अच्छा तो , ब्लॉगर बंधुओ, अपने चिंतन को दो-तीन मिनट विश्राम देकर इन बेहद खूबसूरत पंक्तियों को सुनिये और लौट जाइये तीस साल पहले दिनों की तरफ.....जब छःदिन पहले यह पता चलने पर कि अगले रविवार को टीवी पर गुड्डी फिल्म आ रही है .....यह सब जानना कितना थ्रीलिंग लगता था........लेकिन आज जब ये सब कुछ हम से अदद एक क्लिक की दूरी पर ही है, लेकिन अफसोस अब हम लोगों के पास अपने ही झमेलों से फुर्सत ही नहीं है।
वाह सर, आपने भी क्या मन की बात कही है.उस समय जब tv पर साप्ताहिक दिखाया जाता था तब हमें पता चलता था कि अमुक फ़िल्म अमुक दिन आ रही है और पापा बताते कि यह अच्छी फ़िल्म है तब तो हम और भी खुश होते आज फ़िल्म देखने जाने पर पापा की डांट नहीं पड़ेगी.दूसरों के यहां जाते थे रविवार को रामायण देखने, महाभरत देखने, शाम की फ़िल्में देखने.वो भी क्या उमंग होती tv देखने की.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंवाकई, बहुत पुरानी याद में ले गये.
जवाब देंहटाएंआज भी ये फ़िल्म देखने बैठ जाऊं तो बीच मे छोड़ने का मन नही करता फ़िर--गाने के लिये शुक्रिया
जवाब देंहटाएंचोपडा जी सच मे सुबह सुबह यह मिठ्ठी प्रथाना सुना कर मुझे भी स्कुल की याद दिला दी, तब तो हम प्राथना कम ओर शाररते ज्यादा करते थे, लेकिन प्राथना पुरी की पुरी अब भी याद हे, धन्यवाद
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