बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं .....लिखता हूं तो मैं अपनी मस्ती से ही लिखता हूं ....किसी बात की भी ज़्यादा परवाह लिखते समय मैं करता नहीं हूं। मैं कभी कभी सोचता हूं कि कुछ भी लिखने के लिये किसी मानदेय की अपेक्षा करना ठीक नहीं है.....लेकिन जब मैं इमानदारी से अपने मन को टटोलता हूं तो यह भी मुझे मेरी कईं अन्य बातों की तरह केवल एक ढकोंसलेबाजी ही ज़्यादा दिखती है। वैसे देखा जाये तो लेखक अपने लेख को क्यों किसी के लिये लिखे बिना पैसे के !!
मैं पिछले कईं सालों में शायद सैंकड़ों लेख लिख डाले....अपना खूब खर्च किया, फैक्स पर , फोन पर , कलर्ड प्रिंटर पर, डाक पर, स्पीड पोस्ट पर .........बहुत ही खर्च किया लेकिन कभी हिसाब नहीं रखा। शायद तब कुछ उम्र का दौर ही कुछ ऐसा था कि लगता था कि बस, यार अखबार में फोटो के साथ लेख छप गया है ना, तो बस ठीक है। लेकिन मुझे कभी भी अखबार वालों की तरफ़ से कुछ नहीं मिला।
मुझे कृपया इस पोस्ट की टिप्पणी में यह मत लिखियेगा कि लेखक का काम तो समाज सेवा ही होता है उसे पैसे वैसे से क्या लेना देना। मैं भी बहुत बार ऐसा ही सोचता हूं .....लेकिन दिल की गहराईयों में मैं बहुत कुछ और भी सोचता हूं .....वह यह कि आखिर लेखक की मेहनत की ही इस देश में कद्र क्यों नहीं है।
मैं तो अच्छी खासी नौकरी करता हूं .....ऊपर वाले की मेहरबानी है ....लेकिन फिर भी मुझे यह इच्छा तो हमेशा रही है कि यार लिखने के एवज़ में कुछ तो मिलना ही चाहिये । इसलिये जब मैं अपने उन लेखक भाईयों की तरफ़ देखता हूं कि जो अखबार में कम तनख्वाह वाली नौकरीयां कर रहे होते हैं या केवल अपने लेखन के भरोसे ही जीते हैं तो मुझे यकीन मानिये बेइंतहा दुख होता है और इसलिये ये जब धड़ाधड़ नौकरियां बदलते हैं तो मुझे लगता है कि क्या करें वे भी .....ठीक कर रहे हैं।
इमानदारी से बताऊं तो मेरा यह व्यक्तिगत विचार है कि चाहे ब्लागिंग ही हो, लेकिन जहां पर कुछ कमाई वाई नहीं दिखती तो दिल ऊब ही जाता है। मुझे तो लगता है कि यह ह्यूमन सायकालोजी है........ब्लागिंग में भी मेरे साथ यही हो रहा है।
बलागिंग में भी क्या है.......बस कमाई विज्ञापनों से ही संभव है और वह भी केवल इतनी कि किसी के ब्राड-बैंड का खर्च निकल जाता है....ऐसा मैंने पढ़ा था किसी ब्लाग पर ही । हां, हां ठीक है ब्लागिंग से मन को संतुष्टि मिलती है ......
यह बात भी बहुत अखरती है कि इंजीनियरिंग करने के तुरंत बाद ये लड़के 35-40 हजार रूपये महीना कमाना शुरू कर देते हैं ......कैंपस प्लेसमेंट हो जाती है और जर्नलिज़म करने के बाद इतने इतने तेजस्वी पत्रकार केवल तीन-चार हज़ार पर ही नौकरी हासिल कर पाते हैं.....लेकिन मैं भी पता नहीं काम की बातें पता नहीं अकसर क्यों भूल जाता हूं........ये पत्रकार-वत्रकार ( मैं भी एक क्वालीफाइड पत्रकार हूं) तो बस समाज सेवा के लिये हैं ......इन्हें क्या ज़रूरत है कि ये अपने जीवन में थोड़ी सुख-सुविधायें भोग लें.......अच्छा है अगर इन्हें घर पर एसी की आदत नहीं पड़ेगी, अच्छा घर खरीद कर भी क्या करेंगे.....इन की जाब में तो इतनी मोबिलिटी है, क्या करेंगे कोई अच्छी कार मेनटेन कर के .....विकास पत्रकारिता पर इस का बुरा प्रभाव पड़ेगा, ..........कितनी बातें और गिनाऊं ??......
बस , ब्लागिंग का यह फायदा तो उठा ही लिया....अपने मन की बात दुनिया के सामने रख कर अपने मन का बोझ हलका कर लिया । लेकिन एक उलाहना तो कुछ लेखकों के साथ रहेगा कि हम लोग दिल खोल कर अपनी ट्रेड सीक्रेट्स अपने दूसरे लेखक बंधुओं के साथ शेयर नहीं करते ।
मैं पिछले कईं सालों में शायद सैंकड़ों लेख लिख डाले....अपना खूब खर्च किया, फैक्स पर , फोन पर , कलर्ड प्रिंटर पर, डाक पर, स्पीड पोस्ट पर .........बहुत ही खर्च किया लेकिन कभी हिसाब नहीं रखा। शायद तब कुछ उम्र का दौर ही कुछ ऐसा था कि लगता था कि बस, यार अखबार में फोटो के साथ लेख छप गया है ना, तो बस ठीक है। लेकिन मुझे कभी भी अखबार वालों की तरफ़ से कुछ नहीं मिला।
मुझे कृपया इस पोस्ट की टिप्पणी में यह मत लिखियेगा कि लेखक का काम तो समाज सेवा ही होता है उसे पैसे वैसे से क्या लेना देना। मैं भी बहुत बार ऐसा ही सोचता हूं .....लेकिन दिल की गहराईयों में मैं बहुत कुछ और भी सोचता हूं .....वह यह कि आखिर लेखक की मेहनत की ही इस देश में कद्र क्यों नहीं है।
मैं तो अच्छी खासी नौकरी करता हूं .....ऊपर वाले की मेहरबानी है ....लेकिन फिर भी मुझे यह इच्छा तो हमेशा रही है कि यार लिखने के एवज़ में कुछ तो मिलना ही चाहिये । इसलिये जब मैं अपने उन लेखक भाईयों की तरफ़ देखता हूं कि जो अखबार में कम तनख्वाह वाली नौकरीयां कर रहे होते हैं या केवल अपने लेखन के भरोसे ही जीते हैं तो मुझे यकीन मानिये बेइंतहा दुख होता है और इसलिये ये जब धड़ाधड़ नौकरियां बदलते हैं तो मुझे लगता है कि क्या करें वे भी .....ठीक कर रहे हैं।
इमानदारी से बताऊं तो मेरा यह व्यक्तिगत विचार है कि चाहे ब्लागिंग ही हो, लेकिन जहां पर कुछ कमाई वाई नहीं दिखती तो दिल ऊब ही जाता है। मुझे तो लगता है कि यह ह्यूमन सायकालोजी है........ब्लागिंग में भी मेरे साथ यही हो रहा है।
बलागिंग में भी क्या है.......बस कमाई विज्ञापनों से ही संभव है और वह भी केवल इतनी कि किसी के ब्राड-बैंड का खर्च निकल जाता है....ऐसा मैंने पढ़ा था किसी ब्लाग पर ही । हां, हां ठीक है ब्लागिंग से मन को संतुष्टि मिलती है ......
यह बात भी बहुत अखरती है कि इंजीनियरिंग करने के तुरंत बाद ये लड़के 35-40 हजार रूपये महीना कमाना शुरू कर देते हैं ......कैंपस प्लेसमेंट हो जाती है और जर्नलिज़म करने के बाद इतने इतने तेजस्वी पत्रकार केवल तीन-चार हज़ार पर ही नौकरी हासिल कर पाते हैं.....लेकिन मैं भी पता नहीं काम की बातें पता नहीं अकसर क्यों भूल जाता हूं........ये पत्रकार-वत्रकार ( मैं भी एक क्वालीफाइड पत्रकार हूं) तो बस समाज सेवा के लिये हैं ......इन्हें क्या ज़रूरत है कि ये अपने जीवन में थोड़ी सुख-सुविधायें भोग लें.......अच्छा है अगर इन्हें घर पर एसी की आदत नहीं पड़ेगी, अच्छा घर खरीद कर भी क्या करेंगे.....इन की जाब में तो इतनी मोबिलिटी है, क्या करेंगे कोई अच्छी कार मेनटेन कर के .....विकास पत्रकारिता पर इस का बुरा प्रभाव पड़ेगा, ..........कितनी बातें और गिनाऊं ??......
बस , ब्लागिंग का यह फायदा तो उठा ही लिया....अपने मन की बात दुनिया के सामने रख कर अपने मन का बोझ हलका कर लिया । लेकिन एक उलाहना तो कुछ लेखकों के साथ रहेगा कि हम लोग दिल खोल कर अपनी ट्रेड सीक्रेट्स अपने दूसरे लेखक बंधुओं के साथ शेयर नहीं करते ।