अमेरिका में हाल ही में कुछ केस सामने आये हैं जिन में सी.टी स्कैन करते समय भूलवश रेडिएशन की डोज़ सामान्य से आठ गुणा तक दे दी गई। इसे लिंक पर क्लिक कर के पूरा पढ़ें...
मैं तो इस खबर के बाद यही सोच रहा हूं कि इस तरह की अवेयरनैस मुझे लगता है कि इस देश में तो नहीं है। अवेयरनेस नहीं, जागृति नहीं तो इसीलिये कोई प्रश्न भी नहीं पूछता।
पीछे आपने भी मीडिया में देखा होगा कि खूब आ रहा था कि बार बार सी.टी स्कैन करवाने से जो रेडिएशन ओवर-एक्सपोज़र हो जाता है वह शरीर के लिये नुकसानदायक है। और अब यह नई बात पता चली कि सी.टी स्कैन करवाते समय भी इस तरह का अंदेशा बना रहता है।
तो इस का समाधान क्या है ? --- सब से पहला तो यह कि यह जो आजकल सी.टी स्कैन करवाने का फैशन सा चल निकला है, इस को रोकना होगा। फैशन ? – आप सोच रहे होंगे कि डाक्टर यह क्या कह रहा है, अब विशेषज्ञ कहते हैं तो हम करवाते हैं, वरना हमें कोई शौक है !!
बीमारों एवं तीमारदारों के साथ पूरी सहानुभूति रखते हुये यह कहने की हिम्मत कर रहा हूं कि आजकल बिना सी.टी स्कैन के कईं बार डाक्टरों की तो बल्कि मरीज़ों की तसल्ली नहीं होती। इस में दो तीन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं----
--- आप किसी प्राइवेट विशेषज्ञ के पास जाते हैं तो उस के पास जाने से पहले अपनी पूरी तसल्ली कर लें। एक बार उस के चैंबर में दाखिल हो गये तो जहां तक हो सके अपना मैडीकल ज्ञान वेटिंग-रूम में ही छोड़ जाएं --- मरीज़ के लिये ठीक है उस का दुःख नया है लेकिन विशेषज्ञ तो दशकों से ऐसे ही मरीज़ देख रहा है। और अगर आप ने अपनी तरफ़ से कह दिया कि डाक्टर साहब, सी.टी स्कैन करवा लें क्या ? –तो मुझे यह बतलाईये कि अगर आपने सी.टी स्कैन करवाने की ठान ही ली है तो आप को कौन रकता है !! बल्कि अगर विशेषज्ञ जांच करने के बाद उसे वैसे ही सारा माजरा समझ में आ जाता है और वह इस तरह के सी. या एमआरआई करवाने की सलाह ही नहीं देता तो आप बधाई के पात्र हैं।
---अब चलिये कुछ लोगों को जिन्हें उन की कंपनी इस तरह के टैस्टों पर किये जाने वाले खर्च को रिएम्बर्स करती हैं अर्थात् उन्हें सारा पैसा अपने एम्पलॉयर से मिल जाता है। अब इसे कुछ भी कहिये ---लेकिन उन्हें कईं बार लगता है कि चलों, यार, यह बार बार सिरदर्द जा नहीं रहा, कल पैस फिसल गया था, सिरदर्द है, सी.टी हो क्यों न करवा लिया जाए......अब अगर इस तरह के बाशिंदों ने भी यह ठान ही लिया है तो भला है कोई जो इन्हें ऐसा करवाने से रोक पाये ----- बात ज़्यादा होगी तो डाक्टर को यह सुनने को मिल सकता है---आप का क्या जा रहा है, सरकार जब कोई सुविधा दे रही है तो आप क्यों एडवाईज़ नहीं कर रहे ?
