मंगलवार, 12 अगस्त 2014

मछली खाने का सलीका

अगर किसी रिपोर्ट का शीर्षक यह है ... Relearning how to eat Fish...... तो मेरी तरह आप को भी यही लगेगा कि शायद यहां मछली के खाने का कुछ विशेष सलीका बताया जा रहा होगा।

मैं झट से उस लिंक पर क्लिक कर के उधर पहुंच गया इस उम्मीद के साथ कि शायद इस में लिखा हो कि मछली खाते समय इस के कांटों से कैसे अपना बचाव करना है क्योंकि बचपन में जाड़े के दिनों में चंद बार जो भी मछली खाई उस का कभी भी मज़ा इसलिए नहीं आया कि ध्यान तो हर पल उधर ही अटका रहा कि कहीं हलक में कांटा-वांटा अटक न जाए...हर बार खाते समय बंगाली बंधुओं का ध्यान कि कैसे वे लोग मछली इतनी सहजता से खा लेते हैं और वह भी चावल के साथ........और हैरानी की बात सारे कांटे मुंह के अंदर ही अलग करते हैं और इक्ट्ठे होने पर बाहर फैंक देते हैं. मेरे को यह बात हमेशा अचंभित करती है।

हां, तो मैंने उस लिंक पर जाकर देखा कि वहां तो बातें ही बहुत ज़्यादा हाई-फाई हो रही हैं, न तो मेरी समझ में कुछ आया न ही मैंने कोशिश की...क्योंकि जितने नियंत्रण की, जिस तरह से मछली की श्रेणियों की बातें और जितनी एहतियात मछली खरीदने वक्त करने को कहा गया, मुझे वह सब बेमानी सा लगा.........क्योंकि यहां पर ऐसा कुछ भी कंट्रोल तो है नहीं, जो बिक रहा है, लेना हो तो लो, वरना चलते बनो।

अगर खाने का सलीका नहीं सिखाया जा रहा इस लिंक में तो मैंने लिंक क्यों टिका दिया........केवल इस कारण से कि अपने मछली खाने वाले बंधु न्यूयार्क टाइम्स की इस रिपोर्ट से कुछ तो जान लें, शायद कुछ काम ही आ जाए। 

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