सोमवार, 14 अप्रैल 2008

क्या इस फ्लेवर्ड कॉन्डोम को बाज़ार में उतारना कोई नैशनल एमरजैंसी थी !


पिछले पांच-छः वर्षों में मेरे पढ़ने की आदतों में बहुत बदलाव आया है। कुछ साल पहले जब मैं समझता था कि मैं सारे प्रिंट मीडिया में हैल्थ-कवरेज को बदल के रख दूंगा तब मैं लगभग 10 अखबारें रोज़ाना पढ़ता था। 3-4 अंग्रेज़ी की, 3-4हिंदी की और दो-एक पंजाबी की। फिर धीरे धीरे मुझे इन से कईं कारणों से इरीटेशन सी होने लगी। मैं यह महसूस किया कि इन में से अधिकांश ने समाज-वाज सुधारने का ठेका नहीं ले रखा....सुधार तो दूर, ये तो ढंग से किसी को समझाते तक नहीं। तो, मैंने धीरे धीरे अखबारें पढ़नी कम कर दीं। अब रोज़ाना तीन अखबारें ही पढ़ता हूं...दो अंग्रेज़ी की और एक हिंदी की।
अब मेरी च्वाइस व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है....अंग्रेज़ी का एक पेपर तो ऐसा है जिस से मैं कुछ सीखने के लिये पढ़ता हूं, दूसरे को सूचना एवं एंटरटेनमैंट के लिये पढ़ता हूं और हिंदी की अखबार को इसलिये पढ़ता हूं कि कुछ नये शब्द सीखने को मिलते हैं और साथ में यह भी जान पाता हूं कि आम आदमी को क्या क्या परोसा जा रहा है !
जिन जिन हिंदी की अखबारों को मैंने इतने वर्षों तक पढ़ा है उन से मेरा गिला यही है कि वे आम इंसान की जुबान नहीं बन पाये हैं। मुझे दूसरे इलाकों का तो पता नहीं लेकिन पंजाब हरियाणा के बारे में तो मेरी आब्जर्वेशन यही है कि जिसे अंग्रेज़ी नहीं आती वो हिंदी अखबार पढ़ते हैं ....ऐसे में हिंदी वे इस से किसी मोहपाश की वजह से नहीं पढ़ते....इसे पढ़ना उन की मजबूरी है और सच्चाई तो यही है कि हिंदी पेपर पढ़ने वालों की मात्रा अंग्रेज़ी पढ़ने वालों की तुलना में बहुत बहुत ज़्यादा है। तो, फिर इसे प्रिंट मीडिया आखिर क्यों नहीं भुनायेगा.......लोगों की जागरूकता, लोगों के सरोकार, लोगों की प्राथमिकतायें गईं तेल लेने......उसका तो अपना उल्लू सीधा होना चाहिये।
मुझे नहीं पता पंजाब-हरियाणा के बाहर क्या हो रहा है.....लेकिन यहां तो ऐसे ऐसे हिंदी के अखबार आते हैं जिन के पेज तरह तरह के इश्तिहारों से ठसाठस भरे पड़े होते हैं। मुझे पता है कि कुछ पत्रकार लोग इस पर यह टिप्पणी भी देंगे कि अखबार ने अपनी आर्थिक हालत भी तो ठीक करनी है...........ये सब बातें मेरे से छुपी नहीं हैं क्योंकि मैं भी जर्नलिज़्म एवं मॉस कम्यूनिकेशन पढ़ चुका हूं। आर्थिक हालात तो इन अखबारों के अच्छे खासे अच्छे हैं ही .....लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों ये लेखकों को एक फूटी कौड़ी भी देकर राज़ी नहीं हैं।
मैं भी पांच वर्षों तक इन अखबारों को बिना किसी पैसे के खूब लेख भेजता रहा .....लेकिन कुछ समय बाद अपने अपने से ही यही पूछने लगा कि यार, ये लोग तो कमाई करें लेकिन हम क्यों लिखें........दूसरी बात यह भी तो है कि मैं तो प्रोफैशनल हूं, चलो दाल-रोटी की खास चिंता है नहीं , इसलिये कलम से साथ धडल्ले से खेल लेता हूं लेकिन मुझे मेरे उन लेखक/पत्रकार भाइयों से बेहद सहानुभूति है जिन्होंने इस लेखन के ज़रिये ही अपना भरन-पोषण करना है। समझ में नहीं आती कि इस देश में लेखन ही इतना सस्ता क्यों है..........और ऊपर से जले पर नमक छिड़कने के लिये इसी लेखक को अब क्रीमी-लेयर की पदवी से नवाज़ा गया है। कितने गर्व की बात है.....आखिर यह तो माना गया कि लेखन भी एक मलाईदार कला है।
हां, तो मैं जिन हिंदी अखबारों की बात कर रहा था , उन में से तो कुछ एक में इस इस तरह की फोटो छपती हैं कि मैं इन को इधर लिख भी नहीं पा रहा हूं। अगर इन के बारे में लिखने लग गया तो ऐसा लगने लगेगा कि यह पेज मीडिया डाक्टर का ना होकर, छोटी मोटी पोर्नो-साइट ही है।
तरह तरह के अश्लील इश्तिहार.....नामर्द को मर्द बनाने का दावा करने वाले, किसी चमत्कारी तेल से विवाह को तोड़ने से बचाने वाले, कद को लंबा करने वाले, पतले बंदे को मोटा करने वाले, बिस्तर पर ही लेटे लेटे सैर करवाने वाले, औरतें के वक्ष-स्थल उन्नत करने वाले और टेढ़ेपन( खुदा जाने ये यह प्राबल्म कहां से ढूंढ लाये हैं !) को सीधा करने वाले विज्ञापन ....और रहती हुई कसर उस एमरजैंसी गर्भ-निरोधक गोली के रोज़ाना दिखने वाले विज्ञापन ने पूरी कर दी है......आने वाले समय में इस गोली को भी लोग इतना मिस-यूज़ करने लगेंगे कि सोच कर डरता हूं । हां, एक कसर तो अभी बाकी थी ही कि................अकसर अखबारों में फ्लेवरर्ज कंडोम्स के भी विज्ञापन पहले पन्ने पर आने लगे हैं....आज का ही विज्ञापन सारे हिंदोस्तान से पूछ रहा है कि बब्बलगम फलेवर ट्राई किया क्या .....इस तरह के विज्ञापनों को देख कर जो भाव मन में उठते हैं, वे यहां लिख पाने में असमर्थ हूं.................अब इन की मैं क्या व्याख्या करूं, आप को सब कुछ अपने आप समझना होगा, ऐसी बातें हिंदी में लिखना भी कितना बेकार लगता है।
ये जो दो खबरें भी आप इस फोटो में देख रहे हैं ...ये आइसक्रीम वाली खबर भी कोई खबर है.....चिढ़ होती है , इस तरह की खबरें देख के......पढ़ कर तो हाल और भी खराब हो जाती है। दूसरी खबर किसी स्वास्थ्य-वर्धक आटे की बात कह रही है.........अब इस के बारे में क्या लिखूं, क्या न लिखूं.....बहुत कुछ पिछली पोस्टों में लिख ही चुका हूं।
पोस्ट पूरी लिख दी है लेकिन यही समझ में नहीं आ रहा है कि इसे लिखने का मकसद क्या है.......तो, आप प्लीज़ यही समझ लीजियेगा कि आपने मेरी डायरी का एक पन्ना ही पढ़ लिया है, और कुछ खास नहीं !!