--- कुछ सरकारी संस्थान ऐसे हैं जिन्हें अपने मरीज़ो के लिये शहर के प्राइवेट सी.टी,एमआरआई सैंटरों के साथ टाई-अप कर रखा है, जिन्हें वे मरीज़ों की गिनती के अनुसार उस सैंटर के साथ हुये करार की शर्तों के अनुसार मासिक बिलिंग के अनुसार पेमैंट कर देती है। इन में भी मुझे ऐसा लगता है तो कईं बार ( बहुत बार लिखने से डर रहा हूं, अधिक बार लिखने के लिये क्वालीफाईड नहीं हूं , इसलिये कईं बार लिख कर ही काम चला रहा हूं !!) बस ऐसे ही इस तरह के टैस्ट करवा लिये जाते हैं। मैं तो भई प्रामाणिक बात करता हूं ---अगर किसी को इस में कोई शक हो तो क्यों न एक साल में हुये सी.टी स्कैनों में से कितने स्कैनों की रिपोर्ट किसी भी तरह से पाज़िटिव आई, इस का अध्ययन किया जा सकता है। इस तरह के संस्थानों में तो बहुत बार मरीज़ की मरजी चलती है ---अगर उसे बाहर से किसी झोलाछाप चिकित्सक ने भी कह दिया है कि तुम यह सी.टी करवा ही लो, तो फिर कोई डाक्टर उस की ख्वाहिश पूरी न कर के तो देखो, अकसर इस तरह के केसों द्वारा हंगामा, हो-हल्ला किये जाने के डर से डाक्टर आसान ही डगर पकड़ तो लेते हैं लेकिन किस कीमत ? -----सरकारी पैसा गया सो गया, मरीज़ की ख्वाहिश पूरी करने के चक्कर में उस ने बिना वजह रेजिएशन ले लीं ?
----जो मेरा पीजीआई रोहतक में प्रोफैशनल अनुभव रहा है कि वहां पर दो-तीन डाक्टरों की टीम यह तय करती है कि किसी व्यक्ति को इस तरह के टैस्टों की ज़रूरत है कि नहीं .... अगर टैस्टों की ज़रूरत है तो सब्सिडाईज्ड रेट पर इन-हाउस सैंटरों पर ही ये महंगे टैस्ट मरीज़ों को उपलब्ध करवा दिये जाते हैं।
अब एक ऐसी श्रेणी की बात भी कर लें जिन के लिये ये टैस्ट ज़रूरी तो हैं लेकिन जिन्हें झोलाछाप, फुटपाथ-मार्का नकली चिकित्सकों ने इस कद्र उलझा के रखा हुया है कि वे हर बीमारी के पीछे किसी प्रेतात्मा का हाथ बताते रहते हैं ---कईं बार सोचता हूं कि इन चक्करों में उलझे रहना शायद इन कम-खुशकिस्मत लोगों की मजबूरी भी हो सकती है। अगर टैस्ट करवाने को कोई कह भी दे तो पैसे कहां से आएंगे ?
इसी संबंध में एक किस्सा सुना रहा हूं ---लड़का बहुत दिनों से कह रहा था कि पोर्टेबल हार्ड डिस्क लेनी है। कुछ दिन पहले मैं उस के साथ चंडीगढ़ पहुंचा ---स्टेशन के बाहर ही –हम दोनों आटो की इंतज़ार कर रहे थे कि अचानक एक आटो वाला एक पचास के करीब की महिला को बुरी तरह ठोक कर चला गया। जिस तरह से वह महिला गिरी और बेहोश हो गई मुझे तो लगा कि चोट खासी गहरी लग गई लगती है। महिला का वर्णऩ तो किया ही नहीं ---- यह वो महिला बिल्कुल वैसी थी जिसे हम पढ़े लिखे लोग अनपढ़, गरीब, .....पता नहीं क्या क्या कह देते हैं ? ---शायद यह सब लिखना इतना ज़रूरी नहीं था क्योंकि वह तो केवल एक मां थी। उस के बच्चों ने उस को घेर रखा था।
मैंने पानी की बोतल उसे दी--- उस ने पानी पिया ---मैंने उस के बच्चों को कहा कि कुछ समय के लिये इन्हें लिटा दो, उसे लिटा दिया गया , उस के कुनबे के लोगों में से कोई उस का सिर दबा रहा था...मैं भी अपना काम कर रहा था ---उन के पास ही खड़ा मैं बड़ी शिद्दत से इस प्रभु से यही प्रार्थना किये जा रहा था कि कैसे भी इसे ठीक कर दे, भाई। मुझे यह तो यकीन ही था कि परमात्मा ही कुछ चमत्कार करे सो करे, इन्हें कोई दो-चार सौ रूपये दे भी देगा तो इतने में इन का क्या बनेगा, शायद इतने रूपयों में तो ये किसी बड़े हास्पीटल के गेट तक ही पहुंच पाएं ---- बस, मैं बड़ी इमानदारी से उस लम्हों में प्रार्थना से जुड़ा हुया था -----और मेरा ऐसा विचार बन रहा था कि ये कुछ ठीक हो तो ही मैं और मेरा बेटा वहां से चलें !!
