अश्लील फिल्मों की रोज़ाना खुराक में बाधा बनती दादी का पोते के हाथों खेल खत्म --
इस खबर का शीर्षक पढ़ कर आप भी मेरी तरह कहीं यह तो नहीं ना सोच रहे कि यह अमेरिका या यूरोप की किसी जगह की बात होगी। वैसे तो ऐसी खबर कहीं से भी आये...अफसोसजनक ही है, लेकिन यह बात और भी दुःखदायी इसलिये भी है क्योंकि यह सब कुछ अपने ही यहां के कोल्हापुर में घटा।
अकसर लोग कह तो देते हैं कि मीडिया आज कल बहुत ही ऐसी वैसी खबरें छापता है। लेकिन एक बात यह भी तो है कि मीडिया मनघडंत खबरें भी तो नहीं छाप रहा.....जो आज समाज में घट रहा है, उसी को हमारे सामने पेश करता है। अर्थात् मीडिया तो किसी भी समाज का आइना है।
हुया यूं कि 67वर्षीय शांताबाई पाटिल अपने बड़े बेटे ( जो डाक्टर हैं) के घर रहने के लिये आईं.....इसलिये उस के 21 वर्षीय पोते को अपने दूसरे भाई के साथ रूम शेयर करने को कहा गया। लेकिन दादी के द्वारा उस के कमरे में डेरा जमाये रखने के कारण पोते को बहुत ही ज़्यादा तकलीफ होने लगी.......कैसी तकलीफ़?....उस की तकलीफ़ यह थी कि दादी के कमरे में होने की वजह से वह अपने कमरे में रखे कंप्यूटर पर रोज़ाना अश्लील फिल्में देख नहीं पा रहा था। इसलिये उस ने दादी को खत्म करने की ही प्लानिंग कर डाली और उस के सिर पर पत्थर दे मारा जिस के कारण दादी के उसी समय प्राण पखेरू उड़ गये।
खबर तो पढ़ ली.......लेकिन सोच रहा हूं कि क्या इस वारदात के बाद आज के समाज को कहीं से चुल्लू भर पानी भी मिल पायेगा कि नहीं !!
मेरे पास एक स्क्रैप बुक है जिस में मैं मीडिया में छपी कुछ इस तरह की फोटो/खबरें पेस्ट करता रहता हूं जिन्होंने मुझे हिला दिया। अभी दो दिन पहले ही मैं सोच रहा था कि उस ठीक चार साल पुरानी बासी खबर को निकाल दूं जिस में छपा था कि ऊना(हिमाचल प्रदेश) की एक 75 साल की वृद्ध महिला का गांव के ही 30-35 साल के तीन लड़कों ने सामूहिक बलात्कार कर डाला था। बासी केवल इसलिये कह रहा हूं क्योंकि उस से भी ज़्यादा घृणित ( अपने आप से पूछ रहूं कि क्या ऐसी तुलना करना किसी भी दृष्टि से ठीक है ?...जवाब मिलता है....बिल्कुल गलत है और बेवकूफी है !) काम की खबर तीन-चार दिन पहले यह पढ़ ली कि उत्तरांचल में कहीं पर 80 वर्षीय वृद्धा का बलात्कार हो गया। अभी मैं इस खबर के सदमे से उभरा ही ना था कि आज सुबह सवेरे पोते के हाथों दादी के मारे जाने की खबर पढ़ कर हिल गया हूं।
ऐसा लगने लगा है कि इस तरह की वारदातें जब हों तब तो राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया जाना चाहिये.....क्योंकि इस तरह की खबर ने उस वृद्धा के कत्ल की खबर तो सुना दी लेकिन क्या यह खबर इस के साथ ही साथ यह घोषणा भी नहीं कर रही कि आज की पीढ़ी के मानवीय मूल्य पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। और जब शोक इतना गहरा हो तो अखबारों को इस जैसी खबर को बड़े-बड़े काले हाशिये के साथ छापना चाहिये।
