जैसे मुझे फिल्मो की कहानियां याद नहीं रहतीं...उसी तरह से मुझे साहित्यिक किताबों में लिखी बातें भी याद नही रहतीं...हरिशंकर परसाई हिंदी के एक नामचीन व्यंग्यकार हुए हैं...उन्हीं की एक किताब है मेरे पास ...आवारा भीड़ के खतरे ...मैंने पढ़ी थी बस इतना याद है...
सच बात है जब भी मॉब काबू से बाहर हुई है, तबाही के मंज़र ही देखे गये हैं....गुज़रात हो, पंजाब हो, दिल्ली हो, सिक्ख दंगे हों ...आवारा भीड़ के तो खतरे ही खतरे हैं .... देश की तकसीम के वक्त हमारी पिछली पीढ़ी ने आवारा भीड़ के कारनामे देखे, सुने और भुगते ...
कुछ दिन पहले हम लोगों ने देखा कि एक २०-२२ साल के युवक ने अमृतसर के हरिमंदिर साहब में जाकर बीढ़ की बेअदबी की ...बहुत निंदनीय बात है ...लेकिन जिस तरह से मेरे सरदार दोस्त यह कहते हैं कि चूंकि कानूनी रास्ते से तो किसी को अभी तक ऐसे गुरूघर की बेअदबी करने की सज़ा मिली नहीं ...इसलिए लोगों ने इस बार उस जवान का फैसला भी ख़ुद ही कर दिया...साध-संगत ने उसे मौके पर ही पीट पीट कर मार दिया....
मुझे यह बात बहुत ज़्यादा बुरी लगी...मैंने अपने सिक्ख दोस्तों से यह बात कही भी ...लेकिन उन का तर्क यही था जो मैंने ऊपर लिखा है ...मेरे भी फंडे बडे़ क्लियर हैं...मैं किसी से भी बहस कम ही करता हूं ...बस, हूं हां, हूं हां कर के बात वहीं छोड़ देता हूं...
इस युवक को इस तरह से मौके पर मार देने से कोई सबूत भी हाथ न लगेगा....अगर वह ज़िंदा रहता तो कुछ न कुछ तो उस से पता चलता ही और देश की न्याय व्यवस्था उस की जड़ों तक जाने की कोशिश करती ...लेकिन अफसोस उस का फैसला साध संगत ने ही कर डाला....अगर फैसले ऐसे ही होने लगें तो फिर कोर्ट-कचहरी की ज़रूरत ही कहां रही। जिस देश में अगर बाबा राम रहीम या आशा राम बापू को सज़ा हो सकती है, वहां कोई भी अपराधी बच नहीं सकता ...हम मोटे तौर पर तो यह कह ही सकते हैं....बाकी, अपवाद होते हैं, होते रहेंगे ....आप भी सब समझते हैं...
मेरे सिक्ख दोस्त यह कह रहे थे कि उस जवान को मौके पर ही मौत के घाट उतार देने से अब भविष्य में लोगों के मन में ऐसा करने के बारे में दहशत पड़ जाएगी....लेकिन मैं ऐसा कोई तर्क मानने के लिए तैयार नहीं हूं....मेरा दिल और दिमाग तो यही कहता है कि कानून के रास्ते से उस का फैसला होना चाहिए था...
और जो मुझे लगा इस वारदात के अगले दिनों में अखबारों को पढ़ते हुए कि इस बात पर कुछ हो-हल्ला नही हुआ ...कि जवान कैसे मौके पर ही मार दिया गया....हां, हां, बेअदबी की भी उच्च स्तरीय जांच ज़रूरी है ....बेशक...वह तो एक गंभीर मुद्दा है ही ..टीवी में क्या कुछ चला इस मुद्दे पर, इस का मुझे बिल्कुल भी इल्म नहीं है क्योंकि टीवी कईं साल से बंद पड़ा है...
आवारा भीड़ के खतरों से हम वाकिफ़ हैं ही ....लेकिन कईं बार एक आदमी का गुस्सा भी क्या कर जाता है....आज की टाइम्स आफ इंडिया में एक खबर देख कर मन बड़ा दुःखी हुआ - एक बारह साल के बच्चे ने घर से ५० रूपये चुरा लिए ...और उस के बाप ने कल उसे पीट पीट कर मार डाला ...आज बड़ा मूड खराब हुआ यह खबर देख कर ...नए साल की तो न मुझे कोई खुशी है न गमी .....और सालों की तरह एक और नया साल आ गया है....जूझ लेंगे इस से भी 😎....लेकिन इस तरह की खबरें बड़ा दुःखी करती हैं...
जो लोग भीड़ के फैसले को सही साबित करते हैं वह यह भूल जाते हैं कि भीड़ का अपना दिमाग नहीं होता... आज आपके तरफ है इसलिए फैसला ठीक लग रहा है... कल को स्थिति बदल भी सकती है...
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