्कुट-पाव-टोस्ट लेकर खाना....यह पौष्टिक नाश्ते के उदाहरण नहीं हैं और ना ही रोज़ रोज़ घी में तैर रहे परांठे आदि खाना ही सेहत के लिए ठीक है।
अब देखते हैं कि यह भी साधन संपन्न लोगों में एक ट्रेंड हो गया कि नाश्ते के साथ फलों का रस लेना...और वह भी ब्रांडेड किसी कंपनी का ही......नहीं, या तो ताज़ा फ्रूट जूस ही लें, अन्यथा फ्रूट ही खाना ठीक है। यह बोतल वोतल वाले फलों के रस एक आध दिन के लिए तो ठीक हैं, रोज़ रोज़ इन्हें लेना मुनासिब नहीं है...वैसे यह कोई मुद्दा नहीं है क्योकि ९९.९प्रतिशत लोग इस देश में रोज़ाना सुबह नाश्ते के साथ जूस लेते भी नहीं है, ले पाने में असमर्थ भी होते हैं और इस तरह के नाश्ते हिंदी सीरियलों में ही दिखते हैं....
अब डबलरोटी का बात कर लें......अपनी अपनी च्वाईस है, मेरा बेटा ब्राउन ब्रैड देख कर यही समझता है कि यह गेहूं की क्वालिटी ही है जिसने ब्रेड को ब्राउन कर दिया है........नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहंीं है, जितना मैं समझा हूं ये सब कलर्ज़-वलर्ज़ का कमाल है......वरना ब्रेड तो ब्रेड ही है।
पता नहीं मैं अपनी पसंद क्यों बीच में घुसानी शुरू कर देता हूं.....लेकिन मुझे ब्रेड से बहुत नफ़रत है......सिंकी हुई ब्रेड तो मैं फिर महीने में एक आध बार खा लेता हूं लेकिन िबना सिंकी ब्रेड तो मैं चख भी नहीं पाता.....चलिए, हर बंदे की अपनी पसंद नापसंद है........वैसे ब्रेड बनती तो मैदे से ही हैं......और मैदा (refined flour) खाना सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है।
फिजूल में इतना कुछ लिख दिया कि नाश्ता कैसा हो, कैसा न हो.....हर बंदे को अपने सामर्थ्य के अनुसार पता ही रहता है कि अच्छा नाश्ता कैसा होता है...फिर भी हम लिखने वाले हैं, हमें तो बस लिख कर ही तसल्ली होती है। असल बात तो है सुबह सवेरे अच्छा सा नाश्ता करने की.......जैसा कि आप समझ ही गये हैं कि अच्छे का मतलब कदापि नहीं है कि महंगा.......सीधे, सादे, हिंदोस्तानी घर में तैयार नाश्ते से बढ़ कर भी क्या कोई ज़्यादा पौष्टिक सुबह का नाश्ता है?...नहीं।
बिना नाश्ता किए बच्चों का मन पढ़ाई में, काम करने वालों का काम में कैसे लगता होगा, यह भी एक रिसर्च का विषय है।
आशा है कि आप तो सुबह सवेरे एक अच्छा सा ब्रेकफास्ट ज़रूर कर ही लेते होंगे, बहुत अच्छा करते हैं, इस आदत को मत छोड़िएगा.....बहुत अच्छी और सेहतमंद आदत है।