I have written this post in English and later on using quillpad have arrived at this form. I think it is Hindi and Bhojpuri and Bangla mixed !!........
आज में खाली बैठा यही सोच रहा था की हम सब लोग चिकित्सा क्षेत्रा में हो रही नयी नयी खोजों को जानने के लिए तो बहुत बेताब रहते हैं लेकिन सोचने वाली बात यह भी है की क्या जिन बातों का हमें पहले से पता है क्या हम उन को मान भी रहें है ?
अब सीधी सीधी बात करते हैं ….क्या आप को लगता है की जितनी बातें हम लोगों को अपने खाने पीने के बारे में पता हैं ….क्या हम उन को अपनी ज़िंदगी में उतार पाए हैं. हमें अपने आप से ही इस का जवाब पुकछना होगा. हमें पता है की चीनी हमारे लिए इतनी खराब है…..फिर भी क्या हम चीनी खाने से चूकते हैं क्या !!
हमें पता है की रेग्युलर शारीरिक परिश्रम करना हम लोगों के लिए बहुत ही ज़रूरी है तो क्या हम लोग यह सब करते हैं क्या.?
हमें पता है की हमारे पानी में घड़बड़ है…तो फिर भी हम लोग क्यों बार बार अपने सिस्टम को टेस्ट करते हैं. मैं एक डॉक्टर हून…….जितनी बार भी बाहर गया हून, हमेशा पेट खराब ही हुआ है…..कहीं भी …चाहे दो दिन के लिए ही गया हून, लेकिन पेट खराब होने की सौघट साथ ही लेकर आया हून.
अब इस के बारे में मेरे कुत्छ भाई कहेंगे की तुम अक़ुआगुआर्द का हमेशा पानी पीट हो….इस लिए इम्यूनिटी कमज़ोर पद जाता होगा बाहर जेया कर. इस लिए कई लोग सोचते हैं की तोड़ा तोड़ा ऐसे ही पानी कहीं से भी ( होटेल, पार्टी एट्सेटरा) पे लेना ही चाहिए……इस से इम्यूनिटी ठीक रहती है.
कुत्छ साल पहले तक तो भाई मैं भी कुत्छ ऐसा ही सोचता था……लेकिन अब मेरी सोच में बदलाव आ गया है………नहीं, यह कोई वैज्ञानिक समाधान नहीं है की हम लोग सब जानते हुआी भी अपनी इम्यूनिटी को टेस्ट करें.
पानी की ही बात लीजिए…….उस की वैज्ञानिक टेस्टिंग की तो बात क्या करें…..हमें बहुत बार पता भी होता है की जो पानी हमारे सामने जुग में पड़ा हुआ है उस का रंग सॉफ नहीं है अर्थात हू क्लियर नहीं है लेकिन फिर भी हम लोग विभिं कारणों की वजह से उस झट से पी कर आफ़त मोल ले लेते हैं.
लेकिन, एक समस्या दूसरी भी तो है ना……हर आदमी के बस की क्या बात है की हू बाहर जाने पर केवल बॉटल का ही पानी पीया करे……..नहीं ना, तो फिर इस का क्या समाधान है ? मैं कल बेज़ार में घूम रहा था बरोडा में तो मेने देखा की एक फुटपॅत पर एक मेज पर रखी एक एक रुपी की थैलियाँ बिक रहीं थी…………..देख कर, बहुत अजीब सो लगा………यही लगा की अब शायद अपनी मया की अंगुली पकड़ कर बेज़ार में आया हुआ बूतचा यह कहेगा की मया, सॉफ पानी की एक थैली दिला दो ना !!!
बस में बात केवल इतनी ही कहना चाह रहा हून की हमें पता है की पानी अगर सॉफ नहीं हा तो यह हमारे लिए ठीक नहीं है ……लेकिन फिर भी हम लोग ऐसे पानी को पे कर कितने ही बार वोही पेट ही बीमारिओं को खुला न्योता देने से कहाँ पेरहेज़ करते हैं?
ऐसी बहुत सारी बाते हैं जिन्हे हम लोग बहुत लाइट्ली ले लेते हैं.
इस लिए हमें छ्होटी छ्होटी बातों का भी बहुत ख़याल रखना चाहिए…..
कितने सारी बातें तो वही पुरानी ही हैं ?
( Document created using Quillpad on 17th Aug, 2008)
अच्छी पोस्ट। टाइपिंग की चूक है, आपने जो माध्यम अपनाया वह उत्ता मजेदार न होगा शायद।
जवाब देंहटाएंचोपडा जी नमस्कार, पोस्ट मे आज गलतिया बहुत हे,पता नही क्यो , लेकिन लेख समझ मे आ गया, भाई मे अपने साथ हमेशा अपना उबला हुआ पानी ही रखता हु,ना कोला ना सोडा, अपने साथ एक पानी गर्म करने का जग जरुर रखता, ओर फ़िर उबले पानी को फ़िल्टर कर के पीता हु, बोतल को मुंह भी नही लगाते,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अच्छी जानकारी देने के लिये
pani ki to vyapak samasya hai apne desh me.aaphi ki tarah hum bhi is samasya ke maare hain.
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहब, जैसा भी लिखा जाता है लिखते रहें.. आपके पाठक तो समझ ही जाएँगे :)
जवाब देंहटाएंदूसरी बात आपने कही फुटपाथ पर पानी की थैलियाँ बिकने की .. सोचने लायक बात है ..