आज टाइम्स ऑफ इंडिया के संडे एडिशन में एक फीचर देखा तो गुज़रे ज़माने के १९७० के आस पास के दिनों की यादों की रील अपने आप चलने लग गई..
दादी, नानी, मामा-मामी, चाचा-चाची, मौसी, बुआ-फूफा का ख़त अाना...कितना उम्दा लफ्ज़ है ना ख़त...नाम लेते ही यादों का सैलाब सा आ जाता है जैसे। हम लोगों को घर में आते ही अकसर पता चल जाता कि आज किसी अपने रिश्तेदार का ख़त आया है ...पहले तो उसे पढ़ना...शाम रात तक जब भी कोई घर में लौटता जाता, उसे वह ख़त पढ़ना ही होता...कभी ऐसा था ही नहीं कि ख़त किसी एक के लिए आया हो...सभी परिवार वाले पढ़ कर पोस्टकार्ड के किसी कोने में दुबके हुए अपने लिए प्यार को ढूंढ रहे होते ...जैसे नानी-दादी गले मिल रही हो।
दादी का ख़त तो पिता जी को हमें ही सुनाना होता...अधिकतर पोस्ट कार्ड...अपने आप पर फख्र भी होता ..पिता जी को हिंदी नहीं आती थी.. और दादी हिंदी में ही लिखती थीं..एक बार सुन कर पिता जी ने उस कार्ड को अपने सिरहाने के नीचे रख लेना...फिर जब कभी मन किया उसी दिन या अगले दिन कभी भी ...एक बार फिर सुन लिया....जहां तक मुझे याद है यह सिलसिला अगने ख़त के आने तक तो चलता ही था..
चलिए इसे यहीं फुलस्टाप लगाते हैं वरना मैं कहीं का कहीं निकल जाऊंगा... बस, कहना यही चाहता हूं कि हम लोग भी कितने सुनहरे वक्त के गवाह रहे हैं...We are proud of our times! ....जब पांच पैसे वाला पोस्ट कार्ड सारे कुनबे के लिए प्यार-दुलार और दुःख-सुख की संवेदनाओं का वाहक होता था...
लेिकन आज यह जो टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट देख रहा था तो बड़ा ही अजीब सा लगा... शीर्षक ही यही था कि क्या पति पत्नी को एक दूसरे के फोन में तांक-झांक करते रहना चाहिए...हां, एक वाकया उस में लिखा था कि बेंगलुरु की एक पत्नी ने अपने पति को देखा कि वह उस के फोन से कुछ मैसेज पढ़ रहा था ..उसने आव देखा न ताव..झट से पति पर चाकू से प्रहार कर दिया... और उस फीचर में कुछ आंकड़ें भी दिए गये हैं कि कितने प्रतिशत पति पत्नी एक दूसरे के फोन में तांक-झांक करने से गुरेज नहीं करते!
फिर उस में कुछ लोगों का राय थी कि क्या इस तरह से पति पत्नी को एक दूसरे के फोन में देखना चाहिए कि नहीं!
आंकड़ों की तो बात ही क्या करें, अधिकतर ये सब कुक्ड-अप ही होते हैं...लेिकन फिर भी यह समस्या तो है ही अगर इस तरह से लोग इस के बारे में खुल कर चर्चा करने लगे हैं।
टॉपिक बहुत बड़ा है ..लेिकन मेरी राय यही है कि कुछ भी हो...हम लोगों को एक दूसरे के फोन में इस तरह से जासूसी नहीं करनी चाहिए...इस से कुछ हासिल नहीं हो सकता...अपनी अपनी बीसियों सिरदर्दियों में एक और सिरदर्दी और जोड़ लेते हैं..क्या ख्याल है?....हर आदमी --साहब, बेगम हो या फिर गुलाम ..की अपनी ज़िंदगी है और किसी के पर्सनल स्पेस में इस तरह से अतिक्रमण करना ..एक दम घटिया काम तो है ही, सिर-दुखाऊ भी है।
एक दूसरे के फोन को तांक-झांक के नज़रिये से देखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए...और इतनी ओपननैस भी चाहिए कि हम सब के फोन बिना स्क्रीन-लॉक के ही घर में पड़े रहें ...
