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शुक्रवार, 11 मार्च 2011

कागज़ के फूलों को सहेजने जैसा शौक है हेयर-कलर का क्रेज़

कंपनियां चाहे कुछ भी ढिंढोरा पीटें, बालों को कलर करने का काम पंगे वाला तो है ही ... लेकिन कल मुझे लगा कि इस के बारे में अकसर हम लोग केवल अपने तक ही सोच कर सीमित रह जाते हैं ... इस के एक बहुत ही अहम् पहलू के बारे कल में कैसे मैंने भी आज तक सोचा ही नहीं !!

कल बृहस्पतिवार था—हेयर-ड्रैसरों के यहां सन्नाटा छाया रहता है क्योंकि इक्कीसवीं सदी में भी लोग इस भ्रम से निकल नहीं पाए कि हफ्ते के कुछ दिनों में बाल कटवाना, दाढ़ी मुंडवाना गृहों के लिये ठीक नहीं है। बचपन से ही इस तरह की बेतुकी बातों में रती भर भी विश्वास न होने की वजह से हमेशा इन ‘वर्जित’ दिनों में ही हेयर ड्रेसर के यहां जाना ठीक लगता है ... बिल्कुल भी इंतज़ार ही नहीं करना पड़ता।

बाल काटते समय उस 20-22 वर्षीय युवक ने मुझ से पूछा कि डाक्टर साहब, यह फंगल इंफैक्शन क्यों होती है, इस का इलाज क्या है! मेरे पूछने पर उस ने बताया है कि उसे पैरों पर फंगल है, और हाथों पर भी है...मैंने सोचा कि पैरों पर तो शायद वही खारिश वारिश होगी जो अकसर सर्दी-वर्दी के दिनों में कुछ लोगों को हो जाती है।

उसने आगे बताया कि जब वह हेयर-कलर इस्तेमाल करता है तो अचानक उस के पैरों में खारिश बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। आगे कहने लगा कि वह अपने लिये तो कभी इन कलर्ज़ का इस्तेमाल कभी नहीं करता ... लेकिन ग्राहकों के लिये वह दिन में कईं कईं बार हेयर-डाई का इस्तेमाल करता है...

उस ने आगे हाथ रखे तो मैं समझ गया कि यह चमड़ी रोग है ...Allergic contact dermatitis—मैंने उसे कहा कि दस्ताने डाल के अपना काम किया करे क्योंकि वह कभी भी हेयर-डाई करते वक्त ग्लवज़ नहीं डालता।

और मैंने उसे किसी चमड़ी रोग विशेषज्ञ से संपर्क करने के लिये कहा। अब बात उस की समझ में आ गई थी... मैंने बाहर आते वक्त उसे पैर दिखाने को भी कहा ...वहां पर भी हाथों की तरह ही पैरों की चमड़ी की तकलीफ़ – इसे फंगल समझ कर वह कईं कईं ट्यूबें इस्तेमाल कर चुका है ....वह भी क्या करे .. हिंदी के अखबारों में नित-प्रतिदिन इतने विज्ञापन आते हैं जो किसी को भी कोई भी विशेषज्ञ बना डालें।

उसे तो मैंने कह दिया कि यह सब हेयर-डाई के इस्तेमाल से हो रहा है और उसे चमड़ी रोग विशेषज्ञ से एक बार तो मिल ही लेना चाहिये ...हाथों वाली बात तो समझ में आती है  लेकिन पैरों पर एर्लिजक रिएक्शन हेयर डाई की वजह से ...बात कुछ ज़्यादा समझ में आती नहीं ...मैंने कल इस के बारे में गूगल भी किया ..लेकिन कुछ नहीं निकला...

सोचता हूं फेसबुक पर जो मेरे कुछ मित्र चमड़ी रोग विशेषज्ञ हैं जो अगर इस पोस्ट को पढ़ेंगे तो अपनी टिप्पणी में कृपया लिख दें कि क्या हेयर-डाई के इस्तेमाल करने से पैरों पर भी एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है...

एब बार तो है कि अगर दर्द की एक टिकिया लेने से होने वाले रिएक्शन से सारे शरीर में खारिश, खुजली और फ़फोले से पड़ सकते हैं तो हेयर डाई से भी तो रिएक्शन से सब संभव ही तो है। लेकिन सोचता हूं कि यह अटकलबाजी न हो, इस लिये इस के बारे में प्रामाणिक बात का पता चलते ही इस पोस्ट को अपडेट करूंगा... हाथों पर तो उस वर्कर को हेयर डाई की वजह ही से समस्या हो रही है, कह रहा था कि अब दस्ताने डाला करेगा......

