जिस तरह से एक नारा है कि जल है तो हम हैं, ठीक उसी तरह से पेड़ हैं तो हम हैं। दो तीन दिन से पेड़ों के बारे में अपने भाव कलमबंद करने की फिराक में था..मुझे पेड़ों के बारे में लिखना बेहद पसंद है...बस लगता है पेड़ों की महिमा का वर्णन करता ही जाऊं..जब से ये कैमरे में फोन आया और डिजिटल कैमरा आया...मैंने लाखों नहीं तो हज़ारों पेड़ों की तस्वीरें ले रखी हैं....जहां पर भी मैं पेड़ देखता हूं मुझे लगता है कि इस की तस्वीर खींच लूं।
इंटर में मैं बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में बहुत अच्छा था...कहते हैं ना किसी विषय को दिल से पढ़ना...बस, मैं बॉटनी को दिल ही से पढ़ता था....आगे भी चल कर उसे ही पढ़ता तो शायद डेंटिस्ट्री पढ़ने से भी ज़्यादा मज़ा आता। डीएवी कालेज अमृतसर में बीएससी मैडीकल में दाखिला भी ले लिया था....लेकिन तभी डेंटल कालेज से बुलावा आ गया कि आओ, हम तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं, हमारा क्या था....बस हम उधर हो लिए।
लेिकन जो भी हो मेरा प्रकृति प्रेम हमेशा कायम रहा..जितना बड़ा पेड़ देखता हूं मुझे उतना ही अपने बौनेपन का अहसास होता है..इस से ज़मीन पर टिके रहने में मदद मिलती है।
मैं अकसर सोचता हूं कि पेड़ों की हम सब को जोड़ कर रखने में बहुत बड़ी भूमिका है। हम गांव की ही बात करें तो जहां कहीं भी बड़े-बुज़ुर्ग पेड़ हम देखते हैं, उन के इर्द-गिर्द रौनक और खूब धूमधमाका देखने को मिलता है....कितना सुदर नज़ारा लगता है, वहां से हटने की इच्छा ही नहीं होती। नीचे बीसियों लोग बैठ कर गपशप में मशगूल रहते हैं, पास की कोई पानी के दो चार मटके रख देता है, पास ही कोई खाने पीने की चीज़ ला कर बेचने लगता है, किसी का रेडियो बजता है, किसी को अखबार दस लोगों में बंट जाती है..वाह!!
कल शाम मैं लखनऊ के अमीनाबाद एरिया में जा रहा था...यहां बिना किसी कारण के घूमना मुझे बहुत पसंद है। कल शाम अमीनाबाद जाते हुए मुझे यह पेड़ दिख गया....आप देखिए इस एक पेड़ से यह जगह कितनी जीवंत हो गई दिखती है...बीसियों लोग पनाह लेते हैं , कुछ के धंधे चल निकलते हैं......इतने भयंकर प्रदूषण की वजह से जलते-सड़ते वातावरण में इतनी घनी छाया वाला पेड़ एक तरह के उस एरिया का विशालकाय फेफड़ा दिखाई जान पड़ता है।
हम लोग जब पांचवी-छठी-सातवीं कक्षा में स्कूल से घर वापिस लौटते तो हमें उसी एरिया का इंतज़ार रहता जिस में घने छायादार पेड़ लगे होते थे....उन के नीचे पहुंचते ही ठंडक का एहसास एक देवीय अनुकंपा लगती। पास ही में एक प्याऊ भी हुआ करता। वहां पर हम ज़रूर रूका करते।
अमीनाबाद पहुंच कर भी इतने भीड़े भड़क्के वाली जगह में भी आप को अगर इस तरह का पेड़ दिख जाए जैसा कि आप इस तस्वीर में देख रहे हैं तो आदमी बाकी सब कुछ भूल जाता है। देखिए, किस तरह से एक पेड़ ने उस एरिया में जैसे जान फूंक दी हो...उस पेड़ के नीचे सभी धर्मों के, सभी समुदायों के लोग मिल जुल कर अपने अपने काम धंधे चलाते हैं... यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि पेड़ हमें अलग अलग तोहफों के साथ साथ जोड़ कर भी रखते हैं....Peaceful co-existence!...लखनऊ जब तक देखा नहीं था इस के बारे में यही सुना करते थे कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग आपस में टकराव की स्थिति में रहते हैं.....अब समझ आने लगा है कि यह सब बिल्कुल बकवास है, सब राजनीतिक रोटियां सेंकने की बातें हैं, फिरकापस्ती का ज़हर घोलने का सरफिरा जुनून है केवल.......सब लोग हर जगह प्रेम-प्यार से रहते हैं....यहां पर मैं दर्जनों लेखकों को सुन चुका हैं......वे बार बार लखनऊ की जिस गंगा-जमुनी तहजीब की बात दोहराते हैं, वह मैं भी समझने लगा हूं।
हां, तो पेड़ों की बात हो रही थी...बिना पेड़ों के किसी एरिया में कितनी मुर्दानगी छाई रहती है, हम अकसर अनुभव करते हैं......घरों में भी देखते हैं...जिन घरों में सब कुछ सी सीमेंट और महंगा संगेमरमर लगा होता है लेकिन हरियाली बिल्कुल नहीं रहती, वहां भी हर दम मातम का गमगीन माहोल ही दिखा करता है... लेकिन छोटे से कच्चे घरों में भी अगर एक दो पेड़ लगे हैं तो इन की भव्य सुदंरता निहारते ही बनती है।
पेड़ हमें खुश रखते हैं...बेशक ....मेरे जो मरीज मेरी बात सुनने की परवाह करते हैं मैं उन्हें हमेशा प्रकृति के साये में रहने की प्रेरणा दिया करता हूं... कल एक महिला आई...बड़ी ज़हीन थी...६०-६५ की होगी...कोई बात हुई तो कहने लगी कि मेरे को डिप्रेशन है ना, इसलिए फलां फलां दवाईयां खा रही हूं.....मैंने कहा कि ठीक है दवाईयां ले रहे हैं, लेकिन इस के साथ साथ डिप्रेशन दूर भगाने का अचूक फार्मूला सुबह की सैर और पेड़ों के साथ समय बिताने की भी आदत डालें....