लेकिन सोच रहा हूं कि उस डाक्टर की परिस्थिति देखिये....बेचारी मां तो गई ही लेकिन बेटा भी शायद कानून की गिरफ्त में ही होगा .....अब रोये तो किस को रोये.....मां को, बेटे को या सारे परिवार के दुर्भाग्य को। रह रह कर ध्यान सारथी ब्लोग में शास्त्री जी की कल की पोस्ट की तरफ ही जा रहा है कि जिस में उन्होंने भावी पीढ़ी को सही संस्कार देने की बात की है और उन के पल्लवित-पुष्पित होने की भी बहुत सुंदर बातें की हैं।
ध्यान तो इस समय पराया देश ब्लोगवाले राज भाटिया जी की तरफ़ भी जा रहा है कि वे भी कितने प्रेरणात्मक प्रसंग हम सब के साथ साझे करते रहते हैं ....अगर इन प्रसंगों को हम लोग रोज़ाना पढ़ें और इन्हें आत्मसात् करने की कोशिश करें तो फिर देखिये कैसे समाज की तस्वीर ही बदल जायेगी।
जो भी हो, मुझे इस खबर का इतना अफसोस है कि मैं ब्यां नहीं कर पा रहा हूं। परमात्मा उस महान आत्मा को स्वर्ग में स्थान दे और मुक्ति प्रदान करे। मेरी और मेरे सारे परिवार की यही श्रद्धांजलि है.....सारे ही इस खबर के बारे में पढ़ कर बहुत दुःखी हैं।
बेवकूफ था. उसे टीवी सीरियल देखने चाहिए थे. दादी भी नहीं बोलती और अश्लीलता का सारा मजा भी उसे मिल जाता.
जवाब देंहटाएंइस तरह की वारदातें जब हों तब तो राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया जाना चाहिये.....
जवाब देंहटाएंभगवान ना करे अगर ऐसा कानून पारित हो गया तो हर दिन राष्ट्रीय शॊक ही रहेगा।
कयों कि हर रोज अखबारों में पढ़ते हैं कि तीन चार साल की अबोध बच्चियों (मैने तो एक बार पढ़ा था कि मुंबई में ४० दिन की कन्या शिशु के साथ भी)के साथ ....
शोक ही है डॉक्टर साहब.
जवाब देंहटाएंचोपड़ा जी, अब समाज में संस्कारित किए जाने पर कितना ध्यान दिया जा रहा है? समाज में मान सम्मान के मूल्य क्या रह गए हैं?
जवाब देंहटाएंक्या समाज संगठित भी रह गया है?
अनेक प्रश्न हैं, जिनके उत्तर तलाशने होंगे। समाज विश्रंखलित हो रहा है, कहीं रुक ही नहीं रहा है। मगर
इस का भी अंत तो कहीं है। जितना भी हो सके हमें मूल्यों को बचा कर रखना चाहिए।
अजीब कसैला सा मन हो गया पढ़कर ,पता नही ज्यों ज्यों हम वैगानिक तौर पे आगे बढ़ रहे है ,हमारे मानवीय मूल्य उतने ही गिरते जा रहे है ,हमारी सहनशीलता भी कम होती जा रही है ओर रिश्ते भी अब स्वार्थ के पैमाने पर तोले जा रहे है ...
जवाब देंहटाएंचोपडा जी ,इन सब बातो के पीछे गलती हमारी ही हे,जेसा हम वो रहे हे वही किसी ना किसी रुप मे हमे मिलेगा जरुर,बच्चे तो सब बाते घर से सीखते हे,अगर हम बच्चो को समय दे,ओर खुद अच्छे रहे तो बहुत कुछ सही हो सकता हे,आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह आज है
जवाब देंहटाएंयही सच है
आईना है
दर्पण है
कांटे हैं
चुभन है
टीस है
फिर भी
बनी नई
पीढ़ी ढीठ है.
एकदम सटीक लेख !
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