मेरे पास कुछ महीने पहले एक व्यक्ति आता था.. ७० के ऊपर की उम्र... २० साल से कोर्ट कचहरी के धक्के खा रहा है, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई..रिटायर हुए भी १२-१३ वर्ष हो गये हैं लेकिन अभी भी बड़ा हैरान, परेशान और एकदम पज़ल सा दिखा मुझे वह।
हैरान परेशान का कारण यही कि अभी तक कोर्ट-कचहरी में इतना पिसता रहा कि अभी भी तीनों बेटियों को ब्याहना है। और जिस बेटी को वह मेरे पास लेकर आया वह बेटी चाहती थी कि उस के आगे के सभी दांत एक दम सुंदर दिखने लगें .. सफ़ेद हो जाएं.. हंसते हुए जो थोड़े भद्दे से दिखते हैं, वे अच्छे दिखें......मैं सब समझ गया जब उस बुज़ुर्ग ने कहा कि लड़के वाले फोटो मंगवा रहे हैं, हम अभी भेज नहीं रहे हैं, ज़्यादा देर नहीं कर सकते, हम चाहते हैं इस के दांत अच्छे दिखने लगें तो ही फोटू खिंचवाए।
एक बाप की मजबूरी मैं समझ रहा था......मैंने भी कुछ दिन लगा दिए उस के दांतों को अपनी तरफ़ से बिल्कुल सफ़ेद-और बिल्कुल तरतीब में करने में। वे बाप और बेटी दोनों खुश थे। उन को खुश देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ।
यह पोस्ट मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि मैंने बहुत महान काम किया....सरकारी अस्पताल में सरकारी लोगों का अच्छे से इलाज करना मेरा पेशा है, सरकार उस के लिए मेरा ध्यान रखती है...ऐसे बहुत से युवत-युवतियों के चेहरों को सुंदर बनाया होगा.....लेकिन यह केस मुझे भुलाये नहीं भूलता क्योंकि यहां एक बाप की मजबूरी हर पल मुझे द्रवित करती थी।
लगभग ३० वर्ष की रही होगी उस की बेटी लेकिन वह बुजुर्ग बाप बेचारा इलाज के दौरान सामने बैठा बीच बीच में उस के दांत को ऐसा चैक करता था -- जैसे कि कोई मां-बाप अपने छोटे शिशु को इलाज के लिए लाये हों। मुझे बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हुआ ..हर बाप का अधिकार है ...मैंने तो उन्हें इतना भी कहा कि वह इस बेटी की मां को भी साथ ला सकते हैं, लेकिन उसने बिल्कुल भोलेपन से जब कहा कि डा साहब, वह तो खाट पर पड़ी है, अगर आप कहेंगे तो टैक्सी कर के ले आएंगे। मैंने कहा ..नहीं, नहीं, मैं तो आप की संतुष्टि के लिए कह रहा था।
बहरहाल, इतने वर्ष हो गये इस काम को करते हुए लेकिन जितनी लाचारी, बेबसी और उम्मीद मैंने इस बुज़ुर्ग बाप की आंखों में देखी, मैंने शायद पहले कभी इस का अनुभव नहीं किया होगा। शुक्र है ईश्वर का कि मैं बाप बेटी की उम्मीदों पर खरा उतर सका।
सच में एक औसत हिंदोस्तानी की कितनी अजीबोगरीब मजबूरियां हैं ना....... क्या करे, हाय रे, हमारी सामाजिक व्यवस्था.......सुबह कभी तो आएगी।
हैरान परेशान का कारण यही कि अभी तक कोर्ट-कचहरी में इतना पिसता रहा कि अभी भी तीनों बेटियों को ब्याहना है। और जिस बेटी को वह मेरे पास लेकर आया वह बेटी चाहती थी कि उस के आगे के सभी दांत एक दम सुंदर दिखने लगें .. सफ़ेद हो जाएं.. हंसते हुए जो थोड़े भद्दे से दिखते हैं, वे अच्छे दिखें......मैं सब समझ गया जब उस बुज़ुर्ग ने कहा कि लड़के वाले फोटो मंगवा रहे हैं, हम अभी भेज नहीं रहे हैं, ज़्यादा देर नहीं कर सकते, हम चाहते हैं इस के दांत अच्छे दिखने लगें तो ही फोटू खिंचवाए।
एक बाप की मजबूरी मैं समझ रहा था......मैंने भी कुछ दिन लगा दिए उस के दांतों को अपनी तरफ़ से बिल्कुल सफ़ेद-और बिल्कुल तरतीब में करने में। वे बाप और बेटी दोनों खुश थे। उन को खुश देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ।
यह पोस्ट मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि मैंने बहुत महान काम किया....सरकारी अस्पताल में सरकारी लोगों का अच्छे से इलाज करना मेरा पेशा है, सरकार उस के लिए मेरा ध्यान रखती है...ऐसे बहुत से युवत-युवतियों के चेहरों को सुंदर बनाया होगा.....लेकिन यह केस मुझे भुलाये नहीं भूलता क्योंकि यहां एक बाप की मजबूरी हर पल मुझे द्रवित करती थी।
लगभग ३० वर्ष की रही होगी उस की बेटी लेकिन वह बुजुर्ग बाप बेचारा इलाज के दौरान सामने बैठा बीच बीच में उस के दांत को ऐसा चैक करता था -- जैसे कि कोई मां-बाप अपने छोटे शिशु को इलाज के लिए लाये हों। मुझे बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हुआ ..हर बाप का अधिकार है ...मैंने तो उन्हें इतना भी कहा कि वह इस बेटी की मां को भी साथ ला सकते हैं, लेकिन उसने बिल्कुल भोलेपन से जब कहा कि डा साहब, वह तो खाट पर पड़ी है, अगर आप कहेंगे तो टैक्सी कर के ले आएंगे। मैंने कहा ..नहीं, नहीं, मैं तो आप की संतुष्टि के लिए कह रहा था।
बहरहाल, इतने वर्ष हो गये इस काम को करते हुए लेकिन जितनी लाचारी, बेबसी और उम्मीद मैंने इस बुज़ुर्ग बाप की आंखों में देखी, मैंने शायद पहले कभी इस का अनुभव नहीं किया होगा। शुक्र है ईश्वर का कि मैं बाप बेटी की उम्मीदों पर खरा उतर सका।
सच में एक औसत हिंदोस्तानी की कितनी अजीबोगरीब मजबूरियां हैं ना....... क्या करे, हाय रे, हमारी सामाजिक व्यवस्था.......सुबह कभी तो आएगी।
बहुत सही कहा आपने , देश में सबसे बड़ा तबका ऐसे मजबूर लोगों का ही है आप का आभार आम आदमी के दर्द को महसूस करने का
जवाब देंहटाएंईश्वर सब को सद्बुद्धि दे..... आमीन।
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