कल मुझे लगा कि कईं बार हम लोग केवल अपने बारे में ही सोचते हैं .... लेकिन उन लोगों की सेहत की फ़िक्र भी तो कोई करने वाला होना चाहिये जिन्हें इस तरह की समस्याओं का पता ही नहीं है, और कुछेक केसों में पता होते हुये भी पापी पेट के आगे यह हाथों, पैरों की खुजली घुटने टेक देती है !!

इस पोस्ट के शीर्षक को लिखते समय मुझे उस गीत का ध्यान आ गया जिसे मैं पिछले कईं दिनों से यू-ट्यूब पर ढूंढ रहा था लेकिन मिल नहीं रहा था .. आज अचानक दिख गया, बिल्कुल पोस्ट की बातों से मैच करता हुआ...




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हेयर ड्रेसर के पास जाने से पहले

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

चमड़ी रोग के लिये ली यह दवा मौत के मुंह में भी धकेल सकती है !

वैसे सुनने में बहुत हैरतअंगेज़ ही लगता है और खास कर किसी नॉन-मैडीकल इंसान को कि सोरायसिस नामक चमड़ी रोग के लिये ली गई एक दवा ( जिस में ईफॉलीयूमाब- efalizumab नामक साल्ट था) से तीन लोगों की अमेरिका में मौत हो गई। इसलिये वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एक चेतावनी जारी की है कि भविष्य में इस दवाई पर एक ब्लैक-बाक्स चेतावनी लिखी जायेगी। इस की विस्तृत जानकारी आप इस लिंक पर क्लिक कर के प्राप्त कर सकते हैं।

अकसर मैंने देखा है कि लोग चमड़ी रोगों को बहुत ही ज़्यादा हल्के-फुलके अंदाज़ में लेते हैं। चमड़ी की कुछ तकलीफ़ों के बारे में तो अकसर लोग यही सोच लेते हैं कि इन का क्या है, कुछ दिन में अपने आप ही ठीक हो जायेंगी, अब कौन जाये चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास। अपने आप ही कोई भी ट्यूब कैमिस्ट से लेकर लगा कर समझते हैं कि रोग का खात्मा हो गया। लेकिन यह बात बिल्कुल गलत है। विभिन्न कारणों की वजह से लोग अकसर चमड़ी-रोग विशेषज्ञ के पास जाना टालते रहते हैं।

मेरा विचार है जो कि छोटी मोटी चमड़ी की तकलीफ़ें हैं उन का उपचार तो एक सामान्य डाक्टर ( एम.बी.बी.एस) से भी करवाया जा सकता है ---उदाहरण बालों में रूसी, कील-मुहांसे, जांघ के अंदरूनी हिस्सों में दाद-खुजली, स्केबीज़ आदि ---- लेकिन कुछ चमड़ी रोग इस तरह के होते हैं जो बहुत लंबे समय तक परेशान किये रहते हैं, बीच बीच में ठीक हुये से लगते हैं और कभी कभी फिर से उग्र रूप में उभर आते हैं। सोरायसिस भी एक ऐसी ही चमड़ी की तकलीफ़ है , वैसे तो और भी बहुत सी चमड़ी की तकलीफ़ें हैं लेकिन इस की एक मात्र उदाहरण यहां ले रहे हैं।
वैसे तो आम से दिखने वाले चमड़ी रोगों का भी जब कोई जर्नल एमबीबीएस डाक्टर या कोई भी स्पैशलिस्ट ( चमड़ी रोग विशेषज्ञ नहीं ) इलाज कर रहा होता है और कुछ दिनों के बाद भी उपेक्षित परिणाम नहीं मिलते तो समय होता है उसे चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास रैफर करने का। और जहां तक चमड़ी की क्रॉनिक बीमारियां हैं जो लंबे समय तक चलती हैं उन का इलाज तो चमड़ी रोग विशेषज्ञ से ही करवाना चाहिये।