मुझे लगता है कि अब यही विराम लूं......कल सुबह टहलते हुए अपनी सोसायटी में सैर करते भी दीवार के साथ लगे पेड़ों की तस्वीरें लीं तो आप से शेयर करने की इच्छा हुई...चार पांच तरह के मनमोहक रंगों के बोगेनविलिया की बेलें देख कर मन झूम उठा........उधर से मेरे एफएम पर वह हमारे दिनों वाला वह सुपरहिट गीत बज रहा था... हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम.....इतनी हरियाली और मनमोहक नज़ारे देखते हुए अपना हाल भी एक दम टनाटन है।
अभी विराम लेता हूं ...टहलने निकल रहा हूं......कुछ ही समय में तेज़ धूप निकल आती है...
इंटर में मैं बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में बहुत अच्छा था...कहते हैं ना किसी विषय को दिल से पढ़ना...बस, मैं बॉटनी को दिल ही से पढ़ता था....आगे भी चल कर उसे ही पढ़ता तो शायद डेंटिस्ट्री पढ़ने से भी ज़्यादा मज़ा आता। डीएवी कालेज अमृतसर में बीएससी मैडीकल में दाखिला भी ले लिया था....लेकिन तभी डेंटल कालेज से बुलावा आ गया कि आओ, हम तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं, हमारा क्या था....बस हम उधर हो लिए।
लेिकन जो भी हो मेरा प्रकृति प्रेम हमेशा कायम रहा..जितना बड़ा पेड़ देखता हूं मुझे उतना ही अपने बौनेपन का अहसास होता है..इस से ज़मीन पर टिके रहने में मदद मिलती है।
मैं अकसर सोचता हूं कि पेड़ों की हम सब को जोड़ कर रखने में बहुत बड़ी भूमिका है। हम गांव की ही बात करें तो जहां कहीं भी बड़े-बुज़ुर्ग पेड़ हम देखते हैं, उन के इर्द-गिर्द रौनक और खूब धूमधमाका देखने को मिलता है....कितना सुदर नज़ारा लगता है, वहां से हटने की इच्छा ही नहीं होती। नीचे बीसियों लोग बैठ कर गपशप में मशगूल रहते हैं, पास की कोई पानी के दो चार मटके रख देता है, पास ही कोई खाने पीने की चीज़ ला कर बेचने लगता है, किसी का रेडियो बजता है, किसी को अखबार दस लोगों में बंट जाती है..वाह!!
