रविवार, 6 जून 2010

इंटरनेट लेखन के दांव-पेच--पाठ संख्या 3.

हां तो अपनी चर्चा चल रही थी कि इंटरनेट पर लिखे लेख का शीर्षक कैसा होना चाहिए ? बिल्कुल दुरूस्त टिप्पणीयां आईं कि शीर्षक ऐसा तो हो कि पाठक को आकर्षक लगे। तो आइये इसी बात को थोड़ा सा विस्तार से देखते हैं ..
वैसे यहां पर मैं जिन बिंदुओं को रेखांकित करूंगा वे ज़्यादातर न्यूज़-स्टोरी के लिये लागू होते हैं--चूंकि अब ब्लागिंग एवं न्यूज़-रिपोर्टिंग के बीच की दूरी तेज़ी से खत्म होती दिख रही है इसलिये ये सब बिंदु हमारे चिट्ठों के लिये भी उतने ही लागू होते हैं।
  1. नेट पर कहीं भी हमें कोई अलग थलग पड़ा हुआ शीर्षक भी मिल जाए तो हमें उसे से यह तो पता लगना ही चाहिये कि उस शीर्षक के अंतर्गत लेखक क्या कहना चाह रहा है। In other words, headlines has to tell us what the story is about.
  2. जहां तक हो सके शीर्षक में एक क्रियात्मक शब्द तो होना ही चाहिये --- जिसे हम लोग अंग्रेज़ी में verb कहते हैं --यानि कि पता लगना चाहिये शीर्षक से क्या चल रहा है, और जहां तक हो सके यह strong verb होना चाहिए।
  3. जैसा कि अपने ही साथी ब्लॉगरों ने विचार रखे हैं कि हमारे लेखों के शीर्षक कमबख्त इतने आकर्षक हों कि पाठक वहीं रूक जाए और उस का नोटिस लेने पर मजबूर हो जाए। Headlines should be catchy, punchy, and must attract attention.
  4. एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह भी है जहां तक हो सके शीर्षक छोटा, सटीक ओर एकदम सीधा तीर की तरह जाने वाला हो --- It should be short, to-the-point and snappy.
  5. शायद आपने भी नोटिस किया होगा कि बीबीसी की स्टोरीज़ के शीर्षक आम तौर पर चार शब्दों के ही होते हैं लेकिन जहां तक हो सके छः शब्दों से ज़्यादा शब्द शीर्षक में नहीं रखने चाहिये।
  6. एक बात कहते हैं ना कि KISS principle को पूरी तरह फॉलो करना चाहिये ---- चलिये लगे हाथ इस KISS का राज़ भी खोल ही देते हैं --- Keep it short and simple!!
  7. शीर्षक लगभग हमेशा वर्तमान टैंस में ही लिखा होना चाहिये --- Present tense is used. मेरा विचार है कि चिट्ठाकारी करते समय अकसर हमें इस नियम से हटना पड़ सकता है। लेकिन लेखन की सुंदरता इसी में है कि कैसे इस नियम का भी पालन कर सकें। वर्तमान टैंस होने से शीर्षक पाठक को लुभाता, पाठक में कुछ प्रासांगिक मिलने की आतुरता रहती है।
  8. यह तो सुनिश्चित किया ही जाना चाहिये कि शीर्षक में कोई गलतियां आदि न हों, इस से पाठक चिढ़ जाता है और कईं बार लेखक के बारे में शीर्षक देख कर ही अपनी राय बना बैठता है।
  9. जहां तक हो सके शीर्षक में ऐब्रीविएशन (abbreviations) का इस्तेमाल न किया जाए --- लेकिन कुछ बहुत ही प्रचलित छोटे नामों के लिये यह छूट ली जा सकती है जैसे कि यू.एन, यू एस ए, यू के आदि।
और जाते जाते वही पुरानी बात ---धन्यवाद है ब्लागवाणी का, चिट्ठाजगत का ---हमें अपने सभी परिचितों के चिट्ठे एक साथ मिल जाते हैं और काफी तो हम ने बुकमार्क कर रखे हैं, सब्सक्राइब कर रखे हैं, लेकिन अब सोचने की बात है कि जब भी हम लोग अपने किसी भी लेख के लिये शीर्षक लिखने लगें तो थोड़ा यह अवश्य सोच लें कि अगर इस तरह का शीर्षक मुझे नेट पर कहीं अलग-थलग (isolated) पड़ा दिख जाएगा तो क्या उस पर क्लिक कर के लेख तक जाने की ज़हमत उठाना चाहूंगा कि नहीं ?
चलिये, आप के लिये भी एक अभ्यास (exercise) -- यह पाठ पढ़ने के बाद आप एक बार ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत पर आज प्रकाशित चिट्ठों पर जल्दी से नज़र दौड़ाएं और फिर सोचें कि हम कैसे और भी अच्छे, उम्दा और आकर्षक शीर्षक लिख सकते हैं। वैसे भी आजकल तो पैकिंग पर इतना ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है, तो फिर हम लोग क्यों किसी से पीछे रहें !

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