तभी वह औरत ने बात करना शुरू कर दिया –वह अपने बेटे को बता रही थी कि यह सब कैसे हुआ ---- दोस्तों, मैं बता नहीं सकता कि मुझे उस पल कितनी खुशी हुई ---मेरी खुशी का पारावार नहीं था ---- मुझे शायद यही लग रहा था कि मेरी अरदास काम कर गई ----- तभी एक आटो दिखा, हम बैठ कर मार्कीट की तरफ़ निकल पड़े।
मुझे पता है कि इस औरत के सिर पर इस तरह की टक्कर के इंपैक्ट के कारण वह जो दो-तीन मिनट बेसुध रही वह भविष्य के लिये एक दुर्भाग्यपूर्ण भी हो सकती थी लेकिन यही सोच कर ही मन को तसल्ली दे दी कि जिस ने उस की अभी इस समय रक्षा की है, वह भविष्य में भी करेगा ---- सोच वैसे रहा था कि अगर इस का सी.टी करवाना होगा तो कौन करवायेगा .......और साथ ही यह भी समझने की कोशिश कर रहा था कि यार, कुछ तो बात है उस बात में भी कि जब दवा काम नहीं करती तो दुआ काम करती है।
मैं तो इस खबर के बाद यही सोच रहा हूं कि इस तरह की अवेयरनैस मुझे लगता है कि इस देश में तो नहीं है। अवेयरनेस नहीं, जागृति नहीं तो इसीलिये कोई प्रश्न भी नहीं पूछता।
पीछे आपने भी मीडिया में देखा होगा कि खूब आ रहा था कि बार बार सी.टी स्कैन करवाने से जो रेडिएशन ओवर-एक्सपोज़र हो जाता है वह शरीर के लिये नुकसानदायक है। और अब यह नई बात पता चली कि सी.टी स्कैन करवाते समय भी इस तरह का अंदेशा बना रहता है।
तो इस का समाधान क्या है ? --- सब से पहला तो यह कि यह जो आजकल सी.टी स्कैन करवाने का फैशन सा चल निकला है, इस को रोकना होगा। फैशन ? – आप सोच रहे होंगे कि डाक्टर यह क्या कह रहा है, अब विशेषज्ञ कहते हैं तो हम करवाते हैं, वरना हमें कोई शौक है !!
बीमारों एवं तीमारदारों के साथ पूरी सहानुभूति रखते हुये यह कहने की हिम्मत कर रहा हूं कि आजकल बिना सी.टी स्कैन के कईं बार डाक्टरों की तो बल्कि मरीज़ों की तसल्ली नहीं होती। इस में दो तीन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं----
--- आप किसी प्राइवेट विशेषज्ञ के पास जाते हैं तो उस के पास जाने से पहले अपनी पूरी तसल्ली कर लें। एक बार उस के चैंबर में दाखिल हो गये तो जहां तक हो सके अपना मैडीकल ज्ञान वेटिंग-रूम में ही छोड़ जाएं --- मरीज़ के लिये ठीक है उस का दुःख नया है लेकिन विशेषज्ञ तो दशकों से ऐसे ही मरीज़ देख रहा है। और अगर आप ने अपनी तरफ़ से कह दिया कि डाक्टर साहब, सी.टी स्कैन करवा लें क्या ? –तो मुझे यह बतलाईये कि अगर आपने सी.टी स्कैन करवाने की ठान ही ली है तो आप को कौन रकता है !! बल्कि अगर विशेषज्ञ जांच करने के बाद उसे वैसे ही सारा माजरा समझ में आ जाता है और वह इस तरह के सी. या एमआरआई करवाने की सलाह ही नहीं देता तो आप बधाई के पात्र हैं।
---अब चलिये कुछ लोगों को जिन्हें उन की कंपनी इस तरह के टैस्टों पर किये जाने वाले खर्च को रिएम्बर्स करती हैं अर्थात् उन्हें सारा पैसा अपने एम्पलॉयर से मिल जाता है। अब इसे कुछ भी कहिये ---लेकिन उन्हें कईं बार लगता है कि चलों, यार, यह बार बार सिरदर्द जा नहीं रहा, कल पैस फिसल गया था, सिरदर्द है, सी.टी हो क्यों न करवा लिया जाए......अब अगर इस तरह के बाशिंदों ने भी यह ठान ही लिया है तो भला है कोई जो इन्हें ऐसा करवाने से रोक पाये ----- बात ज़्यादा होगी तो डाक्टर को यह सुनने को मिल सकता है---आप का क्या जा रहा है, सरकार जब कोई सुविधा दे रही है तो आप क्यों एडवाईज़ नहीं कर रहे ?