कल शाम मैं लखनऊ के अमीनाबाद एरिया में जा रहा था...यहां बिना किसी कारण के घूमना मुझे बहुत पसंद है। कल शाम अमीनाबाद जाते हुए मुझे यह पेड़ दिख गया....आप देखिए इस एक पेड़ से यह जगह कितनी जीवंत हो गई दिखती है...बीसियों लोग पनाह लेते हैं , कुछ के धंधे चल निकलते हैं......इतने भयंकर प्रदूषण की वजह से जलते-सड़ते वातावरण में इतनी घनी छाया वाला पेड़ एक तरह के उस एरिया का विशालकाय फेफड़ा दिखाई जान पड़ता है।
हम लोग जब पांचवी-छठी-सातवीं कक्षा में स्कूल से घर वापिस लौटते तो हमें उसी एरिया का इंतज़ार रहता जिस में घने छायादार पेड़ लगे होते थे....उन के नीचे पहुंचते ही ठंडक का एहसास एक देवीय अनुकंपा लगती। पास ही में एक प्याऊ भी हुआ करता। वहां पर हम ज़रूर रूका करते।
अमीनाबाद पहुंच कर भी इतने भीड़े भड़क्के वाली जगह में भी आप को अगर इस तरह का पेड़ दिख जाए जैसा कि आप इस तस्वीर में देख रहे हैं तो आदमी बाकी सब कुछ भूल जाता है। देखिए, किस तरह से एक पेड़ ने उस एरिया में जैसे जान फूंक दी हो...उस पेड़ के नीचे सभी धर्मों के, सभी समुदायों के लोग मिल जुल कर अपने अपने काम धंधे चलाते हैं... यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि पेड़ हमें अलग अलग तोहफों के साथ साथ जोड़ कर भी रखते हैं....Peaceful co-existence!...लखनऊ जब तक देखा नहीं था इस के बारे में यही सुना करते थे कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग आपस में टकराव की स्थिति में रहते हैं.....अब समझ आने लगा है कि यह सब बिल्कुल बकवास है, सब राजनीतिक रोटियां सेंकने की बातें हैं, फिरकापस्ती का ज़हर घोलने का सरफिरा जुनून है केवल.......सब लोग हर जगह प्रेम-प्यार से रहते हैं....यहां पर मैं दर्जनों लेखकों को सुन चुका हैं......वे बार बार लखनऊ की जिस गंगा-जमुनी तहजीब की बात दोहराते हैं, वह मैं भी समझने लगा हूं।
हां, तो पेड़ों की बात हो रही थी...बिना पेड़ों के किसी एरिया में कितनी मुर्दानगी छाई रहती है, हम अकसर अनुभव करते हैं......घरों में भी देखते हैं...जिन घरों में सब कुछ सी सीमेंट और महंगा संगेमरमर लगा होता है लेकिन हरियाली बिल्कुल नहीं रहती, वहां भी हर दम मातम का गमगीन माहोल ही दिखा करता है... लेकिन छोटे से कच्चे घरों में भी अगर एक दो पेड़ लगे हैं तो इन की भव्य सुदंरता निहारते ही बनती है।
पेड़ हमें खुश रखते हैं...बेशक ....मेरे जो मरीज मेरी बात सुनने की परवाह करते हैं मैं उन्हें हमेशा प्रकृति के साये में रहने की प्रेरणा दिया करता हूं... कल एक महिला आई...बड़ी ज़हीन थी...६०-६५ की होगी...कोई बात हुई तो कहने लगी कि मेरे को डिप्रेशन है ना, इसलिए फलां फलां दवाईयां खा रही हूं.....मैंने कहा कि ठीक है दवाईयां ले रहे हैं, लेकिन इस के साथ साथ डिप्रेशन दूर भगाने का अचूक फार्मूला सुबह की सैर और पेड़ों के साथ समय बिताने की भी आदत डालें....
हमारी सोसायटी में टहलना अच्छा लगता है.. |
मुझे लगता है कि अब यही विराम लूं......कल सुबह टहलते हुए अपनी सोसायटी में सैर करते भी दीवार के साथ लगे पेड़ों की तस्वीरें लीं तो आप से शेयर करने की इच्छा हुई...चार पांच तरह के मनमोहक रंगों के बोगेनविलिया की बेलें देख कर मन झूम उठा........उधर से मेरे एफएम पर वह हमारे दिनों वाला वह सुपरहिट गीत बज रहा था... हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम.....इतनी हरियाली और मनमोहक नज़ारे देखते हुए अपना हाल भी एक दम टनाटन है।
अभी विराम लेता हूं ...टहलने निकल रहा हूं......कुछ ही समय में तेज़ धूप निकल आती है...
सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंdhanyawaad jyoti ji....
हटाएंपर शायद हम अभी भी इस ओर ध्यान नहीं देते कि पेड़ लगाते रहने की ज़रूरत ख़त्म नहीं होती...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने काजल जी...पेड़ तो निरंतर लगाते ही रहना चाहिए।
हटाएंचोपड़ा परा जी ...मुझे आज भी गाँव के पेड़ अपनी तरफ खींचते है ...मेरे तो आप दिल के बातें लिखते हो ...अहर यकीन न हो तो जब आप के पास थोड़ा समय हो यहाँ पर तस्दीक कर लें ...खुश रहें ......http://ashokakela.blogspot.in/2012/06/blog-post_18.html
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सलूजा जी...आप के हौसलाफ़जाई वाले शब्दों के लिए...
हटाएंजितना बड़ा पेड़ देखता हूं मुझे उतना ही अपने बौनेपन का अहसास होता है..इस से ज़मीन पर टिके रहने में मदद मिलती है।
जवाब देंहटाएंnice blog
www.itarsia.in
thanks.
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