इस में किसी चिकित्सक के डाक्टर को अहम् को ठेस पहुंचने वाली बात तो है ही नहीं ---जो भी जिस रोग का विशेषज्ञ है उसी के पास जाने में समझदारी है। यह सोच कर कि चमड़ी के कुछ रोगों का इलाज तो लंबा चलता है –बार बार कौन स्किन स्पैशलिस्ट के पास जाये, ऐसे ही किसी पड़ोस के फैमिली डाक्टर से कोई दवा लिखवा कर, कोई ट्यूब लिखवा कर लगा कर देख लेते हैं। इस से कोई फायदा होने वाला नहीं विशेषकर उन तकलीफ़ों में जो क्रॉनिक रूप अख्तियार कर लेने के लिये बदनाम हैं। एक तो रोग बिना वजह बढ़ता है और दूसरा यह कि ऐसी दवाईयों के इस्तेमाल की जितनी जानकारी और जितना अनुभव एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ को होता है उतना एक सामान्य डाक्टर को अथवा किसी दूसरे विशेषज्ञ को नहीं होता । और आज आपने अमेरिका में सोरायसिस के लिये दी जाने वाली दवा का किस्सा तो सुन ही लिया जिस की वजह से तीन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अब इस बात का ध्यान कीजिये कि वहां पर कानून कायदे इतने तो कड़े हैं कि चमड़ी-रोग विशेषज्ञ ही चमड़ी के मरीज़ों का इलाज करते हैं। लेकिन फिर भी यह दुर्घटना हो गई ---- इस में चमड़ी रोग विशेषज्ञों का भी कोई दोष नहीं है, अब नईं नईं दवाईयां, नये नये इलाज आ रहे हैं जिन के इस्तेमाल को हरी झंडी मिल तो जाती है लेकिन फिर भी लंबे अरसे तक उन का इस्तेमाल करने से चिकित्सकों को बाद में पता चलता है कि उन के क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं और जब ये फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के नोटिस में आते हैं तो फिर वह भी हरकत में आ कर उचित कार्यवाही करती है।

अकसर मैं देखता हूं कि चमड़ी के रोगों के इलाज में खूब गोरख-धंधा चल रहा है ---और इस का मुख्य कारण यह है कि चमड़ी रोग विशेषज्ञ के पास ना जा पाना। मरीज़ जब अपनी मरजी से तरह तरह की ट्यूबें लगा कर थक जाते हैं तो फिर किसी नीम-हकीम देसी दवाई वाले की शरण ले लेते हैं --- वह भी सभी अंग्रेज़ी दवाईयां कूट कूट कर मरीज़ों को महीनों एवं सालों तक छकवाता रहता है और जब या तो रोग बहुत ही ज़्यादा बढ़ जाता है और या तो बिना किसी हिसाब किताब के ली गई इन अंग्रेज़ी दवाईयों ( स्टीरायड्स इस में सब से प्रमुख हैं) .... के कारण जब शरीर में अन्य भयंकर रोग लग जायेंगे तो फिर चमड़ी रोग विशेषज्ञ को ढूंढना शुरू किया जाता है ---- अब इतनी देर से उस के पास जाने से कैसे बात तुरंत ही बन जायेगी। एक बात यहां यह भी रखनी ज़रूरी है कि संभवतः चमड़ी-रोग विशेषज्ञ भी अन्य दवाईयों के साथ साथ मरीज़ को स्टीरायड्स दे सकता है लेकिन उसने इन दवाईयों का सही नुस्खा लिखने की तहज़ीब सीखने के लिये दस साल लगाये हैं -----और वह आप के इलाज के दौरान आप के तरह तरह के टैस्ट करवा कर यह भी सुनिश्चित करता रहता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है, शरीर पर किसी तरह का दुष्परिणाम दवाईयों का नहीं पड़ रहा है।


दोस्तो, जिस का काम उसी को साजे ------वाली कहावत इस समय याद आ रही है --- कुछ साल पहले मेरी माता जी को आंख के पास भयानक दर्द थी, एक दो दिन में आंख के ऊपर माथे पर छोटी छोटी फुंसियां सी निकल आईं ---- दर्द बहुत भयानक था ---- याद आ रहा है कि उस दिन मैं, मेरा छोटा बेटा और मां जी भटिंडा स्टेशन पर बैठे थे ---जनवरी की सर्दी के दिन थे ---- वह लगातार दर्द से कराह रही थी ---- उस सारी रात वह एक मिनट भी नहीं सोईं ।