--- कुछ सरकारी संस्थान ऐसे हैं जिन्हें अपने मरीज़ो के लिये शहर के प्राइवेट सी.टी,एमआरआई सैंटरों के साथ टाई-अप कर रखा है, जिन्हें वे मरीज़ों की गिनती के अनुसार उस सैंटर के साथ हुये करार की शर्तों के अनुसार मासिक बिलिंग के अनुसार पेमैंट कर देती है। इन में भी मुझे ऐसा लगता है तो कईं बार ( बहुत बार लिखने से डर रहा हूं, अधिक बार लिखने के लिये क्वालीफाईड नहीं हूं , इसलिये कईं बार लिख कर ही काम चला रहा हूं !!) बस ऐसे ही इस तरह के टैस्ट करवा लिये जाते हैं। मैं तो भई प्रामाणिक बात करता हूं ---अगर किसी को इस में कोई शक हो तो क्यों न एक साल में हुये सी.टी स्कैनों में से कितने स्कैनों की रिपोर्ट किसी भी तरह से पाज़िटिव आई, इस का अध्ययन किया जा सकता है। इस तरह के संस्थानों में तो बहुत बार मरीज़ की मरजी चलती है ---अगर उसे बाहर से किसी झोलाछाप चिकित्सक ने भी कह दिया है कि तुम यह सी.टी करवा ही लो, तो फिर कोई डाक्टर उस की ख्वाहिश पूरी न कर के तो देखो, अकसर इस तरह के केसों द्वारा हंगामा, हो-हल्ला किये जाने के डर से डाक्टर आसान ही डगर पकड़ तो लेते हैं लेकिन किस कीमत ? -----सरकारी पैसा गया सो गया, मरीज़ की ख्वाहिश पूरी करने के चक्कर में उस ने बिना वजह रेजिएशन ले लीं ?
----जो मेरा पीजीआई रोहतक में प्रोफैशनल अनुभव रहा है कि वहां पर दो-तीन डाक्टरों की टीम यह तय करती है कि किसी व्यक्ति को इस तरह के टैस्टों की ज़रूरत है कि नहीं .... अगर टैस्टों की ज़रूरत है तो सब्सिडाईज्ड रेट पर इन-हाउस सैंटरों पर ही ये महंगे टैस्ट मरीज़ों को उपलब्ध करवा दिये जाते हैं।
अब एक ऐसी श्रेणी की बात भी कर लें जिन के लिये ये टैस्ट ज़रूरी तो हैं लेकिन जिन्हें झोलाछाप, फुटपाथ-मार्का नकली चिकित्सकों ने इस कद्र उलझा के रखा हुया है कि वे हर बीमारी के पीछे किसी प्रेतात्मा का हाथ बताते रहते हैं ---कईं बार सोचता हूं कि इन चक्करों में उलझे रहना शायद इन कम-खुशकिस्मत लोगों की मजबूरी भी हो सकती है। अगर टैस्ट करवाने को कोई कह भी दे तो पैसे कहां से आएंगे ?
