ओह माईगाड---शीर्षक कितना सनसनीखेज दिखता है ..स्कूली बच्चों की शादी, मोबाईल चोर की हत्या और सैक्स टॉय बाज़ार....कुछ कुछ उस टीवी चैनल जैसा जो हर एपीसोड से पहले कहता है कि चैन से जीना है तो जाग जाईए। इस शीर्षक की बात तो बाद में करते हैं, उससे पहले एक बात याद आ गई कि डीएवी स्कूल अमृतसर में भी सत्तर के दशक में मेरी एक ड्यूटी लगा करती थी।
मुझे स्कूल के ज़ीरो पीरियड में एक साथी के साथ लाईब्रेरी में जाकर हिंदी और इंगलिश के पेपरों की हैडलाइन्ज़ को खंगालना होता था और फिर उन में से पांच छः मुख्य खबरें छांट कर हिंदी और इंगलिश में अलग अलग नोटिस बोर्डों पर गीले चाक से लिखनी होती थीं..यह सिलसिला दो तीन साल तो चला....मुझे बड़ा गर्व महसूस होता था कि जो मैं चाहूं वही लिख दूं बोर्ड पर ..फिर आधी छुट्टी के समय स्कूल के बच्चे उन्हें पढ़ा करते थे। आज सोचता हूं कि यह तो एक संपादक जैसा ही काम हो गया...फिर मुझे स्कूल की मैगजीन का स्टूडैंट एडिटर भी बना दिया गया......अच्छा लगता था यह सब काम करना।
आज भी जब अखबार देखी तो वही दिन याद आ गये.....तीन चार खबरों ने कुछ हिला सा दिया।
पहली खबर यह कि आठवीं क्लास का लड़का और सातवीं कक्षा की छात्रा लखनऊ के एक कानवेंट में पढ़ने वाले लखनऊ से भाग कर नैनीताल की तरफ़ निकल पड़े। घर से कुछेक हज़ार रूपये उन्होंने साफ किए और वे शादी के मनसूबे बना कर निकल पड़े। पहुंच गये बरेली.....वहां अगला कोई कार्यक्रम बना रहे थे कि किसी बैंक अधिकारी भद्रपुरूष को कुछ शक सा हुआ उन की उम्र देख कर....उसने पुलिस को सूचित किया......पुलिस के सामने उन्होंने यह सब कबूल किया... और फिर मां बाप उन्हें वापिस ले कर आए।
यह घटना समाज का आईना तो है ही .....यह केवल बदलते समय की दस्तक ही नहीं है, आज के मां बाप की रातों की नींद हराम करने के लिए काफ़ी है। मैं खबर पढ़ते यही सोच रहा था कि भला हो उस भलेमानुस का जिस की नज़र इन बच्चों पर पड़ गई और ये किसी अनहोनी का शिकार होने से बच गये।
अभी तो ये बच्चे १६ के भी नहीं हुए होंगे और अभी से ये तेवर......
दूसरी खबर यह कि कलकता के मैडीकल छात्र जिस होस्टल में रहते थे ... वहां उन्होंने एक मोबाईल चोर को पकड़ लिया... और फिर फिर सब ने क्रूरता से उस की तुरंत हत्या ही कर डाली। बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करने वाली यह घटना। भविष्य में डाक्टर बनने वाले डाक्टरों में इतनी क्रूरता कैसे आ गई कि एक मोबाईल के चक्कर में एक जान ही ले डाली.......डर लगा यह खबर पढ़ कर कि एक जान इतनी सस्ती भी हो सकती है। वह घटना याद आ गई हरियाणा की कुछ महीने पहले की जिसमें एक बच्ची के साथ मुंह काला करने वाले युवक का लोगों ने पकड़ कर लिंग ही काट कर उसे थमा दिया। हम निःसंदेह खतरनाक समय में जी रहे हैं। एक और खबर पर नज़र पड़ गई थी जिसमें कलकत्ता के ही एक घर में जब चोर घुसे और उन्होंने ८० पार कर चुकी बुज़ुर्ग महिला को धक्का मारा तो उसने चंद मिनटों पर मृत होने का ऐसा नाटक किया कि उस की जान बच गई।
तीसरी खबर ...यह खबर मुझे बड़ी अजीब सी लगी ... हो न हो यह भी कोई स्पांसर्ड टाइप की ही खबर थी ....खबर यह बता रही है कि अब महिलाओं ने सैक्स टॉयज़ में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है और वे इन के ऊपर खूब पैसा खर्च कर रही हैं....यह खबर पढ़ कर तो ऐसा लगा कि जैसे सारे देश की महिलायें ही इस तरह की ऑनलाईन खरीददारी में लगी हुई हैं......कुछ भी अखबार वाले बकवास भी तो लिख देते हैं ना....यह उसी का ही एक उदाहरण है... उन्हें बकवास लिखना भी पड़ता होगा शायद.....पर शिकायत इस तरह की खबर से यह है कि जिन की ज़िंदगी चल रही है ठीक है....वे भी क्यों ठीक ठाक चलें, बेचो उन को भी ये सैक्स टॉयज़... और तरह तरह के सैक्स टॉयज़ के नाम और वे देख के किन किन शहरों में किस किस पते पर मिलते हैं, यह भी बता दिया गया है.........जबरदस्ती का सौदा...बेकार लगा यह देख कर.
मुझे स्कूल के ज़ीरो पीरियड में एक साथी के साथ लाईब्रेरी में जाकर हिंदी और इंगलिश के पेपरों की हैडलाइन्ज़ को खंगालना होता था और फिर उन में से पांच छः मुख्य खबरें छांट कर हिंदी और इंगलिश में अलग अलग नोटिस बोर्डों पर गीले चाक से लिखनी होती थीं..यह सिलसिला दो तीन साल तो चला....मुझे बड़ा गर्व महसूस होता था कि जो मैं चाहूं वही लिख दूं बोर्ड पर ..फिर आधी छुट्टी के समय स्कूल के बच्चे उन्हें पढ़ा करते थे। आज सोचता हूं कि यह तो एक संपादक जैसा ही काम हो गया...फिर मुझे स्कूल की मैगजीन का स्टूडैंट एडिटर भी बना दिया गया......अच्छा लगता था यह सब काम करना।
आज भी जब अखबार देखी तो वही दिन याद आ गये.....तीन चार खबरों ने कुछ हिला सा दिया।
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यह घटना समाज का आईना तो है ही .....यह केवल बदलते समय की दस्तक ही नहीं है, आज के मां बाप की रातों की नींद हराम करने के लिए काफ़ी है। मैं खबर पढ़ते यही सोच रहा था कि भला हो उस भलेमानुस का जिस की नज़र इन बच्चों पर पड़ गई और ये किसी अनहोनी का शिकार होने से बच गये।
अभी तो ये बच्चे १६ के भी नहीं हुए होंगे और अभी से ये तेवर......