अगले दिन मैंने अपने एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ मित्र को अमृतसर फोन किया ---उस को सारा विवरण बताया , जिसे सुन कर उस ने बताया कि हरपीज़-योस्टर लग रहा है – फिर भी उस ने कहा कि तुरंत किसी चमड़ी-रोग विशेषज्ञ को दिखा कर आओ। हम लोग तुरंत गये शहर के एक चमड़ी-रोग विशेषज्ञ के पास, जिस ने कहा कि यह हरपीज़-योस्टर ही है ( जिसे अकसर लोग जनेऊ निकलने के नाम से भी जानते हैं) ---उस ने कुछ दवाईयां लिखीं और साथ में कहा कि तुरंत किसी नेत्र-रोग विशेषज्ञ को चैक अप करवायो (क्योंकि जब यह हरपीज़-योस्टर आंख को अपना शिकार बनाती है तो फिर कुछ भी हो सकता है) ---- तुरंत हम लोग नेत्र-रोग विशेषज्ञ के पास गये तो उस ने कहा कि आप बिल्कुल सही वक्त पर ही आये हो इस से आंख भी खराब हो सकती है। उन्होंने भी दवाईयां लिखीं ---खाने की और आंख में डालने की ---- और कुछ दिन इलाज करने के बाद सब कुछ ठीक हो गया।
यह उदाहरण इस लिये ही दी है कि किसी भी रोग को छोटा नहीं जानना चाहिये ---हमेशा यह मत सोचें कि सब कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा --- हां, अगर कोई विशेषज्ञ यह बात कहता है तो बात भी है !! कईं बार जिस तकलीफ़ को हम बिल्कुल छोटा समझते हैं वह स्पैशिलस्ट के लिये किसी बड़ी तकलीफ़ का संकेत हो सकती है और अकसर जब कभी हम यूं ही किसी बड़ी तकलीफ़ की कल्पना से डर कर किसी विशेषज्ञ से मिलने से कतराते रहते हैं लेकिन विशेषज्ञ से मिल कर भांडा फूट जाता है कि यह तो तकलीफ़ कोई खास थी ही नहीं ----कुछ ही दिनों की दवाई से तकलीफ़ छृ-मंतर हो जाती है।

एक बात और भी है कि आज कल कुछ तरह के चमड़ी रोगों के होम्योपैथी इलाज के विज्ञापन भी समाचार-पत्रों में हमें दिख जाते हैं --- अकसर जब मरीज़ इन के बारे में किसी डाक्टर से अपनी राय पूछता है तो वह चुप सा हो जाता है । ऐसा इसलिये होता है क्योंकि हमारी चिकित्सा शिक्षा में एलोपैथी और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्वतियों का समन्वय न के बराबर है ---- ना तो यह चिकित्सकों के स्तर पर है और न ही मरीज़ों के स्तर पर ---- कईं बार बस असमंजस की स्थिति सी बन जाती है --- मेरे विचार में मरीज को यह पूर्ण अधिकार है वह सारी सूचना प्राप्त कर के अपने विवेक एवं सुविधा के अनुसार ही चिकित्सा पद्धति का चयन करे ---बस इतना ध्यान अवश्य कर ले कि जो भी होम्योपैथिक एवं आयुर्वैदिक चिकित्सक उस का इलाज करे वह प्रशिक्षित होना चाहिये और दूसरा यह कि दोनों चिकित्सा पद्वतियों के इलाज की खिचड़ी से दूर रहने में ही समझदारी है ---- वरना दो नावों की एक साथ सवारी करने वाले जैसी हालत हो जाती है। जाते जाते बस एक बात और करूंगा कि यह जो हमें अकसर बैंक, डाकखाने , पड़ोस में सेल्फ-स्टाईल्ड होम्योपैथ अथवा आयुर्वैदिक चिकित्सक मिल जाते हैं ना इन से तो बिल्कुल बच कर ही रहा जाये ---- इन के पास कोई प्रशिक्षण होता नहीं है , बस कहीं से एक किताब मंगवा कर उस के आधार पर देख देख कर ये अपने जौहर दिखाने पर हर समय उतारू रहते हैं--- बस ऊपर वाला हम सब की ऐसी नेक रूहों से रक्षा करें---- जी हां, होते ये बहुत नेक किस्म के इंसान हैं लेकिन बस वही बात बार बार याद आ जाती है ----नीम हकीम खतराये जान !!

रविवार, 27 जनवरी 2008

जब जीना दूभर सा कर देती है यह खारिश-खुजली....