इसी संबंध में एक किस्सा सुना रहा हूं ---लड़का बहुत दिनों से कह रहा था कि पोर्टेबल हार्ड डिस्क लेनी है। कुछ दिन पहले मैं उस के साथ चंडीगढ़ पहुंचा ---स्टेशन के बाहर ही –हम दोनों आटो की इंतज़ार कर रहे थे कि अचानक एक आटो वाला एक पचास के करीब की महिला को बुरी तरह ठोक कर चला गया। जिस तरह से वह महिला गिरी और बेहोश हो गई मुझे तो लगा कि चोट खासी गहरी लग गई लगती है। महिला का वर्णऩ तो किया ही नहीं ---- यह वो महिला बिल्कुल वैसी थी जिसे हम पढ़े लिखे लोग अनपढ़, गरीब, .....पता नहीं क्या क्या कह देते हैं ? ---शायद यह सब लिखना इतना ज़रूरी नहीं था क्योंकि वह तो केवल एक मां थी। उस के बच्चों ने उस को घेर रखा था।
मैंने पानी की बोतल उसे दी--- उस ने पानी पिया ---मैंने उस के बच्चों को कहा कि कुछ समय के लिये इन्हें लिटा दो, उसे लिटा दिया गया , उस के कुनबे के लोगों में से कोई उस का सिर दबा रहा था...मैं भी अपना काम कर रहा था ---उन के पास ही खड़ा मैं बड़ी शिद्दत से इस प्रभु से यही प्रार्थना किये जा रहा था कि कैसे भी इसे ठीक कर दे, भाई। मुझे यह तो यकीन ही था कि परमात्मा ही कुछ चमत्कार करे सो करे, इन्हें कोई दो-चार सौ रूपये दे भी देगा तो इतने में इन का क्या बनेगा, शायद इतने रूपयों में तो ये किसी बड़े हास्पीटल के गेट तक ही पहुंच पाएं ---- बस, मैं बड़ी इमानदारी से उस लम्हों में प्रार्थना से जुड़ा हुया था -----और मेरा ऐसा विचार बन रहा था कि ये कुछ ठीक हो तो ही मैं और मेरा बेटा वहां से चलें !!
तभी वह औरत ने बात करना शुरू कर दिया –वह अपने बेटे को बता रही थी कि यह सब कैसे हुआ ---- दोस्तों, मैं बता नहीं सकता कि मुझे उस पल कितनी खुशी हुई ---मेरी खुशी का पारावार नहीं था ---- मुझे शायद यही लग रहा था कि मेरी अरदास काम कर गई ----- तभी एक आटो दिखा, हम बैठ कर मार्कीट की तरफ़ निकल पड़े।
मुझे पता है कि इस औरत के सिर पर इस तरह की टक्कर के इंपैक्ट के कारण वह जो दो-तीन मिनट बेसुध रही वह भविष्य के लिये एक दुर्भाग्यपूर्ण भी हो सकती थी लेकिन यही सोच कर ही मन को तसल्ली दे दी कि जिस ने उस की अभी इस समय रक्षा की है, वह भविष्य में भी करेगा ---- सोच वैसे रहा था कि अगर इस का सी.टी करवाना होगा तो कौन करवायेगा .......और साथ ही यह भी समझने की कोशिश कर रहा था कि यार, कुछ तो बात है उस बात में भी कि जब दवा काम नहीं करती तो दुआ काम करती है।
कहीं डाक्टर की अधिक पैसे कमाने के लिए कमीशन की लालच .. और कहीं मरीज का अधिक संशयग्रस्त होना .. दोनो ही कारण जबर्दस्ती हर प्रकार के टेस्ट और सीटी स्कैन के कारण बन जाते हैं .. अंधाधुंध इन बातों से बचना चाहिए !!
जवाब देंहटाएंटेस्टों की अति हो गई है। डाक्टर भी ऐसे कि उन्हें शायद बिना टेस्ट के कुछ समझ ही नहीं पड़ता है। अभी जितने टेस्ट हो रहे हैं मेरा विचार है कि उस से दस प्रतिशत में काम चलाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सामयिक और सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंसंगीता जी और दिनेश जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ !
चोपडा साहब यह सी टी ओर एम आई आर क्या होते है, जरुर बताये, ओर भारत मै जब भी कोई बीमार होता है उसे गुलुकोष की ही बोतल क्यो लगाते है, वेसे मेने देखा है कि कोई थोडा सा भी बिमार हो तो घर वाले खुद ही झोला छाप के पास जा कर यह बोतल ठुंकवा लेते है, क्या यह सच मै गुलुकोष ही होता है??
जवाब देंहटाएंराज जी की बात पर गौर करियेगा..बाकि ज्यादातर मामलों में तो 'डागडर बाबु' ही ढेरों टेस्ट की फरमाईश करते हैं, वैसे आम लोगों के मन से यदि चिकित्सक डर निकाल सकें तो वह इन टेस्टों के लिए जिद नहीं करेगा...
जवाब देंहटाएंये तो सच है, अगर डाक्टर कहेंगे तो मरीज करवाएंगे लेकिन एक सैकंड ओपनियन लीजा सकती है और टेस्ट के क्या फायदे नुकसान हैं उन पर चर्चा की जा सकती है।
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