मैंने आज तक जितने भी फूल देखे हैं, उन में से सब से सुंदर फूल मुझे कल दिखा......जिसे मैं आप को भी इस तस्वीर के द्वारा दिखा रहा हूं....आप जानना चाहेंगे कि यह फूल कहां दिखा ? –यह फूल हमें कल बाबा रामदेव जी के पतंजलि योगपीठ में दिखा जो हरिद्वार में स्थित है। मैं अब अगली कुछ पोस्टें इस स्लेट पर अपनी पतंजलि योगपीठ यात्रा पर ही लिखूंगा.....खूब सारी तस्वीरें भी खींचीं हैं, जो इन पोस्टों के साथ आप के साझा करता रहूंगा।
परसों हम सब का घर में प्रोग्राम बन गया कि चलो, बाबा रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि योगपीठ की यात्रा कर के आया जाये। कल हमें हास्पीटल से गुरू रविजयंती के उपलक्ष्य में अवकाश था। यह तो मैं आप को बता ही चुका हूं कि हम यमुनानगर में रहते हैं।
यमुनानगर की दूरी अंबाला से 50 किलोमीटर है....एक्सप्रैस गाड़ी में लगभग 45मिनट लगते हैं और बस में एक घंटा लगता है। लेकिन पतंजलि योगपीठ जाने के लिए यमुनानगर से अंबाला जाने की ज़रूरत नहीं होती। यह तो वैसे ही मैंने दूर-दराज रहने वाले हिंदी चिट्ठाकारों की जानकारी के लिए ही लिखा है।
यमुनानगर के रेलवे स्टेशन का नाम जगाधरी है....हम एक्सप्रेस गाड़ी के द्वारा डेढ़-घंटे से भी कम समय में रूड़की पहुंच गये। जगाधरी और रूड़की के बीच एक स्टेशन आता है ...सहारनपुर । रूड़की पहुंचने के बाद वहां से बस के द्वारा हम पतंजलि योगपीठ के लिए रवाना हुये। हम दोपहर साढ़े बारह बजे जगाधरी से चल कर अढ़ाई-पौने तीन बजे पतंजलि पहुंच चुके थे। वैसे मैं तो अकेला भी तीन-चार महीने पहले ही वहां हो कर आ चुका था, लेकिन परिवार सहित यह पहली यात्रा थी।
पाठकों की सूचना के लिए बताना चाहूंगा कि यह पतंजलि योगपीठ रूड़की- हरिद्वार सड़कमार्ग पर बिल्कुल मेन रोड पर ही है। रूड़की से लगभग 20मिनट के करीब का सफर है और हरिद्वार रेलवे स्टेशन से भी लगभग आधा घंटे का समय ही लगता है। रूड़की और हरिद्वार तो आप सब जानते ही हैं कि देश के सब भागों से रेल एवं बस-सेवा के द्वारा जुड़ा ही हुया है।
वहां पहुंच कर यही लगता है कि यार अगर आमिर खान ज़मीं पर तारे लाया है तो बाबा ने तो स्वर्ग ही ज़मीं पर उतार दिया है। निःसंदेह वहां का वातावरण बेहद नैसर्गिक है और अंदर जाते ही इतनी शांति का अनुभव होता है कि ब्यां नहीं कर सकता।
जब भी मैं पतंजलि योगपीठ में विभिन्न सुविधाओं की फोटो खींच रहा था और वहां पर लगे बड़े-बड़े बोर्डो की फोटो खींच रहा था तो अनायास ही मेरा ध्यान पंकज अवधिया जी और ज्ञान चंद पांडे और एक दो और बलागर बंधुओं की तरफ जा रहा था जिन की इन पुरातन चिकित्सा विधियों में इतनी गहरी ऋद्धा से मैं बहुत प्रभावित हूं......सो , वहां पर कईं फोटो तो मैंने इन के इंटरेस्ट को ध्यान में ही रखते हुए खींचे जो कि मैं अब अपनी इस पतंजलि योगपीठ से संबंधित पोस्टों के साथ आप के साथ शेयर करता रहूंगा। और ये हमें गहराई से इन के बारे में बतलायेंगे।
वहां पहुंचने के बाद , वहां ठहरना भी कोई समस्या नहीं है, डॉरमैट्री आवास मात्र 50 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से , साधारण रूम 300, 400, 550 (क्रमशः सिंगल, डबल और ट्रिपल) और इस से दोगुने रेट में ए.सी कमरे भी उपलब्ध हैं......वैसे हम तो वहां ठहरे नहीं , शाम को वापिस आ गये थे।
वहां पर उपलब्ध सुविधाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करता रहूंगा लेकिन संक्षेप मे तो अभी यही सुझाव दूंगा कि हम लोग दूर-दूर जाते हैं हमेशा अपने परिवार को लेकर छुट्टियां मनाने, उस में यह डैस्टीनेशन आप यह भी जोड़ लें...........यकीन मानिए , देखने वाली जगह है। इतनी सफाई, इतनी शांति ,इतना अनुशासन, इतना ठहराव..............................अगर आप ने प्रकृति के साथ कुछ समय बिताने का फैसला कर लिया है तो इस जगह का कोई जवाब नहीं है।
और हां, यह बताना तो भूल ही गया कि हरिद्वार स्टेशन के बाहर ही से शेयरिंग में आटो-रिक्शा भी मिलते हैं जो प्रति सवारी 20रूपये किराया लेते हैं। बस , अब यही विराम लेता नहीं , अगर पहली ही पोस्ट इतनी लंबी कर दूंगा और अगर आप फिर इस ब्लोग पर आये ही नहीं तो मेरा क्या होगा कालिया........क्या करूं, सब सोचना पड़ता है।