हमारे यहां खुजली मिटाने वाली दवाईयों की बिक्री बहुत होती है क्योंकि अकसर लोग बिना किसी डाक्टरी सलाह के अपने आप ही कोई भी ट्यूब बाज़ार से ला कर लगानी शुरू कर देते हैं। बहुत बार तो देखने में आया है कि स्टीरॉयड युक्त ट्यूबें भी खुजली के लिए बिना किसी डाक्टर से परामर्श किए हुए खूब इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे में अकसर रोग को बढ़ावा मिल जाता है। हां,अगर को क्वालीफाईड चिकित्सक अथवा चमड़ी रोग विशेषज्ञ की देख रेख में—उस की सलाह अनुसार- आप इन ट्यूबों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बात और है।
किसी भी तरह के चर्म-रोग होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से मिलें----कईं बार कुछ दिन दवाई लगाने पर उपेक्षित आराम नहीं मिलता । ऐसे में आप का फैमिली डाक्टर आप को स्वयं ही किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास रैफर कर देगा, अन्यथा आप स्वयं भी किसी प्रशिक्षित चर्म रोग विशेषज्ञ से मिल सकते हैं।
मेरे एक मित्र की माता जी की एक आंख के आस-पास चेहरे की चमड़ी में अचानक दर्द रहने लगा......दर्द बहुत तेज़ था.....साथ में छोटे छोटे दाने से निकल आये। उस ने किसी दूसरे शहर में रह रहे हमारे किसी मित्र से बात की जो चर्म-रोग विशेषज्ञ हैं....उस ने सारी बात सुनते ही उस मित्र को कहा कि अपने शहर के किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को तुरंत ले कर जाओ क्योंकि देख कर ही पूरा पत लग पायेगा (शायद वो पूरी डिसक्रिपश्न सुन कर डॉयग्नोसिस कर चुके थे) । जब चर्म –रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को लेकर जाया गया, तो उस ने देखते ही कह दिया की यह तो इन को हर्पिज़ यॉस्टर हुया है। खूब सारी दवाईंयां तुरंत शुरू की गईं...और नेत्र विशेषज्ञ से मिलने को भी कहा गया। नेत्र विशेषज्ञ ने भी यही कहा कि टाइम पर आ गए हो, नहीं तो आँख ही बेकार हो सकती थी। यह बात बताने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि हम किसी भी चमड़ी की तकलीफ को इतना लाइटली न लें।
तो , आज कुछ बातें स्केबीज़ चर्म रोग के बारे में करते हैं जिस से लोग बहुत परेशान भी होते हैं और डर भी बहुत जाते हैं।
स्केबीज़ चर्म रोग सारकॉपटिस स्केबी नामक एक छोटे से कीड़े के द्वारा फैलता है। यह छूत की बीमारी तो है लेकिन यह हवा, पानी अथवा सांस के द्वारा नहीं फैलती, बल्कि यह रोगी के साथ निकट संपर्क से फैलती है। इसलिए परिवार में एक व्यक्ति से यह सारे परिवार में ही अकसर फैल जाती है। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को छूने मात्र ही से यह रोग नहीं हो जाता बल्कि नज़दीकी एवं काफी लंबे अरसे तक रोग-ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में रहने से यह फैलता है।
इस के बारे में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस का संक्रमण होने पर लगभग एक महीने या उस से भी ज्यादा समय तक मरीज को बिल्कुल खुजली नहीं होती और इस दौरान तो उसे यह भी पता नहीं होता कि उसे कोई चर्म रोग है। लेकिन इस दौरान भी उस के द्वारा यह रोग आगे दूसरे लोगों को तो अवश्य फैल सकता है।
आम तौर पर बच्चों में यह रोग बहुत आम है। इस में सारे शरीर पर छोटे-छोटे दाने हो सकते हैं जिन में बेहद खुजली ( खास कर रात के समय) होती है, लेकिन आम तौर पर ये दाने उंगलियों के बीच, कलाई पर, पेट पर एवं प्रजनन अंगों पर ही होते हैं।