वैसे तो यह प्रश्न ही ठीक नहीं है कि शौहर-बीवी एक दूसरे के फोन को चैक करते रहें?....जवाब है बिल्कुल नहीं.... But it should not at all be based on passive acceptance!.... कहने का मतलब है कि स्क्रीन-लॉक नहीं लगा हुआ है ..लेकिन आप फिर भी उसे घर में कहीं भी पड़ा रहने दें क्योंकि घर के हर बंदे को पता हो कि कोई भी किसी के फोन की जासूसी नहीं करेगा......That's the ideal situation... thank God, we follow this rule! हम लोगों ने कभी ये नियम-कायदे तय नहीं किये, लेकिन हम लोग घर में एक दूसरे के फोन को कभी छूते तक नहीं...We need to be quite aware about other person's personal space! कुछ बच्चे वैसे अपने मोबाइल को लॉक लगा कर रखते हैं ...It's fine...it's their life! ..it's their experience! Let it be that way!
क्या है ना मन की शांित बहुत बड़ी चीज़ है...हम लोगों ने मन में पहले ही से इतना क्लटर clutter ठूंस रखा है कि अब किसी दूसरे के संदेशे पढ़ कर उस अंबार को और बढ़ाने की हिमाकत भला कौन करना चाहेगा... हम लोग अपने मैसेज तो पढ़ नहीं पाते...मुझे लगता है कि मैं अपने ८०-९०प्रतिशत मैसेज तो देख ही नहीं पाता..क्या करें, जो सच है सो है !
क्या है ना कि किसी के मैसेज या अन्य कुछ देखना किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ने जैसा हो...और हमें पता है कि किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ना कितनी बुरी बात मानी जाती थी और अभी भी है !
एक दूसरे के मोबाइल चैक करना ही नहीं, पति पत्नी के बारे में कभी भी यह भी खबरें आती हैं विशेषकर महानगरों में कि एक दूसरे की जासूसी करवाते हैं कुछ पति पत्नी, और कईं बार यह भी पेपरों में देखा कि पति ने पत्नी ने कुछ आपत्तिजनक वीडियो क्लिप बना कर ऑनलाइन कर दिए...वह तो एक अलग बात हो गई, सिरफिरापन...अगर पति पत्नी के रिश्ते इस तरह के हैं तो फिर बाहरी दुश्मनों की ज़रूरत ही क्या है!
और क्या लिखूं इस चिट्ठी में समझ नहीं आ रहा, बस गोंद लगा के बंद कर रहा हूं...
रविवार है ..अभी तक स्नान नहीं किया है..अभी खाना खाएंगे....सब कुशल क्षेम है...बड़ों को नमस्कार, छोटों को प्यार...
दादी, नानी, मामा-मामी, चाचा-चाची, मौसी, बुआ-फूफा का ख़त अाना...कितना उम्दा लफ्ज़ है ना ख़त...नाम लेते ही यादों का सैलाब सा आ जाता है जैसे। हम लोगों को घर में आते ही अकसर पता चल जाता कि आज किसी अपने रिश्तेदार का ख़त आया है ...पहले तो उसे पढ़ना...शाम रात तक जब भी कोई घर में लौटता जाता, उसे वह ख़त पढ़ना ही होता...कभी ऐसा था ही नहीं कि ख़त किसी एक के लिए आया हो...सभी परिवार वाले पढ़ कर पोस्टकार्ड के किसी कोने में दुबके हुए अपने लिए प्यार को ढूंढ रहे होते ...जैसे नानी-दादी गले मिल रही हो।
दादी का ख़त तो पिता जी को हमें ही सुनाना होता...अधिकतर पोस्ट कार्ड...अपने आप पर फख्र भी होता ..पिता जी को हिंदी नहीं आती थी.. और दादी हिंदी में ही लिखती थीं..एक बार सुन कर पिता जी ने उस कार्ड को अपने सिरहाने के नीचे रख लेना...फिर जब कभी मन किया उसी दिन या अगले दिन कभी भी ...एक बार फिर सुन लिया....जहां तक मुझे याद है यह सिलसिला अगने ख़त के आने तक तो चलता ही था..
चलिए इसे यहीं फुलस्टाप लगाते हैं वरना मैं कहीं का कहीं निकल जाऊंगा... बस, कहना यही चाहता हूं कि हम लोग भी कितने सुनहरे वक्त के गवाह रहे हैं...We are proud of our times! ....जब पांच पैसे वाला पोस्ट कार्ड सारे कुनबे के लिए प्यार-दुलार और दुःख-सुख की संवेदनाओं का वाहक होता था...
टाइम्स ऑफ इंडिया १२.६.१६ |
फिर उस में कुछ लोगों का राय थी कि क्या इस तरह से पति पत्नी को एक दूसरे के फोन में देखना चाहिए कि नहीं!
आंकड़ों की तो बात ही क्या करें, अधिकतर ये सब कुक्ड-अप ही होते हैं...लेिकन फिर भी यह समस्या तो है ही अगर इस तरह से लोग इस के बारे में खुल कर चर्चा करने लगे हैं।
टॉपिक बहुत बड़ा है ..लेिकन मेरी राय यही है कि कुछ भी हो...हम लोगों को एक दूसरे के फोन में इस तरह से जासूसी नहीं करनी चाहिए...इस से कुछ हासिल नहीं हो सकता...अपनी अपनी बीसियों सिरदर्दियों में एक और सिरदर्दी और जोड़ लेते हैं..क्या ख्याल है?....हर आदमी --साहब, बेगम हो या फिर गुलाम ..की अपनी ज़िंदगी है और किसी के पर्सनल स्पेस में इस तरह से अतिक्रमण करना ..एक दम घटिया काम तो है ही, सिर-दुखाऊ भी है।
एक दूसरे के फोन को तांक-झांक के नज़रिये से देखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए...और इतनी ओपननैस भी चाहिए कि हम सब के फोन बिना स्क्रीन-लॉक के ही घर में पड़े रहें ...
वैसे तो यह प्रश्न ही ठीक नहीं है कि शौहर-बीवी एक दूसरे के फोन को चैक करते रहें?....जवाब है बिल्कुल नहीं.... But it should not at all be based on passive acceptance!.... कहने का मतलब है कि स्क्रीन-लॉक नहीं लगा हुआ है ..लेकिन आप फिर भी उसे घर में कहीं भी पड़ा रहने दें क्योंकि घर के हर बंदे को पता हो कि कोई भी किसी के फोन की जासूसी नहीं करेगा......That's the ideal situation... thank God, we follow this rule! हम लोगों ने कभी ये नियम-कायदे तय नहीं किये, लेकिन हम लोग घर में एक दूसरे के फोन को कभी छूते तक नहीं...We need to be quite aware about other person's personal space! कुछ बच्चे वैसे अपने मोबाइल को लॉक लगा कर रखते हैं ...It's fine...it's their life! ..it's their experience! Let it be that way!
क्या है ना मन की शांित बहुत बड़ी चीज़ है...हम लोगों ने मन में पहले ही से इतना क्लटर clutter ठूंस रखा है कि अब किसी दूसरे के संदेशे पढ़ कर उस अंबार को और बढ़ाने की हिमाकत भला कौन करना चाहेगा... हम लोग अपने मैसेज तो पढ़ नहीं पाते...मुझे लगता है कि मैं अपने ८०-९०प्रतिशत मैसेज तो देख ही नहीं पाता..क्या करें, जो सच है सो है !
क्या है ना कि किसी के मैसेज या अन्य कुछ देखना किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ने जैसा हो...और हमें पता है कि किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ना कितनी बुरी बात मानी जाती थी और अभी भी है !
एक दूसरे के मोबाइल चैक करना ही नहीं, पति पत्नी के बारे में कभी भी यह भी खबरें आती हैं विशेषकर महानगरों में कि एक दूसरे की जासूसी करवाते हैं कुछ पति पत्नी, और कईं बार यह भी पेपरों में देखा कि पति ने पत्नी ने कुछ आपत्तिजनक वीडियो क्लिप बना कर ऑनलाइन कर दिए...वह तो एक अलग बात हो गई, सिरफिरापन...अगर पति पत्नी के रिश्ते इस तरह के हैं तो फिर बाहरी दुश्मनों की ज़रूरत ही क्या है!
और क्या लिखूं इस चिट्ठी में समझ नहीं आ रहा, बस गोंद लगा के बंद कर रहा हूं...
रविवार है ..अभी तक स्नान नहीं किया है..अभी खाना खाएंगे....सब कुशल क्षेम है...बड़ों को नमस्कार, छोटों को प्यार...