4 टिप्‍पणियां:

  1. mai yah samajh nahi paa raha hu k aap un das akhbaro par apni bhadaas nikalna chahte hai yaa phir
    publicly apne ghar ke pate par aise ishtahar dene walo ke saath contact nahi kar pate iski chidh hai aapko,
    ya phir really aap un sabhi daawo ko nakarne ki beintahaa chahat rakhte hai,agar aisa hai to agli bar apne blogme in ishtehaaro ki ek ek kar pol khol dijye, samaj sewa ape aap ho jayegi,
    kya khayaal hai sir aapka.

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  2. बिल्कुल नही. लेकिन बिजनेस कैसे चलेगा.

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  3. Tushardsee, I hope you must have read in the last line that just treat it as a page from my diary....but,I must tell you that my telling you this does in no way dilutes the very spirit of this post.
    Regarding apne ghar ke pate par ....this advertisement is as much at your ghar's pata as it is at mine ghar's pata...because that advertisement has appeared in one of very popular newspapers.
    Regarding sabhi daawo ko nakarne wali baat, my views are open to criticism to whole of the world. Anybody, anywhere on the net finds anything rubbish can just inform me so that I may correct myself....by the way, I strongly feel that whatever I put on blog is based on purely scientific facts.
    Regarding pol khlne ke baat, and your suggestion to do all this in a single forthcoming post, sir, I am afraid that is just not possible. By the way, why there is so much hurry.....I have been doing all this for years and hopefully will continue to do so!
    Regarding samaj seva, I am already doing my bit....just go to my blogs and have a glimpse.
    Aur rahi khayal wali baat, khayal acchhe hain......
    Ok then, with best wishes,
    DR Parveen chopra
    PS...I am sorry that I could not find your profile.

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  4. चोपडा जी, यह सब अखबार वाले या तो बिक चुके हे,या यह आखबार ही इन नेताओ ने खरीद लिये हे अब अपने बारे मे तो खबर नही छाप सकते, फ़िर सारे पेज भरने के लिये इन्हे इस बकवास के सिवा कुछ सुझता भी नही,
    वेसे ऎसी अखबारे फ़्रि मे मिलती हे,लेकिन भारत मे सब उलट होता हे, शायद आखबार बाले सोचते हे ,जब हमारे बच्चे बिगडे हे तो हम दुसरो की परवाह क्यो करे, तभी यह सब बकवास की इसतहार बाजी देते हे,बहुत बहुत धन्यवाद सच्ची बात जनता के समाने रखनेके लिये

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