इन दानों पर खुजली करने से संक्रमण बढ़ता है, पस वाले फोड़े बन जाते हैं जिस की वजह से शरीर के विभिन्न भागों में गांठें ( लिम्फ नॉड्स) सूज जाती हैं और बुखार हो जाता है।
साधारणतयः स्कबीज़ चर्म रोग से मृत्यु हो जाना सुनने में नहीं आता, लेकिन अगर छोटे बच्चों को यह त्वचा रोग हो तो उन का विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत है। इन में रोग –प्रतिरोधक क्षमता( इम्यूनिटि) तो वैसे ही कम होती है—अगर पस पड़ने से, बुखार होने से , संक्रमण रक्त में चला जाए ( सैप्टीसीमिया) तो यह जान लेवा सिद्ध हो सकता है।
इस स्केबीज़ चर्म रोग के इलाज के लिए कुछ ध्यान देने योग्य बातें ये भी हैं....
· घर में एक भी सदस्य को स्केबीज़ होने पर पूरे परिवार का एक साथ इलाज होना लाज़मी है।
· इस बीमारी के पूर्ण इलाज के लिए बहुत ही प्रभावशाली लगाने वाली दवाईयां उपलब्ध हैं। इन का प्रयोग आप अपने चिकित्सक से मिलने के पश्चात् कर सकते हैं। गले के नीचे-नीचे शरीर के सभी भागों में इसे ब्रुश से लगाया जाता है। सारे शरीर की चमड़ी पर इसे लगाना बहुत ज़रूरी है। अगर मरीज इस केवल उन जगहों पर ही लगाएंगे जहां पर ये दाने हैं तो बीमारी का नाश नहीं हो पाएगा। 24घंटे के अंतराल पर यह दवाई ऐसे ही शरीर पर दो बार लगाई जाती है। और उस के बाद नहा लिया जाता है। इस दवाई का शरीर पर 48 घंटे लगे रहना बहुत ज़रूरी है।
· विश्व विख्यात पुस्तक “ जहां कोई डाक्टर न हो”के लेखक डेविड वर्नर इस पुस्तक में स्केबीज़ पर एक पेस्ट लगाने की सलाह देते हैं। इसे तैयार करने की विधि इस प्रकार है—थोड़े से पानी में नीम के कुछ पत्ते उबाल लें। इस हल्दी के पावडर के साथ मिला कर एक गाढ़ी पेस्ट बना लें। सारे शरीर को अच्छी तरह से साबुन लगा कर धोने के पश्चात् इस पेस्ट का सारे शरीर विशेषकर उंगलियों के बीच के हिस्सों, टांगों के अंदरूनी हिस्सों( inside portion of thighs) एवं पैरों की उंगलियों के बीच लेप कर दें। उस के बाद सूर्य की रोशनी में कुछ समय खड़े हो जायें। अगले तीन दिनों तक रोज़ाना यह लेप करें, लेकिन नहाएं नहीं। चौथे दिन मरीज़ नहाने के बाद साफ़ सुथरे, सूखे कपड़े पहने। चमड़ी रोग विशेषज्ञ से मिलने से पहले आप इस घरेलु पेस्ट का उपयोग तो अवश्य कर ही सकते हैं , लेकिन प्रोपर डायग्नोसिस एवं यह पता करने के लिए कि रोग जड़ से खत्म हो गया है या नहीं...इस के लिए चर्म-रोग विशेषज्ञ से मिलना तो ज़रूरी है ही।
· स्केबीज़ से डरिए नहीं, इस का इलाज तो बहुत आसान है ही, रोकथाम भी बड़ी आसान है। साफ़-स्वच्छ जीवन-शैली, रोज़ाना नहा धो-कर कपड़े बदलने से इससे बचा जा सकता है। कपड़े और बिस्तर की सफाई का ध्यान रखें और सूर्य की रोशनी में इन्हें अच्छी तरह सुखाएं। और हां, छोटे बच्चों को भी यह रोग होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलें।

1 comments:

Gyandutt Pandey said...
आप सही कह रहे हैं डाक्टर साहब। स्किन एलमेण्ट के मामलों में हमने सेल्फ मेडीकेशन का प्रयोग भी किया है और डाक्टर की सलाह पर भी। लगभग सभी मामलों में अंतत डाक्टर की सलाह से ही काम बना है। और डाक्टर की सलाह पर इतनी तेजी से आराम हुआ कि लगता था सेल्फ मेडिकेशन की क्या बेवकूफी कर रहे थे।
कई बार तो इस शर्म से डाक्टर के पास नहीं जाते थे कि यह न लगे कि हम सामान्य हाइजीन का भी प्रयोग नहीं करते। :-)