रेलवे के वेटिंग रूम के अटैंडैंट के साथ बिना वजह की टसल----सारी खुन्नस उस पर !!
दोस्तो, मुझे ऐसे लोगों से बड़ी शिकायत है जो कि रेलवे के वेटिंग रूम के अटैंडैंटो के साथ यूं ही गर्म हो पड़ते हैं--- मेरी तरह शायद आपने भी बडी़ बार यह नोटिस किया होगा कि जब भी वह किसी यात्री की टिकट देखना चाहता है तो यात्री अकसर भड़क से पड़ते हैं। भई, इस में उस बेचारे का आखिर क्या दोष क्या----उस की जो ड्यूटी है वह तो वही कर रहा है।ि सरकार ने उसे इस काम के लिए ही तो रखा हुया है। अकसर ऊंची श्रेणी से यात्रा करने वाले कुछ यात्रियों में मैंने यह बात नोटिस की है। दो दिन पहले ही जब नई दिल्ली स्टेशन के ऐसे ही एक वेटिंग रूम की परिचारिका ने किसी जैंटलमैन से टिकट के बारे में पूछा, तो उस ने तपाक से उत्तर दिया----तुम क्या समझ रही हो, शताब्दी का टिकट है !! उस की बात सुन कर हंसी भी आई कि भई, इस पर शताब्दी की धाक जमाने की क्या पड़ी है....शताब्दी की टिकट है या राजधानी की....हुया करे, उसे तो बस एक प्रूफ चाहिए। ज्यादा लंबी चौड़ी बात तो है नहीं। इस तरह की टसल मई-जून में तो कुछ ज्यादा ही नहीं आती है----यात्री पसीनो-पसीना, ऊपर से भारी भरकम सूटकेसों ने दिमाग घुमाया होता है या कुलियों के साथ अभी बहसबाजी खत्म नहीं हुई होती कि इस वेटिंग रूम के अटैंडैंट की इस ड्रामे में एंट्री हो जाती है। ऐसे में किस की खुन्नस किस पर निकलती है, कुछ पता नहीं।
वैसे आज कल जब सार्वजनिक स्थानों पर उपद्रवी घटनाएं बढ़ गई हैं, ऐसे में हमें तो उस अटैंडैंट का शुक्रिया ही करना चाहिए कि वह हम सब के लिए एक सुरक्षा चक्र की भूमिका अदा कर रहा है। वैसे भी आप ने नोटिस किया होगा कि इन वेटिंग रूम के बाथ-रूम को प्लेट-फार्म पर घूम रहे यात्रियों द्वारा इस्तेमाल करने की अकसर कोशिश रहती है----अब दिल्ली बम्बई जैसे नगरों में यह एंट्री बिना किसी तरह की रोक-टोक के हो जाएगी तो इन बाथ-रूमों में गदर मच जाएगा, दोस्तो। तो फिर, दोस्तो, अगली बार उस वेटिंग रूम अटैंडैंट के ऊपर हम किसी की खुन्नस न निकालने की शपथ आज ले ही लें।
'इगो' नामक रोग से ग्रसित रहते हैं ऐसे लोग...नियम की बातों के साथ-साथ बुनियादी चाल-चलन घर की तिजोरी में बंद कर ताला लगाकर घर से निकलते हैं..
जवाब देंहटाएंआपने सही समस्या को उठाया है.