परसों हम सब का घर में प्रोग्राम बन गया कि चलो, बाबा रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि योगपीठ की यात्रा कर के आया जाये। कल हमें हास्पीटल से गुरू रविजयंती के उपलक्ष्य में अवकाश था। यह तो मैं आप को बता ही चुका हूं कि हम यमुनानगर में रहते हैं।
यमुनानगर की दूरी अंबाला से 50 किलोमीटर है....एक्सप्रैस गाड़ी में लगभग 45मिनट लगते हैं और बस में एक घंटा लगता है। लेकिन पतंजलि योगपीठ जाने के लिए यमुनानगर से अंबाला जाने की ज़रूरत नहीं होती। यह तो वैसे ही मैंने दूर-दराज रहने वाले हिंदी चिट्ठाकारों की जानकारी के लिए ही लिखा है।
यमुनानगर के रेलवे स्टेशन का नाम जगाधरी है....हम एक्सप्रेस गाड़ी के द्वारा डेढ़-घंटे से भी कम समय में रूड़की पहुंच गये। जगाधरी और रूड़की के बीच एक स्टेशन आता है ...सहारनपुर । रूड़की पहुंचने के बाद वहां से बस के द्वारा हम पतंजलि योगपीठ के लिए रवाना हुये। हम दोपहर साढ़े बारह बजे जगाधरी से चल कर अढ़ाई-पौने तीन बजे पतंजलि पहुंच चुके थे। वैसे मैं तो अकेला भी तीन-चार महीने पहले ही वहां हो कर आ चुका था, लेकिन परिवार सहित यह पहली यात्रा थी।
पाठकों की सूचना के लिए बताना चाहूंगा कि यह पतंजलि योगपीठ रूड़की- हरिद्वार सड़कमार्ग पर बिल्कुल मेन रोड पर ही है। रूड़की से लगभग 20मिनट के करीब का सफर है और हरिद्वार रेलवे स्टेशन से भी लगभग आधा घंटे का समय ही लगता है। रूड़की और हरिद्वार तो आप सब जानते ही हैं कि देश के सब भागों से रेल एवं बस-सेवा के द्वारा जुड़ा ही हुया है।
वहां पहुंच कर यही लगता है कि यार अगर आमिर खान ज़मीं पर तारे लाया है तो बाबा ने तो स्वर्ग ही ज़मीं पर उतार दिया है। निःसंदेह वहां का वातावरण बेहद नैसर्गिक है और अंदर जाते ही इतनी शांति का अनुभव होता है कि ब्यां नहीं कर सकता।
जब भी मैं पतंजलि योगपीठ में विभिन्न सुविधाओं की फोटो खींच रहा था और वहां पर लगे बड़े-बड़े बोर्डो की फोटो खींच रहा था तो अनायास ही मेरा ध्यान पंकज अवधिया जी और ज्ञान चंद पांडे और एक दो और बलागर बंधुओं की तरफ जा रहा था जिन की इन पुरातन चिकित्सा विधियों में इतनी गहरी ऋद्धा से मैं बहुत प्रभावित हूं......सो , वहां पर कईं फोटो तो मैंने इन के इंटरेस्ट को ध्यान में ही रखते हुए खींचे जो कि मैं अब अपनी इस पतंजलि योगपीठ से संबंधित पोस्टों के साथ आप के साथ शेयर करता रहूंगा। और ये हमें गहराई से इन के बारे में बतलायेंगे।
वहां पहुंचने के बाद , वहां ठहरना भी कोई समस्या नहीं है, डॉरमैट्री आवास मात्र 50 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से , साधारण रूम 300, 400, 550 (क्रमशः सिंगल, डबल और ट्रिपल) और इस से दोगुने रेट में ए.सी कमरे भी उपलब्ध हैं......वैसे हम तो वहां ठहरे नहीं , शाम को वापिस आ गये थे।
वहां पर उपलब्ध सुविधाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करता रहूंगा लेकिन संक्षेप मे तो अभी यही सुझाव दूंगा कि हम लोग दूर-दूर जाते हैं हमेशा अपने परिवार को लेकर छुट्टियां मनाने, उस में यह डैस्टीनेशन आप यह भी जोड़ लें...........यकीन मानिए , देखने वाली जगह है। इतनी सफाई, इतनी शांति ,इतना अनुशासन, इतना ठहराव..............................अगर आप ने प्रकृति के साथ कुछ समय बिताने का फैसला कर लिया है तो इस जगह का कोई जवाब नहीं है।
और हां, यह बताना तो भूल ही गया कि हरिद्वार स्टेशन के बाहर ही से शेयरिंग में आटो-रिक्शा भी मिलते हैं जो प्रति सवारी 20रूपये किराया लेते हैं। बस , अब यही विराम लेता नहीं , अगर पहली ही पोस्ट इतनी लंबी कर दूंगा और अगर आप फिर इस ब्लोग पर आये ही नहीं तो मेरा क्या होगा कालिया........क्या करूं, सब सोचना पड़ता है।
डॉ. साहब। आप की अगली पोस्टों का अधीरता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंबडा ही सुन्दर चित्र है। अगली कडियो की प्रतीक्षा है।
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