एक अंकल जी को जानता हूं –अकसर सैर करते मुलाकात होती थी और रोज़ाना उन को मंदिर जाते भी मैं देखता था। अपने आप में मस्त रहते थे, बेहद डाउन-टू-अर्थ किस्म के इंसान हैं। स्वयं भी सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और बेटा भी बहुत ऊचे पद पर कार्यरत हैं लेकिन इन की विनम्रता से मैं बहुत प्रभावित हूं। अपने बच्चों को भी मैं अकसर उन की उदाहरण दे कर समझाया करता हूं कि बड़े लोगों की यही निशानी है कि वे किस तरह से हमेशा ज़मीन से जुड़े रहते हैं, व्यक्तिगत रूप से ऐसे लोग मेरी पहली पसंद हैं।
कुछ दिनों पहले पता चला कि अंकल जी की तबीयत ठीक नहीं है, उन्हें कुछ दिन से पेट में दर्द सा था। पता चला है कि पहले भी उन्हें पेट में दर्द हो जाया करता था। इस बार जब उन्हें दर्द हुआ तो फ़िज़िशियन ने जब चैक-अप किया होगा तो उसे कुछ संदेह सा हुआ---- अल्ट्रासाउंड समेत और भी सभी टैस्ट हुये तो पता चला कि उन्हें लिवर का एडवांसड किस्म का कैंसर है । मुझे यह जान कर बेहद दुःख हुआ है। एडवांसड इतना है कि यह दूसरे अंगों में भी फैल चुका है ( secondary lesions). आप्रेशन करवाने गये तो डाक्टरों ने उन की हालत देखते हुये और कैंसर की स्टेज को देखते हुये मना कर दिया है। कुछ दिन पहले जब मैं उन को मिलने गया था तो वह मुझे बेहद कमज़ोर लग रहे थे।
मैं यही सोच रहा था कि अब ऐसा एड्वांसड रोग कुछ दिनों में, हफ़्तों में या महीनों में तो हो नहीं गया --- अगर लोग अपनी नियमित जांच करवाते रहें तो कईं तकलीफ़े शुरूआती दौर में ही पकड़ी जा सकती हैं ताकि उन का समुचित इलाज किया जा सके।
मैं इन अंकल जी की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि इन के बारे में मुझे पता नहीं कि पहले भी कब कब इन का कौन सा चैक-अप हुआ और उस में क्या क्या इंक्लूय्ड किया गया लेकिन मैं वैसे ही अपनी एक बहुत ही आब्जर्वेशन शेयर कर रहा हूं कि आज कल जब मरीज़ कुछ कुछ डाक्टरों के पास जाते हैं तो शायद उन के चैकअप में कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है। मैं न तो किसी विशेष डाक्टर की और न ही किसी विशेष हास्पीटल के बारे में यह कह रहा हूं लेकिन पता नहीं यह मेरी व्यक्तिगत राय सी बन चुकी है। इस के पीछे हम लोगों के मैडीकल कालेज के दिनों की यादें हैं जब वहां पर लगभग सभी मरीज़ों को काउच पर लिटा कर बड़े इत्मीनान से चैकअप किया जाता था, जिस में उस के पेट की पैल्पेशन भी सम्मिलित हुया करती थी जिस से फ़िजिशियन को पेट के अंदरूनी हिस्सों जैसे लिवर, स्पलीन, किडनी, गॉल-ब्लैडर ( जिगर, तिल्ली , गुर्दे , पित्ता आदि ) के बारे में काफ़ी जानकारी मिलती है।
यह मेरी व्यक्तिगत राय है लेकिन शायद आप ने भी किसी हास्पीटल में यह सब नोटिस किया ही होगा...... ब्लॉगिंग है अपनी राय तो लिख ही सकता हूं लेकिन मैं इस के बारे में अकसर सोचता हूं। शायद आजकल अस्पतालों की भीड़-भाड़ में कहीं न कहीं यह सब तो पीछे छूट चुका है। मुझे यह भी लगता है कि अगर कोई अन्य डाक्टर लोग इसे पढ़ेंगे तो वे यह भी कह सकते हैं कि नहीं, नहीं, डाक्टर यह तुम ठीक नहीं लिख रहे हो, सब जगह हर मरीज़ की पूरी शारीरिक जांच होती ही है। अगर कोई ऐसा कहने वाला है तो मैं उन से पहले ही से क्षमा मांग लेता हूं क्योंकि यह मेरी व्यक्तिगत राय हो सकती है----लेकिन है एकदम पक्की राय। लेकिन यही कारण है कि किसी अस्पताल में जा कर किसी हैल्थ चैकअप प्लान के अंतर्गत अपना सारा चैकअप करवाना और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।
कुछ दिनों से मेरे माताजी की टांग में बहुत दर्द है----वह हमारे नेटिव प्लेस कुछ दिनों के लिये गई हुई थीं। कह रही थीं कि घर के पास एक अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ से परामर्श करने गईं ----बता रही थीं कि पांच रूपये की पर्ची बनती है , डाक्टर बिल्कुल फ्री बैठा हुआ था --- मां ने बताया कि न तो उस ने मेरी बात ढंग से सुनी, न ही कोई सवाल किया ---टांग को चैक करने की तो बात ही न थी ---- बस उस ने कुछ एक्सरे लिख दिये ।
---------यकीन मानिये मां की यह प्रतिक्रिया सुन कर उस हास्पीटल की पर्ची देखने की भी मेरी इच्छा नहीं हुई। और न ही मैंने पूछा कि उस ने कोई दवाई दी कि नहीं ----क्योंकि मैं जानता हूं कि अगर मरीज़ों को ऐसे ही देखा जाता है तो वह दवा भी क्या लेगी और वैसे भी वह दवाई तो वह पहले ही से ले ही रही होंगी। एक-दो दिन में किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ को दिखवा लेंगे।
आपने बिलकुल पते की ,मेरे अनुभव की बात कह दी और इमानदारी के साथ चिकित्सक होने के बावजूद ! यह आपका ब्लॉगर आप पर हावी हो गया !
जवाब देंहटाएंसचमुच अब हास्पिटल में चिकित्सक अन्यान्य कारणों से जिस तरह मरीजो की जांच करते हैं -वह सचमुच केवल फर्ज अदायगी भर है -पेशे के प्रति इमानदारी नहीं !
चिकित्सको के बारे मे जो बात आपने बताई । वह आमतौर पर सरकारी दवाखानो मे दिखायी देती है । वहा मरीज से सवाल किया जाता है । उसकी बात पूरी भी नही होती उससे पहले तो उसकी दवा की पर्ची तैयार भी हो जाती है ।
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