अमेरिका में स्वास्थ्य अधिकारी आज कल वहां के 17 स्टेटों में एक तलाश में बेहद मसरूफ हैं। दिसंबर07 के शुरू शुरू में नेपाल मूल की एक 30वर्षीय महिला ने भारत से सैन-फ्रांसिस्को तक हवाई-यात्रा की, जिस दौरान शिकागो में उस का यात्रा-विराम भी हुया- ऐसे ही लगता है कि इस महिला का उस तलाश से क्या संबंध ?- यह महिला इस तरह की टीबी से ग्रस्त है जिस में दवाईयों भी बेअसर होती हैं।
सैन-फ्रांसिस्को पहुंचने के एक हफ्ते बाद जब वह महिला इलाज के लिए स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी अस्पताल में पहुंची तो विशेषज्ञों को उस का परीक्षण करने का बाद यह पता चला कि वह तो टीबी के अति व्यग्र एवं खतरनाक किस्म से ग्रस्त है।
स्वास्थ्य अधिकारियों ने तो इस की सूचना भी दी है कि वह महिला भारत से शिकागो की फ्लाईट के दौरान 35वीं लाइन में बैठी हुईं थीं। स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि उस फ्लाईट में यात्रा कर रहे अन्य 44 यात्री जो उस महिला के इतने आस-पास थे कि उन्हें भी टीबी रोग हो सकता है, लेकिन इस रिस्क को इतना ज्यादा भी नहीं बताया गया है। स्वास्थ्य एजॆंसी ने यह सलाह दी है कि इन सब 44 लोगों को अब टीबी के लिए अपना टैस्ट करवा लेना चाहिए और उस के 10 सप्ताह बाद भी दोबारा से यह टैस्ट करवाना चाहिए। जून2006 से जून 2007 के बीच यह सरकारी स्वास्थ्य एजेंसी ( सेंटर फार डिसीज़ कंट्रोल) लगभग एक सौ ऐसी ही तलाशों में व्यस्त रही।
यह सब आप को भी बहुत हैरत-अंगेज़ लग रहा होगा-- मुझे भी लगा। लेकिन उन देशों में टीबी जैसे संक्रमक रोगों से बचाव के प्रोग्राम कुछ इस तरह के ही जबरदस्त हैं कि हम लोग दांतों तले उंगली दबाते दबाते रह जाते हैं। अब आप ही देखिए एक फ्लाईट में यात्रा कर रही टीबी रोगी के सह-यात्रियों की तलाश और उन्हें अपने टैस्ट करवाने की सलाह। इसे ही कहते हैं बचाव !! दोस्तो, आप भी इस टीबी के बारे में अकसर मीडिया में देखते-पढ़ते रहते होंगे जिस में टीबी की दवाईयां भी कुछ असर नहीं करतीं। इस का कारण ?---मुख्यतः तो यही कि टीबी से ग्रस्त मरीज बीच बीच में इलाज छोड़ देते हैं, पूरा कोर्स करते नहीं, पूरी डोज़ लेते नहीं----और इस सब के साथसाथ आज कल के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो एड्स जैसी बीमारी से जुझ रहे मरीज़ों के लिए भी यह भयंकर किस्म का टीबी रोग जिस में कोई दवा काम नहीं करती, जानलेवा सिद्ध होता है। ऐसे में अमेरिका की स्वास्थ्य एजेंसी कैसे भला कोई चांस कैसे ले सकती है।
दोस्तो, आज मुझे मैडीकल कालेज में अपनी पढाई के दौरान की एक बात याद आ रही है---किसी ने मैडीसन के प्रोफैसर साहब से प्रश्न किया कि सर, हमारे देश में टीबी कितने लोगों को है ?- उन्होंने ने जवाब दिया कि आप इस का कुछ कुछ अंदाज़ा इस बात से लगा लें कि आप जिस बस में यात्रा कर रहे हैं, आप यह मान कर चलें कि उस में एक टीबी से ग्रस्त व्यक्ति है---साथियो, इस बात को ध्यान रखिए कि यह बात 20साल पुरानी है। लेकिन दोस्तो, क्या हम ने उस यात्री के सहयात्रियों को क्या कभी ढूंढने की कोशिश की ??????----ठसाठस भरी हुईं हमारी बसें, बंदे के ऊपर बंदा चढ़ा हुया, बीडी़ के धुएं का लगातार साथ - चाहे खांस-खांस कर पेट दुःखने लग जाए और मुंह पर रूमाल या हाथ रखने का कोई रिवाज़ नहीं--- ऐसे में हम कब उन सहयात्रियों को ढूंढ पाएंगे। वैसे बात सोचने की है या नहीं ,दोस्तो। आप को भी क्या लग नहीं रहा कि दुनिया तो हमारे सिर्फ आंकड़ों के दीवानेपन के बहुत आगे निकल चुकी है। चलिए , हम भी इस से सबक सीखने की कोशिश करते हैं।
Wish you a wonderful 2008 full of HAPPINESS.......HAPPINESS......HAPPINESS....................yes, so much happiness that literally no space is left for anything else to stay on . God bless you all.....take care!!
बहुत सही कह रहे हैं आप । महानगरों में तो केवल भाग्य के सहारे ही मनुष्य जीता है व ऐसे रोगों से बचता है ।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती